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ये सब नज़रअंदाज़ करें

अगर आपका निवेश जीवन एक कंप्यूटर गेम की तरह है, तो आप इसे ग़लत तरीक़े से जी रहे हैं. इसे एक पेड़ को बड़े होते देखने जैसा होना चाहिए.

Worried about Sensex going down? Read Dhirendra Kumar's editorial in Hindi.AI-generated image

इतना सीधा-सीधा - यहां तक कि रुखाई से - बोलने के लिए मैं माफ़ी चाहता हूं लेकिन भारतीय शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ावों के दौरान, सभी स्वघोषित एक्सपर्ट हवा के बदलते रुख़ के साथ झंडा बने इधर से उधर लहरा रहे हैं. एक सप्ताह, वे एक नए बुल रन की सुबह की घोषणा करते हैं, और उनकी आवाज़ दृढ़ विश्वास से भरी होती है; उसके अगले ही सप्ताह, वे उतने ही आत्मविश्वास से विनाश की भविष्यवाणी कर रहे होते हैं. सबसे बड़ी बात ये नहीं है कि वे लगातार विरोधाभासी बने हुए हैं, बल्कि उनका वो अटूट आत्मविश्वास है जिसके साथ वे हर नया पूर्वानुमान पेश करते हैं, और ये सब इस उम्मीद में कि दर्शक उनका पिछला पूर्वानुमान भूल गए होंगे.

जब अक्टूबर में बाज़ार नीचे गया, और सभी ने कहा कि FII चीन में बहुत सारा पैसा लगा रहे हैं, तो हमारे पास कई लेख, मश्विरे और रीलें थीं जो बता रही थीं कि चीन कितना शानदार है. फिर एक उलटफेर हुआ, और राय भी उलट गई. उसके बाद, कुछ ही हफ्तों में यही चक्र एक बार फिर दोहराया गया. पता नहीं कैसे, मगर उम्मीद की जाती है कि निवेशक इन उलटफेर से भरे मश्विरों से ज्ञान हासिल करें.

मज़ेदार तो ये है कि कैसे ये तमाम विशेषज्ञ एक मुश्किल शब्दावली की अपनी छल्लेदार बातों से ख़ुद को सही साबित करते हैं, जो असल में सिर्फ़ एक अनुमान भर होती हैं. पता नहीं कैसे, मगर उन्हें सही बताने वाले टूल जो एक महीने में रैली का तर्क समझाते हैं वही अगले महीने क्रैश को सही ठहराने के काम भी आ जाते हैं.

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जहां व्यूज़ हथियाने और क्लिक बटोरने का बिज़नस अपनी रफ़्तार से चलता रहता है - क्योंकि बिज़नस ही सिर्फ़ यही है - पर शायद विरोधाभासों से भरी विशेषज्ञता की इस अंतहीन परेड का सबसे ख़तरनाक पहलू रिटेल निवेशकों पर होने वाला इसका असर है. अपने निवेश को समझने की कोशिश में जुटे आम लोगों पर तुरंत एक्शन लेने की बौछार हर तरफ़ से पड़ने लगती है. तुरंत ख़रीदिए, कहीं बहुत देर न हो जाए. नहीं, रुकिए - तुरंत बेचिए, कहीं बहुत देर न हो जाए! असली त्रासदी ये है कि कई छोटे निवेशक, जिनके लिए बाज़ार महज़ एक बौद्धिक कुश्ती नहीं है, वो इन लगातार बदलती चीख़-पुकार के बूते पर ग़लत फ़ैसले कर बैठते हैं.

तो बचत और निवेश करने वाले क्या करें? सबसे पहले तो पहचानें कि क्या नज़रअंदाज़ करना है: बाज़ार के उतार-चढ़ाव पर कभी न ख़त्म होने वाली हेडलाइनें, अगले बड़े बदलाव की भविष्यवाणियां करते व्हाट्सएप के फ़ॉरवर्ड, और सबसे ज़रूर बात, बाज़ार आगे कहां जाएगा इसका दावा करने वाले तमाम लोग. ये सब शोर हैं, संकेत नहीं. यही बात उन अंतहीन बहसों पर भी लागू होती है कि क्या सेंसेक्स इस आंकड़े को छू पाएगा - ये सब सिर्फ़ मनोरंजन है, और सच पूछिए तो कोई बहुत अच्छा मनोरंजन भी नहीं है.

इसके बजाय, आइए उन बातों पर ध्यान दें जो असल में मायने रखती हैं: आपके फ़ाइनेंशियल गोल, आपके निवेश की समय-सीमा और रिस्क सहन करने की आपकी क्षमता. जैसा कि मैंने हमेशा कहा है, निवेशकों के लिए, समझने और अनालेसिस करने वाली पहली चीज़ निवेश नहीं, बल्कि उनका अपना जीवन है. दशकों बाद रिटायरमेंट के लिए बचत करने वाले व्यक्ति को बाज़ार के उतार-चढ़ाव को उस शख़्स से बहुत अलग नज़रिए से देखना चाहिए जो दो साल में अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए अपने निवेश का इस्तेमाल करने जा रहा है. अपने जीवन से मेल खाने वाले डाइवर्सिफ़ाइड पोर्टफ़ोलियो बनाएं, न कि ऐसे सेक्टर वाले पोर्टफ़ोलियो जिन्हें लेकर सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े दावों की बोलियां लगाई जा रही हों.

सबसे अहम बात है, आप समझ जाएं कि एक सफल निवेश उबाऊ होता है. अगर निवेश को लेकर आपका नज़रिया सही है, तो मान के चलिए कि इसमें समय लगेगा. अच्छा निवेश, अपने बगीचे में फलों के पेड़ को उगते हुए देखने जैसा है. ऐसा कोई एक दिन नहीं होगा जब अचानक कुछ रोमांचक हो जाएगा, मगर फिर भी कुछ साल बाद, आपको ढ़ेर सारे फल मिलेंगे ही.

ये बात है, लगातार SIP करने की, हर कुछ समय बाद री-बैलेंस करने की, और अलग-अलग मार्केट साइकिल के दौरान भी निवेश में बने रहने की. ये बाज़ार की गिरावट को संकट के तौर पर देखने की बात नहीं है, बल्कि बेहतर क़ीमत पर क्वालिटी वाले एसेट ख़रीदने के मौक़े के तौर पर देखने की बात है. मैं जिन बेहद सफल रिटेल निवेशकों को जानता हूं, उनमें वो लोग नहीं हैं जिन्होंने सबसे ज़्यादा कारोबार किया या जिन्होंने बाज़ार के हर उतार-चढ़ाव की नब्ज़ पकड़ ली - ये वो लोग हैं, जिनके पास एक प्लान था और वो उस पर क़ायम रहे, और शोर को नज़रअंदाज़ करते हुए कंपाउंडिंग के जादू को अपने लिए काम करने दिया.

दरअसल, सफल निवेश का असली रहस्य ये जानना हो सकता है कि क्या नहीं जानना चाहिए. जिस तरह एक स्वस्थ आहार का मतलब जंक फ़ूड में पौष्टिकता शामिल करना नहीं है, उसी तरह अच्छे निवेश का मतलब बाज़ार के शोर पर क्वालिटी अनालेसिस की तहें चढ़ाते जाना नहीं है. ये सबसे पहले शोर को ख़त्म करने की बात है. हर रोज़ की मार्केट कमेंट्री, लगातार चलती ब्रेकिंग न्यूज़, और हॉट टिप्स की कभी न ख़त्म होने वाली बौछार सिर्फ़ दिमाग़ की कैलोरी बढ़ाने का खेल है, जो फ़ैसले लेने की समझ को बेहतर करने के बजाय, उसे धुंधला कर देती हैं. एक बेहतर निवेशक बनने का रास्ता ज़्यादा जानकारियों के बाज़ार से हो कर नहीं जाता, बल्कि ज़्यादातर जानकारियों को अनदेखा करने की समझदारी को बढ़ाने में होता है.

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