क्रिप्टो के ढहने के बाद कई गलों में आवाज़ें और आवाज़ों में जान लौट आई है, ये वो लोग थे जो पहले कहा करते थे कि क्रिप्टो में कुछ नहीं है और जल्द ही बड़े पैमाने पर इसकी हाईप का अंत हो जाएगा. कई लोग फ़ाइनेंशियल मेनिया के लंबे इतिहास में क्रिप्टो को कुछ अनोखा मानते हैं-और तकनीकी तौर पर, ये है भी.
हालांकि, इसमें शामिल लोग अपनी सोच और मनःस्थिति में, हमारी नज़रों से गुज़रे क़रीब-क़रीब हर एसेट-प्राइस मेनिया जैसे ही हैं. क्रिप्टो मेनिया को किसी अनोखी चीज़ की तरह देखना हमें उसे समझने से रोकता है. इस बारे में सोचेंगे तो आपको भी यही लगेगा. डॉट-कॉम मेनिया अनोखा था क्योंकि जिन ग्लोबल नेटवर्किंग के बिज़नस पर ये आधारित था, वो नए थे. 2008-10 का ग्लोबल क्राइसिस अनोखा था क्योंकि इसकी शुरुआत उन सबप्राइम (subprime) आधारित फ़ाइनेंशियल एसेट्स से हुई थी, जो कुछ नए थे. 19वीं सदी का रेलवे मेनिया अनोखा था, क्योंकि रेलवे नई थी. 17वीं सदी में हॉलैंड का प्रसिद्ध ट्यूलिप मेनिया अनोखा था, क्योंकि फूलों में निवेश नई बात थी.
कुछ दिन पहले, मैंने हार्वर्ड के फ़ाइनेंस प्रोफ़ेसर मिहिर देसाई का एक लेख पढ़ा, जिसमें उन्होंने बड़ा दिलचस्प क़िस्सा सुनाया था. उनकी बात का अनुवाद कुछ इस तरह होगा: "एक सैन्य अकादमी में गेस्ट लेक्चर के दौरान जब एक बिटक्वाइन का प्राइस $60,000 के पास पहुंच गया, तो मुझसे पूछा गया, जैसा फ़ाइनांस प्रोफ़ेसरों से अक्सर पूछा ही जाता है कि मैं क्रिप्टोकरंसी के बारे में क्या सोचता हूं. बजाए अपना स्वाभाविक संदेह जताने के, मैंने स्टूडेंट्स के बीच वोटिंग कराई. उनमें से आधे से ज़्यादा क्रिप्टोकरंसी में ट्रेड कर चुके थे, और अक्सर लोन से फ़ाइनेंस करा कर." देसाई क्रिप्टो-मेनिया का दोष उसे देते हैं, जिसे वो 'जादुई सोच' (magical thinking) कहते हैं, जिसकी व्याख्या कुछ ऐसी होगी, 'ऐसी धारणा कि बिना इतिहास की परवाह किए अच्छी परिस्थितियाँ हमेशा क़ायम रहेंगी.' ज़ाहिर है, इस तर्क में कुछ सच्चाई है, और ऐसा कई लोगों ने कहा है.
क्रिप्टो पर इस जादुई सोच की मदद वो ज़बर्दस्त हाईप करती है, जिसके मुताबिक़ क्रिप्टो इंसानी इतिहास की पहली सरकार से स्वतंत्र करंसी है. क्रिप्टो में निवेश को लेकर इतने सारे लोगों की दिलचस्पी पर की गई इस विवेचना के प्रति मुझे संदेह है. मैं समझता हूं कि ये सीधे-सीधे लालच का मामला है, जिसमें अथाह मुनाफ़े को टैक्स अधिकारियों से छुपा पाना इसके लालच को दोगुना कर देता है. क्रिप्टो में ट्रेड करने वाले अपने आसपास के लोगों पर एक नज़र डालिए. जैसे ही भारी-भरकम मुनाफ़े और ज़ीरो टैक्स के फ़ायदे ग़ायब हुए, क्रिप्टो में उनकी सारी दिलचस्पी हवा हो गई.
क्या आप अपने-आप से एक काल्पनिक सवाल पूछेंगे? क्रिप्टो में लोगों की दिलचस्पी का स्तर क्या होता अगर इसके रिटर्न सालाना 6-7 प्रतिशत की दर पर ही मंडराते रहते? इसके स्वतंत्र करंसी होने की सारी थ्योरियां अपनी जगह अटल रहतीं तो भी इसपर कोई ध्यान नहीं देता. चलिए एक काम करते हैं कि किसी हाईप से प्रभावित नहीं होते. असल में, लोग क्रिप्टो में उसी वजह से निवेश कर रहे थे जिस वजह से उन्होंने ट्यूलिप से लेकर डॉटकॉम तक हर बबल (bubble) में निवेश किया था और वो वजह थी-ग्राफ़ का तेज़ी से ऊपर चढ़ना. दरअसल ये सारी बात सिर्फ़ उम्मीद पर टिकी थी-तर्क और असलियत के खिलाफ़ कि-अच्छा वक़्त कभी ख़त्म नहीं होगा.
जब मैं लिख रहा हूं, तब बिटक्वाइन रैली ज़ोरों पर है, और साल की शुरुआत से अब तक दाम क़रीब 20 प्रतिशत बढ़े हैं, जिसके चलते क्रिप्टो-सनकियों के दिलों में उम्मीद फिर से हिलोरें मारने लगी है. जो कुछ चल रहा है उसमें अब मेरी कोई रुचि नहीं. और ये भी साफ़ है कि जो चंद भारतीय निवेशक क्रिप्टो में जुटे हुए थे, उनमें से बहुत थोड़े ही बचे हैं जिनका विश्वास अब भी गहरा है. बाक़ियों ने अपनी जुए की इस आदत का गला घोंट लिया है और अपने घाव सहला रहे हैं.
हालांकि, ये कहानी अभी बाक़ी है. अपराध और रैनसमवेयर (ransomware) की तरह क्रिप्टो, बचत करने वालों के शोषण के लिए ही बना है. ऐसे लोग हैं जिन्हें ये समझने के लिए मदद की ज़रूरत होती है कि निवेश क्यों अच्छा करते हैं और क्यों अथाह मुनाफ़े की कहानियां सच्ची नहीं होतीं. इंसानी स्वभाव में लालच शाश्वत है, और शाश्वत है, दूसरों के लालच का शोषण. ये सच्चाई कि बिटक्वाइन अब भी सांसें ले रहा है और धड़ल्ले से ले रहा है, इसी की ज़िंदा मिसाल है.
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