पिछले कुछ दशकों में भारतीय स्टॉक मार्केट का प्रदर्शन इस तरह का रहा है कि शायद ही किसी को अपना पैसा गंवाना पड़ा होगा. ये सच है. पिछले पांच साल में मार्केट 1.7 गुना ऊपर गया है, 10 साल में 3.6 गुना, 15 साल में 4.6 गुना, 20 साल में 16 गुना और पिछले 25 साल में 22 गुना बढ़ा है.
देखें, तो लगता है कि ऐसे हाई परफ़ॉर्म करने वाले मार्केट के बारे में कोई भी यही सोचेगा कि निवेशक तो सिर्फ़ मार्केट में बना रहे और कुछ बुनियादी नियमों को फ़ॉलो करे, जैसे ख़राब निवेश न चुनें और डाइवर्सिफ़ाई करें. पूंजी बनाने के लिए बस इतना ही करना है. बुनियादी तौर पर तो ये बात सही है, लेकिन ज़्यादातर निवेशक कहीं न कहीं गड़बड़ कर बैठते हैं. कई लोग, या शायद ज़्यादातर, तो अपने ब्रोकर के कहने में आ कर आगे क्या होगा इसका अनुमान लगाने लगते हैं या आज जैसे माहौल में, मार्केट से जुड़े सोशल मीडिया से प्रभावित होकर शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग में जुट जाते हैं. कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बेसिक रिसर्च और डाइवर्सिफ़िकेशन की तरफ़ ध्यान ही नहीं देते. फिर जल्दी ही उन्हें बड़ा नुक़सान होना शुरू हो जाता है और फिर या तो वो अपने निवेश का रास्ता ही बदल देते हैं या निवेश से बाहर हो जाते हैं.
मैं मानता हूं कि स्टॉक मार्केट के निवेश में लोगों को मुश्किल होने का बुनियादी कारण यही है कि स्टॉक को चुनने का उनका मनोवैज्ञानिक मॉडल काफ़ी ज़्यादा ग़लत होता है.
इसका सबसे आम मॉडल है: 'ऐसे लोग होते हैं जो जानते हैं कि कब स्टॉक का प्राइस बढ़ने वाला है. अगर उनमें से कोई मुझे बता दे, तो मैं पैसे बना सकता हूं.' ये कहलाता है स्टॉक मार्केट का 'टिप' मॉडल. ये मॉडल होने के बजाए एक तरह की कमी ज़्यादा है. इस ‘टिप’ मॉडल से कुछ बड़ा है ‘ऑपरेटर’ मॉडल. ऑपरेटर मॉडल के तहत, लोग मानते हैं कि ऐसे लोग ("ऑपरेटर") हैं जो स्टॉक मैन्युपलेट करते हैं और ये पता लगाने वाली बात है वो ये कि ये ऑपरेटर क्या कर रहे हैं और फिर किसी तरह, तब उस स्टॉक को लें जब ये ऑपरेटर उसे आगे बढ़ा रहे हों. ये मॉडल कुछ छोटे स्टॉक के लिए ठीक हो सकता है मगर ये तरीक़ा सिर्फ़ ऑपरेटरों के लिए ही काम का होता है. जो लोग इसमें पड़ते हैं वो अपना ‘और बड़ा उल्लू’ बनवा लेते हैं जिसकी ज़रूरत इन चालाक ऑपरेटरों को होती है.
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बड़े आदमी का डर
इन दोनों मॉडलों में जो मनोवैज्ञानिक कारण झलकता है, वो बड़े आदमी का डर है. निवेशकों का मानना है कि कुछ दूसरे लोग भी हैं - कुछ तरह के पेशेवर निवेशक - जिनके पास कोई जादू है, जो छोटे आदमी के पास नहीं है. ये कुछ हद तक सही है. मेरा मतलब है कि अच्छे निवेश में एक जादू है, लेकिन छोटा आदमी भी इसमें महारत हासिल कर सकता है और जादूगर बन सकता है.
निजी तौर पर, जब मैं बहुत छोटा था तो मैं इसे समझने को लेकर भाग्यशाली रहा, और केवल इसलिए क्योंकि पीटर लिंच की शानदार क़िताब, 'वन अप ऑन वॉल स्ट्रीट' मेरे हाथ लग गई. किसी भी आम निवेशक को पीटर लिंच को पढ़ने से नहीं चूकना चाहिए.
मुट्ठी भर विजेता
अगर आप पांच से 10 बड़ी उपलब्धियों वाले शेयरों का पोर्टफ़ोलियो बनाते हैं, तो इस बात की अच्छी संभावना है कि उनमें से एक न एक तो 10-, 20-, या यहां तक कि 50-बैगर बन जाएगा, जिसमें आप अपने निवेश का 10, 20, या 50 गुना बना सकते हैं. अपने पूरे निवेश को इन मुट्ठी भर निवेशों में करने के बाद, ज़िंदगी भर का बेहतर रिटर्न पाने के लिए इस तरह के कुछ ही नतीजों की ज़रूरत होती है.
वॉल स्ट्रीट की सबसे पुरानी कहावतों में से एक है "अपने विनर्स को दौड़ने दीजिए और लूजर्स से किनारा करते रहिए." ग़लती करना और उसके उलट काम करना, फूलों को उखाड़ना और खरपतवारों को पानी देना आसान है. ... अगर आप इतने भाग्यशाली हैं कि आपके पोर्टफ़ोलियो में एक सुनहरा अंडा है, तो इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आपके पास कुछ सड़े हुए अंडे भी हैं. मान लीजिए कि आपके पास छह शेयरों का पोर्टफ़ोलियो है. उनमें से दो औसत हैं, उनमें से दो औसत से नीचे हैं, और एक बिल्कुल बेकार है. लेकिन आपके पास एक शानदार प्रदर्शन करने वाला भी है. आपका कोका-कोला, आपका जिलेट है. एक ऐसा स्टॉक, जो आपको याद दिलाता है कि आपने सबसे पहले निवेश क्यों शुरू किया था. दूसरे शब्दों में, शेयरों में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए आपको हर समय सही रहना ज़रूरी नहीं है.
जादू कैसे किया जाए
संक्षेप में, ये हमें कुछ चरणों की तरफ़ ले जाता है: संभावित शेयरों की पहचान करें जो लगातार अच्छा प्रदर्शन करेंगे, उन पर रिसर्च करें, उन्हें ख़रीदें और उन्हें ट्रैक करें. सवाल ये है कि एक पेशेवर जितना वक़्त और कोशिश के बिना ये सब कैसे किया जाए. मुझे यक़ीन है कि आप इसका जवाब जानते हैं.
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