हमें अपना पोर्टफ़ोलियो कितनी बार रिबैलेंस करना चाहिए? क्या ऐसा करने के लिए कोई ख़ास समय है? - बीनू कृष्णन
ये बेहद अहम सवाल है, लेकिन इसका कोई आसान जवाब नहीं है. सबसे पहले, आपको एसेट एलोकेशन तय करना होगा, उसके बाद ही आप रिबैलेंस कर सकते हैं. मान लीजिए कि आपने इक्विटी (equity) और डेट (debt) के बीच 50:50 का एसेट एलोकेशन करने का फ़ैसला किया है, तो मैं कहूंगा कि सामान्य परिस्थितियों में, जब इक्विटी 10-12 फ़ीसदी बढ़ रही हो और फ़िक्स्ड इनकम 7-8 फ़ीसदी का रिटर्न दे रही हो, तो हर साल रिबैलेंस करना काफ़ी अच्छा है.
लेकिन साथ ही ये भी कहूंगी कि एक और नियम का पालन करें, और वो ये कि जब भी आपका एसेट एलोकेशन गड़बड़ा जाए यानी पूरी तरह से असामान्य हो जाए, जैसे कि एलोकेशन 10 फ़ीसदी बदल जाए, तो आपको रिबैलेंस करने के बारे में सोचना चाहिए.
इस तरह, आपको पहले से ही अपने नियम बनाने होंगे ताकि आपके अनुमान के आधार पर ये काम करने की ज़रूरत न पड़े. वैल्यू रिसर्च धनक में, हम आपको पोर्टफ़ोलियो ट्रैकर टूल उपलब्ध करा रहे हैं, जहां आप अपने स्टॉक, म्यूचुअल फ़ंड, बॉन्ड, PPF, डिपॉज़िट, NPS निवेश अपलोड कर सकते हैं. ये टूल आपको एसेट एलोकेशन के बारे में बताता है जिसे आप 'एनालिसिस' टैब में देख सकते हैं. जब आप देखते हैं कि आपका एसेट एलोकेशन एक दायरे से बाहर जा रहा है, तो परिस्थितियों के अनुसार कुछ इक्विटी बेच दीजिए, कुछ फ़िक्स्ड इनकम ख़रीदें या अपनी फ़िक्स्ड इनकम को बेचकर कम करें और इक्विटी में निवेश करें.
अगर आप अभी भी अपने निवेश के दौर (एक्यूमुलेशन) से गुज़र रहे हैं, तो रिबैलेंस करने का एक और तरीक़ा है. उदाहरण के लिए, अगर आप अपनी SIP कर रहे हैं और आपका इक्विटी हिस्सा काफ़ी बढ़ गया है, जिसे आपको रिबैलेंस करने की ज़रूरत है, तो अगर सिर्फ़ कुछ फ़ीसदी का बदलाव है, तो इसे जल्दबाज़ी में रिबैलेंस न करें. बस अपने नए निवेश को दूसरे एसेट क्लास में रीडायरेक्ट करें. उदाहरण के लिए, अगर सामान्य परिस्थितियों में साल के अंत में इक्विटी 54 फ़ीसदी है और इसके कारण आपका फ़िक्स्ड-इनकम वाला हिस्सा घटकर 46 फ़ीसदी हो गया है, तो अपने नए पैसे को फ़िक्स्ड इनकम में लगाएं ताकि ये एक बार फिर 50:50 हो जाए. तो, सामान्य बाज़ार स्थितियों में, आप अपने नए निवेश को रिडायरेक्ट करके भी ऐसा कर सकते हैं.
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वैल्यू रिसर्च धनक आपको हर दिन बहुत सटीक तरीक़े से आपका एसेट एलोकेशन देगा. इसलिए, आप ये समीक्षा हर महीने कर सकते हैं कि ये आपका एलोकेशन पूरी तरह से सीमा से बाहर चला गया है या नहीं.
फिर भी, रिबैलेंस करते समय, आपको दो और बातों को ध्यान में रखना चाहिए. इसे कई बार न करें. आपके एसेट एलोकेशन में एक या दो फ़ीसदी के बदलाव के साथ, आपको कार्रवाई करने की ज़रूरत नहीं है. इसे उस प्वाइंट तक जाने दें जहां आप असहज महसूस करें और इस प्वाइंट को शुरू में ही तय कर लें. दूसरी बात, जिसके बारे में सावधान रहना चाहिए वो है रिबैलेंस पर टैक्स से जुड़ा असर. जैसे-जैसे आपका निवेश पुराना होता जाता है, ये टैक्स के लिहाज से और भी ज़्यादा बेहतर यानी किफायती होता जाता है.
इस तरह, आदर्श रूप से, आपको फ़रवरी के महीने में अपने एसेट की रिबैलेंसिंग करने की योजना बनानी चाहिए क्योंकि आजकल, हर फ़ाइनेंशियल ईयर में इक्विटी में केवल ₹1.25 लाख (बजट 2024 के ऐलान से पहले ये सीमा ₹1 लाख थी) तक के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन को हासिल करना संभव है, जो टैक्स-फ़्री है. इसलिए, इक्विटी में अपने प्रॉफ़िट को बुक करें और उस समय के आसपास इसे फ़िक्स्ड इनकम में शिफ़्ट करें या इसके विपरीत करें ताकि आप उस प्रॉफ़िट का एक हिस्सा हासिल कर सकें जो टैक्स-फ़्री होना चाहिए यानी ये टैक्स-फ़्री होगा.
इसलिए, बस नए निवेशों को रिडीम करने के कारण होने वाले टैक्स के असर को लेकर सचेत रहें और लागू एग्ज़िट लोड से भी सावधान रहें. अगर आप अपने नए निवेश को भुनाकर रिबैलेंस करते हैं, जो इक्विटी में एक साल से कम पुराना है, तो आप उसके लिए शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा.
वैल्यू रिसर्च धनक आपको अपने निवेश की इन बातों को बहुत साफ़ और स्पष्ट रूप से देखने में मदद करेगा, क्योंकि पोर्टफ़ोलियो ट्रैकर अब हर दिन आपके इन सभी सवालों के जवाब देने के लिए तैयार है.
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