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Passive Funds: सब कुछ जो जानना ज़रूरी है

पैसिव फ़ंड्स आपके निवेश के लिए कैसे हैं जानने के लिए पढ़ें

Passive Funds: सब कुछ जो जानना ज़रूरी है

पैसिव फ़ंड क्या हैं?
What is passive investing: पैसिव म्यूचुअल फ़ंड (passive funds) ऐसे फ़ंड हैं जो निफ़्टी या सेंसेक्स जैसे मार्केट इंडेक्स की नकल करते हैं. ये फ़ंड चुनिंदा मार्केट इंडेक्स के अंगों में उतना ही निवेश करते हैं, जितने अनुपात में उनकी हिस्सेदारी संबंधित इंडेक्स में होती है.

पैसिव फ़ंड के फ़ंड मैनेजर उन शेयरों को चुनने के लिए कोई रिसर्च नहीं करते हैं जो उनके पोर्टफ़ोलियो का हिस्सा हो सकते हैं. वे इंडेक्स स्ट्रक्चर की नकल करते हैं. उदाहरण के लिए, सेंसेक्स पर नज़र रखने वाला एक पैसिवली मैनेज्ड फ़ंड 30 कंपनियों के शेयरों में उतना ही निवेश करेगा जिस अनुपात में उसे इंडेक्स में जगह मिली है.

What are Passive Funds?: एक्टिव फ़ंड्स के मुक़ाबले ये फ़ंड कम फ़ीस लेते हैं, क्योंकि इन्हें शेयर को चुनने के लिए ज़्यादा रिसर्च की ज़रूरत नहीं होती है. इन फ़ंड्स के साथ, आप अपने पोर्टफ़ोलियो को डाइवर्सिफ़ाई करने और मार्केट के सभी सेगमेंट्स में एक्सपोज़र पाने के लिए कॉस्ट के लिहाज़ से किफ़ायती तरीक़ा चुन सकते हैं.

भारत में पैसिव म्यूचुअल फ़ंड की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, आप न केवल अपने पोर्टफ़ोलियो में डाइवर्सिटी ला सकते हैं बल्कि मार्केट के हिसाब से रिटर्न भी पा सकते हैं.

पैसिव फ़ंड कैसे काम करते हैं?
How do passive index funds work: पैसिव निवेश एक मार्केट इंडेक्स चुनने और उस इंडेक्स में शामिल शेयरों में उसी इंडेक्स के बराबर निवेश करके उसकी नकल करने के इर्द-गिर्द रहता है. उसके बाद, फ़ंड इंडेक्स को बारीक़ी से ट्रैक करना शुरू कर देता है और फ़ंड को इंडेक्स के जैसा बनाने के लिए उस इंडेक्स के हिसाब से पोर्टफ़ोलियो में बदलाव करता है.

जब पैसिव फ़ंड्स की बात आती है, तो स्टॉक चुनने का कोई प्रोसेस नहीं होता, क्योंकि इन फ़ंड्स के स्टॉक उनके इंडेक्स के जैसे होते हैं. इसलिए, फ़ंड मैनेजर एक सीमित और पैसिव रोल निभाते हैं, जो पैसिव फ़ंड का असल मतलब है.

पैसिव फ़ंड कितने टाइप के होते हैं? (Types of Passive Funds)

इंडेक्स फ़ंड
Index Funds: एक पैसिवली मैनेज्ड म्यूचुअल फ़ंड स्कीम, इंडेक्स फ़ंड दिए गए मार्किट इंडेक्स की कॉपी करते हैं. इन फ़ंड्स को किसी भी दूसरी म्यूचुअल फ़ंड स्कीम की तरह खरीदा/ बेचा जा सकता है और ये उसी तरह काम करते हैं.

पैसिव इंडेक्स फ़ंड में, सभी शेयरों का वेट संबंधित इंडेक्स के बराबर होता है. अगर इस इंडेक्स में किसी स्टॉक का वेट (stock weight) बदलता है, तो फ़ंड मैनेजर इंडेक्स के वेट से मेल खाने के लिए यूनिट्स ख़रीदता है या बेचता है.

What Are Index Funds: हालांकि, ट्रैकिंग एरर (tracking error) के कारण ये फ़ंड हमेशा अपने इंडेक्स जैसे रिज़ल्ट नहीं देते. ट्रैकिंग एरर इसलिए होते हैं क्योंकि इंडेक्स की सिक्योरिटीज़ को बराबर अनुपात में रखना मुश्किल होता है. फिर भी, ये फ़ंड उन निवेशकों के लिए सही हैं जो स्टॉक या म्यूचुअल फ़ंड में निवेश किए बिना बड़े मार्केट में निवेश करना चाहते हैं.

एक्सचेंज ट्रेडेड फ़ंड (ETF)
Exchange Traded Funds (ETF) - Meaning, Types, Benefits: ये एक संबंधित मार्केट इंडेक्स की नकल करने वाली एक और पैसिव तरीक़े से मैनेज की जाने वाली स्कीम है. लेकिन इसमें निवेश करने के लिए एक डीमैट और एक ट्रेडिंग अकाउंट जरूरी है.

आम म्यूचुअल फ़ंड स्कीम या इंडेक्स फ़ंड में जहां आप सीधे फ़ंड हाउस के ज़रिये निवेश कर सकता है, वहीं, इसके उलट ETF की यूनिट्स का इक्विटी शेयरों की तरह स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग होती है, और उनकी कीमत NAV के बेस पर अलग अलग होती है. हालांकि, इंडेक्स फ़ंड के मुकाबले ETF की कॉस्ट (एक्सपेंस रेशियो) आमतौर पर कम होती है.

डेली लिक्विडिटी की बात करें ETF, म्यूचुअल फ़ंड स्कीम्स से बेहतर परफॉर्म करते हैं.

फ़ंड ऑफ़ फ़ंड्स (FOFs)
ऐसा ज़रूरी नहीं कि इंडेक्स फ़ंड या ETF की तरह FOF भी किसी इंडेक्स को ट्रैक करें. ये स्कीम्स एक या एक से ज़्यादा म्यूचुअल फ़ंड स्कीमों में निवेश करती हैं. उदाहरण के लिए, फ़ंड A (FOF) निवेशकों के पूरे पैसे को किसी और म्यूचुअल फ़ंड स्कीम, मान लीजिये फ़ंड B में निवेश कर सकता है.

हालांकि, कुछ FOF में, फ़ंड मैनेजर एक्टिवली ये फैसला लेते है कि किस म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में कितना निवेश करना है. वे नियमित रूप से एलोकेशन में बदलाव कर सकते हैं. ऐसे FOF को पैसिव फ़ंड नहीं कहा जा सकता.

स्मार्ट बीटा
What are Smart Beta Funds: स्मार्ट बीटा फ़ंड, ETF निवेश मॉडल से बहुत अलग नहीं हैं. ये फ़ंड कुछ क्राइटेरिया के बेस पर एक्टिव निवेश चुनने के साथ पैसिव तरीक़े से मैनेज किए जाने वाले फ़ंड से जुड़े फ़ायदे भी देते हैं. ये किफ़ायती मॉडल का इस्तेमाल करके फ़ंड के लिए ऊंचा रिटर्न पाने का रास्ता तैयार करते हैं.

एक ओर, जब परफ़ॉर्मेंस की बात आती है, तो ये फ़ंड इंडेक्स को फ़ॉलो करते हैं. दूसरी ओर, वे मार्केट की चाल के बेस पर अपने पोर्टफ़ोलियो में बदलाव करते हैं. ETF की तरह इन फ़ंड्स में फ़ंड मैनेजर का किसी के प्रति झुकाव नहीं होता है.

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पैसिव फ़ंड में निवेश के क्या फ़ायदे हैं? (Benefits of Passive Investing)

बहुत कम ख़र्च
किसी भी एक्टिव म्यूचुअल फ़ंड स्कीम के मुकाबले ETF और इंडेक्स फ़ंड का एक्सपेंस रेशियो कम होता है. पहला कारण यह है कि फ़ंड मैनेजर का इसमें कोई ख़ास रोल नहीं है, क्योंकि पोर्टफ़ोलियो को केवल चुने हुए मार्केट इंडेक्स से दोहराया जाता है.

हालांकि, FOF के मामले में, ये सच नहीं हो सकता, क्योंकि निवेशक FOF के एक्सपेंस रेशियो और उसके फ़ंड, जिसमें FOF आगे निवेश करता है, दोनों की कॉस्ट का बोझ उठाता है.

फ़ंड मैनेजर के ग़लत होने का जोख़िम कम
भले ही, एक्टिवली मैनेज की जाने वाली स्कीम के फ़ंड मैनेजर निवेश के ऐसे फ़ैसले लेने की पूरी कोशिश करते हैं जिनमें इंडेक्स से ज़्यादा रिटर्न मिलने की उम्मीद होती है, लेकिन कभी-कभी वे ग़लत हो सकते हैं. मान लीजिए कि जिस कंपनी के स्टॉक में उन्होंने निवेश किया है, वो दिवालिया हो जाती है और उसके स्टॉक की क़ीमत गिर जाती है. लेकिन एक इंडेक्स फ़ंड सेंसेक्स जैसे मार्केट इंडेक्स की नकल करता है, तो ऐसे उदाहरणों का जोख़िम कम हो जाता है.

ब्रॉड मार्केट में एक्सपोज़र
एक बेंचमार्क में वे स्टॉक शामिल होते हैं जो पूरे सेक्टर या मार्किट को बनाते हैं. इसलिए, अगर आप एक पैसिव फ़ंड में निवेश करते हैं जो बेंचमार्क को ट्रैक करता है, तो इससे आपको उन शेयरों की एक रेंज में एक्सपोज़र मिलेगा जो मार्केट का मूवमेंट दिखाते हैं.

आसान मैनेजमेंट
अगर आप पैसिव फ़ंड में निवेश करते हैं, तो आपको फ़ंड या उसके फ़ंड मैनेजर के परफ़ॉर्मेंस को ट्रैक करने की ज़रूरत नहीं है. चूंकि ये फ़ंड अपने बेंचमार्क को बारीक़ी से दोहराते हैं, इसलिए आप ऐसे रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं जो आपके फ़ंड के बेंचमार्क के क़रीब हो.

पारदर्शिता
हाई लेवल ट्रांसपरेंसी (बिल्कुल एक्टिव फ़ंड्स की तरह) और ट्रेड करने में आसानी जैसे कारणों ने भी पैसिव फ़ंड्स को पॉपुलर किया है. ये फ़ंड, ख़ासकर ETF, ट्रेडिंग-डे में किसी भी समय बेचे और ख़रीदे जा सकते हैं. साथ ही, वे अपने सारे एसेट भी दिखाते हैं.

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पैसिव फ़ंड में निवेश से जुड़े नुक़सान और जोख़िम क्या हैं? (Risks of Passive Investing)

ख़राब परफ़ॉर्मेंस
आप मार्केट इंडेक्स से ज़्यादा रिटर्न पाने का मौका खो देते हैं. एक्टिवली मैनेज्ड स्कीम्स में फ़ंड मैनेजर का मुख्य लक्ष्य आपको ब्रॉड मार्केट इंडेक्स के मुकाबले ज़्यादा रिटर्न पाने में मदद करना है.

वे अपनी विशेषज्ञता का इस्तेमाल करके ये तय करने की कोशिश करते हैं कि कौन सा स्टॉक ख़रीदना है, कब ख़रीदना है और कब बेचना है. चूंकि फ़ंड मैनेजर को इंडेक्स फ़ंड या ETF के मामले में मार्केट इंडेक्स के पोर्टफ़ोलियो को दोहराना पड़ता है, इसलिए निवेशक ऊंचा रिटर्न पाने की उम्मीद भी खो देते हैं.

कम लचीलापन
मार्केट में गिरावट के दौरान, फ़ंड मैनेजर को मार्केट में गिरावट के असर को कम करने के लिए फ़ंड के पोर्टफ़ॉलियो में एलोकेशन को बदलने का विकल्प नहीं मिलता. इसलिए, ये फ़ंड अपने फ़ंड मैनेजर को कोई लचीलापन नहीं देते हैं.

ट्रैकिंग एरर्स
जब इंडेक्स फ़ंड की बात आती है तो ट्रैकिंग एरर्स एक अहम जोख़िम हैं. इन एरर के चलते, किसी फ़ंड के बेंचमार्क को ट्रैक करने से जुड़ी सटीकता में कमी आती है.

पैसिव फ़ंड का फ़ीस स्ट्रक्चर क्या है?
पैसिव म्यूचुअल फ़ंड की बढ़ती लोकप्रियता के पीछे एक बड़ा कारण एक्टिवली मैनेज्ड फ़ंड से जुडी कॉस्ट है, जिसका इस्तेमाल फ़ंड मैनेजर्स को फ़ीस देने के लिए किया जाता है.

दूसरी ओर, पैसिव म्यूचुअल फ़ंड्स की नेचर के हिसाब से इन्हें बहुत कम प्रयासों की ज़रूरत होती है. इन्हें सिक्योरिटीज़ की एक्टिव ख़रीद-फ़रोख़्त की ज़रूरत नहीं है. चूंकि वो बेंचमार्क को दोहराते हैं, इसलिए फ़ंड मैनेजर को अक्सर अपने पोर्टफ़ोलियो को ट्रैक करने की ज़रूरत नहीं होती है. इसलिए, अपने एक्टिवली मैनेज्ड पीयर्स के मुकाबले, इन फ़ंड स्कीमों का कुल एक्सपेंस रेशियो कम है.

पैसिव फ़ंड की निवेश स्ट्रैटेजी क्या है?
जब पैसिव फ़ंड्स की निवेश स्ट्रैटेजी की बात आती है, तो ये मुख्य रूप से फ़ंड खरीदने और रखने पर केंद्रित होती है. चूंकि ये फ़ंड अपने इंडेक्स को बारीक़ी से फ़ॉलो करते हैं, इसलिए इनके फ़ंड मैनेजर्स को अपने पोर्टफ़ोलियो को रिबैलेंस करने के लिए समय देने और ज़्यादा प्रयास करने की ज़रूरत नहीं होती. इसके अलावा, ये फ़ंड कई निवेश स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल करते हैं. इनमें एक ब्रॉड मार्किट इंडेक्स, एक सेक्टर इंडेक्स आदि पर नज़र रखना शामिल है.

पैसिव फ़ंड किस टाइप का रिटर्न देते हैं?
पैसिव फ़ंड बेंचमार्क इंडेक्स की बारीक़ी से नकल करने का इरादा रखते हैं. दूसरे शब्दों में, जब स्टॉक रिप्रजेंटेशन और पोर्टफ़ोलियो स्ट्रक्चर की बात आती है, तो पैसिव म्यूचुअल फ़ंड और उनके बेंचमार्क के बीच शायद ही कोई अंतर होता है. ये देखते हुए कि स्ट्रक्चर लगभग एक से हैं, इन फ़ंड्स से मिलने वाला रिटर्न लगभग मार्केट के रिटर्न के बराबर है.

लेकिन अपने एक्टिव फ़ंड्स के उलट, पैसिव फ़ंड्स का इरादा अपने इंडेक्स से बेहतर परफ़ॉर्म करना नहीं है. इसके बजाय, इन फ़ंड्स का मुख्य गोल जितना हो सके बेंचमार्क के जितना रिटर्न हासिल करना है. लेकिन एक्टिव फ़ंड के मुक़ाबले पैसिव म्यूचुअल फ़ंड में जोख़िम कम होता है. दूसरी ओर, चूंकि पैसिव निवेश लॉन्ग टर्म गोल के लिए बेहतर होते हैं, इसलिए इनका प्रॉफ़िट बढ़ जाता है.

पैसिव फ़ंड्स पर टैक्स कैसे लगाया जाता है?
ये देखते हुए कि इन फ़ंड्स का गोल अपने बेंचमार्क इंडेक्स को दोहराना है, इनकी टैक्सबिलिटी इनके इंडेक्स के स्ट्रक्चर पर बेस्ड होगा.

मिसाल के तौर पर, अगर कोई पैसिव फ़ंड किसी इक्विटी इंडेक्स की नकल करता है, तो उस पर किसी भी इक्विटी-ओरिएंटेड फ़ंड की तरह टैक्स लगाया जाएगा. दूसरी ओर, अगर कोई पैसिव फ़ंड कमोडिटी इंडेक्स जैसे अलग-अलग इंडेक्स की नकल करता है, तो उस पर किसी भी नॉन-इक्विटी-ओरिएंटेड फ़ंड की तरह टैक्स लगाया जाएगा.

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इंडेक्स फ़ंड चुनते समय किन फ़ैक्टर्स पर विचार करना चाहिए?

एक्सपेंस रेशियो
जैसा कि पहले चर्चा की गई है, जब इंडेक्स पैसिव फ़ंड की बात आती है, तो फ़ंड मैनेजर की भूमिका सीमित होती है, क्योंकि उन्हें केवल इंडेक्स के स्ट्रक्चर को दोहराने की ज़रूरत होती है. इसलिए, पैसिव फ़ंड्स का एक्सपेंस रेशियो एक्टिवली मैनेज किए जाने वाले फ़ंड के मुक़ाबले कम होता है.

चूंकि एक ही इंडेक्स की नकल करने वाले सभी इंडेक्स फ़ंड्स में पोर्टफ़ोलियो एक से होते हैं, इसलिए उनकी कॉस्ट एक अहम अंतर है क्योंकि इसका असर रिटर्न पर भी पड़ता है. समान इंडेक्स पर नज़र रखने और फ़ंड्स के मुकाबले कम एक्सपेंस रेशियो वाला इंडेक्स फ़ंड ज़्यादा रिटर्न देगा. इसलिए, हमेशा सबसे कम एक्सपेंस रेशियो वाला इंडेक्स फ़ंड चुनें.

ट्रैकिंग एरर्स
अगर कोई पैसिव फ़ंड अपने इंडेक्स की एक्टिविटी से मेल नहीं खाता है, तो इसके चलते ट्रैकिंग एरर होते हैं. उदाहरण के लिए, एक पैसिव फ़ंड सेंसेक्स को ट्रैक करता है. अब, अगर फ़ंड 90 बेसिस पॉइंट और सेंसेक्स 1 फ़ीसदी ऊपर जाता है, तो इस अंतर ट्रैकिंग एरर पैदा होंगी. एक इंडेक्स फ़ंड का गोल अपने इंडेक्स को बारीक़ी से ट्रैक करना है, इसलिए ट्रैकिंग एरर जितने कम होंगे, फ़ंड उतना ही बेहतर होगा.

ETF चुनते समय किन फैक्टर्स पर विचार करना चाहिए?
ऊपर दिए प्वाइंट्स के अलावा, आपको ETF चुनते समय दो और फ़ैक्टर्स पर विचार करना होगा. इनमें पहला, एक्सचेंज पर ETF के ट्रेड प्राइस और नेट एसेट वैल्यू (NAV) के बीच का अंतर और दूसरा, लिक्विडिटी शामिल हैं.

जैसा कि हम जानते हैं, ETF स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं. इसलिए, इसकी उपलब्ध क़ीमत या तो इसके NAV से ज़्यादा (प्रीमियम पर) या कम (छूट पर) होनी चाहिए. तो, आपको इसके बारे में पता होना चाहिए. आप किसी फ़ंड हाउस से सीधे ETF यूनिट नहीं ख़रीद पाएंगे, क्योंकि ऐसे में, आपको ज़्यादा, आम तौर पर ₹1 करोड़ या उससे ज़्यादा निवेश करना होगा.

दूसरी ओर, जब लिक्विडिटी की बात आती है तो इस पर ग़ौर करें कि स्टॉक एक्सचेंज पर ETF की कितनी ट्रेडिंग होती है. याद रखें, अगर आप कम ट्रेडिंग वॉल्यूम (लिक्विडिटी) वाले ETF खरीदते हैं, तो आपके लिए इसे बेचना मुश्किल होगा.

एक्टिव फ़ंड वर्सेस पैसिव फ़ंड: दोनों में क्या फ़र्क़ है?
एक्टिवली मैनेज्ड इन्वेस्टमेंट स्पेस में, फ़ंड मैनेजर एसेट्स की पहचान और मैनेजमेंट में एक्टिवली शामिल होता है. वो पूरे रिसर्च और एनेलिसिस का फ़ायदा उठाते हुए, एक्टिव तरीक़े से फ़ैसले लेते हैं, जिनमें कौन सी सिक्योरिटी को बेचनी, ख़रीदनी या अपने पोर्टफोलियो में रखनी है, आदि शामिल हैं. इसके साथ ही, एक्टिव म्यूचुअल फ़ंड का गोल बेंचमार्क से बेहतर परफ़ॉर्म करना, अपने रिटर्न को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाना और अपने निवेशकों के लिए अल्फ़ा पैदा करना है.

दूसरी ओर, पैसिव स्पेस में, निवेश स्ट्रैटेजी में किसी भी एक मार्केट इंडेक्स से बेहतर परफ़ॉर्म करने के बजाय उसके जैसा परफ़ॉर्म करने पर ध्यान दिया जाता है. इसलिए, ये दोनों निवेश स्ट्रैटेजी एक दूसरे से अलग हैं. 'एक्टिव फ़ंड बनाम पैसिव फ़ंड' टाइटल वाली टेबल एक्टिव और पैसिव फ़ंड के बीच के फ़र्क को दिखाती है.

एक्टिव Vs पैसिव फ़ंड

एरियाज एक्टिवली मैनेज्ड म्यूचुअल फ़ंड पैसिवली मैनेज्ड म्यूचुअल फ़ंड
एक्सपेंस रेशियो पैसिव फ़ंड्स से ज़्यादा होता है. फ़ंड मैनेजर्स मैनेजमेंट में एक्टिवली शामिल होते हैं तुलनात्मक रूप से कम, क्योंकि फंड मैनेजर केवल संबंधित इन्डेक्स में शामिल शेयरों को चुनते हैं.
नेचर एक्टिव म्यूचुअल फ़ंड्स एक थीम बेस पर डिजाइन किए जाते हैं. सेंसेक्स, निफ़्टी जैसे इन्डेक्स को दोहराने के लिए डिज़ाइन किया गया
फ़ंड मैनेजमेंट स्ट्रैटेजी फ़ंड का प्रबंधन उसके लक्ष्य के आधार पर एक्टिवली किया जाता है. फ़ंड मैनेजर मुख्य रूप से फ़ंड के बेंचमार्क के मूवमेंट को दोहराने पर ध्यान देते है.
रिटर्न इसका इरादा अपने बेंचमार्क इंडेक्स से बेहतर परफॉर्म करने और हाई रिटर्न देने का होता है. लेकिन कई बार ख़राब परफॉर्म भी कर सकता है. काफ़ी हद तक इंडेक्स के रिटर्न के बराबर. पैसिव म्यूचुअल फ़ंड से आपको मार्केट जैसा रिटर्न मिल सकता है
टैक्स इफ़ीशिएंसी एक्टिव फ़ंड्स का टर्नओवर ज़्यादा होने के चलते ये ज़्यादा कैपिटल गेन जेनेरेट करते हैं पैसिव म्यूचुअल फ़ंड में शेयरहोल्डर्स को कैपिटल गेन का डिस्ट्रीब्यूशन तुलनात्मक रूप से कम है.

क्या आपको पैसिव फ़ंड में निवेश करना चाहिए?
निफ़्टी या सेंसेक्स जैसे ब्रॉड मार्केट इंडेक्स पर नज़र रखने वाले फ़ंड्स में निवेश करना केवल उन कंज़रवेटिव निवेशकों के लिए सही है, जो मार्केट इंडेक्स से ज़्यादा नहीं कमाना चाहते. अगर आप ऐसे इंसान हैं जो लॉन्ग टर्म में ज़्यादा कमाना चाहते हैं, तो आपको एक्टिवली मैनेज्ड स्कीम चुननी चाहिए.

FOF में तभी निवेश करना चाहिए जब फ़ंड (जिसमें FOF निवेश करता है) आपके लिए आसानी से उपलब्ध नहीं है. उदाहरण के लिए, विदेशी म्यूचुअल फ़ंड स्कीमों में या NASDAQ जैसे इंडेक्स में निवेश करने वाले FOF में निवेश किया जा सकता है.

भारत में पैसिव फ़ंड कितने पॉपुलर हैं?
पिछले कुछ सालों में, भारत में निवेश के पैसिव तरक़े ने काफ़ी तेज़ी पकड़ी है. नवंबर 2022 तक, भारत की कुल 294 पैसिव फ़ंड स्कीमें थीं. इनमें से 157 ETF थीं, जो ₹5.22 लाख करोड़ के एसेट मैनेज करती थीं, जबकि 137 इंडेक्स फ़ंड थे जिनके कुल एसेट ₹1.24 लाख करोड़ थे.

इन फ़ंड्स का AUM नवंबर 2022 में लगभग 53 प्रतिशत बढ़कर ₹6.46 लाख करोड़ से ज़्यादा हो गया, जो एक साल पहले ₹4.22 लाख करोड़ था.

ये भी पढ़िए- म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कैसे करें? निवेश शुरू करने वालों के लिए इन्वेस्टमेंट गाइड

पैसिव फ़ंड्स से जुड़े कुछ शब्द

  • इंडेक्सिंग : इंडेक्सिंग शब्द का इस्तेमाल इंडिविज़ुअल स्टॉक लेने के बजाय ब्रॉड मार्केट रिटर्न को दोहराने के लिए मार्किट इंडेक्स में पैसिवली निवेश करने के लिए किया जाता है.
  • पैसिव पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट : जब पैसिव पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट की बात आती है, तो फ़ंड मैनेजर अपने इंडेक्स की नकल करके मार्केट रिटर्न को दोहराने की कोशिश करते है.
  • इंडेक्स में निवेश : इंडेक्स निवेश यानी एक पैसिव स्ट्रैटेजी में ब्रॉड मार्केट इंडेक्स के परफ़ॉर्मेंस की नकल करने पर ज़ोर दिया जाता है.
  • एक्टिवली मैनेज्ड ETF : एक तरह का एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड, एक्टिवली मैनेज्ड ETF में एक बेंचमार्क इंडेक्स होता है. फिर भी, इसके मैनेजर और टीम पोर्टफ़ोलियो के एलोकेशन से जुड़े फैसले ले सकते हैं.
  • पैसिव ETF : एक पैसिव ETF एक वित्तीय विकल्प है जो अपने इंडेक्स की होल्डिंग्स की नकल करके ब्रॉड इक्विटी मार्किट के परफ़ॉर्मेंस की नकल करता है.
  • अल्फ़ा : यह शब्द किसी भी निवेश स्ट्रैटेजी की मार्केट को मात देने की ताकत को दिखता है.
  • इंडेक्स ETF : ये एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड बेंचमार्क इंडेक्स को बारीक़ी से दोहराने का इरादा रखते हैं. ये स्टॉक एक्सचेंजेस पर ट्रेड होते हैं. इसलिए, आप इन्हें स्टॉक की तरह ही ख़रीद और बेच सकते हैं.
  • इक्विटी ETF : एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड जो स्टॉक के इंडेक्स को दोहराते और ट्रैक करते हैं, उन्हें इक्विटी ETF कहा जाता है. ये ETF निफ्टी IT, BSE S&P 500, निफ्टी 50 आदि जैसे बेंचमार्क इंडेक्स की बारीक़ी से नकल करने का इरादा रखते हैं.
  • म्यूचुअल फ़ंड में एक बेंचमार्क : म्यूचुअल फ़ंड में एक बेंचमार्क उस इंडेक्स को रेफर करता है जिसका इस्तेमाल बेंचमार्क के मुकाबले फ़ंड के परफ़ॉर्मेंस का आकलन करने के लिए किया जाता है. ये बेंचमार्क BSE सेंसेक्स जैसे ब्रॉड-मार्केट इंडेक्स हैं.
  • एक्सपेंस रेशियो : किसी एसेट या स्टॉक का एक्सपेंस रेशियो एडमिनिस्ट्रेशन, मैनेजमेंट, एडवर्टाइज़मेंट आदि अलग-अलग ख़र्चों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एसेट्स का कुल प्रतिशत दिखाता है.
  • कमोडिटी ETF : ये एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड नेचुरल रिसोर्स, खेती के प्रोडक्ट्स आदि के साथ-साथ अलग-अलग चीजों में निवेश करता है.
  • बॉन्ड ETF : ये एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड अपने इंडेक्स में एवेलेबल बॉन्ड के एक सेट में निवेश करता है. बॉन्ड ETF कॉर्पोरेट, पब्लिक सेक्टर और सरकारी बॉन्ड में भी निवेश कर सकते हैं.
  • ETF बनाम इंडेक्स : ज़्यादातर ETF और इंडेक्स फ़ंड एक ही निवेश स्ट्रैटेजी को फ़ॉलो करते हैं: पैसिव निवेश. हालांकि, दोनों के बीच कुछ बुनियादी अंतर हैं. ETF काफ़ी हद तक स्टॉक की तरह ट्रेड करते हैं और इन्हें केवल तभी ख़रीदा या बेचा जा सकता है जब मार्केट ओपन हों. दूसरी ओर, इंडेक्स फ़ंड को केवल ट्रेडिंग डे के अंत में तय की गई कीमत पर ही ख़रीदा और बेचा जा सकता है.

पैसिव फ़ंड: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

पैसिव निवेश क्या है?
एक लॉन्ग टर्म स्ट्रैटेजी, पैसिव निवेश शेयर मार्केट इंडेक्स को दिखाने वाली सिक्योरिटीज को ख़रीदकर पैसा बनाने में मदद करता है और उन्हें लंबे समय तक बनाए रखता है.

पैसिव निवेश के क्या उदाहरण है?
पैसिव निवेश में कई स्ट्रैटेजीस शामिल हो सकती हैं. ऐसे ही कुछ पैसिव निवेश हैं-ETF और इंडेक्स फ़ंड. उनके पास बॉन्ड, स्टॉक और कई पोर्टफ़ोलियो हैं. ETF एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं.

कोई भी फ़ंड पैसिव निवेश को क्यों फॉलो करता है?
पैसिव निवेश में, फ़ंड बेंचमार्क से बेहतर परफ़ॉर्म करने की कोशिश नहीं करते हैं. इसके बजाय, वे उनसे मेल खाने की कोशिश करते हैं. उदाहरण के लिए, S&P 500 इंडेक्स की नकल करने वाले इंडेक्स फ़ंड का फ़ंड मैनेजर आम तौर पर एक पोर्टफ़ोलियो बनाता है जो सभी शेयरों को उसी अनुपात में कवर करता है जो उस इंडेक्स में दिखते हैं.

पैसिव निवेश कैसे मैनेज किये जाते हैं?
एक्टिव मैनेजमेंट जिसमें फ़ंड मैनेजर एक्टिवली पोर्टफ़ोलियो के लिए स्टॉक और बाक़ी एसेट्स चुनते हैं. वहीं, इसके एकदम उलट पैसिव फ़ंड मैनेजर फ़ंड के बेंचमार्क को बारीक़ी से ट्रैक करते हैं और दोहराते हैं.

क्या पैसिव फ़ंड पोर्टफ़ोलियो पर लगातार नज़र रखते हैं?
नहीं, इन फ़ंड्स को अपने पोर्टफ़ोलियो की लगातार निगरानी करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ये फ़ंड केवल अपने बेंचमार्क को दोहराते हैं.

पैसिव म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कैसे करें?
आप इंडेक्स फ़ंड या ETF खरीद सकते हैं. पैसिव फ़ंड में निवेश करके आप अलग अलग इंडस्ट्रीज़ में एक्सपोज़र पा सकते हैं. इसलिए, पैसिव निवेश डाइवर्सिफ़ाई करने में आपकी मदद करेगा.
इन फ़ंड्स में निवेश करने के कई तरीके हैं:

  • आप किसी डिस्ट्रीब्यूटर की मदद से निवेश कर सकते हैं
  • आप किसी एसेट मैनेजमेंट कंपनी की वेबसाइट से सीधे इन फ़ंड्स में निवेश कर सकते हैं
  • ETF या एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड को मार्किट के पर ट्रेड चालू रहने के दौरान एक्सचेंज पर किसी भी अन्य स्टॉक की तरह ख़रीदा और बेचा जा सकता है

क्या पैसिव फ़ंड में निवेश करना सुरक्षित है?
किसी भी अन्य मार्केट से संबंधित इंस्ट्रुमेंट की तरह, इन फ़ंड्स में भी जोख़िम होता है. हालांकि, चूंकि ये फ़ंड मार्केट इंडेक्स की नकल करते हैं, इसलिए इन्हें सिक्योरिटीज की एक बड़ी रेंज में एक्सपोज़र मिलता है. इसलिए, पैसिव म्यूचुअल फ़ंड में जोख़िम आमतौर पर कम होता है.

पैसिव फ़ंड में किसे निवेश करना चाहिए?
नए निवेशकों के लिए पैसिव फ़ंड बढ़िया हैं. इसके अलावा, जो लोग अपने पोर्टफ़ोलियो को एक्टिवली मैनेज किए बिना लंबे समय के लिए निवेश करना चाहते हैं और जो अपने निवेश में जोखिम नहीं लेना चाहते हैं, वे इन फ़ंड्स के बारे में सोच सकते हैं.

देखिए ये वीडियो- मल्टी कैप बनाम फ़्लेक्सी कैप: डाइवर्सिफ़ाई करने का बेस्ट तरीक़ा


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