आप अपने निवेश से और ज़्यादा धन कैसे बना सकते हैं? इस सवाल के बहुत से जवाब हैं, मगर दो ही ऐसे जवाब हैं, जो पक्के हैं। पहला, निवेश ज़्यादा करें और दूसरा, निवेश को वक़्त दें। शायद, दोनों ही काम करने चाहिए। कुछ लोगों को ये मज़ाक लग सकता है या उससे भी बुरा, मज़ाक उड़ाने जैसा लग सकता है। मगर यही सच है। मेरी समझ से यही दो बातें हमेशा काम करती हैं। अक्सर इन्वेस्टमेंट अनालेसिस करने वालों से किसी जादुई तरीक़े की अपेक्षा की जाती है, किसी ऐसे इन्वेस्टमेंट के कॉम्बिनेशन और निवेश की टाइमिंग की, जिससे एक दुर्लभ सा चमत्कार हो जाए, कुछ ऐसा कि ₹20,000 महीना की बचत, 10 साल के भीतर ₹1 करोड़ की हो जाए। बहुत ज़्यादा लोग इसा तरह का कोई चमत्कारी जवाब तलाश रहे हैं। दरअसल, असली परेशानी है कि ये कोई दिमाग़ी कसरत तक ही सीमित बात नहीं है क्योंकि जब समय आयेगा, तो आपके बचत के पैसों को आपकी किसी असल ज़रूरत को पूरा करना होगा।
बहुत ज़्यादा उम्मीदों से भरा कैलकुलेशन, लोगों को कम बचत करने के लिए प्रेरित करता है। सच्चाई ये है कि भविष्य में क्या होने वाला है कोई नहीं जानता है। चीनी वायरस के 21 महीने बीत जाने के बाद, ये बिल्कुल साफ़ भी हो गया है। चाहे कोई कुछ भी कहे। फिर वो कोई निवेशक हो, या मेरे जैसा निवेश विश्लेषक, या फिर कोई भी क्यों न हो, हम सभी पिछले ट्रैंड को देखते हैं, और भविष्य का अंदाज़ा पिछले ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर लगाते हैं।
तो सही ये नहीं है, कि आप अपने निवेश पर बेहतर रिटर्न के लिए और ज़्यादा सटीक भविष्यवाणियां करने के तरीक़े तलाशें, सही ये होगा कि आप इस बात को समझें, कि ये काम बहुत सटीक तरीक़े से करना संभव ही नहीं है। अब सवाल उठता है कि इसका हल क्या है? इसका हल है, कि आप इस बात को स्वीकार करें, कि अनचाही घटनाएं होकर ही रहेंगी। इससे भी बढ़कर जो बात आपको स्वीकार करनी है वो ये, कि चौंकाने वाली घटनाएं ज़्यादातर ख़राब होंगी, न कि अच्छी।
जो बात समझनी ज़रूरी है, वो है, ज़्यादा पाने के लिए ज़्यादा बचत और ज़्यादा देर तक बचत करना। इसमें सबसे बड़ी मुश्किल है कि बहुत सारे लोग बचत ही नहीं करते, या उतनी नहीं करते, जितनी उन्हें करनी चाहिए। जो कुछ वो बचाते भी हैं, उसे बिना समझे-बूझे ही करते जाते हैं, यानि भविष्य की ज़रूरत को समझे बिना। और इसीलिए वो इसे समझ नहीं पाते कि कैसे ज़्यादा और बेहतर बचत की जा सकती है। सच तो ये है कि इसके लिए निवेश मीडिया में मौजूद हम सभी लोग ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि हमारा सारा ध्यान इसी बात पर रहता है कि निवेश कहां किया जाए।
इससे मनोवैज्ञानिक संदेश ये जाता है कि अगर आपकी बचत उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ रही है जितनी आप चाहते हैं, तो इस मुश्किल का हल हम किसी दूसरे निवेश में तलाशते हैं। यही बातें पूरी निवेश मीडिया में छाई हुई है, और बचत करने वाले लोगों के निवेश से जुड़े सवालों में भी झलकती है। हालांकि, सही जवाब तो ये है कि ज़्यादातर बचत करने वाले, उतनी बचत नहीं करते जितनी उन्हें करनी चाहिए।
लंबी अवधि की बचत के लिहाज़ से एक बात और अहम है, और वो है लंबा होता जीवन। फ़िलहाल भारत में 60 साल की उम्र के बाद, औसत आयु क़रीब 17.8 साल है। 1990 में ये 14.8 साल के आसपास थी। इतने बड़े बदलाव का मतलब है, कि लोगों के पास पौष्टिक भोजन और बेहतर स्वास्थ सुविधाएं हैं, जो लंबे जीवन के लिए मददगार हैं। इसी बात का दूसरा पहलू ये है, कि आपकी रिटायरमेंट की किटी को 25 या 30 साल तक और चलना होगा। ऐसा हो, इसके लिए आपकी बचत को और बेहतर रिटर्न देने होंगे, जो एक चुनौती हो सकता है। बचत का रिटर्न बेहतर हो, तो भी, और ज़्यादा बचत करने का कोई विकल्प नहीं है।
ज़्यादातर लोग उतना ही बचाते हैं, जितना वो आसानी से बचा सकते हैं, या उन्हें टैक्स कम करने के लिए बचाने की ज़रूरत होती है। यानी उनकी बचत का आकंड़ा काफ़ी ऊट-पटांग तरीक़े से तय होता है। कितनी बचत की जाए इसे सही तरीक़े से समझने के लिए, हमें भविष्य की ज़रूरतें तय करनी होंगी, और इसी के आधार पर हमें ये पता करना होगा कि आज कितनी बचत की जानी चाहिए। इस कैलकुलेशन का सबसे सही तरीक़ा ते ये है कि आप ये सब एक निराशावादी नज़रिए से करें - यानि ये मान लें, कि भविष्य में ज़रूरतें ज़्यादा होंगी, और रिटर्न कम मिलेंगे। हालांकि, ये मान लेना आसान नहीं होता। क्योंकि इंसानों का दिमाग़ (कम-से-कम उन इंसानों का जो निवेश करते हैं!) आशावादी होता है, उम्मीद के सहारे रहना चाहता है। आशावादी होना एक शानदार गुण है, मगर तब नहीं, जब आप सुदूर भविष्य में अपने निवेश के रिटर्न का अंदाज़ा लगा रहे हों।