जब एक इक्विटी ट्रेडर स्टॉक को मुनाफ़े में बेचता है और पैसे बनाता है तो ये मुनाफ़ा आता कहां से है? आसान जवाब होगा कि जिसने भी स्टॉक को पहले ख़रीदा है उसी से। ये सही है, मगर क्या इसका मतलब हुआ कि जिसने ये स्टॉक पहले ख़रीदा था उसे नुकसान हुआ? नहीं, कम-से-कम तब तो नहीं अगर स्टॉक ख़रीदने वाले ने उसे फ़ायदे में बेचा हो। यानि अगर स्टॉक का दाम बढ़ा है, तो किसी को नुकसान नहीं हुआ है। और क्योंकि आमतौर पर वक़्त के साथ मार्केट ऊपर ही जाते हैं, इसलिए कुल मिला कर इक्विटी निवेशक पैसा ही बनाते हैं। वो हर शख़्स जो स्टॉक्स में निवेश करता है, इस बात को अच्छी तरह समझता है।
पर जब कोई फ़्यूचर्स या ऑप्शन्स से पैसे बनाता है, तब क्या होता है? उसका पैसा कहां से आता है? और डेराइवेटिव्स में? अजीब बात ये है कि इसका जवाब कम ही लोग जानते हैं, और कम लोग ही समझते हैं, काफ़ी कम।
कुछ समय पहले, मेरी बात एक युवा व्यक्ति से हो रही थी जो इक्विटी मार्केट्स में आई नए निवेशकों की बाढ़ का हिस्सा है। अगर आपको इस नए उफ़ान का पता नहीं है, तो इतना जान लीजिए कि 2020 के मध्य से लेकर, वर्क-फ़्रॉम-होम ने, और एप-बेस्ड ट्रेडिंग ने, और लॉकडाउन ने, मिलजुल कर नए निवेशकों की बाढ़ ला दी है। हालांकि कई लोगों ने क्रिप्टो से चोट खाई है, और अपने कपड़े तार-तार करवा लिए हैं, और वो अब वापस अपने-अपने ऑफ़िस की तरफ़ लौट गए हैं, मगर अब भी कई नए आए लोग इक्विटी में जमे हुए हैं। मैंने इस युवक से फ़्यूचर और ऑप्शन्स को लेकर सवाल पूछा। उसे फ़्यूचर और ऑप्शन्स में ट्रेडिंग के लिए तैयार कर लिया गया था, पर उसे इसका कोई आइडिया नहीं था, और न ही उसने कभी इस बारे में गहराई से सोचा था।
असल में, उसने डेराइवेटिव्स के बारे कुछ जानने की कोशिश की थी और कई तरह की जानकारी जो ब्रोकरों ने दी उससे कुछ समझने की कोशिश भी की थी। इसके अलावा गूगल से हर तरह की वेबसाइटों पर जा-जा कर कुछ जान भी लिया था। इसका नतीजा ये था कि उसने मुझे डेराइवेटिव्स के फ़ायदों पर काफ़ी अजीबो-ग़रीब बातें सुनाईं, कि कैसे वो ट्रेडर को सुरक्षित तरीक़े से ट्रेड करने में मदद करते हैं, कैसे वो लिक्विडिटी प्रमोट करते हैं, कैसे वो डिस्कवरी प्राइस को प्रोत्साहित करते हैं आदि, आदि। संक्षेप में कहूं, तो पूरी पार्टी लाइन मुझे समझा दी गई। हालांकि, इस सारी R&D में और इस सारे प्रॉपेगंडा में, किसी ने उसे ये नहीं बताया था कि इसमें हर बार जब कोई मुनाफ़ा कमाता है, उसमें किसी दूसरे का नुकसान होता है। जबकि असल इक्विटी निवेश में ऐसा नहीं होता, जहां अर्थव्यवस्था की ग्रोथ इक्विटी की बुनियाद होती है, वहीं फ़्यूचर और ऑप्शन्स एक ज़ीरो-सम गेम है।
जो बात मुझे सबसे दिलचस्प लगी वो ये कि एक बार जब मैंने अपने उस युवा दोस्त को सारी चीज़ें समझा दीं, तो वो जो भी कर रहा था, उसे लेकर कुछ हद तक डर गया। ये ज़रूर है कि वो समझता है कि वो, और उसका ब्रोकर बड़े बुद्धिमान हैं। फिर भी, ये जानकारी कि उस पूरे काम में कोई पैसा नहीं बन रहा, और सारा नफ़ा-नुकसान बराबर है, ये बात किसी भी काम को लेकर हमारा रवैया बदल ही देती है।
असल में, लाखों-लाख लोगों की डेराइवेटिव का लेनदेन- जो भारतीय एक्सचेंज के कामकाज का 90 प्रतिशत है-कुल मिला कर कोई वैल्थ नहीं पैदा करता, ये बात सोच में डालने वाली है। अगर कोई अमीर बन रहा है, तो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि कोई दूसरा ग़रीब हो रहा है। और हां, ब्रोकर और एक्सचेंज इस सब में पैसे बना रहे हैं। ये सोच कि भारत में फ़्यूचर्स और ऑप्शन्स काम के हैं, सिर्फ़ एक थ्योरी है और कुछ नहीं। कुछ ग़ायब होते थोड़े से निवेशक डेरायवेटिव्स को नुकसान कम करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
जब मैं बिज़नस स्टूडेंट था, तो मुझे बताया गया था कि स्टॉक मार्केट का मकसद है कि निवेशकों के रिसोर्स बिज़नस में इस्तेमाल हों ताकि फ़ाइनेंशियल ग्रोथ हासिल की जा सके, और सभी निवेशक इस ग्रोथ में हिस्सेदारी ले सकें। फ़्यूचर्स और ऑप्शन्स का ये जुआ इस मकसद से बहुत दूर है।
मगर हां, हम यथार्थ की बात करते हैं कि ये सब बदलने वाला नहीं है। जब मैं क्रिप्टोकरंसी और NFT जैसे इनोवेशन देखता हूं, तब उनकी तुलना में फ़्यूचर्स और ऑप्शन्स काफ़ी सौम्य नज़र आते हैं। इस कॉलम के ज़रिए मैं अपने निवेशक पाठकों से कहना चाहता हूं कि आप निवेश तक ही रहें- असल निवेश तक- और उसके लालच में न पड़ें जो ऊपरी तौर पर तो निवेश लगता है मगर असल में निवेश से काफ़ी अलग है।