एक नया आइडिया हर तरफ़ चक्कर लगा रहा है कि म्यूचुअल फ़ंड इन्वेस्टमेंट में कंपाउंडिंग का कोई फ़ायदा नहीं है. लगता है इसकी शुरुआत सोशल मीडिया पर ध्यान-खींचने के लिए कही गई किसी बात से हुई और अब ये अपने-आप फैल रही है. मैं कई 'फ़िनफ़्लूएंसर' (finfluencer) टाइप के लोगों को ताज़ा-ताज़ा मिले इस ज्ञान को दोहराते हुए देख रहा हूं, जो कह रहे हैं कि इसी वजह से म्यूचुअल फ़ंड में इन्वेस्ट करने का कोई मतलब नहीं है और बजाए इसके, ये फ़िनफ़्यूएंसर लगे हाथ उनसे सलाह लेने का आमंत्रण लोगों को दे रहे हैं. वैसे हर किसी को कमाने-खाने का हक़ है, मगर आप से अनुरोध है कि अपना भला कीजिए और इसके लिए अपनी ज़िंदगी के असल निवेश के फ़ैसलों में इस तथाकथित ज्ञान को मत शामिल कीजिए.
चलिए देखते हैं कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं. म्यूचुअल फ़ंड कोई कंपाउंडिंग नहीं करते, इस तर्क का आधार ये दिया जा रहा है कि कंपाउंडिंग सिर्फ़ कंपाउंड इंटरस्ट या चक्रवृद्धि ब्याज में होती है जब डिपॉज़िट पर मिलने वाले ब्याज को वापस डिपॉज़िट में जोड़ दिया जाता है. जब तक कोई निवेश इस शर्त को पूरा नहीं करता और कंपाउंड इंटरस्ट के फ़ॉर्मूले पर नहीं चलता, CI = P (1 + r/n)nt - P, तब तक इसे कंपाउंडिंग करने वाला निवेश नहीं कहा जा सकता. हां, बात तो सही है कि म्यूचुअल फ़ंड ख़ुद कोई ब्याज की इनकम नहीं पैदा करते जिसे आपके निवेश में वापस जोड़ा जाए.
पर, आप अगर अकादमिक स्तर पर बाल की खाल निकालने में दिलचस्पी नहीं रखते, तो मायने भी नहीं रखता कि ऐसा ही हो. म्यूचुअल फ़ंड, किसी के निवेश को आगे निवेश किए जाने वाली एसेट क्लास है (passthrough asset class) और ये आसान हैं, जैसे - इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड अपने-आप में इक्विटी नहीं हैं पर इक्विटी इन्वेस्टमेंट के फ़ायदे आपको देते हैं, फ़िक्स्ड इनकम म्यूचुअल फ़ंड अपने-आप में बॉन्ड नहीं हैं पर बॉन्ड इन्वेस्टमेंट का फ़ायदा देते हैं, गोल्ड म्यूचुअल फ़ंड असली सोना नहीं है... वगैरह, वगैरह. आप इसकी जितनी चाहे मिसालें सोच सकते हैं. तो ये बात, कि म्यूचुअल फ़ंड ख़ुद ब्याज की आमदनी नहीं पैदा करते जो वापस उसमें जोड़ी जा सके एक बेमानी सी बात है.
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असल सवाल है कि म्यूचुअल फ़ंड जो इन्वेस्टमेंट करते हैं क्या उसमें कोई कंपाउंडिंग का फ़ायदा है? यहां, आपको अकादमिक दुनिया से बाहर क़दम रखना होगा और असल बिज़नस और इकॉनोमी की दुनिया में दाख़िल होना होगा. कंपाउंड इंटरस्ट को उसका नाम इसलिए मिला है क्योंकि आपका निवेश, आपके मूल निवेश के साथ-साथ निवेश से मिलने वाली ग्रोथ को शामिल करके बनता है. ग्रोथ का ये प्रोसेस, ख़ुद आगे की ग्रोथ में जुड़ जाता है, और यही वजह है कि हम इस टर्म का इस्तेमाल करते हैं. सारी बिज़नस ग्रोथ और इकोनॉमिक ग्रोथ, पिछली ग्रोथ की बुनियाद पर खड़ी होती है. वरना, जो पैसा हमने बढ़ाया है, वो एक समान ही बढ़ता, जैसे कि साधारण ब्याज या सिंपल इंटरस्ट में होता है.
1980 की शुरुआत में, भारत का GDP, 5-10 बिलियन यूएस डॉलर की सालाना रेंज से बढ़ा. पिछले कुछ साल में, इसके बढ़ने की रेंज 300-400 बिलियन यूएस डॉलर सालाना रही. आप उद्योगों पर नज़र डालिए. तीस साल पहले, इंफ़ोसिस का सालाना रेवेन्यू क़रीब ₹30-40 करोड़ (मैं 1993-95 की बात कर रहा हूं) की दर से बढ़ा करता था. पिछले कुछ साल में, इसके बढ़ने की रफ़्तार ₹10,000-20,000 करोड़ रही है. ये नंबर इस तरह से क्यों बढ़ रहे हैं? यहां क्या हो रहा है?
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अब मैं आपको एक मिसाल देता हूं जो मेरे ज़्यादा क़रीब है. मैंने तीन दशक पहले वैल्यू रिसर्च की शुरुआत की. शुरुआती दौर में, मेरा रेवेन्यू कुछ हज़ार रुपए सालाना ही बढ़ा करता था. बिज़नस के मौजूदा स्तर तक पहुंचने के लिए मैंने, साल दर साल, बिज़नस से कमाया पैसा वापस बिज़नस में लगाया. हर कोई, जिसने ख़ुद बिज़नस किया है इसे बख़ूबी समझेगा, क्योंकि उन्होंने इसका अनुभव किया होगा और हर रोज़ ख़ुद इसे महसूस किया होगा. एक और फ़ैक्टर है जिसे हमें पहचानना चाहिए, और ये बात है लोगों की स्किल का बहुत तेज़ी से बढ़ना. जैसे-जैसे समय गुज़रता है, लोगों की समझ, और काम करने की क्षमता बेहतर होती जाती है, नई टेक्नोलॉजी आती है, और इससे उनका कौशल और क़ाबिलियत भी बढ़ जाते हैं. ये प्रक्रिया भी, तेज़ी से बढ़ने वाली है. आइज़ैक न्यूटन ने लिखा है, "अगर मैं दूर तक देख पाया हूं, तो महान शख़्सियतों के कंधों पर खड़ा होकर."
इस सब की वजह है कि म्यूचुअल फ़ंड में इन्वेस्टमेंट, एक कंपाउंडिंग का प्रोसेस है. निवेश किए गए बिज़नस और इकोनॉमिक प्रोसेस, वापस ग्रोथ का इन्वेस्टमेंट बन जाते हैं, और ग्रोथ को आगे बढ़ाते हैं. जब निवेश और ग्रोथ में कंपाउंडिंग का इस्तेमाल होता है तो इसका असली मतलब यही होता है. ग्रोथ की कंपाउंडिंग किसी अकादमिक फ़ॉर्मूले की बात नहीं, जो किसी ब्लैक बोर्ड पर लिखी हो, बल्कि एक असली बिज़नस की ग्रोथ की बात है.
एक टर्म है 'डक टेस्ट' (Duck Test). जिसका विकीपीडिया पेज इस बात से शुरु होता है: डक टेस्ट या बत्तख परीक्षण अपहरणात्मक तर्क (abductive reasoning) का एक रूप है, जिसे आमतौर पर इस तरह से जाना जाता है कि "अगर ये बत्तख की तरह दिखती है, बत्तख की तरह तैरती है, और बत्तख की तरह झपटती है, तो संभवतः ये एक बत्तख है." टेस्ट का मतलब है कि एक व्यक्ति उस विषय की अभ्यस्त विशेषताओं (habitual characteristics) को देखकर किसी अंजान विषय की पहचान कर सकता है. कभी-कभी ये तर्कहीन तर्कों का मुक़ाबला करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है कि कुछ ऐसा नहीं है जैसा लगता है.
असली बिज़नस और इकोनॉमिक प्रोसेस, और वो इन्वेस्टमेंट जो उन पर आधारित होते हैं, कंपाउंडिंग प्रोसेस होने का डक टेस्ट पास करते हैं. एक बचत करने वाले और निवेशक के तौर पर, बस यही बात हमारे मतलब की है.
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