फ़र्स्ट पेज

AI क्रांति की दिशा क्या होगी

आइए समझते हैं कि कैसे AI की हाइप ट्रेन अपना सफ़र शरू होने से पहले कई बार पटरी से उतरेगी.

AI क्रांति की दिशा क्या होगीAnand Kumar

back back back
6:03

कुछ दिन पहले मैंने दो रिपोर्ट पढ़ीं जिनका विषय था, आने वाले समय में AI के मायने. इनमें से एक न्यूज़ रिपोर्ट थी जो बता रही थी कि कैसे भारतीय IT सर्विस इंडस्ट्री में अब लगभग हर नए सौदे में AI की मौजूदगी है. इस लेख में टेक आउटसोर्सिंग की बड़ी कंपनियों के क्लायंट्स के AI से जुड़े ख़र्च में 25-30 प्रतिशत ग्रोथ का अंदाज़ा लगाया था. इस ग्रोथ की कहानी को पुख़्ता करने के कुछ और ब्यौरे दिए गए थे, और कुल मिलाकर, ये बातें AI के इस्तेमाल पर मौजूदा कथानक के मुताबिक़ ही थीं कि प्रतिस्पर्धी और कुशल बने रहने की चाह रखने वाली कंपनियों के लिए AI बेहद ज़रूरी टूल बनने जा रहा है.

संयोग से, उसी दिन, मैंने अमेरिकी बैंक गोल्डमैन सैक्स के टॉप ऑफ़ माइंड जर्नल में 'जनरल AI: बहुत ज़्यादा ख़र्च, बहुत कम फ़ायदा?' शीर्षक से एक रिपोर्ट पढ़ी. भले ही, शीर्षक के अंत में सवालिया निशान लगा है, मगर ये लेख इस बात का एक शानदार नमूना है कि क्यों AI की हाइप असल में, या कम से कम आने वाले लंबे समय तक, ज़्यादातर हाइप ही रहेगी. लेख की शुरुआत इस बात से होती है, "टेक जायंट और दूसरी कंपनियां आने वाले सालों में AI कैपिटल एक्सपेंडिचर पर $1 ट्रिलियन से ज़्यादा ख़र्च करने जा रही हैं, लेकिन अभी तक इसके ज़्यादा नतीजे नहीं दिखे हैं. तो, क्या ये बड़ा ख़र्च कभी नतीजे देगा?" इसके बाद लेख का पहला पैराग्राफ़ लिखा था.

इस लेख के विश्लेषण का ज़्यादातर हिस्सा उन लोगों के साथ बातचीत पर आधारित है, जिनसे आप AI और उसके असर पर प्रासंगिक राय की उम्मीद रख सकते हैं. इनमें से एक MIT के प्रोफ़ेसर डेरॉन ऐसमोग्लू हैं, जिन्होंने AI के असर को लेकर गहरी शंका व्यक्त की है. उनका अनुमान है कि अगले दशक में केवल 25 प्रतिशत AI से ऑटोमेट हो सकने वाले काम ही आर्थिक तौर पर व्यवहार्य (Viable) होंगे, और ये सभी कामों का 5 प्रतिशत से भी कम होगा. ध्यान दें कि वो तकनीकी तौर पर व्यवहार्य होने के बारे में नहीं बल्कि आर्थिक तौर पर व्यवहार्य होने की बात कर रहे हैं. ऐसमोग्लू को शक़ है कि AI उतनी तेज़ी से या असरदार ढंग से आगे बढ़ सकेगा, जितनी उम्मीद लोग करते हैं. ये बात, समय के साथ टेक्नोलॉजी के ज़्यादा क़ारगर और कम ख़र्चीला होने के ऐतिहासिक पैटर्न को चुनौती देती है. उनका एक सवाल ये भी है कि क्या AI को अपनाने से नए काम और प्रोडक्ट पैदा होंगे, और इस पर वो तर्क देते हैं कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है. इसके नतीजे में उनका अंदाज़ा है कि अगले दस साल में AI से अमेरिकी उत्पादकता में केवल 0.5% तथा GDP में 0.9% की बढ़ोतरी होगी.

गोल्डमैन में ग्लोबल इक्विटी रिसर्च के प्रमुख जिम कोवेलो का तर्क भी कुछ ऐसा ही है. उनका तर्क है कि क़रीब $1 ट्रिलियन की ग्रोथ और ऑपरेटिंग कॉस्ट को सही साबित करने के लिए, AI को मुश्किल और दुरूह समस्याएं हल करनी चाहिए, जिसे लेकर उनका मानना ​​है कि इसे ऐसा करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है. कोवेलो AI की तुलना इंटरनेट जैसे असल बदलाव लाने वाले आविष्कारों से करते हैं, जिसने अपने शुरुआती दौर में ही ऊंची-लागत वाले समाधानों को कम-लागत के विकल्पों से बदल दिया था. उन्हें इस बात पर शक़ है कि AI की लागत इतनी कम हो जाएगी कि बहुत से कामों के ऑटोमेशन को कम ख़र्चीला बनाया जा सकेगा. उनके मुताबिक़, इसकी ऊंची शुरुआती लागत और GPU चिप्स जैसी अहम ज़रूरतों की जटिलता, इस क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा सीमित कर सकता है. एक निवेश के तौर पर, उन्हें कंपनी की वैल्यूएशन बढ़ाने की AI की क्षमता पर भी संदेह है. उनका सुझाव है कि एफ़िशिएंसी के किसी भी फ़ायदे को प्रतिस्पर्धा ढक सकती है, और AI से रेवेन्यू के बढ़ने का रास्ता भी साफ़-स्पष्ट नहीं है. उनका एक सवाल ये भी है कि क्या ऐतिहासिक डेटा पर खड़े किए गए AI के मॉडल कभी भी इंसानों के सबसे मूल्यवान कौशल को असल में दोहरा पाएंगे, लेकिन ये एक अलग कहानी है.

अब तक, AI में अपने अनुभव और वैल्यू रिसर्च में इसके साथ काम के दौरान, मुझे लगता है कि ये कई व्यवसायों और पेशों में इस्तेमाल होने वाला एक बेहतरीन टूल है. हालांकि, अगर आप मुझसे पूछें कि AI की क्षमता को देखते हुए इसमें जो पैसा लगाया गया है और ज़ाहिर तौर पर आगे लगेगा, क्या वो सही है, तो इसका जवाब हवा में ही होगा. इतना ही नहीं, शक़ का नज़रिया भी कतई ग़लत नहीं होगा.

बेशक़, ये कहना इस समय के मूड के खिलाफ़ जाता है. दरअसल, जीवन में हमारी अलग-अलग भूमिकाओं में - निवेशक, पेशेवर, व्यवसायी, या (सबसे ज़्यादा) माता-पिता के तौर पर ये सोचना कि AI का हमारे बच्चों के करियर पर क्या असर होगा - हम ये महसूस करने से ख़ुद को रोक नहीं पाते हैं कि AI हमारे दौर की बहुत बड़ी बात है.

हालांकि, कहानी के सभी पक्षों को जानना अहम होता है न कि केवल आम सहमति पर ही राज़ी हो जाना. नई तकनीकों को बड़ा असर दशकों बाद होता है, और उसके बाद भी, ये असर ठीक वैसे कभी भी नहीं होते जो शुरुआत में दिखाए जाते हैं.

निश्चित तौर पर AI एक क्रांति है, लेकिन क्रांतियां कभी भी अपेक्षित दिशा में नहीं जाती हैं.

ये भी पढ़िए - बेन ग्राहम: निवेश के सबसे मशहूर स्टाइल के जनक


टॉप पिक

मोमेंटम पर दांव लगाएं या नहीं?

पढ़ने का समय 1 मिनटवैल्यू रिसर्च down-arrow-icon

Mutual funds vs PMS: क्या अच्छा है आपके पैसे के लिए?

पढ़ने का समय 2 मिनटवैल्यू रिसर्च

मल्टी-एसेट फ़ंड आज दूसरी सबसे बडी पसंद हैं. क्या इनमें निवेश करना चाहिए?

पढ़ने का समय 3 मिनटपंकज नकड़े

Flexi-cap vs Aggressive Hybrid Fund: ₹1 लाख कहां निवेश करें?

पढ़ने का समय 3 मिनटवैल्यू रिसर्च

क्या रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का बोनस शेयर इश्यू वाक़ई दिवाली का तोहफ़ा है?

पढ़ने का समय 3 मिनटAbhinav Goel

वैल्यू रिसर्च धनक पॉडकास्ट

updateनए एपिसोड हर शुक्रवार

Invest in NPS

NPS की त्रासदी

नया यूनीफ़ाइड पेंशन सिस्टम दो दशकों के दौरान नेशनल पेंशन सिस्टम के खोए हुए अवसरों का नतीजा है.

दूसरी कैटेगरी