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ख़राब निवेश की पहचान ज़्यादा आसान

सेफ़ लैंडिंग के लिए नहीं कहने की ताक़त ज़रूरी

ख़राब निवेश की पहचान ज़्यादा आसानAnand Kumar

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6:08

विमानों की सुरक्षा को लेकर एक कहावत है कि टेकऑफ़ ऑप्शनल है, मगर लैंडिंग कंपलसरी. यानी उड़ान भरना न भरना एक विकल्प होता है, मगर उड़ने के बाद वापस ज़मीन पर उतरना ही होता है. अगर सोचें, तो बात पते की लगती है. किसी विमान के उड़ान भरने से पहले, अगर सुरक्षा को लेकर ज़रा भी शक़ है, तो उड़ान रद्द की जा सकती है. पर, एक बार उड़ गए, तो आपको नीचे आना ही होगा; इससे आप समझौता नहीं कर सकते.

निवेश में भी यही होता है. जैसे कि अगर पायलट को कुछ गड़बड़ लगता है, तो वो टेकऑफ़ रोक सकता है, इसी तरह अगर एक निवेशक को लगता है कि किसी निवेश में बहुत ज़्यादा रिस्क है या रिटर्न को लेकर कोई शक़ है, तो वो निवेश नहीं करने का फ़ैसला कर सकता है. हालांकि, एक बार निवेश हो जाए, तो निवेशक उसे यूं ही नहीं छोड़ सकता; उसे अपने निवेश को तब तक निभाना ही पड़ेगा जब तक किसी तरह की 'लैंडिंग' नहीं हो जाती.

तो, जहां निवेश में उतरना एक विकल्प है, वहीं निवेश से बाहर निकलने के लिए किसी तरह की लैंडिंग ज़रूरी होती है - फिर चाहे ये लैंडिंग मुनाफ़े की हो, नुक़सान की हो, या कहीं इन दोनों के बीच में हो. एक बार निवेश कर लिया तो आप इस खेल का हिस्सा हो गए. अगर आप अपने ख़रीदे स्टॉक को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो या आप पैसे बना सकते हैं, या गंवा सकते हैं. इसके अलावा कोई चारा नहीं है. अजीब बात ये है कि असलियत में, लोग इस बात को लेकर ज़्यादा सोच में रहते हैं कि अगला निवेश कहां किया जाए, बजाए इस बात की चिंता करने के कि पहले से किए निवेश रखा जाए या नहीं.

सुनने में लगता है कि ये तरीक़ा बड़े निर्णायक तरीक़े से सेफ़्टी-फ़र्स्ट वाला है, और है भी. ये कई निवेशकों की अपनी प्रकृति के ख़िलाफ़ भी होता है—यानी उनके मनोविज्ञान के ख़िलाफ़, जिसकी वजह से वो निवेशक बने. ये लोग बुनयादी तौर पर आशावादी होते हैं. आपको ऐसा लग सकता है कि इक्विटी निवेश लोगों को आशावादी बनाता है, मगर ऐसा नहीं है. दरअसल, इसका कारण और प्रभाव इसके विपरीत हैं. जो लोग स्वाभाविक तौर पर आशावादी होते हैं वही इक्विटी निवेशक बनते हैं. इक्विटी में निवेश की शुरुआत के लिए, आपको ये विश्वास होना चाहिए कि आने वाला कल बेहतर होगा.

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ये बात निवेश के बुनियादी स्वभाव से द्वंद्व में रहती है कि ग़लतियों से बचना, किसी शानदार निवेश के फ़ैसले लेने से कहीं ज़्यादा अहमियत रखता है. अपने स्वाभाविक आशावाद से भरे, बहुत से निवेशक स्टॉक चुनने में या दूसरे एसेट्स के चुनाव में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले निवेशों पर ही ध्यान केंद्रित किए रहते हैं. इसके चलते वो लगातार अपने विचार बदलते रहते हैं, उन्हें उम्मीद होती है कि वो ऐसे निवेश को पा जाएं जो उन्हें ऊंची उड़ान पर डाल दे.

जिन वजहों से कोई स्टॉक में निवेश करेगा वो जग ज़ाहिर हैं, जैसे कि मैनेजमेंट क्वालिटी, मुनाफ़ा, ग्रोथ, वैल्युएशन, आदि. हालांकि, निवेशक भूल जाते हैं कि इन फैक्टर्स को स्टॉक में निवेश के संकेत के तौर पर नहीं देखना चाहिए, बल्कि किसी स्टॉक से बचने वाले संकेतों के तौर पर देखना चाहिए. और ये दोनों बातें एक समान नहीं हैं. जब आप इस तरह से सोचते हैं, तो ये फ़ैक्टर निवेश करने या नहीं करने वाले संकेत बन जाते हैं, यानी अगर कोई कंपनी इनमें से एक भी फ़ैक्टर पर खरी नहीं उतरती, तो स्टॉक पर विचार नहीं किया जाता, फिर दूसरे कारक चाहे कितने भी आकर्षक क्यों न हों. इसके एक आसान उदाहरण के तौर पर आप वैल्युएशन को ले लीजिए. निवेश के लिए हर लिहाज़ से शानदार बहुत सी कंपनियां हैं, सिवाए इस बात के, कि उनके स्टॉक ओवरप्राइज़ हैं, यानी, उनका वैल्युएशन बहुत हाई है. अब इसका मतलब साफ़ है कि इन कंपनियों को हाथ भी नहीं लगाना चाहिए.

इस तरह के अनुशासन वाली रणनीति से ये पक्का हो जाता है कि निवेशक किसी खाई में न गिरें, फिर चाहे पहले-पहल निवेश का अवसर उसे कितना ही लुभावना लगे. आप ज़्यादातर संकेतों के सकारात्मक होने से प्रभावित होने के बजाए, ये समझें कि सतर्क और समझदार होना बेहतर होता है, क्योंकि आपके निवेश की एक कमज़ोर कड़ी आपके पूरे निवेश को ख़तरे में डाल सकती है. इक्विटी निवेशों की उतार-चढ़ाव भरी दुनिया में, जहां भावनाएं फ़ैसलों को प्रभावित करती हैं, इस तरह की साफ़ सोच बेशक़ीमती होती है. इसके अलावा, इससे निवेश के फ़ैसलों का दायरा भी छोटा होकर ज़्यादा मैनेज करने वाला हो जाता है.

स्टॉक के चुनाव के दौरान किसे नज़रअंदाज़ करना है ये विचार आकर्षक भी है और काम का भी. जब किसी स्टॉक पर विचार करते समय उसकी ख़ामियां तलाशते हैं, तो उसमें निवेश न करने का फ़ैसला बेहद सरल हो जाता है. ग़लत चुनावों को आप पूरे भरोसे के साथ नकार सकते हैं. किसी निवेश को हां कहने में शक़ बना रहता है, मगर फ़ेल होने वाले निवेश को पहचानने का काम ज़्यादा भरोसे के साथ किया जा सकता है, और भरोसा ही निवेशकों की ज़रूरत होती है.

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