हाल में एक कंपनी पर गौर करते हुए, कुछ खास चीज दिखी। कंपनी ने पिछले पांच साल में बहुत अच्छा रिटर्न दिया है लेकिन इसी अवधि में इसका प्राइस टू अर्निंग रेशियो यानी P/E गिरा है। साफ तौर पर ये कुछ नई बात है। (वास्तव में ऐसा नहीं है लेकिन इससे अच्छा इंट्रो बनता है)।
रिटर्न और P/E
जब भी एक स्टॉक शानदार रिटर्न देता है तो ज्यादा संभावना यही है कि इसका P/E भी बढ़ता है। बर्गर पेंट का ही उदहारण लेते हैं। इसका पांच साल का रिटर्न 21 प्रतिशत है और इसका P/E 54.2 प्रतिशत से बढ़ कर 71.9 प्रतिशत रहा है। ये काफ़ी सामान्य है। और इसे ऐसा ही होना चाहिए, ठीक है? नहीं, ये ज़रूरी नहीं है।
प्राइस और अर्निंग कैसे P/E को प्रभावित करते हैं
प्राइस टू अर्निंग के दो दो कंपोनेंट हैं। जैसा नाम से पता चलता है- पहला है प्राइस और दूसरा है अर्निंग या अर्निंग पर शेयर (EPS)। कंपनी का P/E इस सूरत में बढ़ेगा अगर प्राइस EPS से अधिक बढ़ जाता है या अगर EPS कीमत की तुलना में गिर जाता है। इसी तरह से, कंपनी का P/E गिर सकता है अगर प्राइस EPS की तुलना में ज्यादा गिर जाता है या अगर EPS प्राइस की तुलना में ज्यादा हो जाता है। तो, अगर EPS में ग्रोथ प्राइस में ग्रोथ से ज्यादा हो जाता है, ऐसा होने पर उंचे रिटर्न देने के बाद कंपनी का P/E गिर जाता है।
हमने 15 कंपनियां इकठ्ठा की हैं जिनका P/E पांच साल पहले की तुलना में गिरा है (ऊंचा रिटर्न देने के बावजूद)। हम यहां ऐसे ही कंपनियां नहीं दे सकते हैं क्योंकि इस मार्केट में प्राइसेज बिना किसी वज़ह के भी बढ़ जाती हैं और कंपनियां अचानक ग्रोथ भी दर्ज करती हैं। ऐसे में हमने कुछ फिल्टर्स लागू किए हैं:
· 1000 करोड़ रु से अधिक का मार्केट कैपिटलाइजेशन
· 2.99 से अधिक आल्टमन जेड-स्कोर
· दो गुने से अधिक इंटरेस्ट कवरेज
· 10 प्रतिशत से अधिक पांच साल का रेवन्यू ग्रोथ
· 10 प्रतिशत से अधिक पांच साल का EPS ग्रोथ
· 10 प्रतिशत से अधिक पांच साल का रिटर्न
हमने उन कंपनियों को हटा दिया जिनका P/E किसी ऐसी वजह से गिरा है, जिनको अपवाद कहा जा सकता है या जो कंपनियां पिछले कुछ साल से मुनाफे में आईं हैं। यहां 15 उदाहरण हैं जहां EPS प्राइस की तुलना में बढ़ा है जिसका नतीजा P/E में गिरावट के तौर पर सामने आया है।