स्टॉक्स में अच्छा रिटर्न मिलने की उम्मीदें होती हैं, लेकिन हालात बिगड़ने पर उनमें तगड़ी गिरावट भी देखने को मिल सकती है. इनसे जुड़े जोखिमों के बावजूद, शेयर बाज़ार वेल्थ बनाने के सबसे दमदार विकल्पों में से एक है. इस गाइड में, हम आपको उन बुनियादी बातों के बारे में बताएंगे जो आपको सफल होने में मदद कर सकती हैं.
अपना अकाउंट तैयार करने से लेकर निवेश करने के लिए मजबूत कंपनियों की पहचान करने तक, आपको यहां पर स्टॉक में सही तरीक़े से निवेश करने के लिए ज़रूरी जानकारियां मिलेंगी.
निवेश से पहले क्या काम करें? (How do I begin to invest in the stock market?)
शेयर बाज़ार में उतरने से पहले, कुछ बुनियादी काम हैं जिन्हें हर निवेशक को निवेश शुरू करने के लिए करने होते हैं. भारत में शेयरों में निवेश करने के तरीक़े को समझने में आपकी मदद करने के लिए यहां एक गाइड दी गई है.
1. डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खोलें
स्टॉक ख़रीदने और बेचने के लिए, आपको एक डीमैट अकाउंट (स्टॉक को इलेक्ट्रॉनिक रूप से रखने के लिए) और एक ट्रेडिंग अकाउंट (बाई और सेल ऑर्डर्स को पूरा करने के लिए) खोलना होगा. यहां जानिए कि आप कैसे शुरुआत कर सकते हैं:
- ब्रोकर चुनें: भारत में ज़ीरोधा, अपस्टॉक्स और ICICI डायरेक्ट सहित कई स्टॉकब्रोकर हैं. कम फ़ीस, यूजर्स के अनुकूल प्लेटफ़ॉर्म और बेहतर रिसर्च टूल्स वाले ब्रोकर की तलाश करें.
- KYC पूरा करें: आपको अपने अकाउंट खोलने के लिए अपने ग्राहक को जानें (KYC) सत्यापन के लिए दस्तावेज़ जमा करने होंगे.
2. स्टॉक मार्केट के बेसिक्स को समझें
शेयरों में निवेश करने से पहले ये समझना ज़रूरी है कि शेयर बाज़ार कैसे काम करता है. यहां कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं जिन्हें आपको जानना चाहिए:
- स्टॉक एक्सचेंज: NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) और BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) भारत के दो प्रमुख एक्सचेंज हैं.
- शेयर और स्टॉक: स्टॉक ख़रीदने का मतलब है किसी कंपनी के एक हिस्से का मालिक होना. शेयर की क़ीमत में उतार-चढ़ाव से कंपनी के प्रदर्शन का पता चलता है. हालांकि, अक्सर, कीमत में उतार-चढ़ाव निवेशकों के सेंटीमेंट, भू-राजनीतिक कारणों और कई अन्य फ़ैक्टर्स की वजह से हो सकता है.
- इंडेक्स: निफ़्टी 50 और सेंसेक्स ऐसे इंडेक्स हैं जो बाज़ार के समग्र प्रदर्शन को ट्रैक करते हैं. इनसे आपको ये अंदाज़ा लगता है कि भारत की टॉप कंपनियां कैसा प्रदर्शन कर रही हैं.
शेयरों में निवेश करने से पहले किन फ़ैक्टर्स पर विचार करें?
अपना पहला निवेश करने से पहले, आपके लिए नीचे बताए गए फ़ैक्टर्स पर विचार करना अहम है, जिससे ये सुनिश्चित हो सके कि आपकी रणनीति आपको शेयर बाज़ार में सफल होने में मददगार हो.
1. फ़ाइनेंशियल गोल्स और जोखिम उठाने की क्षमता पर ग़ौर करें
शेयरों में लंबे समय के लिए निवेश करना चाहिए. इसलिए, शुरुआत करने से पहले, अपने फ़ाइनेंशियल गोल्स बनाएं और तय करें कि आप कितना जोखिम उठाने को तैयार हैं.
- आपके गोल्स क्या हैं?
क्या आप रिटायरमेंट, घर या एजुकेशन के लिए बचत कर रहे हैं? शेयरों में लंबे समय का निवेश कम्पाउंडिंग की ताकत के कारण ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है. - आप कितना जोखिम उठा सकते हैं?
शेयरों में उतार-चढ़ाव हो सकता है और क़ीमतें गिर सकती हैं. ये समझना अहम है कि आप कितना जोखिम उठा सकते हैं. अगर आप जोखिम से बचना चाहते हैं, तो आप टिकाऊ माने जाने वाले लार्ज-कैप शेयरों में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं.
2. बाज़ार की स्थितियों को समझें
शेयर बाज़ार कई तरह के फ़ैक्टर्स से प्रभावित होता है, जिनमें बिज़नस के फंडामेंटल्स, महंगाई, ब्याज दरें, GDP ग्रोथ और राजनीतिक स्थिरता शामिल हैं. कुछ फ़ैक्टर्स कम समय के लिहाज़ से ज़्यादा महत्वपूर्ण होते हैं, जबकि कुछ अन्य लंबे समय के रिटर्न को निर्धारित करते हैं. ये फ़ैक्टर्स किसी ख़ास स्टॉक और पूरे बाज़ार के प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं.
इसके अलावा, बाज़ार साइक्लिकल होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे ग्रोथ और गिरावट दोनों के दौर से गुजरते हैं. बाज़ार में गिरावट के दौरान सब्र बनाए रखना और घबराकर नहीं बेचना महत्वपूर्ण है. लंबे समय के लिए निवेश बनाए रखने से आपको बाज़ार के उतार-चढ़ावों से निपटने में मदद मिलती है और ये अक्सर समय के साथ वेल्थ तैयार करने की सबसे अच्छी रणनीति होती है.
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निवेश के लिए कंपनियों पर रिसर्च कैसे करें
अच्छी तरह से रिसर्च करने से आपको एक मजबूत स्टॉक पोर्टफ़ोलियो बनाने में मदद मिल सकती है. इससे आपको सोच-समझकर फैसला लेने में मदद मिलती है और उन कंपनियों में निवेश करने का जोखिम कम हो जाता है जो शायद लंबे समय में रिटर्न देने में सक्षम न हों. साथ ही, अच्छी तरह से रिसर्च करके, आप मुश्किल दौर में भी निवेशित रह पाएंगे क्योंकि इससे आपके लिए अपने पोर्टफ़ोलियो में भरोसा बनाए रखने में मदद मिलती है.
यहां जानिए, आप अपनी रिसर्च कैसे शुरू कर सकते हैं:
1. अर्निंग ग्रोथ: स्थिरता पर ध्यान दें
किसी कंपनी में सबसे पहले ध्यान देने वाली चीज़ों में से एक है अर्निंग्स ग्रोथ, यानि कंपनी का मुनाफ़ा साल दर साल कितना बढ़ रहा है. कमाई में लगातार बढ़त से जाहिर होता है कि कंपनी अपने बिज़नस का विस्तार करने और अपने शेयरहोल्डर्स के लिए वैल्यू तैयार करने में सफल रही है.
उन कंपनियों की तलाश करें जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में स्थिर विकास प्रक्षेपवक्र का प्रदर्शन किया है।
ये क्यों मायने रखती है: कमाई में दमदार ग्रोथ आम तौर पर एक अच्छी तरह से चलने वाली कंपनी की ओर संकेत करती है जो बाज़ार की अस्थिरता का सामना कर सकती है और अपने बिज़नस का विस्तार जारी रख सकती है.
2. प्रॉफ़िटेबिलिटी: प्रॉफ़िट का आकलन करें
देखने के लिए एक और अहम फ़ैक्टर है प्रॉफ़िटेबिलिटी यानि एक कंपनी अपने रेवेन्यू और रिसोर्सेज से कितनी कुशलता से प्रॉफ़िट कमाती है. आप नेट प्रॉफ़िट मार्जिन और इक्विटी पर रिटर्न (ROE) जैसे रेशियो का उपयोग करके प्रॉफ़िटेबिलिटी को माप सकते हैं.
- नेट प्रॉफ़िट मार्जिन: इससे ज़ाहिर होता है कि कंपनी रेवेन्यू के प्रत्येक रुपए से कितना प्रॉफ़िट कमाती है. ज़्यादा मार्जिन आमतौर पर बेहतर दक्षता और मज़बूत बिज़नस मॉडल का संकेत देता है.
- इक्विटी पर रिटर्न (ROE): ROE से पता चलता है कि कंपनी प्रॉफ़िट कमाने के लिए अपने शेयरहोल्डर्स की इक्विटी का कितना अच्छा इस्तेमाल कर रही है. लगातार ऊंचा ROE अक्सर एक प्रॉफ़िटेबल और अच्छे प्रबंधन वाली कंपनी का संकेत होता है.
ये क्यों महत्वपूर्ण है: प्रॉफ़िटेबिलिटी के मीट्रिक्स पर ध्यान केंद्रित करके, आप सुनिश्चित करते हैं कि आप ऐसे बिज़नस में निवेश कर रहे हैं जो कुशल, अच्छे प्रबंधन वाले हैं और लंबे समय में वैल्यू तैयार करने में सक्षम हैं. इससे आपको भरोसा होता है कि आपके निवेश चुनौतीपूर्ण हालात के दौरान भी ठोस रिटर्न दे सकते हैं.
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3. वैल्यूएशन: क्या स्टॉक की क़ीमत सही है?
वैल्यूएशन मीट्रिक्स आपको ये तय करने में मदद करते हैं कि किसी स्टॉक की क़ीमत उसकी आय या एसेट्स की तुलना में उचित है या नहीं. सबसे सामान्य मीट्रिक प्राइस-टू-अर्निंग्स (P/E) रेशियो और प्राइस-टू-बुक (P/B) रेशियो हैं.
- P/E रेशियो: ये आपको बताता है कि निवेशक किसी कंपनी की अर्निंग्स के प्रत्येक रुपये के लिए कितना भुगतान करने को तैयार हैं. इसकी गणना कंपनी के मौजूदा शेयर वैल्यू को अर्निंग्स पर शेयर (EPS) से विभाजित करके की जाती है.
- P/B रेशियो: ये मीट्रिक किसी कंपनी के मार्केट वैल्यू (निवेशक जो भुगतान करने को तैयार हैं) की तुलना उसके बुक वैल्यू (देनदारियों को घटाने के बाद उसकी एसेट्स की वैल्यू) से करता है.
ये क्यों मायने रखता है: इन वैल्यूएशन मीट्रिक्स पर ध्यान केंद्रित करके और क्वालिटी वाली कंपनियों के लिए उचित वैल्यू का भुगतान करके, आप बाज़ार में गिरावट आने पर बड़े नुक़सान के जोखिम को कम कर सकते हैं. समय के साथ, अगर आप उचित वैल्यूएशन पर शेयरों में निवेश करते हैं, तो ये सुनिश्चित करेगा कि आप केवल मार्केट के सेंटीमेंट पर सवार नहीं हैं, बल्कि आपके पोर्टफ़ोलियो के फंडामेंटल्स भी मजबूत हैं जो आर्थिक उतार-चढ़ाव का सामना कर सकते हैं.
इन तीन बुनियादी स्तंभों - अर्निंग्स ग्रोथ, प्रॉफ़िटेबिलिटी और वैल्यूएशन - पर ध्यान केंद्रित करके आप किसी कंपनी की फ़ाइनेंशियल हेल्थ को अच्छी तरह से समझ सकते हैं और ये जान सकते हैं कि इसे अपने पोर्टफ़ोलियो में शामिल करना समझदारी है या नहीं. लेकिन ये सिर्फ़ शुरुआत है क्योंकि आगे स्टॉक एनालिसिस की एक बड़ी दुनिया है.
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निवेश की लोकप्रिय रणनीतियां
सफल स्टॉक निवेश का एक महत्वपूर्ण पहलू सही रणनीति चुनना है. चाहे आप लंबी अवधि की ग्रोथ के लिए स्टॉक में निवेश करना चाहते हों या इंडेक्स निवेश जैसी पैसिव स्ट्रैटजीस को प्राथमिकता देना चाहते हों, हर निवेशक की ज़रूरतों के हिसाब से एक तरीक़ा है.
1. ‘खरीदें और होल्ड करें’ रणनीति (Buy-and-hold strategy)
‘खरीदें और होल्ड करें’ रणनीति में स्टॉक को लंबे समय तक रखने के इरादे से ख़रीदना शामिल है, जो अक्सर सालों या दशकों तक हो सकता है. ये रणनीति उन निवेशकों के लिए सबसे अच्छी है जो लंबे समय में ग्रोथ की तलाश में हैं और बाज़ार की अस्थिरता से बचना पसंद करते हैं.
- प्रॉफ़िट: ‘ख़रीदो और होल्ड करो’ की रणनीति से निवेशकों के लिए लंबे समय के रुझानों और कम्पाउंडिंग का फ़ायदा उठाना संभव होता है. अच्छी क्वालिटी वाली कंपनियों में निवेश करके, आप दमदार रिटर्न और फिर से निवेश होने वाले डिविडेंड, दोनों का फ़ायदा उठा सकते हैं.
- कमियां: इस रणनीति की पहली चुनौती सब्र की ज़रूरत है. शेयरों की वैल्यू बढ़ने में समय लग सकता है और बाज़ार में गिरावट के दौरान, निवेश बनाए रखना मुश्किल हो सकता है.
2. इंडेक्स निवेश
इंडेक्स निवेश में निफ़्टी 50 या सेंसेक्स जैसे बड़े मार्केट इंडेक्स को ख़रीदना शामिल है, जो बाज़ार में टॉप कंपनियों की एक बास्केट के प्रदर्शन को ट्रैक करता है. ये रणनीति किसी ख़ास स्टॉक चुनने के बारे में कम और पूरे बाज़ार में निवेश करने के बारे में ज़्यादा है. आप ETF में निवेश करके ऐसा कर सकते हैं.
- फ़ायदे: ETF के ज़रिये निवेश करने से तुरंत डायवर्सिफ़िकेशन मिल जाता है, जिससे जोखिम कम रहता है. ये एक पैसिव स्ट्रैटजी है, जिसका अर्थ है कि आपको लगातार बाज़ार पर नज़र भी नहीं रखनी पड़ेगी.
- कमियां: चूंकि इंडेक्स निवेश सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले स्टॉक को चुनने पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है, इसलिए ज़्यादा लक्षित निवेश रणनीतियों की तुलना में ऊंचा रिटर्न पाने की संभावना कम हो सकती है.
3. डिविडेंड इन्वेस्टिंग
डिविडेंड इन्वेस्टिंग उन शेयरों को ख़रीदने पर केंद्रित है जो नियमित रूप से डिविडेंड का भुगतान करते हैं. ये ऐसी कंपनियां होती हैं जो अपने मुनाफ़े का एक हिस्सा शेयरहोल्डर्स को वितरित करती हैं. लंबे समय के निवेशकों के लिए, ये रणनीति एक टिकाऊ इनकम प्रदान कर सकती है.
- फ़ायदे: डिविडेंड से रेग्युलर इनकम होती है और समय के साथ आपके पोर्टफ़ोलियो को बढ़ाने के लिए इसे फिर से निवेश किया जा सकता है.
- कमियां: ऊंचा डिविडेंड देने वाली कंपनियों में ग्रोथ की संभावना कम हो सकती है. इसके अतिरिक्त, आर्थिक मंदी के दौरान, डिविडेंड भुगतान कम हो सकता है.
निष्कर्ष: आत्मविश्वास के साथ शेयरों में निवेश करें
शेयरों में निवेश करने से आपको लंबी अवधि में वेल्थ तैयार करने में मदद मिल सकती है, लेकिन इसके लिए नई जानकारियों, सब्र और अनुशासन की ज़रूरत होती है. इस गाइड में बताए गए स्टेप्स पर अमल करके और सही निवेश के सिद्धांतों को अपनाकर, आप खुद को वित्तीय सफलता की राह पर आगे ले जा सकते हैं.
हालांकि, बाज़ार के उतार-चढ़ाव को समझना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. और, बाज़ार का एक मुश्किल दौर पोर्टफ़ोलियो में आपके भरोसे को हिला सकता है. वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइजर हमारे विशेषज्ञों की रेकमंडेशन उपलब्ध कराता है. हमारी सर्विस आपको समय पर मार्गदर्शन के माध्यम से अपने निवेश के रास्ते पर बने रहने में मदद करती है.
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