लिक्विड फंड
ऐसे डेट फंड जो 91 दिन या इससे पहले मैच्योर होने वाली सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं वे लिक्विड फंड कहे जाते हैं। मौजूदा समय में लिक्विड फंड की औसत पोर्टफोलियो रेंज 3 से 52 दिनों के बीच है। लिक्विड फंड आम तौर पर मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स जैसे कमर्शियल पेपर, कॉल मनी, सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट, कमर्शियल बिल, शार्ट टर्म कॉरपोरेट डिपॉजिट्स और ट्रेजरी बिल्स में निवेश करता है।
क्यों करें लिक्विड फंड में निवेश
लिक्विड फंड रेग्युलर सेविंग बैंक अकाउंट या शार्ट टर्म फिक्स्ड डिपॉजिट से ज्यादा रिटर्न हासिल करने में मदद करते हैं। इसमें जोखिम लगभग न के बराबर होता है और जरूरत पड़ने पर आप कभी भी फंड बेच कर रकम निकाल सकते हैं। आम तौर पर लिक्विड फंड बेचने के बाद एक वर्किंग डे में रकम आपके अकाउंट में आ जाती है। कुछ फंड यह सुविधा भी देते हैं कि आप फंड को तुरंत भुना सकें। हालांकि इसके लिए लिमिट भी तय होती है। यह अधिकतम 50,000 रुपए या निवेश के वैल्यू का 90 फीसदी में से जो भी कम हो वह लिमिट होती है।
जरूरत पड़ने पर कभी भी रकम निकालने की सुविधा इस फंड को आकर्षक बनाती है। इसके अलावा ज्यादा सुरक्षित होने की वजह से हाई नेट वर्थ इंडीविजुअल यानी एचएनआई और कॉरपोरेट के अलावा इंडीविजुअल निवेशक भी अपना इमरजेंसी कॉर्पस या बड़ी रकम लिक्विड फंड में रखते हैं। दूसरे डेट फंड की तुलना में इन फंडों पर ब्याज दरों के उतार चढ़ाव का असर बहुत होता है। क्योंकि ये फंड 91 दिन में मैच्योर होने वाली सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं। हालांकि इन फंडों में क्रेडिट रिस्क का जोखिम होता है। लेकिन इस कैटेगरी में डिफॉल्ट के मामले बहुत कम रहे हैं। इसका कारण यह है कि ये फंड आम तौर पर ऐसे इंस्ट्रमेंट में निवेश करते हैं जिनकी क्रेडिट क्वालिटी काफी बेहतर होती है।
कैसे लगता है टैक्स
लिक्विड फंड पर मिलने वाले रिटर्न को कैपिटल गेन्स माना जाता है और फंड बेचने पर ही टैक्स लगता है। अगर आप लिक्विड फंड में अपना निवेश तीन साल के अंदर बेचते हैं तो गेन यानी रिटर्न आपकी इनकम में जुड़ जाता है और आपके स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स लगता है। वहीं अगर आप 3 साल के बाद बेचते हैं इंडेक्सेशन बेनेफिट के साथ 20 फीसदी टैक्स लगता है।
1 अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष शुरू होने तक निवेशक के हाथ में डिवीडेंट टैक्स फ्री है। हालांकि इस पर 29.12 फीसदी डिवीडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स लगता है जो कि अप्रत्यक्ष रूप से निवेशक से ही वसूला जाता है। डिवीडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स कंपनियों द्वारा डिक्लेसर किए गए डिवीडेंट पर लगता है और कंपनियां टैक्स काट कर ही बाकी रकम निवेशक को देती हैं। उदाहरण के लिए अगर कंपनी 10 रुपए डिवीडेंड डिक्लेयर करती है तो सिर्फ 7 रुपए निवेशक को ट्रांसफर किए जाते हैं। अब 1 अप्रैल, 2020 से कोई भी डिवीडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स नहीं होगा। इसके बजाए अब डिवीडेंड निवेशक की इनकम में जुड़ जाएगा और उसके स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स लगेगा।
कुल मिला कर देखें तो लिक्विड फंड सेविंग अकाउंट या बैंक डिपॉजिट का बेहतर विकल्प है। लिक्विड फंड से रकम आप कभी भी निकाल सकते हैं। इसके अलावा वे सेविंग अकाउंट या बैंक डिपॉजिट से ज्यादा रिटर्न भी देते हैं।
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