Anand Kumar
इक्विटी निवेशकों के लिए ये एक आम सलाह होती है. "अच्छे स्टॉक में निवेश कीजिए, उसे बारीक़ी से मॉनिटर कीजिए और बरसों तक होल्ड कर के रखिए." ये बात सुनने में आसान लगती है. अब इसे उलट कर देखते हैं. "ख़राब स्टॉक में निवेश करने से बचिए. जो बाक़ी रहेगा वो अच्छा ही होगा." इसे सुन कर ज़्यादा मज़ा नहीं आया. सिर्फ़ ख़राब निवेशों से दूर रहने में उपलब्धि का एहसास नहीं है. और, स्टॉक मार्केट से खूब सारा पैसा बनाने की सबसे बड़ी बात शानदार कंपनियों का पहचान करने की है; कंपनियां जितनी अच्छी हों, उतना बेहतर.
सोच कर देखेंगे तो दोनों तरीक़े एक ही लगेंगे, मगर एक आसान तरीक़ा है. क्या आप बता सकते हैं कौन सा? कुछ महीने पहले, समीर अरोड़ा के साथ मेरी दिलचस्प बातचीत हुई, जो हेलियोस (Helios) के सीईओ हैं. हेलियोस, एक नई म्यूचुअल फ़ंड कंपनी है जिसे भारत में सेटअप किया जा रहा है. एक इक्विटी फ़ंड मैनेजर के तौर पर अरोड़ा का लंबा और शानदार करियर रहा है, और स्टॉक के चुनाव को लेकर उनकी अप्रोच और इक्विटी इन्वेस्टिंग की उनकी फ़िलॉसफ़ी हमेशा से बड़ी दिलचस्प रही है.
मुझे निवेश किए जाने वाले स्टॉक्स को पहचानने का उनका तरीक़ा बड़े काम का लगा. सबसे पहले वो कंपनियों को अच्छी और बुरी कंपनियों की कैटेगरी में बांट देते हैं. यहां तक तो ठीक है. हर कोई यही करता है. नहीं, एक मिनट रुकिए. हर कोई ये नहीं करता. शायद ही कोई करता है. असल में, ज़्यादातर निवेशक ऐसी कंपनियों को तलाशने पर ही अपना पूरा फ़ोकस करते हैं कि कौन से स्टॉक उनके निवेश के लिए सबसे अच्छे हैं. उनकी नैसर्गिक समझ कहती है कि यही सही तरीक़ा है कि कई अच्छे विकल्पों में से हमें सबसे अच्छा वाला स्टॉक ही तलाशना है.
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हालांकि, ये बहुत मुश्किल काम है. पर अरोड़ा कहते हैं, जब तक आप औसत से ऊपर हैं, नतीजे ठीक ही रहेंगे. अगर एक इन्वेस्टमेंट मैनेजर, जिसका ट्रैक रिकॉर्ड इतना लंबा और शानदार रहा है वो इसे मानता है, तो कौन है जो इस बात से इनकार करेगा. उनके मुताबिक़, निवेश करने लायक़ कंपनियों में से, आप उन कंपनियों को चुनने से शुरुआत कर सकते हैं जो अच्छी हैं, या फिर आप ऐसी कंपनियों से शुरुआत कर सकते हैं जो ख़राब है. इसमें अहम बात है: अच्छी और अच्छी कंपनियों के बीच चुनाव करना काफ़ी मुश्किल होता है, मगर अच्छी और ख़राब कंपनियों के बीच फ़ैसला करना आसान है. जब आप फ़ैसला ले रहे होते हैं कि कोई कंपनी पैसा लगाने लायक़ है या नहीं तब आपको दर्जनों बातों पर ध्यान देना होता है, मगर किसी कंपनी के एक या दो बड़े नकारात्मक पहलू हों, तो ये फ़ैसला आसान हो जाता है कि इस कंपनी में निवेश नहीं करना है, फिर चाहे कितने ही सकारात्मक फ़ैक्टर क्यों न हों.
वो ये भी कहते हैं कि ज़िंदगी के ज़्यादातर फ़ैसले ऐसे ही किए जाने चाहिए, जिसमें शादी का फ़ैसला भी शामिल है कि शादी किसके साथ करनी है. उनकी इस बात में दम है. आपमें से जो लोग ज़िंदगी के इस पड़ाव पर हैं वो इस मंत्र पर अमल कर के देख सकते हैं! मुश्किल ये है कि किसी से 'अच्छे स्टॉक' पहचानने और ख़रीदने के लिए कहना ठीक वैसा ही है जैसे आप उन्हें सस्ता ख़रीदने और महंगा बेचने के लिए कहें. जिसमें मुश्किल ये है कि स्टॉक ट्रेडिंग की दुनिया में, हर निवेशक इस गोल्डन रूल को पहले से ही मानता है कि निवेश तभी किया जाए जब उसके मुताबिक़ स्टॉक 'अच्छा' हो. आपको ऐसा निवेशक तलाशने में बड़ी मुश्किल होगी जो जानबूझकर, बड़ी मेहनत से अपना पैसा वहां लगाएं जिसे वो 'ख़राब स्टॉक' समझते हों. यानी, ऐसा नहीं होता.
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हालांकि, यहीं पर कहानी में पेंच आ जाता है: निवेश में, 'अच्छा' काफ़ी सापेक्ष टर्म है. इसकी परिभाषा धुंधली है, जो हर एक निवेशक के लिए अलग होती है. फिर भी, सभी एक ही नियम से खेलते हैं; वो अपना पैसा वहीं लगाते हैं जहां उनका विश्वास होता है. और ये विश्वास हमेशा ही इस विचार के इर्दगिर्द होता है कि जिस स्टॉक में वो निवेश कर रहे हैं वो 'अच्छा' है. हालांकि, ख़राब स्टॉक के साथ ऐसा नहीं है. ये तय करना कहीं आसान है कि कोई स्टॉक ख़राब है. इसी आधार पर, आप अपने निवेश किए जाने वाले दायरे को आधा कर सकते हैं. और ये बहुत अच्छा शुरुआती प्वाइंट है: सिर्फ़ ऐसा करने भर से आप एक औसत निवेशक से या औसत मार्केट से ऊपर हो जाते हैं. अब, आपके पास जो काम बचता है वो अच्छे और अच्छे में से चुनाव का होता है. और, इस अच्छे-बनाम-अच्छे के बीच चुनाव के नतीजे बहुत घातक कभी नहीं होते. हो सकता है आप कुछ अच्छा करें या कुछ ज़्यादा अच्छा करें, पर कुल मिला कर ठीक-ठाक रहेंगे. आप अपने फ़ाइनेंशियल गोल पा ही लेंगे. आपका काम हो जाएगा.
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