Anand Kumar
"समय एक शानदार बिज़नस का दोस्त है, और औसत दर्जे के बिज़नस का दुश्मन." अगर हम वॉरेन बफ़े की इस बात में बिज़नस की जगह निवेशक कहें, तो आज ये हमारे लिए ज़्यादा प्रासंगिक होगा.
जैसे-जैसे शेयर बाज़ार नाटकीय उतार-चढ़ाव के बीच झूल रहा है, कई निवेशक वही जानी-पहचानी खुजली महसूस कर रहे हैं - मार्केट को टाइम करने की इच्छा, यानि आगे बाज़ार में क्या होगा इसका अंदाज़ा लगा कर निवेश करने की चाहत. आख़िर ऐसा रोज़-रोज़ तो नहीं होता कि कुछ ही हफ़्तों (कभी-कभी दिनों) के अंदर हज़ारों प्वाइंट्स की हलचल का रोमांच हमें मिले. इस समय, ये सोचना कितना लुभावना है कि हम सबसे सस्ता ख़रीद कर, सबसे महंगा बेचें और बाज़ार को मात दे दें. सदियों पुराना ये लालच तब और भी बढ़ गया है जब से महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद हाल ही में बाज़ार तेज़ी से बढ़ा है.
लेकिन यहां एक गंभीर वास्तविकता भी मौजूद है: बाज़ार को टाइम करना आज भी उतना ही ख़तरनाक है जितना हमेशा रहा है, असल में तो बाज़ार की मौजूदा चाल की जटिलता को देखते हुए शायद ये और भी ज़्यादा ख़तरनाक हो गया है. जहां सेंसेक्स की तेज़ रिकवरी मार्केट का अंदाज़ा लगाने को बेहद लुभावना बना सकती है, वहीं ये इस बात पर भी रोशनी डाल रही है कि क्यों ये स्ट्रैटजी इतनी रिस्की है.
हाल में मार्केट के व्यवहार के बारे में सोचिए. हो सकता है अक्तूबर और नवंबर 2024 में गिरावट के दौरान घबराए निवेशक बाद में होने वाली तेज़ रिकवरी से चूक गए हों. पिछले छह महीनों में ये पैटर्न बार-बार सामने आया है, जिसमें कई बार इंडेक्स में तेज़ गिरावट के बाद नाटकीय रिकवरी भी देखने को मिली है. इनमें से हर बड़े उतार-चढ़ाव ने मार्केट को टाइम करने वालों के लिए एक ट्रैप का काम किया है.
चुनौती सिर्फ़ मार्केट को टाइम करने की नहीं है - ये उस पर असर करने वाले कारणों के मकड़-जाल को समझने की भी है. आज के बाज़ार घरेलू आर्थिक इंडीकेटर, दुनिया भर की भू-राजनीतिक घटनाओं, नीतियों के बदलाव और संस्थागत कैश-फ़्लो पर प्रतिक्रिया करते हैं. यहां तक कि अनुभवी विशेषज्ञ भी ये समझने में संघर्ष करते हैं कि ये सभी कारण मार्केट को आगे बढ़ाने में मिल कर कैसे काम करते हैं.
बाज़ार के उतार-चढ़ाव की मौजूदा गति आगे क्या होगा इस बात का अंदाज़ा लगाने को लेकर ख़ासतौर से ख़तरनाक बना देती है. इस डिजिटल युग में सूचनाएं और बाज़ार की प्रतिक्रियाओं दोनों तेज़ हो गई हैं. जब भी आपको लगता है कि आप कोई ट्रेंड देख रहे हैं, तो अक्सर मार्केट पहले ही इसकी क़ीमत तय कर चुका होता है. जो लोग मार्केट की चाल पर निवेश के फ़ैसले करते हैं, वे अक्सर ऊंचे दाम पर ख़रीदते और कम दाम पर बेचते हैं - जो उनके इरादों के बिल्कुल उलट होता है.
इस उतार-चढ़ाव भरे बाज़ार का अंदाज़ा लगाने की कोशिश करने के बजाय, निवेशकों को समय की कसौटी पर खरे उतरने वाले इन सिद्धांतों का ध्यान रखना चाहिए:
सबसे पहले, एक अनुशासित और लंबे समय के निवेश का नज़रिया बनाए रखें. पिछले कुछ साल में बाज़ार की यात्रा से बताती है कि शॉर्ट-टर्म में उतार-चढ़ाव के बावजूद लंबे समय में इसका स्वभाव ऊपर की ओर जाने का ही रहा है. दूसरा, समय के साथ निवेश ख़रीदने की क़ीमत को औसत पर लाने के लिए म्यूचुअल फ़ंड में SIP करें. इससे मार्केट की गिरावट में अपने-आप फ़ायदा मिल जाता है, जिससे आपको किसी टाइमिंग की या अटकल लगाने की ज़रूरत नहीं होती. अंत में, मार्केट को टाइम करने के बजाय एसेट एलोकेशन पर ध्यान दें - ये पक्का करें कि आपके पोर्टफ़ोलियो में रिस्क का स्तर आपके निवेश की समय-सीमा और लक्ष्यों से मेल खाता हो.
ऐसे सधे हुए नज़रिए के मनोवैज्ञानिक फ़ायदों को कम नहीं आंका जा सकता. निवेश का एक अच्छा प्लान, मार्केट के उतार-चढ़ावों को लेकर भावनात्मक परेशानियां कम करता है. अब आप मार्केट को टाइम करने या रात भर जागकर ये सोचने के चक्कर में नहीं फंसते कि कल मैं ख़रीदूंगा या बेचूंगा. आज के मार्केट की उठा-पटक में ये भावनात्मक स्थिरता काफ़ी मायने रखती है, क्योंकि लगातार चीखती हेडलाइनें अनुभवी से अनुभवी निवेशकों के संकल्प की भी कड़ी परीक्षा ले सकती हैं. इसके अलावा, एक सधा हुआ नज़रिया आपकी मानसिक ऊर्जा को आपकी फ़ाइनेंशियल प्लानिंग के दूसरे अहम पहलुओं जैसे टैक्स कम करना, एसेट प्लानिंग, या किसी उभरते हुए सेक्टर में लंबे निवेश की पहचान के लिए आज़ाद छोड़ देता है.
याद रखिए, निवेश की सफलता इस बात की भविष्यवाणी में नहीं है कि बाज़ार में क्या होने वाला है. बल्कि ये बाज़ार की हर साइकिल में निवेश में बने रहने, दूसरे जब घबरा रहे हों तो अपना अनुशासन क़ायम रखने और कंपाउंडिंग की ताक़त को अपने लिए काम करने देने की बात है. मौजूदा बाज़ार में उतार-चढ़ाव के कारण निवेश को टाइम करना लुभावना लग सकता है, लेकिन यही वो समय होता है जब आपकी लंबे निवेश की रणनीति पर टिके रहना बेहद अहम होता है.
वॉरेन बफ़े की एक बात काफ़ी मशहूर है कि शेयर बाज़ार उतावले लोगों से पैसे लेकर धीरज रखने वालों को दे देता है. आज के उतार-चढ़ाव वाले मार्केट पर, ये ज्ञान पहले से कहीं ज़्यादा सही साबित होता है. असली सवाल ये नहीं "मुझे कब ख़रीदना या कब बेचना चाहिए?" बल्कि ये है "क्या मैं अपने लंबे समय के लक्ष्यों के मुताबिक़ निवेश कर रहा हूं?"
ज़्यादातर निवेशकों के लिए, मार्केट में उतार-चढ़ाव का जवाब उसे टाइम करना नहीं - मार्केट में टाइम बिताना है. आप मार्केट की चाल को नहीं, बल्कि निवेश के अपने क्षितिज को अपनी रणनीति तय करने दें. अंत में, मार्केट में बिताया समय मार्केट को टाइम करने से बेहतर है, भले ही मार्केट के उतार-चढ़ाव कितने ही लुभावने क्यों न लगें.