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SIP का मतलब है सरलता

SIP की अहमियत इसकी सरलता में है. इसे जटिल बनाने से कुछ हासिल नहीं होगा.

SIP का मतलब है सरलता

आप किसी भी प्रोडक्ट को ले लीजिए, अगर उसमें ज़्यादा फ़ीचर होंगे तो उसे बेहतर माना जाएगा. बात चाहे कार की हो या मोबाइल फ़ोन या छुट्टियां या फ़्लैट, जितने ज़्यादा फ़ीचर होंगे, प्रोडक्ट उतना ही बेहतर लगेगा. हालांकि, जब बचत और निवेश करने वालों के फ़ाइनेंशियल प्रोडक्ट की बात आती है, तो यही ज़्यादा फ़ीचर पाने का जुनून एक समस्या बन जाता है, क्योंकि फ़ीचर किसी प्रोडक्ट की बुनियादी ख़ूबियों को धुंधला कर देते हैं. इससे भी बुरा तब होता है, जब ज़्यादा फ़ीचर पाने की बीमारी म्यूचुअल फ़ंड SIP (सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) जैसे फ़ाइनेंशियल कॉन्सेप्ट को प्रभावित करती है. ऐसे में समस्या बहुत गंभीर हो जाती है क्योंकि इसका अस्तित्व ही निवेश को सरल बनाने के लिए है.

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किसी बेहद मुश्किल विश्लेषण में शामिल होना और जो असल में अहमियत रखता है उसे नज़रअंदाज़ करना बहुत आसान होता है. कुछ हफ़्ते पहले मुझे एक निवेशक की ईमेल मिली. इस व्यक्ति ने लिखा था कि उसने कहीं एक लेख में पढ़ा कि अगर आप हर साल अपनी मासिक SIP राशि को 10 प्रतिशत बढ़ाते हैं, तो आपके निवेश की फ़ाइनल वैल्यू 45 प्रतिशत ज़्यादा बढ़ जाएगी. निवेशक जानना चाहता था कि क्या ये सच है और अगर ऐसा है, तो क्या ये 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी सामान्य होगी या चक्रवृद्धि (कंपाउंड) बढ़ोतरी होगी. मुझे समझ नहीं आया कि इसका जवाब कैसे दिया जाए.

एक स्तर पर, ये देखना अच्छा लगता है कि एक निवेशक अपने निवेश को लेकर गंभीर है और बारीक़ी से जांच कर रहा है कि वो क्या कर रहा है, और उसका असर क्या हो रहा है. हालांकि, दूसरे स्तर पर, एक समस्या है क्योंकि यहां जो कुछ हो रहा है उसमें एक तरह के कर्मकांड का पुट है. कोई बिना समझे ही गणित का इस्तेमाल कर रहा है. इस सवाल का जवाब तय करना अंकगणित का एक बहुत ही सीधा-सादा अभ्यास है, हालांकि बिना किसी संख्या के भी ये सोच संदिग्ध लगती है. चाहे उसका गणित पूरी तरह से सही न हो, लेकिन उस लेख को लिखने वाला ये समझाने की कोशिश कर रहा है कि अगर आप ज़्यादा निवेश करते हैं, तो आपके पास ज़्यादा पैसे होंगे. शायद ही कोई इस बात को नकारे, फिर चाहे ये किसी अनुष्ठान से पैदा हुआ एक जादुई आंकड़ा ही क्यों न हो.

हालांकि, बड़ी समस्या इस सोच में है कि एक उतार-चढ़ाव से भरे एसेट में अपने निवेश की लागत का औसत करने के बेहद सरल आइडिया में कोई जादू है. SIP का आइडिया ही ये है कि आप मार्केट की परवाह किए बिना नियम से इक्विटी फ़ंड में एक तय रक़म निवेश करते रहें. लंबे अर्से में, जब मार्केट नीचे होता है तो आप ज़्यादा यूनिट ख़रीदते हैं और जब मार्केट ऊपर होता है तो कम यूनिट ख़रीदते हैं. इस तरह, आमतौर पर आपकी ख़रीद का औसत मूल्य एकमुश्त निवेश की तुलना में कम होता है. इसलिए, जब निवेश को भुनाने का समय आता है, तो ज़्यादा पैसे मिलने की संभावना होती है. बात बस इतनी सी है. इसकी कोई गारंटी नहीं है, और हां, अपेक्षित रिटर्न बताने का कोई सटीक सूत्र भी नहीं है. मान लीजिए, अगर शेयर मार्केट लंबे समय तक ठहर जाए या गिरावट में ही रहे, तब ये काम नहीं करेगा. लेकिन असल दुनिया में, आप एक ऐसी चीज़ में निवेश करते हैं जिसमें भले ही काफ़ी उतार-चढ़ाव होता है, मगर सामान्य रूप से इसका रुझान ऊपर की ओर ही होता है, इसलिए आपको अच्छे नतीजे मिलते हैं.

हालांकि, SIP की क़ीमत गणित में नहीं, बल्कि मनोविज्ञान में छुपी है. ये नियमित रूप से निवेश करने और इक्विटी से अच्छा रिटर्न पाने का सबसे सरल तरीक़ा है, जिसमें इस बात की कोई चिंता नहीं करनी पड़ती कि कब निवेश करना है और कब नहीं. बेशक़, म्यूचुअल फ़ंड मार्कर ने निवेशकों के जटिल, फ़ीचर्स से भरे निवेश के विकल्पों के आकर्षण का फ़ायदा उठाया है. कई SIP प्लान हैं जिनमें मार्केट-टाइमिंग को एक फ़ीचर के तौर पर जोड़ा गया है. ऐसे AMC और सलाहकार हैं जो इंडेक्स के स्तर या PE या ऐसी तरक़ीबों के आधार पर आपकी SIP राशि बढ़ा या घटा देंगे. ये विडंबना ही कही जाएगी, क्योंकि मार्केट टाइमिंग से बचना ही SIP का पूरा उद्देश्य है.

अगर कोई ऐसी निवेश तकनीक है जिसमें सब कुछ सरल रखना और हर जटिलता से बचना सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद है, तो वो SIP है. दूसरे शब्दों में कहें तो शांत रहें और निवेश करते रहें.

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