ज़्यादातर लोग अपने लॉन्ग-टर्म गोल के लिए निवेश करते हैं. लेकिन जिस पैसे की उन्हें जल्दी ही ज़रूरत पड़ सकती उस पैसे को लेकर वो रिस्क नहीं लेना चाहते. इसके लिए आमतौर पर बैंक खातों में पैसा रखना बेहतर समझा जाता है. जहां रिस्क भले ही कम होता है, लेकिन ब्याज महज़ 3-4 फ़ीसदी ही मिलती है. हालांकि, ज़्यादा रिटर्न पाने के विकल्प मौजूद हैं. लेकिन जानकारी के अभाव में निवेशक इसका फ़ायदा नहीं उठा पाते. हम यहां पर हम ऐसे ही सुरक्षित मगर बैंक से ज़्यादा ब्याज देने वाले तरीक़े की बात कर रहे हैं.
शॉर्ट-टर्म गोल
नाम से ही साफ़ है कि ये ऐसे लक्ष्य होते हैं जो शॉर्ट-टर्म यानी थोड़े समय में आने वाले होते हैं. ये 2-3 साल बाद बच्चों के स्कूल एडमिशन के लिए पैसों की ज़रूरत हो सकती है, एक-दो साल में नई कार ख़रीदना या छः महीने बाद छुट्टियों में घूमने की प्लानिंग हो सकती है. शॉर्ट-टर्म गोल दो तरह के होते हैं...
1. नेगोशिएबल गोल
ये ऐसे गोल या ज़रूरतें हैं जिन्हें आप टाल भी सकते हैं. यानी आप ये ख़र्च करना तो चाहते हैं मगर नहीं करने पर कोई बहुत बड़ा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. गाड़ी या कोई महंगा फ़ोन ख़रीदने का ख़र्च और इसी तरह के तमाम ख़र्च इस श्रेणी में आते हैं.
2. नॉन-नेगोशिएबल गोल
ऐसे गोल जिन्हें आप टाला नहीं सकते. ये हमारी बुनियादी और बड़ी ज़रूरतों के बड़े ख़र्च हो सकते हैं, जैसे - बच्चों की पढ़ाई का ख़र्च या अपना घर ख़रीदने का प्लान.
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शॉर्ट-टर्म इन्वेस्टमेंट की स्ट्रैटेजी क्या हो?
शॉर्ट-टर्म गोल के लिए निवेश करते समय आपकी निवेश स्ट्रैटेजी ज़्यादा सुरक्षित होनी चाहिए. इसमें ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत है क्योंकि इस पैसे की ज़रूरत आपको जल्दी ही पड़ने वाली होती है. आमतौर पर निवेशक शॉर्ट-टर्म निवेश करते समय बहुत ज़ल्दबाज़ी कर देते हैं, जिसका खामियाज़ा उन्हें अक्सर अपने नुक़सान में और यहां तक कि निवेश डूब जाने के तौर पर भुगतना पड़ता है.
वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार का कहना है कि कम समय में ज़्यादा रिटर्न की बात एक ट्रैप की तरह है. इससे आपको बचना चाहिए. दरअसल, आप की उम्मीदें जितनी ज़्यादा होंगी, आपके बिना सोचे-समझे निवेश करने के चांस उतने ज़्यादा हो जाएंगे. याद रखें कि हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती तो शार्ट-टर्म गोल्स में निवेश करते समय सब्र से काम लें.
शॉर्ट-टर्म के लिए कहां करें निवेश?
धीरेंद्र कुमार का कहना है कि शॉर्ट-टर्म के लिए आपको बहुत कंज़रवेटिव होकर निवेश करना चाहिए. आपका शॉर्ट-टर्म निवेश आपके गोल को पूरा करने में लगने वाले समय पर निर्भर करता है. साथ ही आपका शॉर्ट-टर्म गोल कितना निगोशिएबल है, इससे भी काफ़ी फ़र्क़ पड़ता है. आप अपने नॉन-नेगोशिएबल या टाले न जाने वाले लक्ष्य के लिए बैंक, लिक्विड फ़ंड या अल्ट्रा शॉर्ट फ़ंड में निवेश कर सकते हैं और अपने नेगोशिएबल गोल के लिए निवेश में थोड़ा चांस ले सकते हैं. इसमें बेहतर रिटर्न पाने के लिए आप कंज़रवेटिव हाइब्रिड फ़ंड या कोई और फ़ंड चुन सकते हैं.
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डेट फ़ंड या बैंक डिपॉज़िट?
डेट फ़ंड (debt fund) या बैंक डिपॉज़िट (bank deposit) काफ़ी हद तक एक जैसे ही निवेश हैं. इन दोनों में आपको क़रीब-क़रीब फ़िक्स्ड रिटर्न मिलता हैं. हालांकि, डेट फ़ंड्स में आपको बैंक डिपॉज़िट की तुलना में ज़्यादा रिटर्न मिलने की उम्मीद होती है. डेट फ़ंड का एक और फ़ायदा है कि निवेश करने पर आपको काफ़ी लिक्विडिटी मिलती है. यानी इस पैसे को आप जब चाहे इस्तेमाल कर सकते हैं. डेट फ़ंड्स का प्राइस हमेशा बदलता रहता है और इसका प्राइस ज़्यादातर बढ़ता ही है.
डेट फ़ंड की एक और ख़ास बात ये है कि जब तक आप इन्हें बेचते नहीं है, तब तक इसके रिटर्न पर कोई टैक्स नहीं लगता है. वहीं, बैंक डिपॉज़िट पर मिलने वाला सालाना रिटर्न आपकी इनकम में जुड़ने से आपकी टैक्स लायबिलिटी बढ़ जाती है.
तो याद रखिए कि अपने शॉर्ट-टर्म गोल्स को पूरा करने के लिए भी पूरी समझदारी से निवेश करना ज़रूरी है.
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