अगर रिटर्न को लेकर आपका "दिल मांगे मोर", तो वरुण बेवरेजेज़ आपकी ये चाहत पूरी करने के लिए तैयार है. भारत में पेप्सिको के सबसे बड़े बॉटलिंग पार्टनर के रूप में, ये दिग्गज पिछले पांच साल में दलाल स्ट्रीट के सबसे बड़े वेल्थ क्रिएटर्स में से एक रहा है और ऐसा लगता है कि इसकी ग्रोथ स्टोरी अभी खत्म नहीं हुई है. हाल ही में, वरुण बेवरेजेज़ ने क़र्ज़ कम करने और सब्सिडियरीज़, ज्वाइंट वेंचर्स और मौजूदा ऑपरेशंस में निवेश करने के लिए क्वालिफ़ाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) के ज़रिये ₹7,500 करोड़ जुटाने की योजना की घोषणा की. हालांकि, इसकी बैलेंस शीट और मैनेजमेंट कमेंट्री पर क़रीब से नज़र डालने से पता चलता है कि ये केवल डेलेवरेजिंग से भी बड़े किसी गोल पर काम कर रही है. यहां इसके कारण बताए गए हैं.
केवल डेलेवरेजिंग से भी आगे
वरुण बेवरेजेज ने पहले कई कॉन्फ्रेंस कॉल में कहा है कि वो अपने डेट को दिसंबर 2023 के स्तर पर लाने की योजना बना रही है, जिसका मतलब है कि वो अपनी बैलेंस शीट पर वर्तमान में ₹6,700 करोड़ के क़र्ज़ में से क़रीब ₹1,300 करोड़ का भुगतान करना चाहती है. लेकिन डेलेवरेजिंग के लिए जुटाए गए फ़ंड के केवल एक छोटे हिस्से की ज़रूरत होगी. वास्तव में, कंपनी ने वर्ष 23 की दूसरी तिमाही तक लगभग ₹300 करोड़ का कैश फ़्लो अर्जित किया, जिसका अर्थ है कि केवल आंतरिक स्रोतों का उपयोग करके डेट को कम करना संभव है.
तो, अगर क़र्ज़ में कमी QIP का प्रमुख वजह नहीं है, तो ₹ 7,500 करोड़ का बड़ा हिस्सा कहां जा रहा है? भले ही, कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि ये मौजूदा परिचालन का विस्तार करने के लिए है, लेकिन ये ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वरुण बेवरेजेज़ पहले से ही भारत में पेप्सिको की बिक्री का 90 फ़ीसदी से ज़्यादा हिस्सा है, जिससे घरेलू ग्रोथ के लिए सीमित गुंजाइश है. इन फ़ैक्टर्स को देखते हुए, ऐसी संभावना है कि कंपनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े विस्तार की योजना बना रही है, जिसका संकेत हाल में प्रबंधन ने दिया भी है.
अफ्रीका को लक्ष्य बनाना
कंपनी ने वर्ष 2025 तक कैपेक्स पर लगभग ₹2,300 करोड़ ख़र्च करने की योजना बनाई है. यदि भारत मुख्य निवेश गंतव्य नहीं है, तो उसकी अगली योजनाओं में अफ्रीका अहम हो सकता है. ऐतिहासिक रूप से, अफ्रीका एक भारी खपत वाला बाज़ार रहा है, जहां कार्बोनेटेड पेय पदार्थों की प्रति व्यक्ति खपत भारत की तुलना में पांच से छह गुनी ज़्यादा है. वर्तमान में, वरुण बेवरेजेज 54 अफ्रीकी देशों में से केवल नौ में सक्रिय है, जिसका अर्थ है कि कंपनी के लिए एक बड़ा बाज़ार सामने अप्रयुक्त है.
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इसके अलावा, अफ्रीका में अधिकांश बेवरेज डिस्ट्रीब्यूटर और बोतलबंद करने वाले असंगठित हैं, जिससे वरुण बेवरेजेज को प्रतिस्पर्धा के लिहाज से बढ़त मिलती है. वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही की अर्निंग कॉल में, चेयरमैन रवि जयपुरिया ने दक्षिण अफ्रीका को एक उम्मीदों से भरे बाज़ार के रूप में बताते हुए कहा था कि "दक्षिण अफ्रीका भारत के बाद एक और बड़ा बाज़ार लगता है."
मार्च 2024 में ये भावना और मज़बूत हुई, जब कंपनी ने बेवको में 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी ख़रीद ली, जिसके पास दक्षिण अफ्रीका, लेसोथो, एस्वातिनी में पेप्सिको से फ्रैंचाइज़ी अधिकार और नामीबिया और बोत्सवाना के लिए डिस्ट्रीब्यूशन अधिकार हैं. इस अधिग्रहण के बाद, बेवको के रेवेन्यू में पेप्सिको के प्रोडक्ट्स का योगदान 15 से बढ़कर 19 फ़ीसदी हो गया, जिससे पता चलता है कि वरुण बेवरेजेज वास्तव में अफ्रीका पर केंद्रित एक नई ग्रोथ स्ट्रैटजी तैयार कर रहा है.
निवेश करने से पहले
भले ही, हमारा एनालिसिस मैनेजमेंट की टिप्पणियों और हाल के क़दमों पर आधारित है, लेकिन वरुण बेवरेजेज़ ने अभी तक अपने अफ्रीका आधारित विस्तार के लिए कोई ठोस रणनीतिक रोडमैप साझा नहीं किया है. ये स्वीकार करना भी महत्वपूर्ण है कि वरुण बेवरेजेज़ की अतीत और भविष्य दोनों की सफलता का ज़्यादातर हिस्सा पेप्सिको के साथ इसकी मज़बूत साझेदारी पर टिका है. दोनों के बीच किसी भी तरह की अनबन का ख़ासा ज़्यादा नकारात्मक प्रभाव हो सकता है. हालांकि, पेप्सिको इस रिश्ते के लिए प्रतिबद्ध है, जिसने हाल ही में वरुण बेवरेजेज़ को अक्टूबर 2025 तक जिम्बाब्वे में और अप्रैल 2026 तक जाम्बिया में "सिम्बा मुंचीज़" के निर्माण, डिस्ट्रीब्यूशन और बिक्री के लिए विशेष फ़्रैंचाइज़ी अधिकार देकर इसका विस्तार किया है. इससे दोनों कंपनियों के बीच मज़बूत व्यापारिक संबंधों को और मज़बूती मिली है.
वरुण बेवरेजेज़ की फ़ंड जुटाने की योजना का मतलब साफ़ है कि कंपनी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर विस्तार करने की तैयारी कर रही है. लेकिन निवेश करने से पहले, कंपनी की वित्तीय स्थिति का गहर एनालिसिस करना और ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि इसकी ग्रोथ की रणनीति आपके निवेश लक्ष्यों के अनुरूप है.
डिस्क्लेमर: ये स्टॉक रेकमंडेशन नहीं है. कृपया निवेश करने से पहले अपनी तरफ़ से पर्याप्त जांच कर लें.
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FaQ: आम तौर पर पूछे जाने वाले सवाल
QIP क्या है?
QIP का अर्थ है क्वालिफ़ाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (Qualified Institutional Placement), कंपनियां अपने शेयर , या दूसरी सिक्योरिटीज़ क्वालिफ़ाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIBs) को बेच कर कैपिटल इकट्ठा करती हैं. QIP घरेलू बाज़ार से और तेज़ी से धन इकट्ठा करने का एक लोकप्रिय तरीक़ा है.
QIP को लेकर कुछ मुख्य प्वाइंट इस तरह हैं:
QIP कैसे काम करता है?
कंपनियां इक्विटी शेयर, पूरी तरह से परिवर्तनीय डिबेंचर या अन्य प्रतिभूतियां जारी करने के लिए QIP का उपयोग कर सकती हैं. QIP शेयरों की निजी बिक्री जैसा है, लेकिन केवल बड़े, संस्थागत निवेशकों के लिए.
कौन QIP ख़रीद सकता है?
केवल क्यूआईबी (QIB), जैसे म्यूचुअल फ़ंड, पेंशन फ़ंड और वेंचर कैपिटल फ़ंड को ही QIP ख़रीदने की अनुमति है.
QIP को कब और क्यों शुरू किया गया?
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 2006 में QIP की शुरुआत की थी, ताकि भारतीय कंपनियों को विदेशी फ़ंडिंग पर बहुत ज़्यादा निर्भर रहने के बजाय घरेलू स्तर पर धन जुटाने में मदद मिल सके.
QIP, IPO से अलग कैसे है?
कंपनियां आईपीओ (IPO) के ज़रिए भी शेयर जारी करती हैं, लेकिन QIP धन जुटाने का तेज़ और सस्ता तरीक़ा है.
QIP कहां जारी होता है?
QIP का इस्तेमाल ज़्यादातर भारत और कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में किया जाता है.