मुकेश शर्मा अपनी बेटी की हायर एजुकेशन के लिए सालों से निवेश कर रहे थे। बेटी की हायर एजुकेशन 2020 में शुरू होने वाली थी। उनको पूरा भरोसा था कि वे जमा की गई रकम से बेटी की फीस का भुगतान कर सकेंगे। हालांकि, जब उनको रकम की जरूरत थी, तो कोविड ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया और बाजार तेजी से नीचे गिरने लगे। ऐसे में उनके निवेश की वैल्यू भी तेजी से गिरी और उनको बेटी की फीस का भुगतान करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
हम लोगों में से बहुत से लोगों ने खुद को इसी तरह के हालात में पाया है, जहां सालों के अनुशासन के बाद हम आखिरी समय में संघर्ष करते हैं। ऐसे में हम आपको कुछ बातों से बचना चाहिए।
निवेश से निकलने के लिए आखिरी समय तक इंतजार करना: इक्विटी निवेश कम अवधि के तेज उतार चढ़ाव से भरा है। ऐसे में जब आपको निवेश की जरूरत है तब तक निवेश बनाए रखना और आखिरी समय तक इंतजार करना आपको नुकसान पहुंचा सकता है।
जब आप गोल के करीब पहुंचना शुरू हो जाते हैं उसी समय से आपको इक्विटी निवेश से निकल कर रकम डेट में शिफ्ट करना शुरू कर देना चाहिए। जिस तरह से आपने थोड़ा-थोड़ा करके इक्विटी में रकम निवेश की थी तो उसी तरह से सिस्टमेटिक विद्ड्रॉटल प्लान (एसडब्ल्यूपी) के जरिए थोड़ी -थोड़ी रकम निकालना भी उतना ही अहम है।
यील्ड का न करें पीछा: डेट फंड चुनते हुए ज्यादातर निवेशक उस फंड को चुनते हैं जिसने ज्यादा रिटर्न दिया है। वे पोर्टफोलियो में क्रेडिट क्वालिटी और लिक्विडिटी पर ज्यादा गौर नहीं करते हैं।
डेट फंड इक्विटी फंड की तुलना में काफी सुरक्षित होते हैं लेकिन आपको यह बात याद रखनी चाहिए कि जोखिम इन फंडों में भी होते हैं। ऐसे में फंड चुनते समय बेहतर क्रेडिट क्वालिटी वाला फंड चुनें।
पोर्टफोलियो की रीबैलेंसिंग: जब निवेश बढ़ने लगता है तो आम तौर पर निवेशक अपने पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करना भूल जाते हैं।
अपने असेट अलॉकेशन प्लान के हिसाब से अपने पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करना अहम है। उदाहरण के लिए अगर आप अपने पोर्टफोलियो का इक्विटी डेट अनुपात 70: 30 रखना चाहते हैं। तो बाजार में तेजी के दौर में इक्विटी बढ़ रही है ऐसे में इक्विटी पोर्टफोलियो कुल पोर्टफोलियो का 80 फीसदी हो गया है वहीं डेट घट कर 20 फीसदी हो गया है। ऐसे में आपको इक्विटी का कुछ हिस्सा बेच कर डेट में निवेश करना होगा।