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दुविधा में मौक़ा: मार्केट टॉप पर है या फिर बॉटम पर?

मार्केट के उतार-चढ़ाव से निपटने का सही तरीक़ा

दुविधा में मौक़ा: मार्केट टॉप पर है या फिर बॉटम पर?

दुनिया के सबसे अमीर निवेशक वॉरेन बफ़े की एक बात काफ़ी मशहूर है: "जब दूसरे लोग डरे हुए हों तो लालची बनो; जब दूसरे लालची बन जाएं तो डरो."

अब एक सवाल उठता है कि ये 'दूसरे लोग' कौन हैं? ज़वाब - 'दूसरे लोग' हम हैं.

निष्कर्ष निकालना, ज़िम्मेदार ठहराना और वजह बताना

इंसानों के लिए मार्केट में ऑपरेट करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि हम स्वभाव से संभावनाओं वाले नज़रिए के बजाय नियति के भरोसे रहने वाले होते हैं. हम मसलों को ख़त्म करना चाहते हैं, हम वजह जानना चाहते हैं, हम ज़िम्मेदारियां तय करना चाहते हैं, और हम चीज़ों को पक्का करना चाहते हैं. हालांकि, शेयर मार्केट ज़िम्मेदारिया तय करने को लेकर, ख़त्म करने, पक्का करने और नियति के भरोसे रहने के लिए नहीं बने हैं.

उदाहरण के लिए, मार्च 2020 में COVID के दौरान शेयर मार्केट में लगभग 30-35 फ़ीसदी की गिरावट आई. लोग अपने घरों में बंद थे, और हमने बहुत जल्दी निष्कर्ष निकाल लिया कि निवेश और बाक़ी सब चीज़ें बेकार हैं और इंसानों का हाल डायनासोर जैसा होने वाला है. उस दौरान ये निराशावादी सोच हावी थी कि COVID से निपटने में काफ़ी वक़्त लगेगा और इसकी वैक्सीन बनने में कम से कम 10 साल लगेंगे; इसलिए, इक्विटी मार्केट से पैसा निकालना बेहतर रहेगा. इससे पता चलता है कि हम नतीजे गढ़ने में बहुत जल्दबाज़ी करते हैं. नवंबर 2020 के आस-पास इक्विटी मार्केट ने नई ऊंचाइयां छूना शुरू कर दिया था और अक्टूबर 2021 आते-आते, इक्विटी मार्केट (निफ़्टी 50) ने 18,400 का अपना सबसे ऊंचा स्तर छू लिया था.

मार्च 2020 में निष्कर्ष: इंसानों का हश्र डायनासोर जैसा होगा.

अक्तूबर 2021 में निष्कर्ष: इंसान अजेय है.

इंसानी रिश्तों में भी यही होता है. मिसाल के तौर पर, जब लंबे समय से चली आ रही दोस्ती टूट जाती है या कोई रिश्ता बिगड़ जाता है या कोई बड़े ओहदे का कर्मचारी कंपनी छोड़ देता है आदि, तो हम एक निष्कर्ष निकालते हैं, इस पर सोच-विचार करते हैं और ख़ुद से पूछते हैं, "हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ?" लेकिन असलियत ये है कि ऐसी घटनाओं और हालातों के पीछे कोई निश्चित कारण नहीं होता.

हम निष्कर्ष किस तरह निकालने, ज़िम्मेदार ठहराने और वजह बताने में मगन हैं, इसका एक और उदाहरण 'बिज़नस टेलीविजन' से समझा जा सकता है. अगर हम बिज़नस टीवी की बात करें तो वजह बातें बताने को लेकर एक पूरा साम्राज्य खड़ा कर दिया गया है. अगर मार्केट में 2.5 फ़ीसदी की गिरावट आती है, तो कोई न कोई हमेशा इस बात की 'सटीक' वजह बताने के लिए मुस्तैद रहता है कि मार्केट में इतनी बड़ी गिरावट क्यों आई. दरअसल, शेयर मार्केट में हर मिनट और हर घंटे की वजहें बताने की भरमार रहती है. उदाहरण के लिए, हमें ये वजह मिल जाएगी कि सुबह 11 बजे मार्केट में 1.5 फ़ीसदी की गिरावट क्यों आई, दोपहर 12 बजे ये 2.5 फ़ीसदी और क्यों गिर गया और दोपहर 3.30 बजे ये 2.5 फ़ीसदी क्यों गिर गया. अगले दिन फिर से इस बात की 'सटीक' वजह बताई जाती है कि मार्केट में 2.5 फ़ीसदी की और गिरावट क्यों आई और ये अंतहीन कहानी जारी रहती है.

अक्तूबर 2021 में जब मार्केट (निफ़्टी 50) 18,400 के नए ऊंचे स्तर पर पहुंचा, तो भारत को उभरता हुआ सुरक्षित मार्केट और आर्थिक दिक़्क़तों का सामना कर रही बाक़ी दुनिया से अलग माना गया. लेकिन इस उत्साह के बीच, जून 2022 तक इक्विटी मार्केट 15,200 के स्तर तक गिर गया. इस स्तर को सही ठहराने के लिए कई तरह की वजह बताई गईं जैसे कि क्रूड ऑयल की क़ीमतें 125 डॉलर प्रति बैरल तक का उछाल, रूस-यूक्रेन युद्ध, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध है, अमेरिका में ब्याज़ दरों में बढ़ोतरी, RBI द्वारा रेपो रेट में बढ़ोतरी और दुनिया में मंदी आने का ख़तरा आदि. फिर नवंबर 2022 तक, मार्केट (निफ़्टी 50) ने 18,900 के ऊंचे स्तर को छू लिया.

ध्यान देने वाली बात है कि हम मार्केट की चाल और स्तर को लेकर कई वजह बता सकते हैं; लेकिन असल में, शेयर मार्केट ज़िम्मेदार ठहराने को लेकर, समापन, निश्चितता और नियति के लिए उत्तरदायी नहीं हैं.

नियतिवादी होने के बजाय संभाव्यतावादी होना

क्रिकेट का उदाहरण लें; हम सभी भारत-पाकिस्तान के मैच उत्सुकता से देखते हैं, लेकिन हममें से कितने लोग इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया के मैच को उतनी ही दिलचस्पी से देखते हैं? क्या हम भारत-पाकिस्तान का मैच खुले दिमाग़ से और भावनाओं में बहे बिना देख सकते हैं? मैच के दौरान, अगर भारत एक अच्छा ओवर करता है, तो हम तुरंत निष्कर्ष निकालते हैं कि हम मैच जीत जाएंगे. फिर, अगर हम आगे दो विकेट खो देते हैं, तो हम गुस्से में प्रतिक्रिया देते हैं कि हम मैच हार जाएंगे. हम दोषारोपण करते रहते हैं कि हमने इस खिलाड़ी को क्यों लिया, ये एक अच्छी टीम नहीं है, और इसमें अंतरराष्ट्रीय लीग मैचों में खेलने की क्षमता नहीं है आदि. तो, एक आम भारत-पाकिस्तान मैच में हम हर अच्छे ओवर में निष्कर्ष निकालते हैं कि हम जीतेंगे और हर ख़राब ओवर में नतीजा निकाल लेते हैं कि हम हार जाएंगे.

हालांकि, इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया का मैच क्रिकेट के जानकारों के रूप में देखा जाता है. हम क्रिकेट के जानकार के रूप में उस मैच का आनंद क्यों लेते हैं? हम उस मैच का आनंद लेते हैं क्योंकि हम कोई निष्कर्ष नहीं निकाल रहे होते हैं और मैच को खुले मन से देख रहे होते हैं.

इंसानों को शेयर मार्केट के साथ तालमेल बैठाना बेहद मुश्किल लगता है, क्योंकि वे नियतिवादी नतीजे चाहने वाले स्वाभाव के होते हैं. पिछले कई साल में शेयर मार्केट से मैंने ये सीखा है कि "आपको नियतिवादी नहीं बनना चाहिए; आपको असल में संभाव्यतावादी बनना चाहिए". इसका मतलब है कि खुले दिमाग से सोचना कि ये भी हो सकता है और वो भी हो सकता है -- यानि सभी संभावित परिस्थितियों के लिए दिमाग खुला रखना.

इसलिए, सफल होने के लिए खुले दिमाग़ वाला होना, संभाव्यतावादी होना और स्कोर पर नज़र रखने के साथ-साथ विजेता और हारने वाले की घोषणा न करना बेहद ज़रूरी है.

'सभी संभावनाओं के लिए दिमाग़ खुला रखें और सभी संभावित परिस्थितियों के लिए तैयार रहें'.

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इसका ज़वाब 'और' में है, 'या' में नहीं

पारंपरिक अर्थशास्त्र कहता है कि इंसान तर्कसंगत या तार्किक होते हैं. हालांकि, जिन अर्थशास्त्रियों ने हमें सिखाया है कि इंसान होमो-इकोनॉमिकस होते हैं, उन्होंने अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार उन दिग्गजों को दिया है जो इन सिद्धांतों को नहीं मानते हैं. क्या आप जानते हैं कि पिछले 15 साल में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार उन लोगों को दिया गया है जो मानव स्वाभाव या व्यवहार का अध्ययन करते हैं, न कि उन लोगों को जो डिमांड और सप्लाई डायनामिक्स में विशेषज्ञता रखते हैं?

अर्थशास्त्र हमें सिखाता है कि जब क़ीमत गिरती है तो डिमांड बढ़ जाती है; और ठीक इसके उलट, डिमांड कम होती है तो क़ीमत घाट जाती है. क्या शेयर मार्केट में भी ऐसा होता है? क्या रियल एस्टेट में ऐसा होता है? क्या रोलेक्स घड़ियों और मर्सिडीज़ कारों की डिमांड को लेकर ऐसा होता है?

असल में, 'इंसान तर्कसंगत या तार्किक नहीं होते हैं, बल्कि वे भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक होते हैं'.

अगर मैं आपसे पूछूं कि दुनिया के नक्शे में अमेरिका हमारे पूर्व दिशा में है या पश्चिम में, तो आपका जवाब क्या होगा? बुद्धिमान लोगों का ज़वाब ये होगा कि दुनिया गोल है, और दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि आप किस शहर की यात्रा कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, अगर हम सिंगापुर एयरलाइंस की फ़्लाइट में सवार होकर सैन फ़्रांसिस्को जाते हैं, तो अमेरिका हमारे पूर्व में पड़ेगा. और अगर हम ब्रिटिश एयरवेज़ या यूनाइटेड एयरलाइंस की फ़्लाइट लेते हैं और न्यूयॉर्क में जॉन एफ़ कैनेडी (JFK) एयरपोर्ट की ओर जाते हैं, तो ये हमारे पश्चिम में पड़ेगा. इसी तरह, शेयर मार्केट और जीवन के मामले में कोई स्पष्ट ज़वाब नहीं है. इसलिए, निवेश और जीवन दोनों के मामले में ज़वाब 'या' नहीं है, ज़वाब 'और' है.

हमें किसी घटना या स्थिति के हर पहलू के लिए स्पष्ट ज़वाब जानने की ज़रूरत नहीं है.

शेयर मार्केट एक साइन वेव की तरह होता है, जिसकी सेंटर लाइन 45 डिग्री ऊपर की ओर झुकी होती है

इन्वेस्टमेंट की दुनिया में एक आम सवाल है कि मार्केट टॉप पर हैं या बॉटम पर. हम इस बात की परवाह नहीं करते कि अतीत में मार्केट ऊपर था, नीचे था या सपाट था; हम इस बात की ज़्यादा परवाह करते हैं कि अगर हम आज निवेश करते हैं, तो क्या हमें बेहतरीन रिटर्न मिलेगा या नहीं. हम सही ज़वाब जानना चाहते हैं और दुर्भाग्य से, लोग 'सही ज़वाब' दे भी देते हैं.

मार्केट का काम उन लोगों से पैसा कमाना है जो आपको सही ज़वाब देते हैं. उदाहरण के लिए, अगर मैं ज़ोर देकर कहूं कि कल शेयर मार्केट ऊपर जाएगा, तो इस बात की बहुत ज़्यादा संभावना है कि मार्केट मेरे दावे के बिलकुल उल्टा व्यवहार करेगा. शेयर मार्केट एक साइन वेव की तरह होता है - एक क्रेस्ट (टॉप) के बाद एक थ्रू (बॉटम), उसके बाद एक और क्रेस्ट, और ये एक महासागर की तरह ही उतार-चढ़ाव दिखाता है. भौतिकी (फ़िज़िक्स) के उलट (जहां साइन वेव में सेंटर लाइन ज़ीरो-डिग्री और सपाट होती है), शेयर मार्केट एक ऐसी साइन वेव है जिसमें सेंटर लाइन 45 डिग्री ऊपर की ओर झुकी हुई होती है. टेक्निकल एनालिसिस को मानने वाले विशेषज्ञों द्वारा हमेशा ये कहने की संभावना होती कि लॉन्ग-टर्म में मार्केट हायर हाई और हायर लो बनाते हैं.

हम इस बात पर बहस करते रहते हैं कि मार्केट टॉप पर है या बॉटम पर; लेकिन अगर हम लॉन्ग-टर्म में अतीत को देखें तो मार्केट हमेशा टॉप पर होता है, और अगर हम लॉन्ग-टर्म में भविष्य को देखें तो मार्केट हमेशा बॉटम पर होता है.

इसलिए, जब हम निवेश का फ़ैसला लेने की कोशिश कर रहे होते हैं, तो हम हमेशा ये तय करने की कोशिश कर रहे होते हैं कि क्या इक्विटी मार्केट बॉटम पर है और क्या ये निवेश करने के लिए एक अच्छा लेवल है. सही नज़रिया ये है कि इक्विटी मार्केट का टॉप या बॉटम तय करने के बजाय हमें खुले दिमाग़ और संभाव्यतावादी सोच के साथ फ़ैसला लेना चाहिए. हम कभी भी टॉप या बॉटम लेवल के क़रीब नहीं होते हैं; ये इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे किस नज़रिये से देख रहे हैं.

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दुविधा में भी सहज रहना

एक सोचने वाली बात - क्या बिज़नस ऑफ़लाइन है या ऑनलाइन? क्या ये फ़िज़िकल होना चाहिए या डिजिटल? बायजूस (Byju's) का प्लान डिजिटल होने का था, लेकिन अब उनके पास क्लासरूम भी हैं, पेपरफ्राई (Pepperfry) एक डिजिटल सुविधा थी, लेकिन अब उनके पास फ़र्नीचर स्टोर भी हैं. इसलिए, बिज़नस फ़िज़िकल या डिजिटल नहीं, बल्कि 'फ़िज़िटल' होता है.

इसी तरह, इंसान का जीवन एक ब्लैक-या-वाइट सफ़र नहीं है, बल्कि ये ग्रे होता है. पोर्टफ़ोलियो बनाने को लेकर हमेशा एक बहस छिड़ी रहती है कि हमें वैल्यू स्टॉक चुनने चाहिए या ग्रोथ स्टॉक, डिफेंसिव स्टॉक या साइक्लिक स्टॉक, या फिर लार्ज-कैप और स्मॉल-कैप स्टॉक में से कोई एक चुनना चाहिए. आइए BSE 500 इंडेक्स (पूरे भारतीय इक्विटी मार्केट का प्रतिनिधि) का उदाहरण लेकर समझते हैं. इसमें लार्ज-, मिड- और स्मॉल-कैप स्टॉक शामिल हैं और ये BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) के मार्केट कैप में लगभग 96 फ़ीसदी योगदान देता है. इसलिए, जैसा कि ये इंडेक्स पूरे भारतीय इक्विटी मार्केट को दिखाता है, तो हमारा पोर्टफ़ोलियो भी बेहतर स्टॉक के चुनाव के साथ आदर्श रूप से कुछ ऐसा ही होना चाहिए. इसलिए, इसका ज़वाब 'ये' या 'वो' नहीं है. इसका ज़वाब है 'दोनों', क्योंकि मार्केट में हर तरह की स्थितियां मौज़ूद हैं, और हमें दो तरह के विकल्प बनाने की ज़रूरत नहीं है. स्पेक्ट्रम के सभी पहलुओं में से सबसे बेहतर चुनना चाहिए. इसलिए, कभी-कभार 'बहुत अच्छा' करने के बजाय स्थिरता के साथ 'अच्छा' करना ज़्यादा बेहतर है.

प्रसिद्ध लेखक और ओगिल्वी एंड माथर (Ogilvy and Mather) ग्रुप के वाईस-चेयरमैन -- रोरी सदरलैंड (Rory Sutherland) -- का एक प्रसिद्ध कथन है कि, "एक अच्छे आइडिया के उलट भी एक अच्छा आइडिया हो सकता है."

इसलिए, कोई भी आईडिया अच्छा या बुरा नहीं होता है; ये सिर्फ़ विकल्प होते हैं. जब 'ब्लैक और वाइट' हमारी रातों की नींद हराम कर दे, तो हमें 'ग्रे' (न सिर्फ़ काला न पूरा सफ़ेद बल्कि दोनों का मिलाजुला रंग) में जीना सीखना चाहिए.

उदाहरण के लिए, अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ बढ़िया डिनर के लिए बाहर जाना चाहते हैं और इस दुविधा में हैं कि लेबनानी खाना खाएं या चाइनीज़, तो इस सवाल का ज़वाब ये है कि 'कोई भी ज़वाब सही या गलत नहीं है'. दोनों तरह के व्यंजन अच्छे होते हैं, और ये हमारी पसंद पर निर्भर करता है.

इसी तरह, बिज़नस संबंधी फ़ैसले लेते समय या बीमारी का इलाज़ करवाते समय, क्या हम 100 फ़ीसदी जानकारी के साथ फ़ैसला ले सकते हैं? ज़्यादातर अनुभवी लोग ये कहते हैं कि सबसे अच्छे फ़ैसले 60 फ़ीसदी जानकारी के साथ लिए जाते हैं. असल में, अगर हम 100 फ़ीसदी जानकारी के साथ फ़ैसला लेने का इंतजार करेंगे, तो संभावना है कि हम या तो बहुत देर कर चुके होंगे या हम ये मानने की ग़लती कर रहे होंगे कि हमारे पास 100 फ़ीसदी जानकारी है.

एक प्रसिद्ध अमेरिकी दार्शनिक, एफ. स्कॉट फिट्सजेराल्ड (F Scott Fitzgerald) ने एक बार ये कहा था कि, 'सबसे बेहतर अक्लमंदी तब नज़र आती है जब आपके दिमाग़ में दो विरोधाभासी विचार एक ही समय में चल रहे हों, और फिर भी आप अपना काम करने की क्षमता को क़ायम रखें.'

निष्कर्ष

हम इंसान के रूप हर चीज़ का समापन चाहते हैं और निष्कर्ष निकालना चाहते हैं. हालांकि, मार्केट और जीवन में कोई टॉप या बॉटम लेवल, अच्छा या बुरा, और सही या ग़लत नहीं होता है; सिर्फ़ हमारा नज़रिया होता है. "सभी संभावनाओं के बारे में सोचें, और साथ ही इस बात के लिए तैयार रहें कि कुछ भी हो सकता है." अक्सर, हम इस बात में उलझे रहते हैं कि हमें डेट में निवेश करना चाहिए या इक्विटी में. इसका ज़वाब ये है कि हमें दोनों की ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि मार्केट डायनामिक होता है.

ऐसी बहुत कम चीज़ें होती हैं जहां हम चुनने पर ज़ोर देते हैं, पर सच तो ये है कि 'चुनना' बहुत मायने नहीं रखता. इसका ज़वाब अंग्रेजी का 'Or' नहीं बल्कि हिंदी का 'और' है.

जीवन और मार्केट में काला और सफ़ेद दोनों रंग शामिल हैं. इसी धूसर रंग में जीना सीखें.

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