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क्या आपको 1990 के दशक का आख़िरी दौर याद है? भारत में और वैश्विक स्तर पर इक्विटी मार्केट का अजीब पागलपन भरा समय था. टेक स्टॉक हर हफ़्ते नए अरबपति पैदा कर रहे थे और माना जा रहा था कि पारंपरिक मार्केट के पैमाने अब मायने नहीं रखते. बहुत सी कंपनियां, टेक होने का ढोंग कर रही थीं, एक चालबाज़ी जो आज भी निवेशकों के साथ जारी है. 'इस बार ये अलग है,' लगभग हर कोई कह रहा था, क्योंकि इंडेक्स हर रोज़ नई ऊंचाइयां छू रहे थे. लेकिन येल के एक अर्थशास्त्री रॉबर्ट शिलर ने इस पागलपन की असलियत समझ ली. उनकी रिसर्च ने (फिर से) कुछ ऐसा उजागर किया जिसे कभी नहीं भूलना चाहिए था: मार्केट केवल तर्क से नहीं बल्कि उन कहानियों से चलते हैं जिन्हें हम बताते हैं और मानते हैं. जब ये कहानियां असलियत से अलग हो जाती हैं, तो बुलबुले या बबल बनते हैं.
इतिहास ने शिलर को शानदार ढंग से सही साबित किया. इसके बाद डॉट-कॉम क्रैश ने $5 ट्रिलियन की पूंजी मिटा दी, जिसमें NASDAQ ने अक्टूबर 2002 तक अपनी वैल्यू का 78% गंवा दिया. भारत में, उस समय सेंसेक्स 56% गिरा. लेकिन शिलर यहीं नहीं रुके. 2005 में, उन्होंने हाउसिंग बबल की चेतावनी दी, जिसे उन लोगों ने फिर से ख़ारिज कर दिया गया, जिन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि राष्ट्रीय स्तर पर हाउसिंग की क़ीमतें कभी नहीं कम होती हैं. हम सभी जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ - 2008 के हादसे ने दुनिया भर में अपार संपत्तियां बरबाद कीं. मार्केट मनोविज्ञान पर इस काम के लिए शिलर को 2013 का नोबेल पुरस्कार मिला.
अब, शिलर की चेतावनी की घंटियां फिर से बज रही हैं. वो आज के मार्केट में परेशान करने वाले पैटर्न देख रहे हैं: सामूहिक मनोविज्ञान पिछले बबल जैसा है, ऐतिहासिक रूप से ऊंचा वैल्युएशन, और ख़ासतौर पर, AI मार्केट मनोविज्ञान को उसी तरह विकृत कर रही है, जैसा इंटरनेट ने सन 2000 में किया था. S&P 500 उस स्तर पर पहुंच गया है जो डॉटकॉम बबल के दौरान देखा गया था. मार्केट का आकलन करने का शिलर का नया तरीक़ा है, CAPI रेशियो या साइक्लिकल तरीक़े से एडजस्ट किया प्राइस-टू-अर्निंग रेशियो देखना. स्टैंडर्ड P/E रेशियो के उलट, ये तरीक़ा पिछले एक दशक के दौरान मार्केट के मौजूदा प्राइस की एवरेज अर्निंग से तुलना करता है, और उसे महंगाई दर से एडजस्ट करता है. इससे छोटे समय में आने वाले उतार-चढ़ावों का असर कम हो जाता है और इस बात की बेहतर तस्वीर मिलती है कि बाज़ार असल में ओवरवैल्यू हैं या नहीं. जब ये रेशियो अपने चरम स्तर पर पहुंच जाता है, तो अक्सर संकेत देता है कि निवेशकों का उत्साह आर्थिक वास्तविकता से आगे निकल गया है.
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लेकिन यहां हमें रुककर सोचने की ज़रूरत है. शिलर के काम का असली महत्व उनकी इन ख़ास भविष्यवाणियों में नहीं, भले ही वो काफ़ी ज़्यादा अहमियत रखती हैं, बल्कि उनके काम का ज़्यादा महत्व बाजारों को लेकर उनकी मौलिक नज़रिए में है: जो मानव मनोविज्ञान पर आधारित है - हमारी आशाएं, भय और सोचने-समझने के पूर्वाग्रह. उनकी नज़र में, ये पहले ही पता है कि बाज़ार अप्रत्याशित होंगे.
ये बात हमें एक केंद्रीय बिंदु पर ले आती है: जो निवेशक सबसे सफल होते हैं वो क्रैश की भविष्यवाणियों या मार्केट को टाइम करने की कोशिश नहीं करते. ये तो वो लोग होते हैं, जो काम के ऐसे तरीक़े तय करते हैं जो हर तरह के बाज़ार में काम करें. वे जानते हैं कि शिलर बबल को लेकर सही होंगे, पर उनके फटने का समय तय करना बेकार की कोशिश है.
तो ज़रा सोचिए: भले ही आपने 1990 के दशक के अंत में शिलर की चेतावनियों पर विश्वास किया हो, लेकिन क्या आप जान सकते थे कि आपको असल में बाज़ार से कब बाहर निकलना था? बहुत जल्दी किया होता, तो आप काफ़ी मुनाफ़े से चूक गए होते. बहुत देर की होती, तो आप वैसे ही दुर्घटना की चपेट में आ गए होते. यही बात उनकी हाउसिंग मार्केट वाली चेतावनी पर भी लागू होती है - ज़रूरी नहीं कि बबल के बारे में सही होना निवेश के फ़ैसलों में बदल सके.
यहां असली सबक़ भविष्यवाणियों पर अमल करने के बजाए कुछ और है, फिर चाहे ये भविष्यवाणी एक नोबेल पुरस्कार विजेता की ही क्यों न हो. ये निवेश के तरीक़ों या प्रक्रियाओं के निर्माण की बात है, जो बाज़ार की तर्कहीनता को एक दोष नहीं बल्कि एक ख़ासियत के तौर पर स्वीकार करते हों. इसका मतलब है नियमित, व्यवस्थित निवेश, डाइवर्सिफ़िकेशन, और, सबसे अहम बात, ऐसे समय में अपनी रणनीति पर टिके रहने का भावनात्मक अनुशासन, जब बाक़ी सब या तो उन्मादी हो रहे हों या घबराए हुए हों.
आज के बाज़ार में, AI ने वैसी ही हाइप खड़ी कर दी है जैसी मैंने 1990 के अंत में देखी थी. शिलर की चेतावनियां ध्यान देने लायक़ ज़रूर हैं. लेकिन इन चेतावनियों के आधार पर बाज़ार को टाइम करने के बजाय, हमारे लिए अपनी निवेश की प्रक्रिया को मज़बूत करने पर ध्यान देना कहीं बेहतर होगा. आपके सामने सवाल ये हैं कि क्या आपके एलोकेशन आपके लक्ष्यों के मुताबिक़ हैं? क्या आप बबल और क्रैश दोनों के दौरान अपनी निवेश रणनीति पर टिके रह सकते हैं?
बाज़ार हमेशा उन कहानियों से चलेगें जो हम ख़ुद को बताते हैं और जिन्हें हम सुनते और मानते हैं. महत्वपूर्ण ये अनुमान लगाना नहीं कि कौन सी कहानियां टिकेंगी, बल्कि एक ऐसे निवेश की सोच रखना है जो किसी भी कहानी का सामना कर सके. आप भविष्यवाणियों से ज़्यादा अपने निवेश के तरीक़े और उसकी प्रक्रिया पर भरोसा करें - ये एक ऐसी कहानी होगी जिसका सुखद अंत होने की संभावना है.
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