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इन्वेस्टिंग के मैकेनिकल रूल

जब मार्केट ऊपर चढ़ रहा हो, तब ऑटोमैटिक सेफ़्टी के रूल लागू करना अच्छा रहता है.

Mechanical rules for investingAnand Kumar

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6:04

ज़ी एंटरटेनमेंट की गिरावट के बीच, मैंने फ़ंड मैनेजर समीर अरोड़ा का एक दिलचस्प ट्वीट देखा. अरोड़ा, जो अब अपनी फ़ंड कंपनी हेलिओस चलाते हैं, 1998-2000 की तेज़ी के दौरान अलायंस म्यूचुअल फ़ंड के फ़ंड मैनेजर हुआ करते थे. अपने ट्वीट में, अरोड़ा ने 25 साल पहले—जनवरी 1998 से क़रीब अप्रैल 2000—का ज़ी एंटरनेटनमेंट स्टॉक प्राइस का स्क्रीन शॉट शेयर किया. इस अर्से में, ज़ी के स्टॉक 24 फ़रवरी 2000 को ₹4.58 से ₹778 के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए थे (स्प्लिट एडजस्ट करने के बाद) और उसके बाद ढह गए थे. ट्वीट में लिखा गया, "वे दिन थे - संयोग से, उस तेज़ी के दौर में ये अलायंस फंड्स की टॉप होल्डिंग थी."

ट्वीट के जवाब में किसी ने पूछा था कि उस फ़ंड को अलांयस ने कब और क्यों बेचा. अरोड़ा की प्रतिक्रिया थी कि उन्हें दो साल तक हर दिन बेचना पड़ा क्योंकि ये स्टॉक उनकी हिस्सेदारी का 10 प्रतिशत था, और ये अधिकतम एक्सपोज़र की सीमा थी जो एक म्यूचुअल फ़ंड एक स्टॉक में रख सकता था. आख़िरकार, जब स्टॉक तेज़ी से गिर रहा था, तब वो शिखर से लगभग 30 प्रतिशत नीचे आ गए. याद रखें, उस दौरान ये स्टॉक लगभग 16,800 प्रतिशत बढ़ा था.

ज़ी के साथ जो हुआ वो आज दिलचस्प नहीं लगता क्योंकि ऐसे शिखर और घाटियां कई शेयरों के इतिहास का हिस्सा हैं. दिलचस्प हिस्सा, जो - स्टॉक में निवेश करने वाले हम सभी के लिए प्रासंगिक - है, कि डाइवर्सिफ़िकेशन और एसेट री-बैलेंस को लागू करने वाला एक सरल सा नियम, फ़ंड के स्टॉक से बहुत अच्छा प्रदर्शन करने में मददगार रहा. जब कोई निवेश तेज़ी से बढ़ रहा हो, तो निवेशक की स्वाभाविक प्रवृत्ति उस पर टिके रहने की होती है और शायद ज़्यादा से ज़्यादा निवेश करने की भी होती है. ऐसा लगता है कि रिटर्न को अधिकतम करने के लिए ये सबसे अच्छा क़दम हो सकता है. और, हर रोज़ की ऊंची क़ीमतों के उत्साह में, निवेश के बुनियादी सिद्धांतों को भूलना आसान हो जाता है.

असल में, भले ही ये मिसाल एक ही स्टॉक की है, पर मुझे लगता है कि ये एसेट एलोकेशन और स्टॉक और फ़िक्स्ड इनकम के बीच, एसेट क्लास के तौर पर री-बैलेंसिंग को समझने का एक अच्छा तरीक़ा है. अगर आप एक यूं ही बचत करने वाले या बिना सोचे समझने निवेश करने वाले हैं, तो आप एसेट एलोकेशन और एसेट री-बैलेंसिंग से परिचित नहीं होंगे. या आप सोच सकते हैं कि ये एक दुरूह काम लगता है और ये कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसके बारे में आपको चिंता करने की ज़रूरत हो. लेकिन असल में, ये कॉन्सेप्ट सीधे-सादे और बड़े काम के हैं. एसेट एलोकेशन और एसेट री-बैलेंस करने का मतलब है अपने सोचे हुए एसेट एलोकेशन को बरक़रार रखने के लिए समय-समय पर अपने पोर्टफ़ोलियो को एडजस्ट करना.

आमतैर पर, इक्विटी निवेश में फ़िक्स्ड इनकम इन्वेस्टमेंट से तेज़ ग्रोथ होती है. ऐसे में, आपको समय-समय पर अपना पोर्टफ़ोलियो री-बैलेंस करते रहना चाहिए. जिसके लिए अपने इक्विटी वाले निवेश का हिस्सा बेच कर फ़िक्स्ड इनकम फ़ंड्स में निवेश करना चाहिए. इससे आपका तय किया हुआ बैलेंस बना रहता है. इसके उलट, जब इक्विटी अच्छे नतीजे नहीं दे रही हो, तब कुछ फ़िक्स्ड इनकम एसेट बेच कर, इक्विटी में निवेश कर देना चाहिए. इस अप्रोच से प्रॉफ़िट बनाने और कम वैल्यू वाले एसेट्स में निवेश का काम सही तरीक़े से हो जाता है. समय के साथ, मार्केट अपना बैलेंस बना लेते हैं, कि जब इक्विटी कम अच्छे नतीजे दे रही है, तो आपने सेफ़ इन्वेस्टमेंट से कुछ प्रॉफ़िट पहले ही बना लिया.

समझने वाली बड़ी बात ये है कि इसे ऑटोमैटिक तरीक़े से होना चाहिए और नियमों या रूल के तहत एक प्रोसेस से होना चाहिए न कि किसी की पसंद-नापसंद के आधार पर. अगर इसे किसी की पसंद-नापसंद के आधार पर किया जाता है, तो ये ज़रूरत के समय ग़लत नतीजे दे देगा. इस स्ट्रैटजी का असर जादू की तरह होता है. ये उतार-चढ़ाव को कम करता है, जो किसी भी इक्विटी निवेशक की सबसे बड़ी चिंता होती है, वहीं इससे रिटर्न बेहतर बने रहते हैं. हालांकि, इसमें काफ़ी काम करने की ज़रूरत होती है, और ये टैक्स भी नहीं बचाता. इसलिए, ज़्यादातर निवेशकों के लिए हाइब्रिड इक्विटी-डेट फ़ंड्स का इस्तेमाल ही सबसे सही रहता है. इन फ़ंड्स में इक्विटी और डेट में री-एलोकेशन फ़ंड के भीतर ही होता रहता है, इसलिए आप पर टैक्स की कोई ज़िम्मेदारी नहीं आती, इसलिए जब तक आप इनसे पैसे नहीं निकालते तब तक टैक्स देने की ज़रूरत नहीं होती.

हालांकि, आज समझने की सबसे बड़ी बात सिर्फ़ एसेट एलोकेशन और री-बैलेंसिंग ही नहीं है, बल्कि ये भी है कि कैसे निवेश के बुनियादी सिद्धांतों का इस्तेमाल अपने-आप आपके निवेश में होता रहना चाहिए और उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए. निवेश में अच्छे नतीजे पाने के लिए तात्कालिक घटनाओं से प्रभावित होने के इंसानी स्वभाव को क़ाबू में रखना ज़रूरी है.


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