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ESG का छलावा

ESG म्यूचुअल फ़ंड्स का सैलाब आ रहा है मगर हम आपको इससे बचने के लिए कहेंगे...

ESG का छलावाAnand Kumar

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पिछले हफ़्ते, म्यूचुअल फ़ंड रेग्युलेटर सेबी ने हर म्यूचुअल फ़ंड कंपनी को 06 ESG (environmental, social and governance) फ़ंड्स लॉन्च करने की इजाज़त दे दी. अब तक, एक फ़ंड कंपनी एक ही ESG फ़ंड लॉन्च कर सकती थी. अब, बजाए एक आम ESG फ़ंड के, हर AMC, ESG के तय किए गए 06 सब-टाइप के एक-एक फ़ंड रख सकती है. इनके नाम इस तरह से हैं: एक्सक्लूज़न, इंटीग्रेशन, बेस्ट-इन-क्लास एंड पॉज़िटीव स्क्रीनिंग, इंपैक्ट इन्वेस्टिंग, सस्टेनेबल ऑबजेक्टिव, और ट्रांज़िशन या ट्रांज़िशन-रिलेटेड. मुझे यक़ीन है, एक निवेशक के तौर पर आपको ये अच्छी ख़बर लगेगी और आप इन ESG स्कीमों को बेहतर तरीक़े से समझना चाहेंगे.

हालांकि, मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि इन्वायरमेंटल, सोशल और गवर्नेंस के मक़सद को बढ़ावा देने का जो ये काम रेग्युलेटर ने किया है, उस पर फ़ंड इंडस्ट्री फूली नहीं समा रही. अब ये बात तो हर कोई जानता है कि ज़्यादा फ़ंड लॉन्च करना म्यूचुअल फ़ंड कंपनियों की दाल-रोटी है. फिर चाहे ख़ूब सारे फ़ंड, निवेशकों के लिए भ्रम ही क्यों न पैदा करें, और फ़ंड्स को समझना ज़्यादा मुश्किल ही क्यों न बना दें.

वैल्यू रिसर्च में, हमने हमेशा ज़ोर दिया है कि सभी सेक्टोरल, थीमैटिक और इसी तरह के फ़ंड्स से बचना चाहिए. फिर चाहे उनके ट्रैक रिकॉर्ड, क्वालिटी, और उपयोगिता को लेकर कैसा भी प्रचार किया जा रहा हो. हर फ़ंड, जो किसी थीम को फ़ॉलो करता है उसके लिए एक सोची-समझी और लुभावनी कहानी गढ़ी गई होती है. हालांकि, सामान्य डाइवर्सिफ़ाइड इक्विटी फ़ंड, इनसे बेहतर ही रहते हैं.

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हो सकता है किसी ख़ास समय में, कोई एक थीम या कोई एक सेक्टर, दूसरों की तुलना में निवेशकों को ज़्यादा काम का लगे. लेकिन ये बिल्कुल ज़रूरी नहीं कि निवेश की किसी थीम को सूट करने वाला समय आपके, यानी एक निवेशक के लिए भी सही हो. और अगर आपका ज़्यादातर पैसा (या पूरा पैसा) किसी अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले सामान्य फ़ंड में लगा है, तो उस फ़ंड का फ़ंड मैनेजर, बिना थीम या सेक्टर के बंधन के, अपने हिसाब से किसी भी स्टॉक में पैसा लगा सकता है.

और इसी तरह, जब सेक्टर या थीम के पुराने कॉन्सेप्ट की तुलना ESG होती है, तो ESG मुझे बद से बदतर लगने लगता है. इसका कारण है कि ESG का अपना एक अलग सत्य है. मिसाल के तौर पर, अगर आप एक टेक्नोलॉजी फ़ंड या एक फ़ाइनेंशियल सर्विस फ़ंड लेने के बारे में सोचते हैं, तो उसकी एक सटीक परिभाषा करना संभव है. यानी आप जान सकते हैं कि टेक्नोलॉजी या फ़ाइनेंशियल सर्विस क्या होती हैं. हालांकि यहां भी लोग परिभाषा के साथ खिलवाड़ और खींचतान करते हैं, मगर निवेश को थोड़ा-बहुत जानने वाले निवेशक भी इस चालाकी को आसानी से भांप सकते हैं. मिसाल के तौर पर, एक कंपनी को फ़ाइनेंशियल सर्विस के तौर पर परिभाषित करना किसी सर्टिफ़िकेट या किसी घोषणा पर निर्भर नहीं करता. जैसे मान लीजिए कि एक टायर कंपनी कहती है कि हम अपने आर्टिकल ऑफ़ असोसिएशन, और एक एजेंसी के सर्टिफ़िकेट के आधार पर एक फ़ाइनेंशियल सर्विस हैं. अब ये सुन कर तो निवेशक हंसेंगे ही.

अब यहीं, ESG केवल घोषणा, इरादे, और सर्टिफ़िकेशन की बात लगता है. और जहां तक सर्टिफ़िकेशन और रेटिंग की बात है, तो पिछले साल एक बड़ी स्टडी में सामने आया है कि क़रीब 70+ प्रतिशत कंपनियों की ESG रेटिंग अलग-अलग एजेंसियों में मेल नहीं खाती. इसका मतलब हुआ कि ये बेमानी है. इस प्रक्रिया के बेतुके होने का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण पिछले साल का ही है, जब टेस्ला को S&P ESG इंडेक्स से इसलिए बाहर कर दिया गया, क्योंकि कंपनी की कार्बन-उत्सर्जन (carbon emission) कम करने की स्ट्रैटजी में कमी लगी. अब अगर, किसी एक बिज़नस ने अकेले अपने दम पर पूरी दुनिया की ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री को कार्बन-उत्सर्जन कम करने के रास्ते पर डाला है, तो वो टेस्ला ही है. मगर S&P ने पाया कि Tesla की तो कोई स्ट्रैटजी ही नहीं है!

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अब देखते हैं कि एक आम निवेशक की नज़र में ESG का तर्क क्या है? शायद आप ये समझते हैं कि इस तरह के निवेश में 'भलाई' करने का कोई पहलू है. इसलिए आप ये निवेश कर सकते हैं फिर चाहे रिटर्न कुछ कम भी मिलें. तो, क्योंकि ये किसी-न-किसी वृहद स्तर पर 'भलाई' की बात है इसलिए आप ऐसा करना चाहेंगे. हालांकि, आप समझ ही सकते हैं कि इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर को अपने निवेश का एक अलग मापदंड चाहिए. उसकी ज़रूरत है कि वो रिटर्न को लेकर किसी तरह का समझौता न करे. मगर सिद्धांत कहता है कि ESG के रास्ते पर न चलने से आगे चलकर कंपनी को जोख़िम का सामना करना पड़ता है, इसलिए अगर हम ESG-कंप्लायंट कंपनियों में निवेश करेंगे तो रिटर्न बेहतर होगा. अब आप इसे बुनियादी तौर पर देखें, तो हुआ ये है कि ESG रेटिंग कंपनियों ने इस बात की ज़िम्मेदारी अपने-आप पर ले ली है कि सारे निवेश उनसे गुज़र कर जाएं क्योंकि मार्केट ख़ुद इसे सही तरीक़े से नहीं कर सकता है. ये लाइसेंस राज की तरह है. और लाइसेंस राज के दिनों में यही रोल प्लानिंग कमीशन का हुआ करता था. कमोबेश, ESG एक ग्लोबल लाइसेंस राज है जहां एक कमेटी फ़ैसला करती है कि कौन से बिज़नस सामाजिक तौर पर काम के हैं और कौन से नहीं. ये समझना मुश्किल नहीं कि ये सब कितना क़ारगर साबित होगा.

अगर आप इस बेतुके तरीक़े पर अपनी मेहनत की कमाई जोख़िम में डालना चाहते हैं, तभी आगे बढ़िएगा—बस इसकी असलियत के बारे में कोई भ्रम मत पालिएगा.

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