एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड (ETFs) बहुत से निवेशकों की पसंद हैं. इस बात का पता इसी से चलता है कि तीन साल में ही ETFs का नंबर 84 से बढ़कर 171 (मार्च 2020 से मार्च 2023 के बीच) यानी कि दोगुना हो गया है.
हालांकि, ETF का अनोखा फ़ॉर्मेट और उनके डिविडेंड प्लान कभी-कभी समझ से बाहर हो जाते हैं.
इस लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि ETF शेयर कैसे तय किए जाते हैं, ETF में डिविडेंड देने का आधार क्या है और इनमें निवेश करने पर कितना टैक्स लागू होता है?
ETF क्या हैं?
एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड्स (ETFs) ऐसी सिक्योरिटीज़ हैं, जो किसी आम इंडेक्स (जैसे कि Nifty 50) को ट्रैक करती हैं और उसी इंडेक्स के आधार पर परफ़ॉर्म करती हैं.
ये सिक्योरिटीज़ किसी आम कंपनी के शेयर्स की तरह ही स्टॉक एक्सचेंज पर काम करती हैं.
ETF परफ़ॉरमेंस के मामले में इंडेक्स फ़ंड जैसे होते हैं, पर इनमें शेयर तय करने का तरीक़ा अलग होता है.
ETF के शेयर कैसे तय होते हैं?
ETF शेयरों को किसी AMC (एसेट मैनेजमेंट कंपनी) द्वारा ऑथराइज़्ड पार्टिसिपेंट (AP), आमतौर पर मार्केट मेकर या बड़े इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर, के अनुरोध पर बनाया जाता है. ETF द्वारा होल्ड की जाने वाली अंडरलाइंग सिक्योरिटीज़, जो क्रिएशन बास्केट कहलाती है, उसे AP खरीदता है.
इसके बाद ये AP सिक्योरिटीज़ को फ़ंड हाउस या एसेट मैनेजमेंट कंपनी को डिलीवर करता है, और बदले में ETF शेयर्स का एक ब्लॉक रिसीव करता है.
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मिसाल के तौर पर, अगर कोई ETF Nifty को ट्रैक करता है, तो AP इंडेक्स के सभी 50 स्टॉक (क्रिएशन बास्केट) को ख़रीदता है और फिर उन्हें AMC को डिलीवर करता है. बदले में, AP को उसी वैल्यू के बराबर ETF शेयर मिलते हैं.
इन शेयर्स को, जो आमतौर पर बड़े लॉट में बनाए जाते हैं, फिर स्टॉक एक्सचेंज पर ख़रीदा-बेचा जा सकता है. AMC डेली बेसिस पर क्रिएशन/रिडेम्शन के लिए सिक्योरिटीज़ की बास्केट तय करती है.
ETF रिटर्न और टैक्स
म्यूचुअल फ़ंड की तरह ही ETF भी ग्रो करते हैं और डिविडेंड देते हैं.
ग्रोथ प्लान | डिविडेंड प्लान | |
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रिटर्न कैसे जनरेट किया जाता है? | ETF स्टॉक्स के कैपिटल एप्रिसिएशन और डिविडेंड्स के ज़रिये | ETF स्टॉक्स के कैपिटल एप्रिसिएशन और डिविडेंड्स के ज़रिये |
डिविडेंड का क्या होता है? | प्लान में दोबारा निवेश किया जाता है | या तो दोबारा निवेश किया जाता है या निवेशक को दे दिया जाता है |
कितना टैक्स लगता है? |
लॉन्ग-टर्म गेन पर 10 फ़ीसदी शॉर्ट-टर्म गेन पर 15 फ़ीसदी |
लॉन्ग-टर्म गेन पर 10 फ़ीसदी शॉर्ट-टर्म गेन पर 15 फ़ीसदी आपको दिया गया डिविडेंड आपकी इनकम में जोड़ा जाता है और लागू टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है (ये 30% तक हो सकता है) |
लॉन्ग-टर्म गेन उन निवेशों पर होता है जो 12 महीने से ज़्यादा के लिए होल्ड किए जाते हैं. शॉर्ट-टर्म गेन उन निवेशों पर होता है जो 12 महीने से ज़्यादा होल्ड नहीं किए जाते. |
बेहतर विकल्प
हमसे अक्सर पूछा जाता है कि क्या किसी ऐसे ETF में निवेश करें, जो डिविडेंड देता है या फिर उस ETF को चुनें जो डिविडेंड नहीं देता है (ग्रोथ प्लान).
हमारा साफ़ तौर पर ये मानना है कि डिविडेंड देने वाला ETF न चुनें.
क्योंकि आपको दिया गया डिविडेंड आपके द्वारा निवेश की गई पूंजी का ही एक हिस्सा होता है. इससे न सिर्फ़ नेट एसेट वैल्यू (NAV) कम होती है बल्कि ETF की क़ीमत भी घट जाती है.
इसके अलावा, निवेश में बने रहने पर मिलने वाला कम्पाउंडिंग का फ़ायदा भी आपको नहीं मिलता.
आख़िरी पर सबसे ज़रूरी बात है कि आपको मिलने वाला डिविडेंड टैक्स एफिशिएंट नहीं होता, और उस पर 30 फ़ीसदी तक टैक्स लगाया जा सकता है.
इसलिए, डिविडेंड प्लान के बजाय ग्रोथ प्लान चुनना एक स्मार्ट च्वाइस है.
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