Anand Kumar
पहली नज़र में, ये बदलाव छोटा लग सकता है. सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) के सब्सक्राइबरों के लिए पैसे निकालने का एक और विकल्प दे दिया है. अब रिटायर होने के बाद, 75 साल की उम्र तक आप अपने पेंशन फ़ंड का एक हिस्सा रेग्युलर पेमेंट की तरह ले सकेंगे. ये पेमेंट, सब्स्क्राइबर की पसंद के मुताबिक़ मासिक, तिमाही, छमाही, या सालाना हो सकता है. लोग अपनी पेंशन का 60 प्रतिशत तक इस तरीक़े से निकाल सकते हैं. आने वाले वक़्त में NPS मैनेज करने वाली एजेंसी इसकी ज़्यादा जानकारी साझा करेगी और इस विषय पर पूछे जाने वाले कुछ आम सवालों के साथ, पॉडकास्ट के ज़रिए बताएगी की ये नया विकल्प कैसे काम करेगा. असल में, NPS का ये बदलाव बहुत बड़ा है, और NPS मेंबरों के लिए रिटायरमेंट के बाद की स्थिति को बहुत बेहतर कर देने वाला है.
अब तक, NPS लेने वाले किसी कर्मचारी के रिटायर होने पर: उन्हें बीमा कंपनी से एन्युटी के ज़रिए नियमित आमदनी स्ट्रीम ख़रीदने के लिए अपनी कुल पेंशन बचत के 40 प्रतिशत का इस्तेमाल करना होता है. ये अनिवार्य है. एन्युटी ख़रीदने के लिए इस्तेमाल किए गए धन पर टैक्स नहीं लगता है. हालांकि, एन्युटी से मिलने वाली आमदनी पर इनकम के तौर पर टैक्स लगाया जाता है. बाद में एन्युटी से कमाए गए किसी भी पैसे पर इनकम टैक्स लगता है. बाक़ी 60 फ़ीसदी रक़म एकमुश्त निकाली जा सकती है. ये पैसे टैक्स-फ़्री होते हैं. इसके अलावा, 70 तक पैसा निकालने को टाला जा सकता है. देर से निकालने का फ़ैसला चाहे पूरी राशि निकालनी हो, एन्युटी लेनी हो या एकमुश्त वाले हिस्से के इस्तेमाल की बात हो, ये सब व्यक्तिगत रूप से फ़ैसला किया जा सकता है.
कुल मिलाकर, ये एक लचीला सिस्टम है और इसमें सभी विथड्रॉल टैक्स-फ़्री हैं. हालांकि, टैक्स की ये छूट तब ख़त्म हो जाती है जब आप रिटायर होते हैं और अपना NPS कॉर्पस निकाल लेते हैं. इसके बाद, आपको एन्युटी और निवेश वगैरह से मिलने वाली सारी आमदनी सामान्य इनकम (या कैपिटल गेन, जैसा भी मामला हो) होती है, और उस पर टैक्स लगता है. तो, आज NPS के साथ ये दो समस्याएं हैं. एक तो भविष्य की आमदनी पर टैक्स देना होता है, और दूसरा, जब भी आप एकमुश्त पैसा निकालते हैं, तो आपको पूरी रक़म निकालनी होती है. आप इसे थोड़ा-थोड़ा करके नहीं निकाल सकते.
अब जो बदलाव किए जा रहे हैं, वो इन दोनों मुश्किलों को ठीक कर देते हैं. जैसा कि मैंने इस कॉलम की शुरुआत में बताया, नई व्यवस्था में जब NPS वाले व्यक्ति के रिटायर होने के बाद जब एकमुश्त राशि का इस्तेमाल शुरू करने का वक़्त आता है, तो इसे मासिक, तिमाही या वार्षिक रूप से निकाला जा सकता है. ये 75 साल की उम्र तक जारी रह सकता है. इसका मतलब हुआ कि बाक़ी का हिस्सा, जिसे आप नहीं निकालते हैं, वो निवेश किए जाने वाले NPS फ़ंड में सामान्य रिटर्न पाना जारी रखता है. ये रिटर्न टैक्स-फ़्री हैं, इसलिए समय-समय पर जो पैसे आप निकालते वो टैक्स-फ़्री इनकम होती है. ये उस स्थिति के मुक़ाबले एक सुखद विरोधाभास है जब आप एकमुश्त पैसा निकालते हैं और उसे म्यूचुअल फ़ंड या बैंक डिपॉज़िट जैसी सामान्य बचत में निवेश करते हैं.
इसलिए, रिटायरमेंट के बाद, ये नई SWP सुविधा काफ़ी फ़ायदे वाली है और असल में नेशनल पेंशन सिस्टम में एक बड़े फ़ायदे वाला सुधार है. एकमात्र चीज़ जिसे समझने के लिए मुझे मदद की ज़रूरत है, वो है उम्र की सीमा. 75 साल क्यों? आजकल, 75 साल बुढ़ापा नहीं होता, और बहुत से लोग स्वस्थ रहते हैं और रिटायरमेंट के बाद भी कई साल तक उनके पास दूसरा करियर होता है. NPS में उम्र की सभी सीमाएं मनमानी हैं और असल में इसे रिटायर्ड व्यक्ति पर छोड़ दिया जाना चाहिए. अगर मैं 75 साल की उम्र तक सक्रिय रूप से काम करता हूं और फिर धीरे-धीरे 90 साल की उम्र तक अपना पैसा निकालना चाहता हूं, तो इसमें सरकार को समस्या क्यों होनी चाहिए?
इसी तरह, पैसा निकालने का नया विकल्प NPS के कस्टमर्स के लिए एक गेम-चेंजर है. 75 साल की उम्र तक चरणबद्ध तरीक़े से पैसे निकालने की अनुमति से रिटायर्ड लोगों को रेग्युलर इनकम मिलती है, जो टैक्स-फ़्री होती है. इससे NPS मेंबरों को अपने रिटायरमेंट फ़ंड पर कंट्रोल मिलता है और वो अपनी ज़रूरतों के मुताबिक़ पैसे निकालने का शेड्यूल तय कर सकते हैं. पहले जो एकमुश्त रक़म निकालनी पड़ती थी, उसे अब क़िश्तों में निकाला जा सकता है, जिससे बाक़ी रक़म टैक्स-फ़्री मार्केट रिटर्न पाने का विकल्प मिलता है. ये दूसरे रिटायरमेंट निवेशों के साथ एक एक्स्ट्रा आमदनी का ज़रिया हो सकता है और बहुत से रिटायर होने वालों की रिटायरमेंट प्लानिंग को ट्रांसफ़ॉर्म कर सकता है. दो बड़ी मुश्किलों रही हैं - आमदनी पर टैक्स और अनिवार्य एकमुश्त विथड्रॉल - इन्हें सुलझाने से NPS दूसरी रिटायरमेंट स्कीमों के बराबर आ खड़ा होता है. ये NPS में निवेश करने वालों को अतिरिक्त लचीलापन और लगातार मिलने वाला टैक्स का फ़ायदा दे कर रिटायरमेंट को ज़्यादा सुरक्षित बना देता है.
पर कहना होगा कि NPS की असली मुश्किल अब भी ज्यों का त्यों बनी हुई है. इंश्योरेंस कंपनियों के एन्युटी ऑप्शन (उनकी हर चीज़ की तरह) बेहद महंगे और अंडरपरफ़ॉर्म करने वाले ब्लैक होल हैं, जो रिटायर्ड लोगों की जेब से पैसा निकाल कर इंश्योरेंस वालों का पेट भरते हैं. NPS एन्युटी का लक्ष्य है कि रिटायर होने वालों को रेग्युलर इनकम मिल सके और एक बार में ही सारा पैसा न ख़र्च हो जाए. NPS से एन्युटी वाले हिस्से को अनिवार्य लॉन्ग-टर्म SWP योजना बनाकर, इसी लक्ष्य को बेहतर ढंग से हासिल किया जा सकता है. भारतीय इंश्योरेंस कंपनियों के सेल्फ़-सर्विंग प्रोडक्ट के मुक़ाबले, लॉन्ग-टर्म में पैसे निकालने के लिए NPS एक बेहतर विकल्प है.