कुछ लोग सिर्फ़ अपने फ़ंड का रिटर्न ही मॉनिटर करते हैं, वहीं कुछ और लोगों को पूरा स्टेस्टेटिकल अनालेसिस चाहिए होता है. दूसरी तरह के लोगों के लिए, हम वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन के फ़ंड पेज और फ़ंड स्क्रीनर टूल पर कई स्टेटेस्टिकल (सांख्यिकीय) तरीक़े पब्लिश करते हैं. ये तरीक़े किसी फ़ंड के रिस्क और रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न का अनालेसिस करने में मदद करते हैं. यहां इन तरीक़ों का संक्षिप्त ब्यौरा दिया गया है और ये भी बताया गया है कि हम उन्हें कैसे कैलकुलेट करते हैं.
मीन रिटर्न (Mean return) (%)
इस फ़ंड का एवरेज मंथली रिटर्न (एनुअलाइज़्ड) तीन साल के ट्रेलिंग रिटर्न के दौरान.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां,
विचार किए गए फ़ंड के रिटर्न के प्रत्येक उदाहरण के योग का प्रतीक है | |
फ़ंड पोर्टफ़ोलियो को हर महीने मिलने वाला रिटर्न है | |
वो आंकड़ा है, जितने महीनों का इसमें विचार किया गया है |
एक फ़ंड जिसके मीन रिटर्न की वैल्यू ज़्यादा है उसने दूसरों से बेहतर प्रदर्शन किया है.
स्टैंडर्ड डीविएशन (%)
स्टैंडर्ड डीविएशन किसी फ़ंड का पूरा उतार-चढ़ाव मापता है और इसका आधार फ़ंड के पिछले तीन साल का मासिक रिटर्न होता है. अगर आप मीन रिटर्न में से स्टैंडर्ड डीविएशन को जोड़ या घटा देते हैं, तो इससे आपको वो रेंज मिलेगी जिसके बीच में आमतौर पर फ़ंड के रिटर्न रहे होते हैं.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां,
विचार किए गए फ़ंड के रिटर्न के प्रत्येक उदाहरण के योग का प्रतीक है | |
फ़ंड पोर्टफ़ोलियो को हर महीने मिलने वाला रिटर्न है | |
ये फ़ंड पोर्टफ़ोलियो के रिटर्न का मीन है | |
वो आंकड़ा है, जितने महीनों का इसमें विचार किया गया है |
एक फ़ंड जिसका स्टैंडर्ड डीविएशन कम हो, वो फ़ंड के रिटर्न में कम उतार-चढ़ाव दिखाता है, वहीं ऊंचे स्टैंडर्ड डीविएशन का मतलब रिटर्न में ज़्यादा उतार-चढ़ाव होता है, क्योंकि ये रिटर्न की ज़्यादा बड़ी रेंज में हुआ होता है.
68-95-99.7 रूल
ये स्टेटेस्टिकल साइंस का एक अनुभव वाला नियम है जो एक सामान्य डिस्ट्रीब्यूशन के अनुमानित आकलन के बीच में रहने के लिए वैल्यू का प्रतिशत तय करता है.
एप्लीकेशन - फ़ंड रिटर्न के सामान्य डिस्ट्रीब्यूशन को देखते हुए, 68% बार फ़ंड रिटर्न मीन के एक स्टैंडर्ड डीविएशन (यानी, +1 और -1 x SD दोनों) के भीतर होते हैं, 95% दो स्टैंडर्ड डीविएशन (यानी, दोनों) के भीतर होते हैं मीन के +2 और -2 x SD), और 99.7% मीन के तीन स्टैंडर्ड डीविएशन (यानी, +3 और -3 x SD दोनों) के भीतर हैं.
वेरिएंस (Variance) (%)
वेरिएंस और कुछ नहीं मगर स्टैंडर्ड डीविएशन वैल्यू का स्क्वायर होता है. दोनों ही ये मापने के तरीक़े हैं कि फ़ंड की एवरेज वैल्यू से उसके रिटर्न में कितना बदलाव होता है.
कम वेरिएंस फ़ंड के रिटर्न में कम उतार-चढ़ाव दिखाता है, वहीं हाई वेरिएंस का मतलब होता है रिटर्न में ज़्यादा उतार-चढ़ाव.
आर-स्क्वायर्ड (R-squared)
R-स्क्वायर्ड फ़ंड के मार्केट के साथ संबंध का माप है. इसे किसी फ़ंड की गतिविधियों के प्रतिशत के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है, जिसे बेंचमार्क की गतिविधियों द्वारा समझाया जा सकता है. हम पिछले तीन साल के मासिक रिटर्न की बेंचमार्क से तुलना करके R-स्क्वायर कैलकुलेट करते हैं.
उदाहरण - अगर किसी फ़ंड का R-स्क्वायर 0.50 है, तो फ़ंड के प्रदर्शन में देखी गई लगभग आधी भिन्नता को बेंचमार्क के प्रदर्शन द्वारा समझाया जा सकता है.
R-स्क्वायर 0 और 1 के बीच होता है. 1 का स्कोर बेंचमार्क के साथ एक सही संबंध की ओर इशारा करता है, यानी, फ़ंड के रिटर्न संबंधित इंडेक्स के रिटर्न का बारीक़ी से पता लगाते हैं.
बीटा (Beta)
बीटा मापता है कि किसी फ़ंड का रिटर्न बाज़ार की गतिविधियों को लेकर कितना संवेदनशील है. इससे आपको ये समझने में मदद मिलती है कि बाज़ार के ऊपर या नीचे जाने पर किसी फ़ंड को कितना फ़ायदा या नुक़सान हो सकता है. इस तरह से, ये आपको बताता है कि बाज़ार की तुलना में कोई फ़ंड कितना जोख़िम भरा या अस्थिर है. इसका कैलकुलेशन फ़ंड के पिछले 3 साल के मासिक रिटर्न और बेंचमार्क के आधार पर किया जाता है.
बीटा का इस्तेमाल हमेशा R-स्क्वायर के साथ मिला कर किया जाना चाहिए
उदाहरण के लिए, मान लें कि आपके पास अलग-अलग R-स्क्वायर और बीटा वैल्यू वाले दो एसेट्स हैं:
फंड A: R-स्क्वायर = 0.9, बीटा = 1.5
फंड B: R-स्क्वायर = 0.3, बीटा = 1.5
दोनों फ़ंड्स का बीटा समान है, लेकिन फंड B की तुलना में फंड A ज़्यादा R-स्क्वायर्ड है. इसका मतलब है कि फ़ंड B की तुलना में फ़ंड A का बेंचमार्क से ज़्यादा नज़दीकी संबंध है. फ़ंड A का बीटा फंड B के बीटा की तुलना में ज़्यादा भरोसे वाला और उपयोगी है क्योंकि ये दिखाता है कि बेंचमार्क की तुलना में फ़ंड A असल में कैसा व्यवहार करता है.
बेंचमार्क या (आदर्श) इंडेक्स फ़ंड का बीटा 1 है. एक ज़्यादा हाई बीटा (1 या उससे ज़्यादा के क़रीब) दिखाता है कि फ़ंड की चाल बाज़ार की तुलना में तेज़ है.
हालांकि, कम बीटा (0 के क़रीब) का मतलब कम अस्थिरता नहीं है - ये केवल दिखाता है कि फ़ंड का अपने बेंचमार्क के साथ समानता का गहरा संबंध नहीं है.
बीटा के नकारात्मक मूल्य का मतलब है कि स्टॉक बेंचमार्क से विपरीत रूप से जुड़ा है, यानी, ये बेंचमार्क की गतिविधियों के विपरीत चलता है.
अल्फ़ा (Alpha) (%)
अल्फ़ा किसी फ़ंड के रिस्क-एडजस्टिड रिटर्न का माप है. बीटा द्वारा मापे गए रिस्क के स्तर को देखते हुए, ये रिस्क-एडजस्टिड मार्केट रिटर्न के ऊपर फ़ंड का एक्सट्रा रिटर्न है.
एल्फ़ा कैलकुलेट करने का गणितीय फ़ॉर्मूला (थ्योरी में भी इसे जेसन्स अल्फ़ा कहा जाता है) नीचे दिया गया है:
जहां
ये फ़ंड पोर्टफ़ोलियो का मीन रिटर्न है | |
विचार किए गए समय के लिए रिटर्न की रिस्क फ़्री दर है. | |
ये बेंचमार्क का मीन रिटर्न है | |
ये बेंचमार्क के सापेक्ष फ़ंड का बीटा है |
एक पॉज़िटिव अल्फ़ा दिखाता है कि फ़ंड ने अपने बीटा को देखते हुए उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है. और एक नेगेटिव अल्फ़ा दिखाता है कि फ़ंड मैनेजर ने जो रिस्क लिया है उसे देखते हुए फ़ंड ने कम प्रदर्शन किया है.
शार्प रेशियो (Sharpe ratio)
शार्प रेशियो अनुमानित रिस्क की हर यूनिट फ़ंड के रिटर्न को मापती है. इसके कैलकुलेशन एवरेज मंथली रिटर्न से, रिटर्न के रिस्क-फ़्री रेट को घटाकर और तय किए समय के दौरान इसके स्टैंडर्ड डिविएशन से भाग देकर किया जाता है.
आमतौर पर, शार्प रेशियो जितना ज़्यादा होगा, फ़ंड का ऐतिहासिक रिस्क-एडजस्टेड परफ़ॉर्मेंस उतना ही बेहतर होगा. 1 से ज़्यादा की वैल्यू आमतौर पर अच्छी मानी जाती है, और इससे कम की वैल्यू सब-ऑप्टिमल मानी जाती है.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां
ये फ़ंड पोर्टफ़ोलियो का मीन रिटर्न है | |
विचार किए गए समय के लिए रिटर्न की रिस्क फ़्री दर है. | |
विचार किए गए समय के लिए फ़ंड के रिटर्न का स्टैंडर्ड डीविएशन है |
नुक़सान: शार्प रेशियो का कैलकुलेशन इस धारणा के आधार पर किया जाता है कि रिटर्न सामान्य रूप से वितरित होते हैं, लेकिन असल दुनिया के मार्केट में ऐसा नहीं हो सकता है. इसके अलावा, रेशियो ऊपर या नीचे वाले रिटर्न के बीच अंतर नहीं करता है, और इसकी दिशा की परवाह किए बिना केवल उतार-चढ़ाव पर ध्यान केंद्रित करता है. इसलिए, फ़ंड के रिस्क-रिटर्न कैरेक्टर को बेहतर ढंग से समझने के लिए इसे दूसरे स्टेटेस्टिकल तरीक़ों जैसे सॉर्टिनो रेशियो, मैक्सिमम ड्रॉडाउन जैसी चीज़ों के साथ देखना बेहतर है.
ट्रेनोर रेशियो (Treynor ratio)
ये फ़ंड के मार्केट में लिए गए रिस्क की प्रति यूनिट रिटर्न (रिस्क-एडजस्टेड) का एक माप है. इसका कैलकुलेशन एवरेज मासिक रिटर्न से, रिटर्न के रिस्क-फ़्री रेट दर को घटाकर और उसके बीटा से विभाजित करके निकाली जाती है. रेशियो जितना ज़्यादा होगा, फ़ंड का ऐतिहासिक रिस्क-एडजस्टमेंट प्रदर्शन उतना ही बेहतर होगा.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां
ये फ़ंड पोर्टफ़ोलियो का मीन रिटर्न है | |
विचार किए गए समय के लिए रिटर्न की रिस्क फ़्री दर है. | |
ये बेंचमार्क के सापेक्ष फ़ंड का बीटा है |
न्यूमिरेटर के तौर पर ये फ़ॉर्मूला शार्पर रेशियो से काफ़ी मिलता-जुलता है, हालांकि इसमें दो फ़र्क़ हैं. शार्प रोशियो फ़ंड के रिटर्न के मुक़ाबले ख़ुद का पोर्टफ़ोलियो रिस्क समझने में मदद करता है, वहीं ट्रेनोर रेशियो ये पता लगाता है कि फ़ंड को अपने पोर्टफ़ोलियो की हर यूनिट पर मिला सिस्टमैटिक रिस्क क्या है.
सॉर्टीनो रेशियो (Sortino ratio)
सॉर्टिनो रेशियो, शार्प रेशियो का एक मॉडिफ़ाइड वर्ज़न है, जो केवल नेगेटिव उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखता है, जबकि शार्प रेशियो टोटल ओवरऑल वॉलेटेलिटी को ध्यान में रखता है. ये एसेट के डाउनसाइड डीविएशन का इस्तेमाल करके ऐसा करता है, जो पोर्टफ़ोलियो रिटर्न के टोटल स्टैंडर्ड डीविएशन के बजाय केवल नेगेटिव पोर्टफ़ोलियो रिटर्न का स्टैंडर्ड डीविएशन है.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां
ये फ़ंड पोर्टफ़ोलियो का मीन रिटर्न है | |
विचार किए गए समय के लिए रिटर्न की रिस्क फ़्री दर है. | |
विचार किए गए समय के लिए फ़ंड के रिटर्न का स्टैंडर्ड डीविएशन है |
फिर, शार्प रेशियो की तरह, ज़्यादा ऊंचा सॉर्टीनो रेशियो बेहतर है क्योंकि ये केवल "ख़राब" रिस्क के दिए गए लेवल के लिए फ़ंड के रिटर्न का मूल्यांकन करने में मदद करता है, क्योंकि पॉज़िटिव साइड पर डीविएशन असल में निवेशकों द्वारा इन्ट्यूटिव तरीक़े से रिस्क के तौर पर नहीं लिया जाता है.
इन्फ़ॉर्मेशन रेशियो (Information ratio)
इन्फ़ॉरमेंशन रेशियो इस आधार पर मापा जाता है कि कोई फ़ंड अपने बेंचमार्क से कितना बेहतर प्रदर्शन करता है, जबकि ऐसे हाई रिटर्न पाने में शामिल इनक्रिमेंटल रिस्क (बेंचमार्क की तुलना में) को ध्यान में रखता है. इसका कैलकुलेशन पोर्टफ़ोलियो के रिटर्न से इंडेक्स के रिटर्न को घटाकर और ट्रैकिंग एरर (फ़ंड के रिटर्न के हर एक उदाहरण और तय किए समय के लिए बेंचमार्क के रिटर्न के बीच अंतर का स्टैंडर्ड डीविएशन) से विभाजित करके निकाला जाता है.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां
ये फ़ंड पोर्टफ़ोलियो का मीन रिटर्न है | |
ये बेंचमार्क का मीन रिटर्न है | |
ट्रैकिंग एरर है |
हाई इन्फ़ॉर्मेशन रेशियो बताता है कि रिस्क एडजस्ट करने के बाद, मैनेजर ने बेंचमार्क इंडेक्स की तुलना में लगातार बेहतर रिटर्न हासिल किए हैं.
कोवेरिएंस (Covariance)
कोवेरिएंस, फ़ंड के रिटर्न और उसके बेंचमार्क के बीच का डायरेक्शनल रिलेशनशिप मापता है.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां
विचार किए गए फ़ंड के रिटर्न के प्रत्येक उदाहरण के योग का प्रतीक है | |
फ़ंड पोर्टफ़ोलियो को हर महीने मिलने वाला रिटर्न है | |
ये फ़ंड पोर्टफ़ोलियो का मीन रिटर्न है | |
ये बेंचमार्क के मंथली रिटर्न से जुड़ा हर मामला है | |
ये बेंचमार्क का मीन रिटर्न है | |
वो आंकड़ा है, जितने महीनों का इसमें विचार किया गया है |
एक पॉजिटिव कोवेरिएंस से पता चलता है कि फ़ंड और उसका बेंचमार्क आम तौर पर एक साथ ऊपर या नीचे जाते हैं, जबकि कोवेरिएंस की एक निगेटिव वैल्यू से पता चलता है कि उनके बीच एक विपरीत संबंध है, यानी, वे विपरीत दिशाओं में आगे बढ़ते हैं. यदि कोवेरिएंस शून्य या शून्य के करीब है, तो इसका मतलब है कि फ़ंड और बेंचमार्क के बीच किसी विशेष दिशा में बहुत कम या कोई स्पष्ट संबंध नहीं है.
अपसाइड रेशियो (Upside ratio) (%)
अपसाइड रेशियो ये पता चलता है कि एक फ़ंड का प्रदर्शन उस दौरान कैसा था जब बेंचमार्क के रिटर्न पॉज़िटिव थे. ये स्टेटेस्टिकल पैरामीटर मार्केट के ऊपर जाने के दौरान फ़ंड के प्रदर्शन का आकलन करने में मदद करता है. इसकी तुलना अक्सर डाउनसाइड रेशियो से की जाती है ताकि ऊपर जाते मार्केट में और गिरते हुए मार्केट के दौरान फ़ंड का प्रदर्शन अच्छे तरीक़े से समझा जा सके. इसे कई बार अपसाइड कैप्चर रेशियो के तौर पर भी जाना जाता है.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां
ये बेंचमार्क के रिटर्न पॉजिटिव रहने के दौरान, फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो का मीन रिटर्न है | |
ये पॉजिटिव बेंचमार्क रिटर्न का मीन है |
उदाहरण - अगर फ़ंड का अपसाइड रेशियो 100 से ज़्यादा है, तो इसका मतलब हुआ कि उसका प्रदर्शन बेंचमार्क से बेहतर रहा है जबकि बेंचमार्क ने पॉज़िटिव नतीजे दिए हैं. मिसाल के तौर पर, 130 का अपसाइड रेशियो दिखाता है कि एक नियत समय में मैनेजर ने मार्केट से 30% बेहतर प्रदर्शन किया है.
डाउनसाइड रेशियो (Downside ratio) (%)
डाउनसाइड रेशियो ये मापता है कि फ़ंड ने अपने बेंचमार्क के मुक़ाबले कितना बेहतर प्रदर्शन किया जब बेंचमार्क नेगेटिव रिटर्न दे रहा था. इसकी तुलना अक्सर अपसाइड कैप्चर रेशियो से की जाती है ताकि चाहे मार्केट ऊपर जा रहा हो या नीचे, फ़ंड के प्रदर्शन को पूरी तरह समझा जा सके. इसे अक्सर डाउनसाइड कैप्चर रेशियो भी कहा जाता है.
गणितीय फ़ॉर्मूला:
जहां
ये बेंचमार्क के नेगेटिव रिटर्न की स्थितियों में फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो का मीन रिटर्न है | |
ये निगेटिव बेंचमार्क रिटर्न का मीन है |
उदाहरण - जब फ़ंड का डाउनसाइड रेशियो 100 से कम हो, तो इसका मतलब होता है कि जब बेंचमार्क के रिटर्न नेगेटिव रहे हैं, तो उस दौरान फ़ंड ने बेहतर प्रदर्शन किया है. मिसाल के तौर पर, अगर फ़ंड का डाउनसाइड रेशियो 75 है, तो ये बताता है कि एक नियत समय में बेंचमार्क के मुक़ाबले फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो में केवल 75% की ही गिरावट आई है.
डाउनसाइड रिस्क (Downside risk)
डाउनसाइड रिस्क को फ़ंड के प्रदर्शन के स्टैंडर्ड डीविएशन के तौर पर कैलकुलेट किया जाता है, मगर ऐसा सिर्फ़ नेगेटिव साइड यानी यानी, नुक़सान की स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है. इस तरह से, नेगेटिव रिस्क के लिए गणितीय फ़ॉर्मूला स्टैंडर्ड डीविएशन के समान है, बस इसका कैलकुलेशन केवल उन उदाहरणों के लिए किया जाता है जब फ़ंड ने नेगेटिव रिटर्न दिया हो.
अक्सर डाउनसाइड रिस्क को सेमी-डीविएशन भी कहा जाता है.
उदाहरण - मान लीजिए कि किसी इन्वेस्टमेंट के 10 सालाना रिटर्न इस प्रकार हैं:
5% | -2% | -5% | 1% | 9% | 8% | -3% | 8% | -8% | 12% |
डेटा सेट का स्टैंडर्ड डीविएशन 6.82% है, और इसका डाउनसाइड डीविएशन (यानी, केवल नेगेटिव नंबरोंं के लिए) 2.29% है. इसका मतलब हुआ कि नेगेटिव नंबरों के कारण कुल उतार-चढ़ाव क़रीब 33% का है, वहीं बाक़ी का 67% पॉज़िटिव रिटर्न के कारण है. इस ब्रेकडाउन से साबित होता है कि निवेश में उतार-चढ़ाव की मुख्य वजह "अच्छा" उतार-चढ़ाव है.
मैक्सिमम ड्रॉडाउन (Maximum or Max drawdown) (%)
अधिकतम गिरावट या मैक्सिमम ड्रॉडाउन किसी फ़ंड के सबसे हाई प्वाइंट से सबसे निचले प्वाइट तक होने वाला सबसे बड़ा नुक़सान होता है, जो दिए गए पीरियड में वापस उसके सबसे हाई प्वाइंट पर पहुंचने के पहले रहा हो.
इसका कैलकुलेशन किसी तय अवधि के लिए बनाए गए फ़ंड के ग्राफ के मासिक रिटर्न डेटा के सबसे ऊंचे प्वाइंट और गिरावट के ऑबज़र्वेशन के आधार पर किया जाता है. इस तरह से, इसे इस इक्वेशन के तौर पर दिखाया जा सकता है.
ये तरीक़ा, एक अवधि के दौरान किसी पोर्टफ़ोलियो के डाउनसाइड रिस्क का आकलन करने के काम आता है. एक फ़ंड की दूसरे फ़ंड से तुलना में रिस्क लेवल के लिए आकलन के लिहाज़ से ये एक क़ारगर टूल है.
मैक्स ड्रॉडाउन हमेशा ही नेगेटिव होता है. ये दो फ़ंड्स के बीच तुलनात्मक रिस्क के स्तर का आकलन करने के लिए काम का टूल है. इसलिए, अगर किसी को मैक्स ड्रॉडाउन के इस्तेमाल से, दो फ़ंड्स के बीच रिस्क की तुलना करनी हो, तो जिस फ़ंड के मैक्सिमम ड्रॉडाउन की वैल्यू कम होगी उसे प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि उनके निवेश से होने वाला नुक़सान सबसे कम रहा है. दूसरी तरफ़, सबसे ज़्यादा - 100% का ड्रॉडाउन दिखाएगा कि निवेश की कोई वैल्यू नहीं है, जो कि सबसे ख़राब नतीजा होगा.
उदाहरण - तय अवधि में फ़ंड A और फ़ंड B का, मैक्सिमम ड्रॉडाउन क्रमशः -66% और -40% है. इस प्रकार, फ़ंड B का मैक्सिमम ड्रॉडाउन कम है और इसलिए वो फ़ंड A को मुक़ाबले, उस अवधि में कम रिस्क वाला है.
ये ध्यान देने वाली बात है कि मैक्सिमम ड्रॉडाउन में केवल सबसे अहम नुक़सान की गंभीरता पर विचार किया जाता है, और ये ध्यान में नहीं रखती कि कितनी बार ये अहम नुक़सान होते हैं. ये मीट्रिक कैपिटल प्रिज़र्वेशन पर ध्यान केंद्रित करता है, जो कई निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण विचार है.
मैक्सिमम गेन (Maximum or Max gain) (%)
मैक्सिमम गेन या अधिकतम मुनाफ़ा, एक तय समय सीमा के भीतर लगातार मिलने वाले पॉज़िटिव रिटर्न का सबसे हाई टोटल रिटर्न बताता है. आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं.
दिए गए केस पर ग़ौर करें, जहां हमारे पास एक फ़ंड के लिए महीने के अंत का NAV है.
तारीख़ | फ़ंड NAV | मंथली रिटर्न | टोटल पॉज़िटिव रिटर्न लगातार महीनों तक |
---|---|---|---|
31-12-22 | 10 | ||
31-01-23 | 10.5 | 5.0% | |
28-02-23 | 10.7 | 1.9% | 7% |
31-03-23 | 10.4 | -2.8% | |
30-04-23 | 10.6 | 1.9% | |
31-05-23 | 10.8 | 1.9% | |
30-06-23 | 11 | 1.9% | 5.77% |
7% | |||
मैक्स गेन |
यहां, हम देख रहे हैं कि फ़ंड ने लगातार पहले दो महीनों में पॉज़िटिव रिटर्न दिए हैं, यानी, जनवरी-23 और फ़रवरी-23 में, जब फ़ंड ने 7% का टोटल रिटर्न दिया. इसके बाद, मार्च-23 में इसने नेगेटिव रिटर्न दिया है. इसके बाद, अगले तीन महीनों तक, इसने पॉज़िटिव रिटर्न दिए, जो कुल मिला कर 5.77% रहे.
इस तरह से, जब हम किसी फ़ंड के सबसे हाई रिटर्न देखते हैं जिसमें उस फ़ंड ने लगातार पॉज़िटिव रिटर्न दिए, जो 7% रहे, तो ये तय किए गए छह महीनों में उस फ़ंड का सबसे बड़ा मुनाफ़ा या मैक्सिमम गेन होगा.
मैक्सिमम लॉस (Maximum or Max loss) (%)
मैक्सिमम लॉस या सबसे ज़्यादा नुक़सान, एक तय समय-सीमा के भीतर लगातार मिलने वाले नेगेटिव रिटर्न का सबसे कम कुल रिटर्न है. आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं.
दिए गए केस पर ग़ौर करें, जहां हमारे पास एक फ़ंड के लिए महीने के अंत का NAV है.
तारीख़ | फ़ंड NAV | मंथली रिटर्न | टोटल नेगेटिव रिटर्न लगातार महीनों तक |
---|---|---|---|
31-12-22 | 10 | ||
31-01-23 | 9.8 | -2.0% | |
28-02-23 | 9.6 | -2.0% | -4% |
31-03-23 | 10.6 | 10.4% | |
30-04-23 | 10.3 | -2.8% | |
31-05-23 | 10.2 | -1.0% | |
30-06-23 | 9.8 | 3.9% | -7.55% |
-7.55% | |||
मैक्स लॉस |
यहां, हम देखते हैं कि फ़ंड ने लगातार पहले दो महीनों में, यानी, जनवरी-23 और फ़रवरी-23 में, नेगेटिव रिटर्न दिए हैं, जहां फ़ंड का टोटल रिटर्न -4% था. इसके बाद, फ़ंड में अचानक रैली हुई जिसमें मार्च-23 में इसने हाई पॉज़िटिव रिटर्न दिए. इसलिए, अगले तीन महीनों में, इसने नेगेटिव रिटर्न दिए, जो कुल मिला कर -7.55% रहे.
इस प्रकार, जब हम फंड द्वारा दिए गए सबसे कम रिटर्न को देखते हैं, जहां लगातार नेगेटिव रिटर्न मिला था, तो यह -7.55% है, जो कि छह महीनों में फ़ंड का हुआ अधिकतम नुक़सान है.