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तीन साल सुस्त रहने के बाद, HDFC बैंक एक बार फिर देश के प्रमुख बैंकिंग संस्थान के तौर पर अपनी धाक जमा रहा है. इसके शेयर ने धीरे-धीरे नई ऊंचाइयों को छुआ है. मोतीलाल ओसवाल के रामदेव अग्रवाल ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कहा, "पिछले 15 दिनों में HDFC बैंक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है, लेकिन लगता है किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया है, क्योंकि ये बिना किसी शोर-शराबे के हुआ है. जब ये ₹2,000 को पार कर जाएगा, तब लोग जागेंगे." अब सवाल उठता है कि क्या इसका चुपचाप चढ़ना एक ज़्यादा बड़ी तेज़ी की शुरुआत है या ये केवल कुछ समय का उबाल है.
हाइबरनेशन नहीं कंसॉलिडेशन
पिछले एक दशक (और उससे भी ज़्यादा) में, HDFC बैंक ने मज़बूत रिटर्न दिया है, निवेशकों की संपत्ति लगातार बढ़ी है और भारतीय बैंकिंग इंडस्ट्री में एक दिग्गज के तौर पर इसने अपनी स्थिति बरक़रार रखी है. दिसंबर 2010 और 2020 के बीच, बैंक के शेयर ने सालाना क़रीब 21 फ़ीसदी रिटर्न दिया! हालांकि, पिछले चार साल के दौरान एक अलग ही कहानी रही, जब सालाना रिटर्न केवल 7 फ़ीसदी रहा.
सुस्त प्रदर्शन के इस दौर की आलोचना भी हुई है. जानकारों ने इसके लिए विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली और HDFC लिमिटेड के साथ इसके मर्जर से जुड़ी चिंताओं को ज़िम्मेदार ठहराया है. हालांकि, इस तरह के तर्क में बैंक के कंसॉलिडेशन की लॉन्ग-टर्म स्ट्रैटजी ध्यान में नहीं रखी जाती. इस दौरान बैंक ने पूंजी को लेकर अपनी स्थिति मज़बूत करने पर और टिकाऊ ग्रोथ पाने के लिए नए मौक़ों पर ध्यान दिया है.
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भले ही, मर्ज़र से पहले इसमें किए जाने वाले FII निवेश में गिरावट आई थी, लेकिन बैंक का घरेलू निवेशक टिकाऊ रहा है. अक्तूबर और नवंबर 2024 जैसी भारी FII आउटफ़्लो के दौरान भी HDFC बैंक ने लचीलापन दिखाया. लिक्विडिटी को लेकर मार्केट के चलते, कम समय में वैल्यू का उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है, लेकिन इससे बैंक के बुनियादी पैमाने पर कम ही असर होना चाहिए.
मर्ज़र से मुनाफ़ा कम होने की आशंका के बारे में भी इसी तरह की बातें बढ़ा-चढ़ाकर कही गई हैं. हालांकि मर्ज़र के बाद इक्विटी पर रिटर्न (ROE) और नेट इंटरेस्ट मार्जिन (NIM) दबाव में आ गए हैं, लेकिन ये ढांचागत कमज़ोरी के बजाय, हाउसिंग फ़ाइनांस और बैंकिंग बिज़नस की कमज़ोरियों को दिखाता है. बैंक का CET1 (common equity tier 1 capital) रेशियो, FY2016 में 13 फ़ीसदी से बढ़कर 17 फ़ीसदी से ऊपर हो गया है, जिससे पूंजी के लिहाज़ से इसकी स्थिति बेहतर लगती है. ऐसा पैसा न केवल स्थायित्व को बनाए रखता है बल्कि आने वाले समय में बैंक को ग्रोथ के मौक़ों का फ़ायदा उठाने लायक़ भी बनाता है.
भरोसेमंद सफ़र
HDFC बैंक के फ़ंडामेंटल बेहतर बने हुए हैं
प्रमुख मेट्रिक्स | FY20 | FY21 | FY22 | FY23 | FY24 |
---|---|---|---|---|---|
नेट इंटरेस्ट मार्जिन (%) | 4.3 | 4.1 | 4.0 | 4.1 | 3.5 |
प्रॉफ़िट आफ्टर टैक्स ('000 करोड़ रुपये) | 26.3 | 31.1 | 36.9 | 44.1 | 60.8 |
एडवांस (लाख करोड़ ₹) | 9.9 | 11.3 | 13.7 | 16.0 | 24.8 |
ROE (%) | 16.8 | 16.6 | 16.9 | 17.4 | 16.1 |
ग्रॉस NPA रेशियो (%) | 1.26 | 1.32 | 1.17 | 1.12 | 1.24 |
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बेहतर तालमेल वाली बैंकिंग
HDFC बैंक पहले ही मज़बूत था, और HDFC लिमिटेड के साथ मर्ज़र के बाद रणनीतिक तौर पर उसकी मज़बूती और बढ़ी है. मॉर्टगेज का बिज़नस अब इसके पोर्टफ़ोलियो का एक अहम हिस्सा है (FY25 की दूसरी तिमाही के अनुसार 30%), जिनका NIM (नेट इंटरस्ट मार्जिन) कम होता है. आलोचकों का कहना है कि इससे बैंक का मुनाफ़ा कम हो जाता है, लेकिन ऐसी चिंताओं से बड़ी तस्वीर धुंधली पड़ जाती है. इस बड़ी तस्वीर में शामिल है, मॉर्टगेज (संपत्ति के बदले क़र्ज़) से टिकाऊ आमदनी होना और इसके क़र्ज़ देने का ख़र्च कम होना, साथ ही बैंक के लिए क्रॉस-सेलिंग और काम-काज के बेहतर तरीक़ों को लागू करने की संभावना भी काफ़ी बढ़ गई है.
मिसाल के तौर पर, HDFC लिमिटेड के ऊंची लागत वाले क़र्ज़ को बैंक के कम-ख़र्च वाले CASA (कंरट अकाउंट एंड सेविंग्स अकाउंट) डिपॉज़िट से बदलने पर ब्याज की अच्छी-ख़ासी बचत हो सकती है. बैंक के लिए CASA, ग्रोथ का एक अहम ज़रिया बना हुआ है जो इस समय, कुल डिपॉज़िट का 35 फ़ीसदी है. इसके अलावा, मर्जर के बाद, एकीकृत HDFC बैंक को हाउसिंग फ़ाइनांस में अपनी पैठ बढ़ाने में बड़े नेटवर्क का फ़ायदा मिलना संभव हो गया है. ये एक ऐसा सेक्टर है जिसे भारत की बढ़ती आबादी और लोगों की बढ़ती आमदनी से काफ़ी फ़ायदा मिलने की उम्मीद है.
वैल्यू माइग्रेशन का मिथक
एक दशक से ज़्यादा समय से, HDFC बैंक जैसे प्राइवेट सेक्टर के बैंक, पब्लिक सेक्टर के बैंकों (PSB) से वैल्यू माइग्रेशन पर फलते-फूलते रहे हैं. बेहतर सर्विस क्वालिटी, बेहतर टेक्नोलॉजी और मज़बूत रिस्क मैनेजमेंट ने प्राइवेट बैंकों को बाज़ार में तेज़ी से हिस्सेदारी पाने में मदद की है. हालांकि, अब ये ट्रेंड धीमा पड़ गया है क्योंकि PSB (पब्लिक सेक्टर बैंक) में स्थायित्व आ गया है, जो ‘उचित-लेकिन-कुछ-कमतर’ (reasonable-but-not-at-par) के कम वैल्यूएशन पर क़र्ज़ देते हैं.
वैल्यू माइग्रेशन क्या है (What is value migration?): वैल्यू माइग्रेशन, यानि बिज़नस या इंडस्ट्री में मूल्य (पैसा, ग्राहक या फ़ायदा) का एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसफ़र होना. ये तब होता है जब उपभोक्ता किसी सस्ते या बेहतर विकल्प की ओर जाते हैं. बदलती टेक्नोलॉजी, उपभोक्ताओं की प्राथमिकताएं या बाज़ार में आए नए प्रतिस्पर्धी इसका बड़ा कारण हो सकते हैं. वैल्यू माइग्रेशन कंपनियों के लिए एक संकेत है कि उन्हें अपने बिज़नस मॉडल को नए बदलावों के अनुसार ढालना चाहिए, ताकि वो बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बने रहें.
वैल्यू माइग्रेशन की कहानी
टॉप 5 प्राइवेट और सरकारी बैंकों का औसत प्राइस-टू-बुक रेशियो
प्राइवेट बैंक | सरकारी बैंक | |
---|---|---|
दिसंबर 2020 | 3.35 | 0.53 |
दिसंबर 2021 | 3.06 | 0.74 |
दिसंबर 2022 | 3.19 | 1.09 |
दिसंबर 2023 | 3.07 | 1.21 |
दिसंबर 2024 | 2.65 | 1.24 |
डेटा 12 दिसंबर 2024 तक का है |
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HDFC बैंक के शेयर में कोई भी हालिया गिरावट की वजह बुनियादी कमज़ोरी के बजाय, बैंक में होने वाले बदलाव लगते हैं. जो ज़्यादा प्रतिस्पर्धा वाली स्थिति में अब इसकी ग्रोथ को फिर से गति देंगे. आक्रामक तरीक़े से नई ब्रांच खोलना (क़रीब 40% ब्रांच 3 साल से कम पुरानी हैं), कम पहुंच वाले क़स्बों और ग्रामीण बाज़ारों पर ध्यान देना, इसी दिशा में बढ़ाए गए क़दम हैं. फिर भी, इन नई ब्रांचों को मुनाफ़ा पाने में समय लग सकता है.
साइज़ कोई समस्या नहीं
सितंबर 2025 तक ₹25 लाख करोड़ से ज़्यादा की लोन बुक के साथ, बैंक पहले से ही भारत का सबसे बड़ा क़र्ज़ देने वाला प्राइवेट बैंक है. लेकिन ग्रोथ में साइज़ कोई रुकावट नहीं है. स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया इससे 60 फ़ीसदी बड़ा होने के बावजूद सालाना 15 फ़ीसदी से ज़्यादा की दर से बढ़ रहा है. HDFC बैंक के मैनेजमेंट ने FY26 में इंडस्ट्री के स्तर पर बढ़ने और FY27 में इसे पार करने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करना इस बात पर निर्भर करेगा कि बैंक कैपिटल का बेहतर इस्तेमाल और ख़र्च किस तरह घटा पाता है.
बैंक का कैपिटल एडिक्वेसी रेशियो (मौजूद कैपिटल और उसका रिस्क रेशियो) इस समय में 19.8 फ़ीसदी है, जो रेग्युलेशन की न्यूनतम सीमा से काफ़ी ऊपर है और बैंक को मज़बूत आधार देता है. इसके अलावा, आगे पूंजी जुटाने से बचने का प्रबंधन का फ़ैसला ROE में सुधार को लेकर बेहतर संकेत देता है.
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दोबारा प्राइसिंग की पहेली
HDFC बैंक के वैल्यूएशन की ख़ासी चर्चा रहती है. 20 के प्राइस-टू-अर्निंग (PE) रेशियो और 3 के प्राइस-टू-बुक (PB) रेशियो पर, स्टॉक क्रमशः 24 और 4 के अपने 10-वर्षीय औसत से नीचे कारोबार कर रहा है. सवाल ये है कि क्या ये मर्ज़र, एक हो जाने (इंटीग्रेशन) और मुनाफ़े (प्रॉफ़िटेबिलिटी) को लेकर पुरानी चिंताएं दिखा रहा है या अस्थाई तौर पर इसकी क्षमताओं का सही तालमेल नहीं हो पाया है.
इतिहास इस विषय पर कुछ कहता है. ITC जैसे क्वालिटी स्टॉक में देखा गया है कि इसमें अक्सर गिरावट के लंबे दौर आते हैं. HDFC बैंक के लिए, बुनियादी बातों में सुधार - जैसे कि CASA में ग्रोथ और मर्जर से लागत का तालमेल - समय के साथ इसे लेकर निवेशकों की सोच फिर से बदल सकता है. हालांकि, निवेशकों को अभी ये तय करना है कि इस समय वैल्युएशन एक गड़बड़ी है या बैंक की ग्रोथ की झलक है. जो भी हो, मुनाफ़ा कमाने की इसकी क्षमता और स्केल ही तय करेंगे कि ये लंबा निवेश करने वालों के पोर्टफ़ोलियो में अपनी जगह बना पाता है या नहीं.
क्या अच्छा और क्या ख़तरनाक
मैक्रोइकोनॉमिक स्थितियां HDFC बैंक के पक्ष में झुकती दिख रही हैं. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में CRR में कटौती और रेपो-रेट में कमी की संभावना से क़र्ज़ की मांग में तेज़ी आ सकती है और लिक्विडिटी से जुड़ी मुश्किलें कम हो सकती हैं. कम ब्याज दरें, ब्याज के नेट मार्जिन को कम कर सकती हैं, जिससे मुनाफ़े पर संभावित दबाव कम करने के लिए बैंक के कम लागत वाले CASA आधार को मज़बूत करने की अहमियत जता सकता है (हालांकि बैंक ने रेट में कटौती के पिछले साइकल के दौरान अपना मार्जिन बनाए रखने की क्षमता दिखाई है).
वैश्विक स्तर पर, चुनौतियां बनी हुई हैं. भले ही, HDFC लिमिटेड का एक हो जाना बड़ा बदलाव है, लेकिन इसमें ऑपरेशन को व्यवस्थित करने और मुनाफ़े में संभावित थोड़े समय की रुकावटों को मैनेज करने सहित अमल करने (एग्ज़क्यूशन) के रिस्क भी जुड़े हैं. नई फ़िनटेक कंपनियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा और अचानक आने वाले मैक्रोइकोनॉमिक झटके भी रुकावटें पैदा कर सकते हैं.
लंबे समय में HDFC बैंक की ग्रोथ इसकी मज़बूत गवर्नेंस, डायवर्सिफ़ाइड पोर्टफ़ोलियो और ऑपरेशन के लचीलापन जैसी क्षमताओं से फ़ायदा उठाने पर निर्भर करती है, वहीं, इन अनिश्चितताओं से निपटना भी इसकी क्षमता पर टिका है. हालांकि, अभी ये देखना बाक़ी है कि मौजूदा मैक्रो और प्रतिस्पर्धी माहौल से उसे फ़ायदा होगा या परेशानी होगी.
आगे का सफ़र
HDFC बैंक में धीरे-धीरे मज़बूती आना सिर्फ़ फ़ॉर्म में वापसी से कहीं ज़्यादा संकेत देता है. ये भारतीय बैंकिंग में ग्रोथ की अगली लहर की अगुआई करने में सक्षम एक फैले हुए फ़ाइनेंशियल पावरहाउस का उभरना दिखाता है. HDFC लिमिटेड के एक हो जाने से बैंक ने अपनी सुविधाओं को बेहतर किया है, बाज़ार तक अपनी पहुंच बढ़ाई है और अपने ऑपरेशन मज़बूत किए हैं.
लंबे समय के निवेशकों के लिए, बैंक की मौजूदा पैमाने पर भी 15-20 फ़ीसदी सालाना आय अर्जित करने की क्षमता में मौक़े बने हुए हैं. कुल मिलाकर, हाथी सिर्फ़ हिल ही नहीं रहा, बल्कि नाचने के लिए तैयार है. बाज़ार चाहे इसकी उभरती हुई क्षमता को सराहे या निकट भविष्य की चुनौतियों को परखना जारी रखे, कामकाज से जुड़ा प्रदर्शन ही बैंक की ग्रोथ को परिभाषित करेगा. जैसे ही HDFC बैंक इस अगले दौर में उतरता है, इसकी उपलब्धियां बैंकिंग सेक्टर में इसके भविष्य को आकार देंगी.
ये लेख एक विश्लेषण है, निवेश की सलाह या रेकमंडेशन नहीं. निवेश लायक़ जानकारियों और समझ के लिए, वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र की सर्विस ज़रूर आज़माइए. स्टॉक एडवाइज़र पर हम गहरी रिसर्च के साथ रेकमंडेशन और तीन तरह के निवेश के लिए तैयार पोर्टफ़ोलियो देते हैं. बात चाहे HDFC बैंक जैसे बैंकिंग दिग्गज की हो या दूसरे सेक्टर की उभरती कंपनियों की, हमारा नज़रिया अनुशासित रिसर्च और लंबे समय की संभावनाओं पर आधारित होता है.
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