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Expense Ratio का आपके रिटर्न पर असर

आपके निवेश के मुनाफ़े को एक्सपेंस रेशियो कितना कम कर सकता है?

Expense Ratio का आपके रिटर्न पर असर

What is an expense ratio? आमतौर पर जब भी अपने लिए सबसे अच्छा म्यूचुअल फ़ंड चुनने की बात आती है तो फंड्स के पिछले परफ़ॉर्मेंस पर ही ग़ौर किया जाता है. हालांकि, एक और डेटा है जिस पर ध्यान देना चाहिए, और ये है एक्सपेंस रेशियो. एक आम इन्वेस्टर अक्सर इसकी अनदेखी कर देता है. हम यहां पर इसके आपके निवेश पर पड़ने वाले असर और इसकी अहमियत के बारे में बता रहे हैं.

क्या होता है एक्सपेंस रेशियो
Expense Ratio Meaning: एक्सपेंस रेशियो वो फ़ीस है, जिसका आप यानी निवेशक, अपने पैसे के प्रबंधन के लिए म्यूचुअल फ़ंड कंपनियों को भुगतान करते हैं. इसमें फ़ंड मैनेजमेंट फ़ीस, एजेंट कमीशन, सेलिंग और प्रचार संबंधी ख़र्च शामिल होते हैं. आइए एक्सपेंश रेशियो के बारे में कुछ विस्तार से समझते हैं.

कितना होता है एक्सपेंस रेशियो
Expense Ratio Range: एक इक्विटी फ़ंड के लिए एक्सपेंस रेशियो 0.5 से 2.50 फ़ीसदी की रेंज में हो सकता है. हो सकता है कि ये आपको ज़्यादा नहीं लग रहा हो, लेकिन लंबे समय में ये आपके रिटर्न में भारी सेंध लगा सकता है. 1.5 फ़ीसदी का एक्सपेंस रेशियो आपको निवेश पर मिलने वाले रिटर्न में से 40 फ़ीसदी को साफ़ कर सकता है. लगभग 1 फ़ीसदी एक्सपेंस रेशियो निवेश पर मिलने वाले आपके रिटर्न में लगभग 30 फ़ीसदी सेंध लगा सकता है.

अब आप समझ गए होंगे कि एक्सपेंस रेशियो आपको कितना नुक़सान पहुंचा सकता है.

ये भी पढ़िए- म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कैसे करें? निवेश शुरू करने वालों के लिए इन्वेस्टमेंट गाइड

आपको क्या करना चाहिए?
अब आपको समझ में आ गया होगा कि आपको एक ऐसा म्यूचुअल फ़ंड चुनना चाहिए जिसका एक्सपेंस रेशियो कम हो.

लेकिन क्या फ़ंड चुनने के लिए कम एक्सपेंस रेशियो ही काफ़ी है? ऐसा ज़रूरी नहीं; एक फ़ंड को पहले एक अच्छा कंपाउंडर होना चाहिए. इसका मतलब है कि एक फ़ंड को लंबे समय में लगातार फ़ायदेमंद होना चाहिए.

एक मिसाल से समझिए
यहां दो फ़ंड हैं- A और B. फ़ंड A सालाना 10 फ़ीसदी रिटर्न देता है और 1 फ़ीसदी फ़ीस वसूलता है. फ़ंड B सालाना 12 फ़ीसदी रिटर्न देता है और फ़ीस के रूप में 1.5 फ़ीसदी वसूलता है. अब, अगर आप 40 साल की अवधि के साथ ₹10 लाख निवेश करने की योजना बनाते हैं, तो फंड A से आपको ₹4.50 करोड़ मिलेंगे, जबकि फंड B से ₹5.42 करोड़ मिलेंगे. स्पष्टतः, B ने A से लगभग 20 फ़ीसदी ज़्यादा रिटर्न दिया.

इससे साबित होता है कि एक्सपेंस रेशियो ही एकमात्र मीट्रिक या पैमाना नहीं है जिस पर फ़ंड चुनने से पहले विचार करना चाहिए. फ़ंड को लगातार रिटर्न भी देना चाहिए.

दोनों फ़ंड्स में 40 साल के लिए ₹10 लाख किए निवेश

फ़ंड A की तुलना में फ़ंड B ने दिया ज़्यादा रिटर्न

रिटर्न (% प्रति वर्ष) एक्सपेंस रेशियो (%) वैल्यू (करोड़ ₹)
फ़ंड A 10 1 4.5
फ़ंड B 12 1.5 5.42

म्यूचुअल फ़ंड्स के डायरेक्ट प्लान चुनें
एक्सपेंस रेशियो से आपके रिटर्न को होने वाले नुक़सान से बचाने के लिए सबसे आसान और अच्छा तरीक़ा ये है कि म्यूचुअल फ़ंड के डायरेक्ट प्लान को चुना जाए. फ़ंड्स के रेग्युलर प्लान्स की तुलना में डायरेक्ट प्लान्स का एक्सपेंस रेशियो कम होता है. हालांकि, भले ही इन दोनों प्लान की फ़ीस का अंतर ख़ास न लगे, लेकिन ऊपर दिए गए उदाहरण के अनुसार, पूरे कॉर्पस पर इसका प्रभाव समय के साथ ख़ासा अहम हो जाता है.

अगर आप अपने निवेश का प्रबंधन करने में सक्षम हैं और आपको किसी फ़ंड के चुनाव या प्रबंधन में किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है, तो आप आसानी से डायरेक्ट प्लान अपना सकते हैं. इससे आप अपना एक्सपेंस रेशियो ख़ासा कम कर लेंगे और समय के साथ थोड़ा ज़्यादा रिटर्न हासिल करेंगे.

ये भी पढ़िए- कैसा हो पहला Mutual Fund? जिसमें आपको अमीर बनाने का हो दम

आपके लिए सबक़
एक म्यूचुअल फ़ंड में निवेश से पहले एक्सपेंस रेशियो पर ग़ौर करें. कम एक्सपेंस रेशियो का मतलब ये नहीं कि फ़ंड सबसे अच्छा है. एक ऐसा फ़ंड चुनना चाहिए, जो न्यूनतम ख़र्च के साथ अच्छा रिटर्न दे.

अगर आप DIY (do it yourself) इन्वेस्टर हैं तो एक्सपेंस रेशियो कम करने का सबसे अच्छा तरीक़ा डायरेक्ट प्लान है.


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