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फ़िनफ़्लूएंसरों पर SEBI के एक्शन के निवेशकों के लिए क्या हैं मायने?

नए नियम सोशल मीडिया के फ़ाइनांस इन्फ़्लूएंसरों और ब्रोकरों के बीच पैसों के लेनदेन को रोकेंगे. पर क्या इसके अलावा भी कुछ रुक पाएगा?

फ़िनफ़्लूएंसरों पर SEBI के एक्शन के निवेशकों के लिए क्या हैं मायने?Anand Kumar

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6:09

क़रीब एक साल पहले, मार्केट रेग्युलेटर सेबी ने 'फ़िनफ़्लुएंसरों' (फ़ाइनांस+इन्फ़्लुएंसर = सोशल मीडिया के ऐसे व्यक्ति या संस्थाएं जो फ़ाइनांस पर लोगों को पैमाने पर प्रभावित करते हैं) के असर को कम करने के लिए नियमों पर एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया था. बुनियादी तौर पर, इसका मक़सद सेबी-रजिस्टर्ड इंटरमीडियेरी /रेग्युलेटेड संस्थाओं और बिना रजिस्ट्रेशन वाली संस्थाओं (फ़िनफ़्लुएंसर सहित) के बीच पैसों या दूसरे किसी भी तरह के लेनदेन पर रोक लगा कर फ़िनफ़्लुएंसरों की कमाई को रोकना था. अब, ये नियम बन गए हैं.

नए नियम कहते हैं कि 'बोर्ड द्वारा विनियमित (रेग्युलेटेड) व्यक्ति और ऐसे व्यक्तियों के एजेंट किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं रखेंगे, जैसे कि धन या धन जैसे मूल्य से जुड़ा कोई लेनदेन, किसी ग्राहक का रेफ़रल, सूचना प्रौद्योगिकी सिस्टम के बीच बातचीत या एक जैसी प्रकृति या चरित्र का कोई अन्य संबंध, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, किसी दूसरे व्यक्ति के साथ, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सलाह या सिफ़ारिश देता है या प्रतिभूति या प्रतिभूतियों के संबंध में या उससे संबंधित रिटर्न या प्रदर्शन का कोई निहित या स्पष्ट दावा करता है, जब तक कि बोर्ड द्वारा ऐसी सलाह/सिफ़ारिश/दावा करने की अनुमति न दी गई हो.'

व्यवहार में इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति जो निवेश की सलाह या सिफ़ारिशें देता है, फिर चाहे वो परोक्ष रूप से ही क्यों न दी गई हों, उसे कोई पैसा नहीं मिल सकता, या स्टॉक ब्रोकर या ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म और बाज़ार के दूसरे सहभागियों या किन्हीं दूसरी सेबी-रेग्युलेटेड संस्थाओं के साथ उसका कोई संबंध नहीं हो सकता. ये ऐसे लोगों या संस्थाओं के बीच आकस्मिक संबंध होने को भी रोकता है.

जहां तक ​​इस बदलाव की बात है, सेबी ने फ़िनफ़्लुएंसरों के रेवेन्यू मॉडल (कमाई के तरीक़े) पर चोट करने के अपने वादे को पूरा किया है. हालांकि, जब मैं तरह-तरह के फ़िनफ़्लुएंसरों को देखता हूं, तो ये महसूस करने से ख़ुद को रोक नहीं पाता हूं कि असलियत में इस क़दम से किसी सलाह के सही या ग़लत होने से अंजान लोगों के रिस्क पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा.

मैं जो कह रहा हूं उसे समझने के लिए, आप यूट्यूब या इंस्टाग्राम पर जाएं और कुछ आसान से शब्द खोजें जिन्हें कोई नौसिखिया इस्तेमाल करेगा, जैसे 'अभी ख़रीदने के लिए बेस्ट स्टॉक'. एक 'ताज़ा' नज़रिया पाने के लिए, इनकॉग्नीटो/प्राइवेट विंडो का इस्तेमाल करें. जो भी वीडियो/रील सामने आती हैं उन्हें देखें, चाहे ये आपको कितनी ही अजीब क्यों न लगें. फिर, अगले कुछ घंटों या दिनों में, इनकी एल्गोरिदम जो भी आपके सामने पेश करे, उसे देखते रहें. आप नोटिस करेंगे कि वहां ऐसे बहुत से फ़िइनफ़्लुएंसर हैं जिनके पास दर्शकों की बड़ी संख्या है और पैसे बनाने के बहुत से मौक़े हैं. फाइनेंस को लेकर प्रभावित करने वाले ऐसे तमाम चैनल हैं जिनके फ़ॉलोअर लाखों में हैं और जिनके हर एक वीडियो को लाखों-लाख लोग देखते हैं. ये लोग विज्ञापन और दूसरे तरीक़ों से अपने दर्शकों से सीधे पैसे कमा सकते हैं. इन्हें किसी ब्रोकर से पैसे लेने की ज़रूरत ही नहीं है.

सच कहें तो, इंटरनेट पर सीखने लायक़ बहुत सी बेहतरीन बातें हैं. देखा जाए, तो हाल के कुछ सालों में होने वाली ये सबसे अच्छी घटनाओं में से एक होगी. आजकल हम सभी ऑनलाइन सीख रहे हैं और जानकारियां साझा कर रहे हैं, और वाक़ई ये सब बहुत बढ़िया है. ज़रा सोचिए - आप बढ़िया खाना बनाना सीखना चाहते हैं या अपने बालों को स्टाइल करना चाहते हैं या अपनी कार के एयर फ़िल्टर को साफ़ करना चाहते हैं या घर पर मशरूम उगाना चाहते हैं? इंटरनेट पर थोड़ा सा सर्च करें और आपको मुफ़्त में यूट्यूब पर ये सब करने का तरीक़ा बताने वाले कई लोग मिल जाएंगे. ये बहुत आश्चर्यजनक है कि वहां कितनी अच्छी जानकारियां उपलब्ध हैं, और बहुत से रोज़मर्रा के कामों के लिए, ये जादू की तरह काम करती हैं. अपने लैपटॉप की मेमोरी को अपग्रेड करने की ज़रूरत है? इसके लिए कोई न कोई बेहतरीन वीडियो तो आपको मिल ही जाएगा.

लेकिन बात ये है—जहां ये छोटी-छोटी चीज़ें जल्दी से सीखने के लिए बहुत अच्छी है, वहीं इससे ज़्यादा जटिल कामों को सीखना-समझना आसान नहीं हो जाता. कभी-कभी, किसी बात को समझने के लिए कुछ हद तक बैकग्राउंड की जानकारी ज़रूरी होती है, ताकि आप समझ सकें कि दी जाने वाली सलाह असल में अच्छी है या नहीं. और सच कहें, तो स्वास्थ्य और पर्सनल फ़ाइनांस जैसी बातों को लेकर ख़राब सलाह को मानना वाक़ई बहुत बुरा हो सकता है. इसमें कोई शक़ नहीं कि सोशल मीडिया की निगरानी अपने आप में बहुत बड़ा काम है, जिसकी सफलता की कोई गारंटी नहीं है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पड़ने वाले असर जैसा गंभीर मसला भी बना रहता है. हालांकि, फ़िनफ़्लुएंसर और सेबी द्वारा रेग्युलेट की जाने वाली संस्थाओं के बीच किसी तरह के कमर्शियल लिंक को तो खत्म किया ही जा सकता है.

इस समय, केवल यही वो कार्रवाइयां हैं जिनके लिए सेबी बोर्ड ने मंज़ूरी दी है. असल में नियम बनाना और उन पर निगरानी रखना एक लंबी कहानी होगी. इंटरनेट पर आप जो देखते हैं उस पर असलियत में कोई असर पड़ता है या नहीं, ये कहानी और भी लंबी होगी.

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