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मार्केट रेगुलेटर SEBI के पूर्णकालिक सदस्य अश्विनी भाटिया ने कुछ महीने पहले एक कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर कहा, "मर्चेंट बैंकरों को 'न' कहना सीखना चाहिए." उन्होंने SME IPO को लेकर ऑडिटर और मार्केट इंटरमीडियरी की सही जांच-पड़ताल न किए जाने का ज़िक्र किया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अश्विनी ने कहा, "SME लिस्टिंग के लिए कोई भी न नहीं कह रहा है, भले ही वे अपनी बैलेंस शीट को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हों."
अश्विनी की ये बात शायद उन धोखाधड़ियों से जुड़ी है, जिन पर सेबी ने हाल के महीनों में ध्यान दिया है. वैरेनियम क्लाउड भी एक ऐसा ही मामला है. डेटा सेंटर, ई-लर्निंग और पेमेंट गेटवे सर्विस देने का दावा करने वाली इस SME कंपनी के शेयरों में सितंबर 2022 में अपनी शुरुआत के बाद से सिर्फ़ चार महीनों में 11 गुना उछाल आया.
जनवरी 2024 में, जब शेयर में एकतरफ़ा गिरावट शुरू हुई, जब निवेशकों को एहसास हुआ कि प्रमोटरों ने अपनी हिस्सेदारी पहले के 63 फ़ीसदी से घटाकर 36 फ़ीसदी कर दी है. शेयर ने अब तक अपने सबसे ऊपरी स्तर से 95 फ़ीसदी से ज़्यादा की बढ़त खो दी है.
बाद में SEBI की जांच में पता चला कि कंपनी ने IPO फ़ंड का दुरुपयोग किया था और ग़लत फ़ाइनेंशियल जानकारी दी थी. इसके बाद रेग्युलेटर ने मई 2024 में एक अंतरिम आदेश दिया, जिसमें कंपनी और उसके प्रमोटर हर्षवर्धन साबले को सिक्योरिटीज़ मार्केट से बैन कर दिया गया. रेगुलेटर ने हाल ही में इस आदेश की पुष्टि की है.
SEBI ने अपनी जांच में क्या पाया
- IPO फ़ंड का दुरुपयोग: वैरेनियम ने अपने IPO के ज़रिए तीन डेटा सेंटर और तीन डिजिटल लर्निंग सेंटर बनाने के लिए ₹40 करोड़ जुटाए. लेकिन साइट विज़िट के दौरान NSE ने पाया कि ये फ़ैसिलिटी मौजूद नहीं थीं. इसके बजाय, सेबी ने पाया कि प्रमोटर ने संबंधित पार्टियों को फ़ंड दिया था.
- मनगढ़ंत फ़ाइनेंशियल: वैरेनियम की फ़ाइनेंशियल रिपोर्ट के अनुसार, इसका रेवेन्यू FY21 में ₹4 करोड़ से बढ़कर दिसंबर 2023 तक ₹923 करोड़ हो गया था. हालांकि, ये आंकड़े ग़लत अकाउंटिंग एंट्री के बाद उपजे पाए गए. यहां तक कि अमेज़न वेब सर्विसेज़ के लिए सर्वर और डेटा सेंटर के लिए बताए गए बड़े ख़र्च भी मनगढ़ंत थे, जबकि कंपनी के बैंक एकाउंट से कोई पैसा नहीं कटा था.
- झूठी घोषणाएं और शेयर डंपिंग: निवेशकों को उत्साहित रखने के लिए, कंपनी ने कई आकर्षक मगर भ्रामक घोषणाएं कीं -- OTT प्लेटफ़ॉर्म लॉन्च करने से लेकर ज्वेलरी और टेक्सटाइल लाइन पेश करने तक. जब प्री-IPO लॉक-इन अवधि ख़त्म हुई, तो प्रमोटरों ने जल्दी से अपने शेयर बेच दिए, जिससे उन्हें ₹140 करोड़ से ज़्यादा का मुनाफ़ा हुआ.
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ऐसे मकड़-जाल कैसे पहचानें
किसी भी स्कैम करने वाली कंपनी को जल्दी से पहचानना चुनौती भरा होता है, ख़ासकर जब वो अपने फ़ाइनेंशियल को मनगढ़ंत ढ़ंग से पेश कर रहे हों. हालांकि, वैरेनियम को लेकर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी में भी कई साफ़ संकेत मौजूद थे. हमने यहां उनकी लिस्ट बनाई है. ये चेतावनी के संकेत निवेशकों के लिए संभावित ट्रैप को पहचानने के लिए एक गाइड के तौर पर काम कर सकते हैं, ख़ासकर SME पब्लिक ऑफ़र में, जिन्हें लेकर कड़ी जांच नहीं की जाती है.
ख़तरा नंबर-1. कैश फ़्लो के बिना प्रॉफ़िट
वैरेनियम क्लाउड ने दिसंबर 2023 को ख़त्म हुए 18 महीनों में ₹178 करोड़ का क्यूमिलेटिव प्रॉफ़िट रिपोर्ट किया, लेकिन इसका ऑपरेटिंग कैश फ़्लो मात्र ₹8 करोड़ था. इसका मतलब है कि कंपनी के पास हाई रेसीवेबल थे, जो कैपिटल-लाइट IT बिज़नस के लिए सामान्य नहीं है.
आपके लिए सीख: कम कैश फ़्लो के साथ ज़्यादा प्रॉफ़िट ये संकेत दे सकता है कि कोई कंपनी मनगढ़ंत रेवेन्यू दर्ज करके या बढ़े-चढ़े रिसीवेबल दिखा कर, असल कैश बनाए बिना ही अपना प्रॉफ़िट बढ़ा कर दिखा सकती है. दूसरे मामलों में, ख़राब कैश कन्वर्ज़न भी बिज़नस के ऑपरेशन को सही तरीक़े से चलाने की क्षमता घटाता है. इसलिए, असल कैश बनाए बिना हुआ प्रॉफ़िट, ग्रोथ के लिए कोई बुनियाद नहीं बनाती है.
ख़तरा नंबर-2. बार-बार ऑडिटर बदलना
IPO से पहले, वैरेनियम क्लाउड ने हर साल ऑडिटर बदले -- FY20 में गर्ग गोयल एंड कंपनी, FY21 में अपरा एंड असोसिएट्स और FY22 में ए.के. कोचर एंड असोसिएट्स.
आपके लिए सीख: बार-बार ऑडिटर बदलने से फ़ाइनेंशियल पर संभावित असहमति और ग़लतियों को छिपाने की कोशिश हो सकती है. फ़ाइनेंशियल स्थिति पर भरोसा जताने से पहले, हमेशा SME के ऑडिटर और पिछले काम गहराई से जांचें.
ख़तरा नंबर-3. प्रमोटर द्वारा ज़्यादा शेयर गिरवी रखना
IPO के बाद, कंपनी के प्रमोटर ने एग्रेसिव तरीक़े से शेयर गिरवी रखना शुरू कर दिया. अप्रैल से सितंबर 2023 तक, प्रमोटर प्लेज़ 11 फ़ीसदी से बढ़कर 64 फ़ीसदी हो गई.
आपके लिए सीख: प्रमोटर प्लेज़ का बढ़ना अक्सर संकेत देता है कि प्रमोटर को पैसे की ज़रूरत है या वो जोख़िम को कम करने की तैयारी कर रहा है. वैरेनियम क्लाउड के मामले में भी, कंपनी के प्रमोटर हर्षवर्धन साबले ने पर्सनल डेट पर डिफ़ॉल्ट किया था.
ख़तरा नंबर-4. प्रमोटर का ख़राब रिकॉर्ड
साबले के मामले में फ़ाइनेंशियल गड़बड़ी का रिकॉर्ड था. 2009 में, उन्हें एक फ़र्म के लिए ₹46 करोड़ के FDI की व्यवस्था करने के बहाने ₹14 करोड़ की हेराफेरी करने के आरोप में गोवा में गिरफ़्तार किया गया था. धोखाधड़ी का एक और मामला मुंबई में सामने आया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर एक CEO से ₹15 करोड़ ठगे, जो धोखाधड़ी के पैटर्न दिखाता है.
आपके लिए सीख: किसी कंपनी के प्रमोटर या डायरेक्टर के पिछले रिकॉर्ड की जांच करें. पिछला फ़ाइनेंशियल मिसकंडक्ट एक बड़ा ख़तरे का निशान है और नैतिकता की कमी का संकेत दे सकता है.
SME IPO में तगड़ा रिटर्न बनाने का मौक़ा आकर्षक लग सकता है. लेकिन जैसा कि वैरेनियम क्लाउड के मामले से पता चलता है, मेहनत और बारीक़ विश्लेषण ज़रूरी है, ख़ासकर तब जब SME कंपनियों की कम जांच-पड़ताल हुई हो.
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