Anand Kumar
आजकल, टमाटर के भाव काफ़ी वॉलेटाइल हैं यानी उतार-चढ़ाव से भरे हैं, मगर स्टॉक मार्केट में ऐसा नहीं है. कम से कम, हेडलाइन तो यही कहती हैं. पर क्या वो सही हैं? ये वॉलेटाइल या उतार-चढ़ाव के मायने क्या हैं? इस शब्द के तीन मगर अलग क़िस्म के मायने हैं. बदक़िस्मती से जिस अर्थ का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा होता है वो ग़लत है.
फ़ाइनेंशियल मार्केट के बाहर, डिक्शनरी में वॉलेटाइल का मतलब होता है - तेज़, जल्दी-जल्दी और काफ़ी बड़े बदलाव. मिसाल के तौर पर, मौसम वॉलेटाइल हो सकता है. तकनीकी तौर पर, फ़ाइनेंशियल मार्केट में, इसका मतलब होता है एक समय के दौरान ट्रेडिंग के दामों में दिखने वाले उतार-चढ़ाव. आप इसे और भी टेक्निकल कर सकते हैं और इस तरह से कह सकते हैं कि ये किसी सिक्योरिटी या इंडेक्स रिटर्न के लिए होने वाला प्रसार है. हाईली वॉलेटाइल का मतलब होता है किसी भी दिशा में और कम समय में दामों का तेज़ी से बदलना. कम वॉलेटाइल का मतलब होता है कि ये बदलाव नाटकीय रूप से नहीं होगा, बल्कि धीरे-धीरे होगा. नोट करें कि इन परिभाषाओं में, चाहे फ़ाइनेंस की हों या ग़ैर-फ़ाइनेंशियल, बदलाव की दिशा का ज़िक्र कहीं नहीं है.
वॉलेटाइल की तीसरी परिभाषा काफ़ी आम है और ग़लत भी: वॉलेटाइल का मतलब हुआ किसी चीज़ के दाम का ग़लत दिशा की तरफ़ बढ़ना. मीडिया और सोशल मीडिया में, वॉलेटाइल किसी चीज़ के दाम में कुछ गड़बड़ का होना है. ये एक बेकार की परिभाषा है, मगर यही एक आम परिभाषा भी है. तकनीकी तौर पर, जब किसी स्टॉक का दाम तेज़ी से बढ़ता है, तो ये वॉलेटिलिटी को तेज़ कर देता है. हालांकि, मुझे शक़ है कि किसी ने स्टॉक के दाम तेज़ी से बढ़ने को लेकर वॉलेटिलिटी शब्द का इस्तेमाल किया होगा. इस शब्द का इस्तेमाल सिर्फ़ बुरी चीज़ों को परिभाषित करने के लिए होता है. हास्यास्पद है कि कुछ संदर्भों में, इसका मतलब दाम का बढ़ना हो सकता है. आजकल की टमाटर वाली हेडलाइनों में, वॉलेटिलिटी का मतलब है दाम का बढ़ना!
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पर अब असली वॉलेटिलिटी की बात करते हैं. बहुत से बचत करने वाले अपनी बचत के लिए ऐसी ही एसेट क्लास को चुनेंगे, जिसमें सबसे कम वॉलेटिलिटी हो. बहुत बड़ी तादाद में फ़िक्स्ड इनकम एसेट्स जैसे बैंक FD, PPF, और दूसरे सॉवरिन डिपॉज़िट में निवेश करना इसका पक्का सुबूत है. यहां तक कि मार्केट-लिंक्ड वॉलेटाइल एसेट क्लास में भी, कई निवेशक कम उतार-चढ़ाव वाले निवेशों के पीछे भागते हैं. इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड्स में, लोग हाइब्रिड फ़ंड या कंज़र्वेटिव लार्ज-कैप फ़ंड और इसी तरह के दूसरे फ़ंड चुनते हैं. ये सब ठीक है—मैं इसकी आलोचना नहीं कर रहा. असल में, मैं अपने ज़्यादातर निवेशों में आने वाले उतार-चढ़ावों पर कड़ी नज़र रखता हूं.
मगर—और ये बात बहुत थोड़े से निवेशक ही मानते हैं—कम उतार-चढ़ाव की क़ीमत चुकानी पड़ती है. शायद ये बात आपको विरोधाभासी लगे. आखिरकार, हमारा ये विश्वास रहा है कि उतार-चढ़ाव का मतलब होता है नुक़सान और इसलिए उतार-चढ़ाव कम हों तो अच्छा है. ये सच नहीं है. सही तरीक़े की वॉलेटिलिटी का चुनाव हमेशा ही आपके मुनाफ़े को बढ़ाएगा. इस बात को परखने के लिए, इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड्स और बैंक फ़िक्स्ड डिपॉज़िट की तुलना कर के देखिए. जब आप कम वॉलेटिलिटी चुनते हैं, तो आप अपने मुनाफ़े को कम करते हैं. आपको स्टेबिलिटी की क़ीमत चुकानी पड़ती है—क्वालिटी इन्वेस्टमेंट में वॉलेटिलिटी का मतलब होता है कि आपके निवेश में उतार-चढ़ाव तो है, पर कुल मिला कर, ये तेज़ी से बढ़ता ही है.
मगर, सवाल ये है कि क्या आपको कम वॉलेटिलिटी या कम उतार-चढ़ाव की ज़रूरत है? ये सवाल अहम इसलिए है क्योंकि उतार-चढ़ाव तो आने-जाने वाली चीज़ है. एक क्वालिटी निवेश में, दाम गिरते हैं मगर फिर तेज़ी से बढ़ भी जाते हैं. ये बड़े स्तर पर गिरते हैं तो इसका मतलब हुआ जल्द ही ये और भी ज़्यादा तेज़ी से बढ़ेंगे. ऐसे निवेश जिन्हें लंबे समय के लिए होल्ड करना है, उसके लिए कम वॉलेटिलिटी की क़ीमत चुकाने का मतलब ही नहीं बनता. अगर आप कुछ वक़्त के लिए इन्वेस्टमेंट में आने वाली वॉलेटिलिटी सहन कर सकते हैं, तो आपको ख़ुशी-ख़ुशी इस टेंपरेरी वॉलेटिलिटी या थोड़े समय के उतार-चढ़ावों को स्वीकार करना चाहिए—ऊंचा मुनाफ़ा पाने का यही रास्ता है.
कई साल पहले, वॉरेन बफ़े ने कहा था, "चार्ली और मैं बजाए आसान 12 प्रतिशत के मुश्किल वाला 15 प्रतिशत कमाना पसंद करेंगे." आपको और मुझे भी ऐसा ही करना चाहिए. मुश्किल मगर ऊंचा रिटर्न पाने के लिए किसी को बफ़े और मंगर जैसा अमीर होने की ज़रूरत नहीं—बस समझदार होने और लंबे समय का नज़रिया रखने की ज़रूरत है.
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