फ़र्स्ट पेज

...मज़बूत लोग ही आगे बढ़ते हैं

जब मार्केट गिरते हैं तो पूंजी बनाने और पूंजी बर्बाद करने का फ़र्क़ आपकी प्रतिक्रिया में होता है

What affects your investment most during a market fall? Read in Hindi.

back back back
5:50

मार्केट कभी ऊपर जाते हैं, कभी नीचे जाते हैं और फिर ऊपर चढ़ जाते हैं; ये मार्केट का स्वभाव है. निवेशक कभी उत्साहित होते हैं और कभी घबरा जाते हैं. ये निवेशकों का स्वभाव है. भारतीय बाज़ार को दशकों तक क़रीब से देखने के बाद, मैंने पाया है कि ये चक्कर गोल-गोल चलता रहता है, हालांकि आगे क्या होगा इसका अंदाज़ा कभी नहीं लगाया जा सकता है. हाल के पैटर्न पर नज़र डालें तो लंबे समय तक लगातार चढ़ने के बाद, मुश्किल से पांच हफ़्तों में सेंसेक्स क़रीब 7.5 प्रतिशत गिर गया है, और हमेशा की तरह तबाही की भविष्यवाणियों का सिलसिला फिर चल निकला है. क्या ये एक लंबी मंदी की शुरुआत है, जिसके बारे में निराशावादी चेतावनी देते रहे हैं, या ये लंबे समय में ऊपर की ओर बढ़ने वाले सफ़र में महज़ एक और छोटी सी गिरावट है? सच तो ये है कि इस सवाल का जवाब कोई नहीं जानता - और ये अनिश्चितता बाज़ार के काम करने के तरीक़े का हिस्सा है.

फिर भी, एक धैर्यवान निवेशक जो छोटी अवधि में आने वाले इन उतार-चढ़ावों से परे देख सकता है उसके लिए कहानी कुछ और ही है. वही सेंसेक्स आज इतनी चिंता का कारण लगता है, जो पिछले पांच साल में लगभग दोगुना हो गया है, और अपने रास्ते पर बने रहने वालों को 98 प्रतिशत रिटर्न दे रहा है. यही विरोधाभास है इक्विटी मार्केट का - उसे लगातार ऊपर चढ़ने के लिए समय-समय पर गिरना पड़ता है. लेकिन यहां एक बड़ी चेतावनी भी है जिसे हर निवेशक को समझना चाहिए.

महत्वपूर्ण सवाल ये है कि असल में गिर क्या रहा है. सेंसेक्स जैसे बड़े मार्केट इंडेक्स अंततः ठीक हो जाते हैं और वापस नई ऊंचाइयों पर पहुंच जाते हैं, और ये एक सदी पुराना पैटर्न है जिसके तब तक बदलने की संभावना नहीं है जब तक भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती रहती है. लेकिन बात अगर किसी एक शेयर की हो तब क्या? फिर तो ये एक पूरी तरह से अलग कहानी है. भारतीय शेयर बाज़ार का कब्रिस्तान ऐसे नामों से अटा पड़ा है जो कभी बहुत ताक़तवर थे और फिर ऐसे गिरे कि दोबारा कभी उबर ही नहीं पाए. 2008-09 याद है? उसके बाद सेंसेक्स तो वापस ठीक हो गया और कई गुना बढ़ भी गया, पर उस दौर के कई शेयर जो कभी निवेशकों की आंखों के तारे हुआ करते थे - रियल एस्टेट से लेकर इंफ़्रास्ट्रक्चर तक - अपने पुराने स्वरूप के अवशेष मात्र रह गए.

बाज़ार में गिरावट के उतार-चढ़ावों की नियति निवेशकों को दो अलग रास्तों पर डाल देती है. जो लोग बाज़ार में रिसर्चर के तौर पर आते हैं, बिज़नस की बुनियादी बातों और प्रतिस्पर्धी स्थितियों का विश्लेषण करते हैं, उनके लिए बाज़ार में गिरावट उनकी पसंदीदा दुकानों पर मौसमी ख़रीद-फ़रोख़्त जैसा होता है - कम क़ीमत पर अच्छे बिज़नस ख़रीदने का मौक़ा होता है. उनका ध्यान रोज़ाना की कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव के बजाय बिज़नस पर टिका होता है, और इस वजह से वे तर्कसंगत तरीक़े से काम कर पाते हैं.

जबकि दूसरे रास्ते पर चलने वाले लोग घबरा जाते हैं. बाज़ार में भावनाओं की लहर पर सवार होकर मोमेंटम का पीछा करने वाले ये लोग सट्टेबाज़ होते हैं. और जब मोमेंटम का ज्वार उतरता है, जिसे उतरना ही होता है, तो वे अक्सर ऐसे स्टॉक थामे खड़े होते हैं जो बिज़नस की वास्तविकता के बजाए कल्पनाओं और प्रचार के झुनझुने होते हैं. अच्छे समय में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले यही स्टॉक आमतौर पर नीचे लुढ़कने में भी सबसे आगे होते हैं - और कई ऐसे भी होते हैं जो कभी वापस नहीं चढ़ पाते. यही कारण है कि शेयर बाज़ार से बड़ी पूंजी बनाना हमेशा से ही बिज़नस पर ध्यान देने वाले निवेशक का काम रहा है, न कि मोमेंटम के पीछे भागने वाले पंटर का.

ये समय, असली निवेशकों के लिए रोमांच पैदा करने वाला है. कुछ हफ़्ते पहले जो शेयर ज़्यादा क़ीमत पर बिक रहे थे, वे अब वाजिब लग रहे हैं. मगर, पिछले महीने भारत के सबसे शानदार बिज़नसों के बुनियादी फ़ैक्टर नहीं बदले हैं - उनका रेवेन्यू बढ़ता जा रहा है, बाज़ार में उनकी स्थिति मज़बूत बनी हुई है, और उनकी संभावनाएं पहले की तरह ही अच्छी हैं. जो बदला है, वो सिर्फ़ वो क़ीमतें हैं जो बाज़ार ने उन्हें अस्थायी तौर पर दे दी है. जब अच्छी क्वालिटी वाले सामान की बिक्री होती है, तो समझदार ख़रीदार भागते नहीं हैं; वो अपने बटुए खोलते हैं. इसीलिए गंभीर निवेशक कुछ अलग कर रहे हैं - वे अलग-अलग कंपनियों को सिलसिलेवार तरीक़े से जांच रहे हैं ताकि पता लगा सकें कि कौन सी कंपनी अच्छी क़ीमत पर बिक रही है. मेरी वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र टीम इसी पर दिन-रात काम कर रही है. पर वो ये पता लगाने की कोशिश नहीं कर रहे कि सेंसेक्स कुछ और प्रतिशत गिरेगा या वापस उछलेगा - और जानते हैं? ऐसे बहुत से शेयर पहले ही मौजूद हैं.

दरअसल, ये एक मनोवैज्ञानिक खेल है. ये ऐसा समय है जो सच्चे विश्वास से प्रेरित निवेशकों को ढोंगियों से अलग करता है. जब बाज़ार चढ़ रहे हो तो गिरावट के समय ख़रीदारी के बारे में बात करना आसान होता है; जब बाज़ार गिर रहा हो, और जब हर ख़बर बुरी ख़बर लगे तो ऐसा करना कहीं ज़्यादा मुश्किल हो जाता है. जिस निवेशक ने अपना होमवर्क किया है, जो जानता है कि उसके पास क्या है और क्यों है, वो ऐसे समय में अपने काम को निर्णायक तरीक़े से अंजाम दे सकता है. जो लोग भीड़ के पीछे चलते हैं या सुझावों और रुझानों का चेहरा देख कर ख़रीदने निकलते हैं, वे पाएंगे कि उनका विश्वास ठीक उसी समय ख़त्म हो रहा है जब उन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.


टॉप पिक

मणप्पुरम फ़ाइनांस का वैल्यूएशन ऐतिहासिक निचले स्तर पर. ये 'वैल्यू बाय' है या ट्रैप?

पढ़ने का समय 3 मिनटAbhinav Goel

20 स्टॉक जो बेहद कम क़ीमत पर मिल रहे हैं!

पढ़ने का समय 2 मिनटवैल्यू रिसर्च

क्या बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड मार्केट की गिरावट में सुरक्षित रहते हैं?

पढ़ने का समय 1 मिनटवैल्यू रिसर्च

मल्टी-एसेट फ़ंड्स 101: इससे जुड़ी हर बात जानिए

पढ़ने का समय 4 मिनटPranit Mathur

शॉपिंग का त्योहार

पढ़ने का समय 4 मिनटधीरेंद्र कुमार

स्टॉक पॉडकास्ट

updateनए एपिसोड हर शुक्रवार

Invest in NPS

...मज़बूत लोग ही आगे बढ़ते हैं

जब मार्केट गिरते हैं तो पूंजी बनाने और पूंजी बर्बाद करने का फ़र्क़ आपकी प्रतिक्रिया में होता है

दूसरी कैटेगरी