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प्लान, प्लानिंग और पैनिक

अगर आपका एक इन्वेस्टमेंट प्लान होगा तो आपको कुछ भी नहीं चौंकाएगा और आप घबराएंगे भी नहीं

प्लान, प्लानिंग और पैनिक

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जिन निवेशकों के पास प्लान नहीं होता, वो अक्सर अचानक होने वाली किसी घटना से घबरा जाते हैं. कई बार ये पैनिक असल होता है और कई बार ये ख़ुद पर थोपा गया होता है. हाल ही में, कई म्यूचुअल फ़ंड निवेशकों ने ख़ुद का खड़ा किया पैनिक झेला. कुछ इसका शिकार हुए, और कुछ दूसरे नहीं भी हुए. अगर पैनिक आप आपको बस छूकर गुज़र गया, तो ख़ुद को क़िस्मत वाला समझिए. पर, ज़्यादा संभावना इस बात की है कि इसमें आपकी क़िस्मत का कोई हाथ नहीं होगा, क्योंकि—एक निवेशक के तौर पर—आप जानते थे कि आप क्या कर रहे थे. इसके लिए आपको मुबारक़बाद. और दूसरे लोग, जो पैनिक में थे, उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उन्होंने ऐसा क्यों किया.

इसका असल कारण समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं है, बात सिर्फ़ इतनी सी है कि कुछ म्यूचुअल फ़ंड कैटेगरी के टैक्स में बदलाव हुए. आंकड़े बताते हैं कि जिन निवेशकों पर इसका सबसे ज़्यादा असर हुआ वो ऐसे लोग थे जो आमतौर पर डेट फ़ंड निवेशों को तीन साल या उससे ज़्यादा समय के लिए होल्ड करते हैं. क्योंकि डेट फ़ंड आमतौर पर शॉर्ट-टर्म के इस्तेमाल के लिए होते हैं, इसलिए ये उतनी बड़ी बात नहीं होनी चाहिए थी. हालांकि, फ़ंड बेचने वालों ने कई निवेशकों पर काफ़ी ज़ोर डाला कि उन्हें टैक्स में हुए बदलावों की घोषणा, और 1 अप्रैल से उनके लागू होने के पहले बचे हुए 4-5 दिनों में ही तुरत-फुरत निवेश कर लेना चाहिए. इससे हुआ ये कि पांच दिन के भीतर, यानी 27 मार्च से 31 मार्च के बीच डेट फ़ंड कैटेगरी में, ₹39,325 करोड़ निवेश किए गए. महीने के पहले हिस्से से इसकी तुलना करें तो पता चलेगा कि तब इससे कहीं कम निवेश हुआ, और ये आकंड़ा महज़ ₹4,430 करोड़ का था. वैल्यू रिसर्च में इस आकंड़े पर पहुंचने के लिए हमने रोज़ का AUM डेटा और फ़ंड्स का NAV देखा.

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पर ये भेड़ चाल शुरू क्यों हुई? ज़रा इस बारे में सोचिए. असल में, अगर इन फ़ंड्स में निवेश करना आपके प्लान में पहले से ही शामिल नहीं था, तो इस छोटे से अर्से में करने का फ़ायदा बहुत थोड़ा था. तो निवेशकों में ये पैनिक क्यों दिखा? इसका जवाब आसान है. ये निवेशक वो लोग थे, जिनके पास कोई प्लान नहीं था. ये एक पैनिक से भरा रिएक्शन था, जो भावुक प्रतिक्रिया कही जाएगी. जिन निवेशकों के पास एक सोची-समझी निवेश की रणनीति नहीं होती, वो अक्सर, अचानक होने वाली घटनाओं के चलते भावनाओं में बहकर फ़ैसले लेते हैं. भविष्य के बारे में सोच-समझ की कमी ही पैनिक खड़ा करती है, जिससे इसी तरह के भावुक फ़ैसले होते हैं और इसका नतीजा होता है मुनाफ़े की कमी.

मनोवैज्ञानिक तौर पर स्थिर रहना, अक्सर किसी निवेश प्लान का सबसे निचले दर्जे का हिस्सा समझा जाता है. मार्केट में उतार-चढ़ाव होते ही हैं और इनमें संतुलन बनाए रखने के लिए रेग्युलेटरी बदलाव भी किए ही जाते हैं. पर इनसे सामना करने के लिए निवेशक की सोच-समझ में संतुलन ज़रूरी होता है. ये समझ आपको एक सीधा-साफ़ लक्ष्य देती है, इससे रिस्क सहने की क्षमता मिलती है, और आपके निवेश की अवधि तय होती है. जिससे आप अचानक होने वाली किसी घटना का असर कम कर पाते हैं, और अपने असली लक्ष्य पर बने रहते हैं. कुल मिला कर, एक प्लान का होना आपके लिए एक एंकर का काम करता है, जो मार्केट के उतार-चढ़ाव के वक़्त आपकी मदद करता है. ये आपको टैक्स के बदलावों जैसी किसी भी डर पैदा करने वाली घटना का शिकार होने से बचाता है.

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निवेश, ख़ासतौर पर म्यूचुअल फ़ंड निवेश, सीधे-सादे, कम-ख़र्च वाले निवेश का अच्छा तरीक़ा है. हालांकि, आपको ये जानने की ज़रूरत हो सकती है कि आप किस स्तर से अपनी शुरुआत कर रहे हैं, आपके लक्ष्य क्या हैं, और वो क्या बातें हैं जो आपको वहां तक ले जाएंगी. जब भी कोई सेक्टर या कोई ख़ास फ़ंड अच्छा या ख़राब करने लगता है, तो निवेशक पैनिक में या तो उसकी तरफ़ भागते हैं या उससे दूर. अक्सर, ये उस निवेश के पीछे भागना होता है जो पहले तो अच्छा प्रदर्शन कर रहा था और आने वाले वक़्त में कम अच्छा प्रदर्शन करेगा, और ये एक तरह से होता ही है. इससे बचने का तरीक़ा ये नहीं कि आप भविष्य को लेकर और बेहतर अटकलों की जुगत में लग जाएं, पर सही तरीक़ा है कि आप पहले ही प्लान करें कि आपको कहां निवेश करना है.

ऐतिहासिक तौर पर टैक्स के बदलाव पैनिक का सोर्स रहे ही हैं. असल में तो टैक्स किसी के फ़ाइनेंशियल प्लान का हिस्सा नहीं होते क्योंकि कोई नहीं जानता कि आगे क्या होने वाला है. टैक्स का मौजूदा बदलाव अपेक्षाकृत कम असर करने वाला था, पर हो सकता है कोई बड़ा बदलाव भी आ जाए जिसके लिए आपको अपने निवेश का प्लान बदलने की ज़रूरत हो. हालांकि, तब भी, प्लान होना बेहद ज़रूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आपके पास प्लान है, तो आपने प्लानिंग की है. क्या ये बात अटपटी लगी?

"युद्ध की तैयारी में, मैंने हमेशा पाया है कि प्लान बेकार होते हैं, मगर प्लानिंग के बिना युद्ध नहीं लड़ा जा सकता." ये बात जनरल आइज़नहावर ने कही थी. वो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यूरोप की एलाइड फ़ौजों के कमांडर थे और बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति हुए. उनकी ये बात ऐसी है, जो शायद ही किसी के दिमाग में आए, पर एक बार आप इसे समझ लेते हैं, तो ये एक बेहद गहरी और क़ारगर लगती है और दिमाग में कौंध सी जाती है. कभी-न-कभी आपके प्लान को बदलने की ज़रूरत होगी ही, मगर प्लानिंग करना काम की बात है.

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