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इस बार, बात अलग है

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस क्रांति को लेकर निवेशकों की चुनौती क्या है

Role of AI in investing

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हमारा सामना एक ऐसी क्रांति से है जो होकर रहेगी, और निवेशकों को इसे समझने और इसके मुताबिक़ ढ़लने की कोशिश करनी चाहिए. आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस (AI) जैसी परिवर्तन लाने की क्षमता पहले कभी नहीं देखी गई है. ये चुनौतियां भी पेश कर रही है और ऐसे अवसर भी बना रही है और जो निवेश को नए सिरे से देखने की मांग करते हैं.

क्यों कुछ निवेशकों को EV ट्रांज़िशन के दौरान ऑटो से परहेज़ है
"जब तक EV ट्रांज़िशन पूरा नहीं हो जाता, तब तक ऑटो इंडस्ट्री में निवेश न करें." ये मेरा कहना नहीं है, लेकिन सोशल मीडिया पर आप इसी गूंज को सुन सकते हैं. ये स्वभाव अजीब है कि निवेशक ऑटो स्टॉक से पूरी तरह से परहेज़ कर रहे हैं. इसे लेकर उनका तर्क सरल है: इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) में बदलाव एक बुनियादी परिवर्तन दिखाता है, जहां मौजूदा मार्केट लीडर डगमगा सकते हैं, और नए खिलाड़ी छा सकते हैं.

इतिहास इस सावधानी की तरफ़दारी करता दिखाई देता है. अक्सर बड़े बदलावों से गुज़रने वाले उद्योगों की स्थापित बढ़त बेकार साबित होती है, और यही बात विजेता कंपनियों का चुनाव मुश्किल बना देती है. हमने इसे रेलवे, बिजली और इंटरनेट में भी होते देखा है. ऐसे उतार-चढ़ावों के दौर में किनारे पर खड़े देखते रहना रूढ़िवादी निवेशकों के लिए वक़्त की कसौटी पर कसी हुई रणनीति है.

AI क्रांति: इस बार खेल अलग है
हालांकि, AI क्रांति एक बड़ी मुश्किल चुनौती पेश करती है. EV ट्रांज़िशन जो एक ख़ास सेक्टर पर असर करता है, उसके उलट, AI की बड़ा बदलाव लाने की क्षमता लगभग हर इंडस्ट्री में फैली हुई है. 'इंतज़ार करो और देखो' वाला नज़रिया, जो ऑटो स्टॉक के लिए काम कर सकता है, यहां काम नहीं करता. ये कहना मुझे चाहे जितना भी नापसंद हो कि "इस बार बात अलग है" पर असल में ऐसा ही है.

AI पहले से ही उद्योगों को तेज़ी से बदल रहा है. बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां आने वाले सालों में AI के विकास में एक ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा झोंक रही हैं. इसके बावजूद, EV के शुरुआती दिनों की तरह, इन निवेशों के औचित्य पर बहस जारी है. क्या AI उम्मीद के मुताबिक़ तेज़ी से विकसित होगा? क्या बिज़नस उत्पादकता के लिहाज़ से इतने बड़े ख़र्च को सही ठहरा सकते हैं?

EV को लेकर निवेशक भले ही किनारा कर सकते हैं, पर क्या हर तरफ़ मौजूद AI से बच सकते हैं? चाहे बैंकिंग हो, स्वास्थ्य सेवा हो, रिटेल हो या मैन्युफ़ैक्चरिंग, काम-काज के तरीक़ों और प्रतिस्पर्धा को लेकर AI नए आयाम पेश कर रहा है. भारत की टॉप 100 कंपनियों में से, दस से भी कम को अभी भी AI के शॉर्ट- या मीडियम टर्म के असर के लिए विचार करने की ज़रूरत हो सकती है. यहां तक ​​कि जो बिज़नस सीधे-सीधे AI में निवेश नहीं करते, उन्हें भी AI की दुनिया के मुताबिक़ ढलना होगा.

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निवेशकों के लिए दुधारी तलवार
ये निवेशकों के लिए एक अनोखी पहेली है. उद्योगों में एक साथ हो रहे बदलावों के कारण व्यवसायों के पारंपरिक मूल्यांकन के पैमाने कम विश्वसनीय होते जा रहे हैं. किसी इंडस्ट्री में आगे रहने के ऐतिहासिक फ़ायदे अपनी प्रासंगिकता खो सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे इंटरनेट के शुरुआती दिनों में हुआ था. लेकिन इंटरनेट के उलट, AI की पहुंच कहीं व्यापक है, और इसके असर अभी भी समझे और समझाए ही किए जा रहे हैं.

कंपनियों की चुनौती इस अनिश्चितता से पार पाने के साथ-साथ अपने ज़रूरी काम-काज के तौर-तरीक़ों को दुरुस्त रखने की है. निवेशकों का काम और भी मुश्किल हो गया है - उन्हें न केवल मौजूदा समय में मुनाफ़े का पता लगाना है, बल्कि ये भी समझना है कि क्या कोई कंपनी AI से ओत-प्रोत भविष्य के लिए ख़ुद को तैयार कर भी रही है या नहीं.

इतिहास के सबक़: हाइप बनाम हक़ीकत
तकनीकी क्रांतियों के बीच रास्ता बनाने के लिए धीरज और नज़रिया चाहिए. बड़े बदलाव लाने वाली तकनीकें अक्सर उद्योगों को नया आकार देने में शुरुआती उत्साह से ज़्यादा वक़्त लेती हैं, लेकिन अंत में उनका असर भी उम्मीद से ज़्यादा होता है. 1998 में एक नोबेल पुरस्कार विजेता की कुख्यात टिप्पणी थी, "2005 या उसके आसपास, ये स्पष्ट हो जाएगा कि अर्थव्यवस्था पर इंटरनेट का असर फ़ैक्स मशीन से ज़्यादा नहीं है."

भविष्य अक्सर उम्मीद से धीमा आता है, यानि जब तक कि वो आ नहीं जाता. और जब वो आ जाता है, तब बड़ी तेज़ी से और हर तरफ़ से आ धमकता है.

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निवेशक AI से क्यों नहीं बच सकते
EV के ट्रांज़िशन और AI क्रांति के बीच सबसे बड़ा अंतर सिर्फ़ पैमाने का नहीं - ये अंतर वैकल्पों के होने और न होने का है. निवेशक EV पर धूल की परतें जमने तक ऑटोमोटिव स्टॉक से बचने का विकल्प चुन सकते हैं. लेकिन AI को टालने का कोई विकल्प नहीं है. इतना व्यापक होने की वजह से ये उपभोक्ता वस्तुओं से लेकर वित्तीय सेवाओं तक हर क्षेत्र को नया रूप दे रहा है.

AI केवल एक ट्रेंड नहीं है - ये वो क्रांति है जिससे बचा नहीं जा सकता. इस उतार-चढ़ाव के बीच, निवेशकों के लिए अपने निवेश के अनालेसिस का अनुशासन बनाए रखना एक चुनौती है. अवसर ये पहचानने में छुपा है कि हाइप आने में भले ही समय लगे, लेकिन अंततोगत्वा इसका असर गहरा होगा.

AI के खेल में किनारे बैठने का कोई विकल्प है ही नहीं. इस क्रांति में आपके भाग लेने का फ़ैसला आपके लिए पहले ही किया जा चुका है. आपका एकमात्र विकल्प ये तय करने का है कि इस नई वास्तविकता को कैसे नेविगेट करेंगे आप.

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