क्या आप नई पीढ़ी के निवेशक हैं जो नई पीढ़ी के शेयरों (new age companies) यानी न्यू एज स्टॉक्स के साथ बाज़ार के रवैये से नाखुश हैं? अगर ऐसा है तो ऐसा सोचने वाले आप आप अकेले नहीं हैं. ऐसा लगता है कि निवेशकों का एक बहुत बड़ा समूह है, जो लगभग इसी तरह की स्थिति में है. इनमें से कई लोग निराश हैं क्योंकि एक समय शर्तिया पैसे बनाने वाले लग रहे 'न्यू एज डिजिटल IPO' बुनियादी तौर पर असफल हो गए और शायद कई लोगों ने, पिछले कुछ महीनों के दौरान इन दोनों डिजिटल IPO और सेकेंडरी मार्केट में, ट्रेडिंग और निवेश में भारी नुक़सान उठाया है.
ऐसी कुछ ज़रूरी बातें होती हैं जिनके चलते इक्विटी निवेशकों को बड़े स्तर पर नुक़सान की आशंकाएं होती हैं. और वो है - कम उम्र, मार्जिन ट्रेडिंग, डेरिवेटिव ट्रेडिंग, अनुभव की कमी और सभी IPOs के लिए भारी उत्साह. इस प्वाइंट पर, आप में से बहुत से लोगों की नज़र अपवादों पर जा रही होगी. मुझे भी यक़ीन है कि कुछ अपवाद मौजूद हैं. लेकिन, मुद्दा ये नहीं है. ये रुझानों और संभावनाओं की बात है. इन सभी बातों के चलते भारी नुक़सान की आशंकएं बढ़ जाती है और जिन ट्रेडर्स में ये तमाम या बहुत सी 'बातें' मौजूद हैं, उनको कम समय में ऐसे नुक़सान होना तय है.
ऐसे कई सिद्धांतों की तरह, इस सच्चाई को समझने के लिए, इसके विपरीत स्थिति पर विचार करें. एक स्टॉक निवेशक के बारे में सोचिए जिसमें ऊपर बताई गई 'बातों' के विपरीत सभी ख़ूबियां हैं. ये वो शख्स है, जिसकी उम्र 40 साल या उससे ज़्यादा है और वो कैश में डिलीवरी लेता है, केवल स्टॉक्स में इन्वेस्ट करता है, न कि 'बड़े नामों' में. अब वो कम से कम 5-6 साल या उससे ज़्यादा समय से इक्विटी में इन्वेस्ट रहा है और बहुत कम IPO में निवेश करता है. लोग वास्तव में किसमें निवेश करते हैं, इस पर ध्यान दिए बिना मैंने यहां ख़ास विशेषताओं की प्रोफ़ाइल बनाई है. अगर आप 20 से ज़्यादा निवेशकों को जानते हैं तो आप इस बात की सच्चाई को ख़ूब समझते होंगे.
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मेरे अनुभव में, पहली तरह का निवेशक अक्सर दूसरा जैसा बन जाता है. हर कोई तो नहीं, लेकिन ज़्यादातर ऐसा ही करते हैं. ये एक ऐसा दौर है जिससे लोगों को गुजरना ही पड़ता है. इक्विटी निवेश (और शायद जीवन में कई चीज़ों) के बारे में ये अजीब बात है कि बाहर से और शुरुआत में ये बहुत आसान लगता है. IPO की समस्या इसे और भी बदतर बना देती है तो किसी भी तरह से, IPO में निवेश करना आसान लगता है. इसमें, कब इन्वेस्ट करना है, किस कीमत पर ख़रीदना है, ट्रेड को कब फैलाना है या एक ही बार में खरीदना है जैसे सवालों से जूझना नहीं पड़ता है. आप IPO कंपनियों द्वारा दिए गए सभी बयानों को पढ़ और सुन सकते हैं जो सोशल मीडिया पर मुफ्त में शेयर होते रहते हैं और फिर आप इन्वेस्ट करिए. तब, IPO में निवेश करना आपको आसान लगेगा.
ऐतिहासिक तौर पर, भारत में, IPO निवेश को शुरुआती निवेशक के लिए काफ़ी अनुकूल माना जाता था. एक पॉइंट पर शायद ये सच था लेकिन ये अब अतीत की बात हो चुकी है. अब, IPO निवेश निश्चित रूप से एक सीखने की टेक्निक है, जहां नए लोग सीखते हैं कि चर्चाएं हमेशा सच नहीं होती हैं. किसी भी IPO में, इन्वेस्टर की तुलना में मैनेजमेंट हमेशा फ़ायदे में रहता है क्योंकि सूचना का लाभ इन्वेस्टर को होता है. इस संबंध में वॉरेन बफे़ कह चुके हैं, "IPO एक मोलभाव के बाद किए गए ट्रांजैक्शन की तरह है. इसमें सेलर तय करता है कि कब इसे पब्लिक करना है और ये आपके लिए उचित समय होने की संभावना नहीं है."
कुछ समय बाद, निवेशकों को एहसास होता है कि IPO पर दांव लगाने का कोई सही तरीक़ा नहीं है. क्या आपको मालूम है कि इंफोसिस का मूल IPO असल में जनता को लुभाने में नाकाम रहा? इसका ट्रांसफर हुआ और मर्चेंट बैंकर को बीच में आना पड़ा था? इसकी तुलना PayTm जैसा बिना फ़ायदे वाला बिज़नस और डिजिटल IPOs के साथ कीजिए.
न केवल नए निवेशकों, बल्कि सभी निवेशकों के लिहाज से IPO के लिए सबसे सही रणनीति यही होगी कि उनके पास बिल्कुल न जाएं, दूर रहें! किसी भी समय सेकेंडरी मार्केट्स में हमेशा बेहतर ऑप्शन मौजूद रहते हैं. हालांकि, अगर आप लालच से बच नहीं सकते हैं, तो ये जानते हुए आगे बढ़ें कि ये एक बड़े जोख़िम वाला दांव है. भले ही आपको ऐसा न लगे, लेकिन आपको तब भी ऐसा ही करना चाहिए. मैंने अक्सर फालतू स्टॉक्स के लिए 'फन मनी' एलोकेशन की वकालत की है; शायद एक छोटी सी 'लर्निंग फ़ी' एलोकेशन की भी सलाह दी जाती है जिसके जरिये आप IPO में निवेश कर सकते हैं. नतीजे के तौर पर इसमें कमाई की संभावना कम है, और ये सीखने की संभावना ज़्यादा है कि आपको IPO से बचना चाहिए. यही आपके लिए बेहतर हो सकता है.
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