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पोर्टफ़ोलियो में फ़ंड ज़्यादा हैं तो क्या करें?

जब पोर्टफ़ोलियो में बहुत से फ़ंड इकट्ठा हो जाते हैं आपके निवेश का ख़र्च बढ़ जाता है. आइए इसका पूरा नुक़सान समझते हैं.

पोर्टफ़ोलियो में फ़ंड ज़्यादा हैं तो क्या करें?

आप कभी तो सोचते होंगे कि आपके पोर्टफ़ोलियो में कितने म्यूचुअल फ़ंड काफ़ी रहेंगे, दो, चार, सात या दस? वैसे अगर आपके पास इसका कोई जवाब नहीं है तो हैरानी की बात नहीं. दरअसल इसका कोई सीधा जवाब नहीं है.

ये आपके पोर्टफ़ोलियो के स्केल यानी साइज़ पर निर्भर करता है. वैसे तो ज़्यादातर निवेशकों की ज़रूरत एक, दो या चार फ़ंड्स से पूरी हो जाती है. लेकिन जिस तरह से फ़ंड बनाए और बेचे जाते हैं. ऐसे में तमाम निवेशक समय के साथ ढेर सारे फ़ंड इकट्ठा कर लेते हैं.

इसे लेकर जागरूक रहना चाहिए और इस स्थिति से बचना चाहिए. आप नियमित रूप से निवेश करें, मगर सिर्फ़ इसलिए नया निवेश मत शुरू कर दें कि कोई नया फ़ंड बाज़ार में आया है. आपको पैसा इसलिए लगाना चाहिए क्योंकि आप हर महीने कमाते, हर महीने बचाते हैं तो हर महीने निवेश भी करना चाहिए. और अहम बात है कि अपने चुने हुए फ़ंड में ही पैसा लगाना चाहिए.

ज़्यादा फ़ंड यानी ज़्यादा ख़र्च

बहुत से फ़ंड इकट्ठा होने पर सबसे बड़ी समस्या ये होती है कि इससे आपका निवेश कई फ़ंड्स में फैल जाता है. अगर आपके पास एक इंडेक्स फ़ंड है, तो ये कभी अच्छा तो कभी कुछ ख़राब प्रदर्शन कर सकता है. लेकिन कई फ़ंड में निवेश होगा तो ये ख़र्च एक्टिव तरीक़े मैनेज किए जाने वाला फ़ंड का हो जाएगा, यानी ये महंगा पड़ेगा.

अब अगर आप अपने अपना पोर्टफ़ोलियो 3-4 फ़ंड तक ही सीमित रखेंगे, तो आपकी ज़्यादातर ज़रूरतें पूरी हो जाएंगी.

अपना पोर्टफ़ोलियो कैसे क्लीन करें

हमारे पास तमाम लोगों के पोर्टफ़ोलियो आते हैं और हमसे उसे क्लीन करने के लिए कहा जाता है. इसके लिए सबसे पहले तो आप ये तय कीजिए कि अभी भी आपका पैसा 5-10 साल के लिए, यानी इक्विटी में लगा रहेगा या नहीं. इसके लिए देखिए कि आपके पास अच्छे फ़ंड कौन से हैं जो अच्छी तरह से डाइवर्सिफ़ाइड हैं.

सेक्टोरल और थीमैटिक फ़ंड्स को पोर्टफ़ोलियो से हटा देने चाहिए. इस तरह के फ़ंड या तो बहुत अच्छा या बहुत ख़राब प्रदर्शन करते हैं. शायद ऐसे फ़ंड आपने तब लिए हों जब वो अच्छा प्रदर्शन कर रहे हों. तो सबसे पहले आप सेक्टोरल और थीमैटिक फ़ंड बेच दीजिए.

आप अपना पैसा, 3-4 अच्छी तरह से डाइवर्सिफ़ाइड फ़ंड्स में कंसॉलिडेट या सीमित कर दीजिए.

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कैसे फ़ंड्स अपने पास रखने चाहिए

आप ऐसे फ़ंड अपने पास रखें, जो गिरते हुए और चढ़ते हुए बाज़ार में अच्छा प्रदर्शन करते रहे हों. जिनका प्रदर्शन ऐसा न हो, उनसे दूर रहें.

अच्छे फ़ंड का पता लगाने के लिए 3 महीने, 1 साल या 3 साल के प्रदर्शन पर मत जाइए. एक अच्छा फ़ंड वही होता है जो गिरते बाज़ार में कम गिरे और चढ़ते बाजार में अच्छी भागीदारी करे.

किसी फ़ंड के 3-4 साल के प्रदर्शन के आधार पर आप इस बात का पता लगा सकते हैं कि फ़ंड ने हर तरह की मार्केट साइकल में कैसा प्रदर्शन किया है. आप इसकी जानकारी dhanak.com के फ़ंड पेज पर आसानी पा सकते हैं. इसके हर फ़ंड का एक अलग पेज है, जिसमें कई सेक्शन हैं जो अलग-अलग पैरामीटर पर फ़ंड के बारे में बताते हैं. फ़ंड के पेज पर 'ओवरव्यू' सेक्शन में आपको फ़ंड के पिछले प्रदर्शन की सभी जानकारियां मिल जाएंगी.

एसेट एलोकेशन और रिबैलेंसिंग पर ध्यान दें

एसेट एलोकेशन यानी निवेश का कितना हिस्सा आप किस तरह के फ़ंड/ निवेश में रखना चाहते हैं. और रीबैलेंसिंग का मतलब होता है कि अगर किसी एक तरह के निवेश में मार्केट के उतार-चढ़ाव से कमी या बढ़ोतरी हो गई हो, तो बढ़े हुए निवेश से कुछ पैसा घटे हुए निवेश में डाल दिया जाए. जैसे कि अगर बाज़ार के चढ़ने से आपका इक्विटी निवेश ज़्यादा हो गया हो, तो आप उसमें से कुछ पैसा निकाल कर डेट में लगा दें और अपने निवेश को उसी बैलेंस पर ला दें जो आपने पहले से तय किया हुआ था.

तो फ़ंड्स की संख्या कम करने के बाद आपको दो अहम काम करने हैं. एसेट एलोकेशन और रिबैलेंसिंग. निवेश की शुरुआत के 2-4 साल में इस बारे में मत सोचिए, क्योंकि ये पैसे इकट्ठा होने का शुरुआती दौर होता है. शुरू के 2, 4 या 5 साल के दौरान जब पैसा इकट्ठा हो रहा होता है तब उसमें गिरावट आने पर आपको खास चिंता नहीं करनी चाहिए. लेकिन जब एक बड़ा फ़ंड तैयार हो जाए, तब अगर इसमें गिरावट आती है तो आपको बड़ा अफ़सोस होगा.

इससे बचने के लिए आपको एक एसेट एलोकेशन करना चाहिए. तो 4-5 साल के बाद आप एक एसेट एलोकेशन तय कीजिए. अगर 5-10-15 साल के लिए निवेश कर रहे हैं तो फ़िक्स्ड इनकम में कम पैसा रखिए और इक्विटी में ज़्यादा पैसा लगाइए.

कम पैसे से मेरा मतलब है, 25 या 33 फ़ीसदी के आसपास. इसका फ़ायदा ये है कि मार्केट में गिरावट होने पर आपका पूरा पैसा एक साथ नहीं गिरेगा. और बाज़ार है तो गिरेगा ही. अगले 10-15-20 साल के दौरान तीन-चार बार कोई एक सप्ताह ऐसा ज़रूर आएगा जब बाज़ार एक साथ धड़ाम से 4-5 फ़ीसदी गिर जाएगा. उस समय, आपको ख़ासा अफ़सोस हो सकता है. इससे बचने के लिए ही एसेट एलोकेशन करना चाहिए.

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अब बात रीबैलेंसिंग की

अगर आपने तय किया है कि एक आपका एक चौथाई निवेश फ़िक्स्ड इनकम में लगेगा और तीन चौथाई इक्विटी में लगेगा. और अगर बाज़ार में अचानक गिरावट आती है तो होगा ये कि इक्विटी में लगा तीन चौथाई पैसा कम हो जाएगा. ऐसे में, आपको फ़िक्स्ड इनकम को एक चौथाई करने के लिए अपना डेट वाले निवेश का कुछ हिस्सा बेचकर इक्विटी में लगाना होगा. ये सबसे आसान तरीक़ा है. तो आप करते ये हैं कि गिरावट होने पर आप महंगा वाला निवेश बेचते हैं और सस्ता वाला ख़रीदे हैं.

इसके बाद, अगर इक्विटी में तेज़ी आने के बाद उसका हिस्सा 90 फ़ीसदी हो जाए, तो आप उसे फिर से बेचकर फ़िक्स्ड इनकम में निवेश कर सकते हैं. और इक्विटी को 75 फ़ीसदी के स्तर पर ला सकते हैं.

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