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महिलाओं के निवेश

आज तेज़ी से तरक़्क़ी करते भारत में महिलाओं के लिए इससे अच्छा वक़्त पहले कभी नहीं रहा

महिलाओं के निवेश

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दुनिया बदल रही है, और भारत भी.

हम तेज़ विकास के दौर में हैं. आर्थिक नज़रिए से महिलाओं के लिए इससे बेहतर समय शायद ही पहले कभी रहा हो. आज, पहले से कहीं ज़्यादा महिलाएं अपनी आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हैं. पर हां, अब भी वो उस स्थिति में नहीं पहुंच पाई हैं जहां उन्हें होना चाहिए.

तो, चलिए देखते हैं कि कैसे महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति और मज़बूत कर सकती हैं.

महिलाओं और पैसों से जुड़े मिथक
महिलाओं के निवेश से दूर रहने को लेकर कुछ आम धारणाएं और मिथक हैं.

इनमें सबसे बड़ा मिथक है कि महिलाओं को फ़ाइनांस की समझ नहीं होती या वो जमा-ख़र्च और निवेश का गणित कम समझती हैं. एक और भ्रांति है कि महिलाएं पैसा मैनेज नहीं कर पातीं और रिस्क से भी डरती हैं.

और ऊपर से ये भी मान लिया जाता है कि ख़र्च को लेकर महिलाओं का हाथ बहुत खुला होता है, और इसी लिए लोग मान बैठते हैं कि महिलाओं का अच्छा निवेशक होना मुश्किल है.

सच क्या है
असल में ये मिथक, महिलाओं को लेकर भेदभाव भरी सोच का नतीजा भर हैं. पैसों से जुड़े समझदारी भरे फ़ैसलों के लिए, किसी को गणित (maths) और सांख्यकी (statastics) का पंडित होने की ज़रूरत नहीं है.

हालांकि भारत में ऐसी कोई रिसर्च मौजूद नहीं है, लेकिन विकसित देशों की कुछ रिपोर्ट दिखाती हैं कि महिलाओं का ज़्यादातर ख़र्च घर के ज़रूरी सामान और कामों पर होता है, जैसे - खाना, कपड़े, दवाइयां आदि. उनकी बचत के कम होने की यही बड़ी वजह है, और उनके ज़्यादा ख़र्चीले होने के मिथक को यहीं से हवा मिलती है.

हालांकि हमारा अपना अनुभव कहता है कि घर ख़र्च के छोटे बजट के बावजूद, हमारे परिवारों की महिलाएं, कई सदियों से पैसे जोड़ती रही हैं. आज इसे और बढ़ाने के लिए उन्हें बस इतना ही और करना होगा कि वो अपने बचाए हुए पैसों को सही क़िस्म के निवेशों में लगाएं.

वैसे पैसों से जुड़े फ़ैसले कोई रॉकेट साइंस तो हैं नहीं. फ़ाइनांस के लिए तो आम दुनियावी समझबूझ उतने ही काम की होती जितना कोई दूसरा तरीक़ा, और महिलाओं में तो समझदारी कूट-कूट कर भरी होती है. वैसे जहां तक निवेश के ज़्यादा तकनीकी पहलुओं का सवाल है, उसकी सलाह के लिए तो एक्सपर्ट हैं ही. ठीक वैसे ही जैसे पुरुषों के लिए होते हैं.

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ये कैसे बदल रहा है
महिलाओं के लिए अपने फ़ाइनांस की चाभी अपने हाथ में रखने के लिए, इस खेल को कई स्तरों पर बदलना होगा. हालांकि ये बदलाव शुरू हो चुका है और काफ़ी हद तक नज़र भी आने लगा है.

मिसाल के तौर पर, राष्ट्रीय स्तर पर, भारत की हालिया आर्थिक ग्रोथ मुश्किल हालातों के बावजूद एक बड़ी जीत से कम नहीं है. इस अफ़तफ़री से भरे दौर में IMF और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाएं भारत की अर्थव्यवस्था के जुझारूपन की प्रशंसा करते नहीं थक रहीं.

यानी, आज भारत में महिलाओं के लिए निवेश के कहीं ज़्यादा मौक़े हैं. दूसरी तरफ़, महिलाओं में उद्यमशीलता (entrepreneurial) बढ़ने से उनकी आमदनी भी बढ़ी है, जिसमें STEM एजुकेशन, रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिशें, और सुरक्षा के इंतज़ामों से महिलाओं को मदद मिली है.

महिलाओं के निवेश

AMFI का ताज़ा डेटा दिखाता है कि 2019 दिसंबर और 2022 दिसंबर के बीच, 18-24 साल की महिलाओं का म्यूचुअल फ़ंड्स निवेश, चार गुना (62 प्रतिशत की एनुअलाइज़्ड ग्रोथ) से ज़्यादा बढ़ा.

इसी तरह, इसी दौरान 25-35 साल की महिला निवेशकों की संख्या दोगुनी (33 प्रतिशत बढ़ी) हो गई. हालांकि, बड़ी उम्र की महिलाओं में ये बढ़त धीमी रही, और 11 प्रतिशत की सालाना ग्रोथ दर्ज की गई.

महिलाओं के निवेश

अपने निवेश का सफ़र कैसे शुरू करें
अगर आपने अब तक निवेश की शुरुआत नहीं की है, तो हमारी पहली सलाह होगी कि निवेश शुरू करने के लिए इससे बेहतर समय और नहीं मिलेगा. तो, ये शुरुआत अभी करें.

इसके अलावा, जब बात सही निवेश के चुनाव की हो, ख़ासतौर पर निवेश की शुरुआत में, तो एक्सपर्ट सलाह या प्रोफ़ेशनल मदद लेने में हिचकिचाएं नहीं.

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याद रखिए, निवेश के सिद्धांत और देश की आर्थिक स्थिति, पुरुषों और महिलों पर एक जैसा असर करते हैं. तो, निवेश को लेकर जो सलाह पुरुषों के लिए सही है, वही महिलाओं की निवेश यात्रा के लिए भी सही रहेगी. हालांकि, आप इन आसान सी बातों का ध्यान रखते हुए अपने निवेश का सफ़र शुरू करें, तो और भी अच्छा होगा.

  • अनुशासन के साथ अपनी निवेश यात्रा शुरू करें. आप ₹500 से भी कम में अपनी SIP शुरू कर सकती हैं, और इसके लिए अपना KYC और ऑनलाइन पेमेंट का काम पूरा कर लें.
  • निवेश लगातार करें. अपने निवेश की रफ़्तार कम नहीं होने दें, निवेश को भूलें नहीं, और न ही ऊब कर निवेश बंद करें.
  • निवेश का अगला स्टेप होता है अपना गोल या लक्ष्य तय करना. आपके कई गोल हो सकते हैं. इनमें से कुछ शॉर्ट-टर्म और कुछ लॉन्ग-टर्म हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर, रिटायरमेंट एक लॉन्ग-टर्म गोल है, वहीं कार ख़रीदना एक शॉर्ट-टर्म गोल कहलाएगा. अपने लॉन्ग-टर्म गोल के लिए, आपको पांच साल या इससे ज़्यादा समय के लिए लगातार निवेश करना चाहिए. एक शॉर्ट-टर्म गोल, तीन साल तक का माना जाता है.
  • सही फ़ंड का चुनाव करें. ये अहम क़दम कुछ मुश्किल लग सकता है, मगर ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है.
  • अगर आप एक शॉर्ट-टर्म गोल के लिए निवेश कर रही हैं, तो डेट फ़ंड आपके लिए अच्छा रहेगा. किसी लॉन्ग-टर्म गोल के लिए, कोई इक्विटी फ़ंड बेहतर होगा. इससे आपके रिस्क और रिटर्न में सही बैलेंस बना रहता है.
  • अगर आप इक्विटी फ़ंड में पहली बार निवेश कर रही हैं, तो शुरुआत में अग्रेसिव-हाइब्रिड फ़ंड से आपको फ़ायदा मिलेगा. इससे आपका रिस्क कम हो जाएगा और दो से तीन साल में ही आपको इस निवेश के फ़ायदे दिखने लगेंगे.
  • एक बार आपको मार्केट की बेहतर समझ हो जाए, तो आप आसानी से, अच्छे रिटर्न पाने के लिए प्योर इक्विटी फ़ंड्स में निवेश शुरू कर सकते हैं, जैसे कि फ़्लेक्सी-कैप फ़ंड.
  • अपनी SIP धीरे-धीरे बढ़ाएं. अगर आप कामकाजी महिला हैं, तो SIP को अपनी आमदनी के हिसाब से बढ़ाती रहें. अगर आप घरेलू महिला हैं, तो जब भी कोई गिफ़्ट के तौर पर कैश मिले, या कहीं से भी अतिरिक्त धन मिले, तो उसे आप निवेश में लगाने के बारे में सोचें.
  • याद रखें, आपकी सफलता, लगातार निवेश करने में है. इस निवेश से आप किसी भी इमरजेंसी से निपट सकेंगी, या बुढ़ापे के लिए कुछ धन जमा कर पाएंगी.

ये संदेश सरल है.

बचत और निवेश और आर्थिक तौर पर सशक्त होने जैसी बुनियादी बातों का आपके महिला या पुरुष होने से कोई लेना-देना नहीं है. आपको अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर किसी रूढ़ीवादी दायरे में सीमित होने की ज़रूरत नहीं. महिलाएं अपना पैसा ख़ुद मैनेज कर सकती हैं, और वो भी सफलता के साथ.

एक और अहम बात नोट कर लें कि बचत और निवेश, ये दो बातें एक समान नहीं हैं. और, अगर आप अपना पैसा बढ़ाना चाहती हैं, तो आपको अपनी बचत के पैसों से निवेश की शुरुआत तुरंत कर देनी होगी.

भारत तरक़्क़ी के एक शानदार दौर की दहलीज पर खड़ा है. उम्मीद है कि अगले 25 साल में, पिछले 75 साल की कोशिशों का शानदार नतीजा देश को मिलने वाला है. और कोई वजह नहीं कि महिलाएं इस सुनहरे काल का फ़ायदा नहीं उठाएं!

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