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रिटेल निवेशक और डेरिवेटिव का जाल

हर साल ₹63,000 करोड़ गंवा रहे हैं छोटे निवेशक

रिटेल निवेशक और डेरिवेटिव का जाल

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सेबी ने "निवेशकों की सुरक्षा और बाज़ार में स्थिरता बढ़ाने के लिए इंडेक्स डेरिवेटिव ढांचे को मज़बूत करने के उपाय" पर एक परामर्श पत्र जारी किया है. ग़ैर-सरकारी भाषा में इसका मतलब है, इंडेक्स डेरिवेटिव में निवेशकों को बड़े पैमाने पर नुक़सान करने वाली सट्टेबाज़ी को किसी तरह धीमा करने के उपाय. कुछ साल पहले, रेग्युलेटर ने एक पेपर जारी किया था जो काफ़ी प्रसिद्ध रहा (या बदनाम रही, आपके नज़रिए पर निर्भर करता है). हमने उस समय सीखा कि लगभग 89 प्रतिशत डेरिवेटिव ट्रेडर अपने पैसे गंवा देते हैं. हमने F&O जुए के बारे में दूसरी ख़राब बातें भी जानीं, लेकिन वो महज़ हेडलाइन थी. अब, हमारे पास ये नया पेपर है जिसमें काफ़ी सारा ताज़ा डेटा अनालेसिस और कई सुधारों का प्रस्ताव है जिनका उद्देश्य इन समस्याओं को हल करना है.

हालांकि, कुछ पाठक पूरे अनालेसिस की बारीक़ियों में नहीं जा पाएंगे, पर मुझे लगता है कि इस पूरी बात का सार कुछ इस तरह है: वित्त वर्ष 2023-24 के लिए, 92.50 लाख यूनीक इंडिविजुअल और प्रोपराइटरशिप वाली फ़र्मों ने NSE के इंडेक्स डेरिवेटिव सेगमेंट में ट्रेड किया और कुल मिला कर ट्रेडिंग में ₹51,689 करोड़ का घाटा उठाया. इस आंकड़े में लेनदेन की लागत शामिल नहीं है. इसके अलावा, इन 92.50 लाख यूनीक इन्वेस्टरों में से, 14.22 लाख इन्वेस्टरों ने शुद्ध मुनाफ़ा कमाया, यानी लगभग 100 में से 85 ने शुद्ध ट्रेडिंग का घाटा उठाया (स्रोत: NSE डेटा). ऊपर दिए सेबी के अध्ययन में पाया गया कि ट्रेडिंग में घाटे के अलावा, घाटे में चलने वालों ने लेनदेन की लागत के तौर पर ट्रेडिंग के घाटे का अतिरिक्त 23 प्रतिशत ख़र्च किया, जबकि फ़ायदा कमाने वालों ने वित्त वर्ष 22 के दौरान अपने ट्रेडिंग के मुनाफ़े का अतिरिक्त 15 प्रतिशत लेनदेन लागत के तौर पर ख़र्च किया. लेन-देन की लागतों पर विचार करने के बाद, FY24 के नतीजे संभवतः हमारे FY22 के अध्ययन जैसे ही होंगे, जिसमें पाया गया कि 10 में से 9 लोग अपने पैसे गंवा रहे हैं. दूसरी ओर, ये देखा गया है कि बड़े नॉन-इंडिविजुअल खिलाड़ी जो हाई-फ़्रीक्वेंसी वाले एल्गो-बेस्ड प्रोपराइटरी ट्रेडर और/या फ़ॉरेन पोर्टफ़ोलियो इन्वेस्टर (FPI) हैं, वो सामान्य तौर पर, ऑफ़सेटिंग प्रॉफ़िट कमा रहे हैं.

कृपया इसे एक बार फिर ध्यान से पढ़ें. पूरे मामले का सार यही है. क़रीब सभी इंडिविजुअल इन्वेस्टर अपने पैसे गंवा देते हैं, और वो पैसा सीधे हाई-फ़्रीक्वेंसी वाले एल्गो ट्रेडरों, FPI और ऐसी ही दूसरी संस्थाओं के पास चला जाता है. कुछ पाठक 'ऑफ़सेटिंग प्रॉफ़िट' सुन कर हैरान हो सकते हैं क्योंकि वे डेरिवेटिव ट्रेडिंग के ज़ीरो-सम (यानी कुल मिला कर शून्य) वाले स्वभाव को नहीं जानते होंगे. हर मुनाफ़ा किसी और के नुक़सान से आता है. असल में, अगर हम लागतों को अनदेखा कर दें, तो मामला यही है. पर जब आप लागत को भी ध्यान में रखेंगे, तो ये एक नेगेटिव-सम (विशुद्ध धाटे का) खेल हो जाएगा. सेबी के पेपर में ऊपर कही गई बात में लागत का पड़ने वाला बड़ा असर भी स्पष्ट किया गया है.

तो असली बात यही है. बड़े और साधन संपन्न ऑपरेटर रिटेल निवेशकों से पैसे छीन रहे हैं जो इस भ्रम में लगातार हारते रहते हैं कि वे किसी समय अमीर बन सकते हैं. लागतों के साथ, ऊपर बताए नुक़सान 2023-24 में ₹63,600 करोड़ था. इसमें पैसे के बहने की दिशा यही है. छोटे निवेशकों ने बड़े ऑपरेटरों को ₹51,689 करोड़ उपहार में दिए और इन नुक़सानों की भरपाई की सुविधा के लिए ब्रोकर और NSE को अतिरिक्त ₹11,888 करोड़ का भुगतान किया. क्या आप बता सकते हैं कि आर्थिक हित कहां हैं? और क्या रिटेल निवेशक अपने पैसे को यूं ही दे देने की विशुद्ध मूर्खता को समझते हैं?

सवाल ये है कि क्या सेबी के प्रस्तावित उपायों से कोई फ़र्क़ पड़ेगा? बहुत से लोगों को इस पर शक़ है. मेरा ख़याल है कि ऐसे मुद्दों में कभी भी 100 प्रतिशत सफलता या 100 प्रतिशत नाक़ामी नहीं होती है. अगर इन उपायों को लागू किया जाता है, तो निश्चित ही बरबाद करने वाले इस ट्रेड की प्रवृत्ति कम हो जाएगी. टिकट के साइज़ में बढ़ोतरी का मतलब ये भी होगा - अगर सीधे शब्दों में कहें - कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग कुछ अमीर लोगों तक सीमित रहेगी, इसलिए उम्मीद है कि उन्हें उतना नुक़सान नहीं होगा. ये भी संभव है कि कोई बड़ा बदलाव न हो, और सट्टेबाज़ और इंडस्ट्री दोनों ही नए नियमों के बीच कोई न कोई रास्ता खोज लेंगे.

ज़्यादातर प्रस्तावित बदलाव निवेशक के व्यवहार को बदलने की कोशिशें हैं. ये मुझे हार्वर्ड के चार्ली मुंगेर में दिए उस प्रसिद्ध भाषण की याद दिलाता है: "मुझे प्रोत्साहन दिखाएं, और मैं आपको परिणाम दिखाऊंगा." अब सवाल है कि क्या इससे एक्सचेंजों और दलालों के प्रोत्साहन बदलेंगे? क्या इससे निवेशकों के प्रोत्साहन बदलेंगे?

फिर भी, मुझे लगता है कि एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया शुरू हो गई है, जो डेरिवेटिव ट्रेडिंग को बदनाम करना है. मेरा मतलब यही है. जब कोई व्यक्ति डेरिवेटिव ट्रेडिंग में शामिल होता है, तो मैं चाहता हूं कि ट्रेडर के परिवार और दोस्त उसी तरह से प्रतिक्रिया दें जैसे वे उस व्यक्ति के ड्रग्स लेने पर देते. ये पूरा काम एक जुआ है, जो एक लत है. मुझे उम्मीद है कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग की कहानी बदलेगी और ये एक ख़तरनाक और जानलेवा लत के तौर पर देखा जाने लगेगा.


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