बिटकॉइन ने $100,000 का आंकड़ा पार कर लिया है, और क्रिप्टोकरेंसी पर आस्था रखने वाले इसे ख़ुद के सही साबित होने की निशानी कह कर उत्सव मना रहे हैं. मेरे जैसे लोग, जिन्होंने बिटकॉइन के खिलाफ़ बोलने में सालों बिता दिए हैं, उन्हें अब चुप हो जाना चाहिए और इस नए भगवान के सामने नतमस्तक हो जाना चाहिए. सोशल मीडिया बिटकॉइन के शाश्वत सत्य होने की घोषणाओं से और इसे न ख़रीद कर शंकालुओं ने कितना पैसा 'गंवाया' है, इसके गुणा-भाग से लबालब भरा हुआ है. पांच ज़ीरो वाले इस आंकड़े का मनोवैज्ञानिक असर नए निवेशकों की एक नई लहर को लुभाएगा और लोगों की बचत के लिए ख़ासतौर से ख़तरनाक बन जाएगा.
हालांकि, मेरे जैसे बिटकॉइन को शक़ की नज़र से देखने वाले अब भी डटे हुए हैं. तमाम शून्यों से लदा $1 लाख का ये आंकड़ा, बिटकॉइन के बुनियादी स्वभाव को रत्ती भर भी नहीं बदलता है. हमेशा की तरह, ये पूरी की पूरी सट्टेबाज़ी ही है, जिसकी अपने-आप में कोई क़ीमत नहीं है. जब किसी चीज़ का कोई अंतर्निहित मूल्य ही नहीं होता है, तो कोई भी क़ीमत - चाहे $10 हो या $10 करोड़ - सही या ग़लत नहीं होती. इसकी क़ीमत वही होती है जिसे चुकाने के लिए सामने वाले को राज़ी किया जा सके. हालांकि, मानव मनोविज्ञान पर ऐसे शून्यों से भरे आंकड़े, जो मील के पत्थर की तरह देखे जाते हैं, उनका गहरा असर होता है और इसीलिए इस घटना की जांच सावधानी से की जानी चाहिए.
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मैंने FTX घोटाले के बाद इस बारे में पहले भी लिखा है, लेकिन हम अटकलबाज़ी के काम को सही ठहराने का एक नया स्तर देख रहे हैं. वॉल स्ट्रीट को गच्चा देने के लिए बिटकॉइन को ईजाद किया गया था, और अब वॉलस्ट्रीट ही इसका सबसे बड़ा समर्थक बन गया है. ETF और दूसरे प्रोडक्ट्स के ज़रिए अमेरिकी फ़ाइनेंशियल इस्टैब्लिशमेंट का बिटकॉइन को अपनाना, इसके अटकलबाज़ी और रैनसमवेयर वाले बुनियादी स्वभाव को एक सम्मानजनक चेहरा दे देता है. ये संस्थागत भागीदारी इस बबल को कम नहीं करती बल्कि ज़्यादा ख़तरनाक बना देती है. इससे भ्रम पैदा होता है कि ये स्वीकार्य, सुरक्षित, स्थायी और एक 'आम' फ़ाइनेंशियल एसेट की श्रेणी का है.
क्रिप्टोकरेंसी का ये जानवर काफ़ी लचीला साबित हुआ है, लेकिन उस तरह नहीं कि हर निवेशक को आसान लगे. बल्कि ये तो ग़ज़ब की धोखाधड़ी, बड़े-बड़े एक्सचेंजों के पतन, आपराधिक जांच और रेग्युलेटर की कार्रवाई से बच निकलने में लचीला साबित हुआ है. और तो और इन विफलताओं ने चेतावनी का काम करने के बजाय, उन्हें बिटकॉइन की ताक़त के सबूत में बदल दिया है. अब कहानी ये हो गई है कि अगर बिटकॉइन ऐसी मुश्किलों से बच सकता है, तो ये बुनियादी तौर पर मज़बूत ही होना चाहिए - जो एक अचरज में डालने वाला भ्रामक तर्क है.
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भारतीय निवेशकों के लिए, ये समय ज़्यादा रिस्क वाला है. जहां हमारी सरकार के टैक्स ने पिछले कुछ सालों में देखी गई क्रिप्टो ट्रेडिंग को असरदार तरीक़े से कम किया है, वहीं बिटकॉइन की $100,000 की क़ीमत का मनोवैज्ञानिक आकर्षण लोगों को ऐसे सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने के लिए प्रेरित कर सकता है. आसान पैसे से 'चूक जाने' की कहानी बड़ी सशक्त होती है, ख़ासतौर पर तब, जब सोशल मीडिया की तमाम पोस्ट पर इसकी क़ीमतों के अंतहीन तरीक़े से बढ़ने, और ताज़ा-ताज़ा माइन किए क्रिप्टो करोड़पति बनने का जश्न मनाया जाता हो.
याद रखने वाली बात ये है कि इतिहास में हर सट्टेबाज़ी के बबल की लुभावनी कथाएं ही गढ़ी गई हैं. इनके पीछे का तर्क रहा है कि 'इस समय ये अलग क्यों है'. डॉट-कॉम बबल के दौरान, लोग ऐसी 'नई अर्थव्यवस्था' के बारे में बातें कर रहे थे, जिसने पारंपरिक व्यावसाय के सभी पैमाने पार कर लिए थे. 2008 के वित्तीय संकट के दौरान, हमने सुना कि एसेट्स की क़ीमतें राष्ट्रीय स्तर पर कभी नहीं गिर सकतीं. आज, क्रिप्टो के उत्साही बिटकॉइन को 'डिजिटल गोल्ड' और महंगाई दर के ख़िलाफ़ बचाव के तौर पर दिखाते हैं, जबकि दोनों दावों को ध्वस्त करने वाले काफ़ी सबूत मौजूद हैं.
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सच नहीं बदलता: बिटकॉइन कुछ भी नहीं बनाता, कुछ भी नहीं कमाता, और कोई व्यावहारिक उद्देश्य पूरा नहीं करता जिसे मौजूदा फ़ाइनेंशियल सिस्टम बेहतर तरीक़े से पूरा नहीं कर सकते. इसकी क़ीमत सिर्फ़ सट्टेबाज़ी की ख़रीद से बढ़ती है, इस विश्वास से प्रेरित होकर कि भविष्य के ख़रीदार और भी ज़्यादा भुगतान करेंगे. ये एक बबल या बुलबुले की परिभाषा है, और ये तथ्य कि ये बुलबुला $100,000 क़ीमत तक बढ़ गया है, इसे कम नहीं, बल्कि ज़्यादा ख़तरनाक बना देता है.
मुझे जो परेशान करता है वो ये कि इस आकंड़े का मील के पत्थर की तरह इस्तेमाल करने से संभावित निवेशकों की अगली लहर के लिए बिटकॉइन ट्रेंडिंग में झोंकने के लिए किया जाएगा. इसके दाम के बढ़ने को इसकी सफलता के सबूत के तौर पर पेश किया जाएगा, संस्थागत भागीदारी इसका सत्यापन करेगी, और बड़े से बड़े शून्यों वाले आकंड़े इसकी नियति बताए जाएंगे. क्रिप्टो इंडस्ट्री की शातिर मार्केटिंग मशीनरी इस कहानी से उन लोगों पर निशाना साधने के लिए तैनात हो जाएगी जो ऐसी सट्टेबाज़ी में अपनी बचत दांव पर लगाने का रिस्क नहीं झेल सकते.
समझदार निवेशकों के लिए, आगे का रास्ता साफ़ है. असली धन, पूंजी पैदा करने वाले एसेट में निवेश से बनाया जाता है - ऐसी कंपनियां जो एक ज़रूरत का क़ीमती उत्पाद और सेवाएं विकसित करती हैं, मुनाफ़ा कमाती हैं और असली रिटर्न कमाती हैं. ये सच्चाई कि सट्टेबाज़ी का एक बबल नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है, इस मौलिक सत्य को नहीं बदलता है. किसी बबल से चूक जाना, उसके फूटने पर धरे जाने से कहीं बेहतर होता है, क्योंकि हर बबल कभी न कभी फूटता ही है.
सवाल ये नहीं कि क्या आप बिटकॉइन को पहले ख़रीदकर पैसा कमा सकते थे - किसी भी बबल में, शुरुआती सट्टेबाज़ हमेशा मुनाफ़ा कमाते हैं. सवाल ये है कि क्या, इसकी मौलिक प्रकृति के बारे में जो आप जानते हैं, उसे जानते हुए, आपको अब भी इसमें अपना पैसा लगाना चाहिए. क़ीमत इस सवाल का जवाब नहीं बदल सकती है.
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