अगर कुछ फ़ायदेमंद है, तो उसका ज़्यादा होना बेहतर होगा, क्यों? शायद हमेशा नहीं, पर भारत के कर्मचारी भविष्य निधि या EPF के फ़ैन्स का तो यही मानते हैं। लंबे समय से होता आया है कि तनख़्वाह पाने वाले, ज़रूरी रक़म से ज़्यादा EPF में निवेश करते रहे हैं। इसमें न तो एंप्लॉयर अपने हिस्से के एक्सट्रा पैसे देते हैं, न ही निवेश के इस एक्सट्रा पैसे पर टैक्स में कोई छूट मिलती है। मगर इसे हर तरह से बुरा भी नहीं कहा जा सकता। अब तक इस पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स नहीं लगता था, दूसरे विकल्पों के मुक़ाबले रेट हमेशा ऊंचा रहता था, और पैसे पर सॉवरिन गारंटी थी। हालांकि, लॉक-इन लंबा था, मगर क्योंकि ब्याज दी दर ऊंची थी और ये टैक्स-फ़्री था, लंबे लॉक-इन पीरियड के लिए ये एक अच्छा ट्रेड-ऑफ़ था।
अब, इस साल से कहानी बदल गई है। जो लगातार एक्स्ट्रा EPF कटवाते हैं उन्हें ध्यान देने की ज़रूरत है। इस साल से, टैक्स-फ़्री ब्याज की आमदनी केवल ₹2.5 लाख के सालाना डिपॉज़िट तक ही सीमित है। अगर इसमें एम्पलॉयर का योगदान नहीं है, तो ये लिमिट ₹5 लाख हो जाएगी। इस सीमा से ऊपर के सालाना योगदान के लिए मिलने वाले ब्याज को आपकी आमदनी में जोड़ दिया जाएगा, जैसा दूसरे किसी भी डिपॉज़िट में होता है। और बैंक और दूसरे डिपॉज़िट की तरह, इसका TDS तिमाही कटा करेगा। इसे लागू करने के लिए इस साल से, जो एक साल में ₹2.5 लाख से ज़्यादा का योगदान देते हैं, उन सभी सदस्यों के लिए EPFO दो अलग अकाउंट बनाएगा। इसमें से एक अकाउंट,सामान्य तौर पर मौजूदा EPF अकाउंट की तरह ही ऑपरेट करेगा। वहीं दूसरे अकाउंट में,जहां आपके बैलेंस का टैक्स वाला हिस्सा रहेगा और आमदनी इकठ्ठी होगी, उसपर टैक्स लगेगा जिसमें से TDS काटा जाएगा।
अब से, आपके EPF का ये हिस्सा किसी भी दूसरे डिपॉज़िट (कुछ समय के लिए) की तरह है, जिसमें कुछ बेहतर ब्याज मिलता है, जो बैंक या दूसरे डिपॉज़िट से ज़्यादा है। EPF की दूसरी नकारात्मक बात है, लंबे समय का लॉक-इन, जो अब बेकार हो जाता है। ये बातें अब EPF को पूरी तरह से बदल देती हैं। देखते हैं, ये कितना बदला है। एक मिसाल लेते हैं, और मान लेते हैं कि EPF में आपका योगदान ₹3 लाख सालाना का है, यानि ये ₹2.5 लाख की लिमिट से ज़्यादा है। ये भी मान लेते हैं कि अब से ब्याज की दर 8 प्रतिशत होगी और आप एप्लीकेबल टैक्स रेट 30 प्रतिशत है। तो हर साल, आप अपनी बचत पर 8 प्रतिशत कमाएंगे और 30 प्रतिशत का इन्कम टैक्स देंगे। इसे और सरल करने के लिए, मैं पूरे साल की आमदनी और टैक्स, एक ही ले रहा हूं-ऐसा होता नहीं है, मगर इससे बात को समझना आसान होगा।
अगर ये साल के ₹3 लाख बिना टैक्स के EPF में लगे होते, तो इससे बीस साल में ₹1.48 करोड़ इकठ्ठा हो जाते। मगर, टैक्स वाले अकाउंट में, ऊपर तय की गई शर्तों के मुताबिक़ ये रक़म केवल ₹1.12 करोड़ ही होगी। लगातार टैक्स का मतलब है कि टैक्स के बाद, टैक्स का असल रिटर्न सिर्फ़ 5.62 प्रतिशत रह जाएगा। क्या ये डील आपको पसंद आ रही है? एक डिपॉज़िट, जो जिसमें दशकों लंबा लॉक-इन पीरियड हो, उसका सालाना रिटर्न सिर्फ़ 5.62 प्रतिशत हो? मुझे भी नहीं।
तो आपको क्या करना चाहिए? बजाए उस EPF अकाउंट के जिस पर टैक्स लगता है, क्यों नहीं इस पैसे को आप किसी इक्विटी फ़ंड में लगा दें? आप एक कंज़रवेटिव लार्ज-कैप फ़ंड चुन सकते हैं या शायद सेंसेक्स या निफ़्टी का ETF चुन सकते हैं। और हां, इसमें उतार-चढ़ाव तो रहेगा, पर बीस साल के दौरान, ये सारा उतार-चढ़ाव बराबर हो जाएगा। जो अहम है वो ये कि इसमें रिटर्न बेशक़ बेहतर होंगे। आइए इसी कैलकुलेशन को फिर से करते हैं और इस बार मान लेते हैं कि इक्विटी के लिए बीस साल बहुत लंबा अर्सा है और रिटर्न भी 8 प्रतिशत ही रहेंगे। इस पर सिर्फ़ टैक्स का ही अंतर ले लेते हैं।
इस केस में, पहले जैसा ही इनफ़्लो रखने पर, बजाए ₹1.12 करोड़ के, अंत में आपके पास ₹1.39 करोड़े होंगे! याद है न कि इक्विटी म्यूचुअल फंड में, पैसा बिना टैक्स के इकठ्ठा होगा और उसपर एक ही बार टैक्स लगेगा, वो भी आख़िर में जब आप पैसा निकालेंगे, और वो भी केवल दस प्रतिशत की दर से? यहां असल रिटर्न का इंटरनल रेट होगा, 7.48 प्रतिशत! और जो बात याद रखनी है कि असल में तो इक्विटी में आपको कहीं बेहतर रिटर्न मिलेंगे।
नया टैक्स EPF में एक्स्ट्रा योगदान पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा देता है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी व्यक्ति, जो ये पढ़ रहा है उसे और समझाने की ज़रूरत होगी।
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