Anand Kumar
कुछ दिन पहले, मैंने एक X पोस्ट पढ़ी जिसमें कहा गया था कि बुज़ुर्गों की तुलना में युवा लोग निवेश के नए-नए विकल्पों को आज़माने के लिए कहीं ज़्यादा उत्साहित रहते हैं. लाइक और रीपोस्ट देख कर लगा कि पोस्ट को काफ़ी पसंद किया गया था. इसमें कुछ भी अनोखा नहीं है. कुछ (शायद बहुत से, यहां तक कि ज़्यादातर) लोग किसी भी नए विचार की तरफ़ आकर्षित होते ही हैं. अपने 'एंटीफ़्रैजाइल' में, नसीम निकोलस तालेब ने इसे 'नियोमेनिया' कहा है. पिछले क़रीब सौ साल में, दुनिया ने बहुत सी नई और अद्भुत चीज़ें देखी हैं. हालांकि, नियोमेनिया से पीड़ित लोग मानते हैं कि इसका उल्टा भी सच है. बदलाव नहीं चाहना या कुछ नया करने की कोशिश नहीं करना इन दिनों एक बुरी बात मानी जाती है, लेकिन जहां तक निवेश का सवाल है, तो मैं कहूंगा कि जो लोग नई चीज़ों को संदेह से देखते हैं, वो कहीं बेहतर रहते हैं.
इस चर्चा की सबसे दिलचस्प बात थी, पुराने बनाम नए निवेशों को बांटने का तरीक़ा. ज़ाहिर था कि फ़िक्स्ड डिपॉज़िट, सोना और रियल एस्टेट को पुराने वाली कैटेगरी में रखा गया था. और म्यूचुअल फ़ंड, क्रिप्टो और पी2पी लेंडिंग को नए के तौर पर एक साथ रखा गया था. मुझे यक़ीन है कि इस वर्गीकरण ने मेरे कई पाठकों को चौंका दिया होगा – मैं तो इस बात से काफ़ी चौंका. आख़िर ये कौन लोग हैं जो सोचते हैं कि म्यूचुअल फ़ंड पी2पी लेंडिंग और क्रिप्टो जैसे होते हैं?
ये वर्गीकरण निवेश के तरीक़ों और उनके इतिहास को लेकर एक बुनियादी गलतफ़हमी दिखाता है. म्यूचुअल फ़ंड, जो क़रीब एक सदी से अस्तित्व में हैं, फ़ाइनांस की दुनिया में नए नहीं हैं. वे मज़बूती से स्थापित और अच्छी तरह से रेग्युलेटेड निवेश का प्रतिनिधित्व करते हैं जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है. उन्हें क्रिप्टोकरेंसी जैसे नए और ग़ैर-भरोसेमंद तरीक़े या पी2पी लेंडिंग जैसे क़र्ज़ के ब्लैक बॉक्स के साथ रखना ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की कमी और फ़ाइनांस की नासमझी दिखाता है. अलग-अलग निवेश के प्रकारों का ये घालमेल ख़ास तौर से चिंताजनक है क्योंकि इससे अनुभवहीन निवेशक इनके रिस्क और रिटर्न की तुलना करने लगेंगे. अक्सर ऐसी बातें निवेश की कथाओं का हिस्सा बन जाती हैं, और लोग उन्हें सिर्फ़ इसलिए वैध मान बैठते हैं और स्वीकार करने लग जाते हैं क्योंकि किसी ने ऐसा कहा है.
इसके अलावा, ये ग़लत क़िस्म का वर्गीकरण वित्तीय साक्षरता और सूचना के प्रसार की एक व्यापक समस्या को भी उजागर करता है, ख़ासकर सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए होने वाला प्रसार. फ़ाइनांस की जटिल बातों को लुभावनी पोस्ट या ट्वीट में अति सरल रूप से पेश करना ख़तरनाक गलतफ़हमियां पैदा कर सकता है. मैं तो मानता हूं कि ज़्यादातर गंभीर लोगों ने सोशल मीडिया से जटिल मुद्दों पर काम की जानकारी पाने की उम्मीद छोड़ दी है.
इस पुराने बनाम नए विवाद में म्यूचुअल फ़ंड का वर्गीकरण एक जटिल विषय है. म्यूचुअल फ़ंड अपने आप में एक पूरा यूनीवर्स हैं, और इसके भीतर भी पुराने बनाम नए टाइप का द्वंद्व मौजूद है. मैं डायवर्सिफ़ाइड इक्विटी फ़ंड को ज़्यादातर डेट फ़ंड्स की तरह 'पुराने' टाइप के तौर पर कैटेगराइज़ करूंगा. ये ऐसे फ़ंड हैं जो लंबे समय से मौजूद हैं और निवेशकों की एक ख़ास ज़रूरत को अच्छी तरह से पूरा करते हैं. ऐसे फ़ंड्स से किसी भी लक्ष्य के लिए पोर्टफ़ोलियो बनाना संभव है. 'नए' टाइप में पिछले कुछ सालों के दौरान बड़ी संख्या में लॉन्च किए गए सेक्टोरल और थीमैटिक फ़ंड आएंगे. इनका निवेशकों की ज़रूरतों से कोई लेना-देना नहीं है. इन्हें फ़ंड कंपनियों की व्यावसायिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. ध्यान दें, मैं पुराने या नए फ़ंड नहीं कह रहा हूं. इसके बजाय, मैं पुराने या नए फ़ंड टाइप कह रहा हूं. कई नए फ़ंड, पुराने टाइप के हैं और निवेशकों के लिए काफ़ी काम के हैं.
महत्वपूर्ण ये है कि 'नए' और 'इनोवेटिव' निवेश विकल्पों के इस आकर्षण को बुनियादी निवेश सिद्धांतों, रिस्क असेसमेंट और डाइवर्सिफ़िकेशन की अहमियत को समझने के महत्व को कम नहीं करना चाहिए. कई साल पहले, वैज्ञानिक रिसर्च का इतिहास पढ़ते समय, मुझे बहुत ही दिलचस्प आइडिया मिला था. महान शोधकर्ता ख़ुद को ग़लत साबित करने के अथक प्रयास से पहचाने जाते हैं. ये शुरू में विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन एक पल रुकेंगे तो समझ जाएंगे. ये इस तरह काम करता है कि आपके पास एक आइडिया है, आप उसकी एक परिकल्पना या हाइपोथेसिस गढ़ते हैं, और उसके बाद आप– पूरी मेहनत और गंभीरता से - ख़ुद को ग़लत साबित करने की कोशिश करते हैं. अगर आप ये कोशिश पूरी ईमानदारी और विनम्रता के साथ कर सकते हैं, तो आप एक अच्छे शोधकर्ता हैं.
अगर आप इसके बारे में सोचें, तो समझ जाएंगे कि ये बात निवेशकों पर भी उतनी ही खरी उतरती है.