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अश्वथ दामोदरन 5 फ़ैक्टर्स पर करते हैं वैल्युएशन

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, Aswath Damodaran किसी कंपनी के वैल्युएशन में किन बातों का ध्यान रखते हैं.

अश्वथ दामोदरन 5 फ़ैक्टर्स पर करते हैं वैल्युएशन

कंपनियों की वैल्युएशन से जुड़ी गहरी जानकारी के दम पर अश्वथ दामोदरन को कई साल से “वैल्यूएशन गुरु” के नाम से जाना जाता रहा है. अनजान लोगों के लिए वो न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में कॉर्पोरेट फ़ाइनेंस और वैल्युएशन के प्रोफ़ेसर हैं, जो वैल्युएशन पर अपनी रिसर्च के लिए जाने जाते हैं.

हमने हाल ही में 'मिलेनियल इन्वेस्टिंग' के साथ उनका एक पॉडकास्ट देखा, जहां दामोदरन ने बिज़नस की वैल्यू बढ़ाने वाले फ़ैक्टर्स पर चर्चा की. दामोदरन के मुताबिक़, जब कंपनी की वैल्युएशन की बात आती है, तो पांच बड़े फ़ैक्टर्स पर विचार करना चाहिए. मोटे तौर पर इन्हें दो कैटेगरी में बांटा जा सकता है, जो क्वालिटी और रिस्क हैं.

क्वालिटी फ़ैक्टर

  • रेवेन्यू ग्रोथ (Revenue growth): किसी भी बिज़नस के लिए रेवेन्यू का बढ़ना क्वालिटी का सबसे अच्छा संकेत है, क्योंकि ये पूरी तरह से बिज़नस बढ़ने पर आधारित है, न कि लागत पर, जो अक्सर मार्केट पर निर्भर होती है. दामोदरन के अनुसार, 'किसी बिज़नस की ग्रोथ का हिस्सा उसके रेवेन्यू में शामिल होता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि ये ग्रोथ का सबसे अच्छा पैमाना है. आप लागत में कटौती करके नेट इनकम बढ़ा सकते हैं, लेकिन रेवेन्यू बढ़ाने के लिए, आपको या तो ज़्यादा आइटम बेचने होंगे या क़ीमत ज़्यादा वसूलनी होगी.'
  • ऑपरेटिंग मार्जिन (Operating margin): प्रॉफ़िट किसी भी बिज़नस के लिए सबसे अहम बात है, और ऑपरेटिंग मार्जिन, प्रॉफ़िट का आकलन करने के सबसे अच्छे पैरामीटर में से एक है. ऐसा इसलिए, क्योंकि ऑपरेटिंग मार्जिन केवल बिज़नस ऑपरेटिंग से होने वाली कमाई पर विचार करता है. हाई ऑपरेटिंग मार्जिन, क्वालिटी बिज़नस का एक अहम संकेत है.
  • कैपिटल एक्सपेंडिचर: ग्रोथ को लगातार बनाए रखने की एक शर्त कैपिटल एलोकेशन है. किसी भी समय, किसी कंपनी की टॉपलाइन या अर्निंग्स में प्रभावशाली ग्रोथ हो सकती है, लेकिन री-इन्वेस्टमेंट के बिना ये ग्रोथ टिकाऊ नहीं हो सकती.

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रिस्क फैक्टर

  • डिस्काउंट रेट: कई लोग इसे बेहतर वैल्यूएशन फ्रेमवर्क में से एक मानते हैं. डिस्काउंटेड कैश फ़्लो (DCF) अनालेसिस, वैल्यूएशन का एक तरीक़ा है, जो भविष्य के संभावित कैश फ़्लो के मौजूदा रेट के आधार पर किसी बिज़नस की वैल्यू का अंदाज़ा लगाता है. आसान शब्दों में कहें, तो ये बिज़नस को इस आधार पर महत्व देता है कि वो फ़्यूचर में कितना कैश तैयार कर सकता है. इस तरीक़े में निवेशक भविष्य के संभावित कैश फ़्लो की मौजूदा वैल्यू पर एक तयशुदा रेट से डिस्काउंट देकर पहुंचते हैं. ये दर (डिस्काउंट रेट) ऑपर्च्युनिटी कॉस्ट या अवसर लागत होता है, यानी, अगर इन्वेस्टर अपनी रक़म को कंपनी के बजाय, एक फ़िक्स्ड इनकम (जैसे सेविंग अकाउंट) में इन्वेस्ट करते हैं, तो वे ब्याज के तौर पर कमाई करेंगे. दामोदरन का कहना है कि निवेशक अक्सर डिस्काउंट रेट या तो बहुत ज़्यादा या बहुत कम तय करते हैं. उनका तर्क है कि अगर किसी कंपनी का कैश फ़्लो फ़िक्स है तो आप लोअर डिस्काउंट रेट लागू कर सकते हैं. हालांकि, निवेशकों को कंज़रवेटिव होना चाहिए और अगर किसी कंपनी का कैश फ़्लो अनप्रेडिक्टेबल है, तो हाई डिस्काउंट रेट लागू करनी चाहिए. वो कहते हैं कि, 'अगर आप ज़्यादा प्रिडिक्टेबल कैश फ़्लो वाले बिज़नस में निवेश कर रहे हैं, और कैश फ़्लो कम प्रिडिक्टेबल है, तो रिटर्न के रेट की तुलना में कम क़ीमत पर समझौता करना ठीक रहेगा.
  • फ़ेल होने का रिस्क: Failure risk हमेशा बना रहता है, यानी कोई भी बिज़नस फ़ेल हो सकता है, और ये इक्विटी इन्वेस्टमेंट में फ़ंडामेंटल रिस्क फ़ैक्टर बना हुआ है. इसलिए, इन्वेस्टर्स को बिज़नस मॉडल की मज़बूती पर ध्यान देना चाहिए. दामोदरन कहते हैं, 'असफलता का रिस्क एक ऐसी बात है जिसे लोग अक्सर भूल जाते हैं, लेकिन आपके बिज़नस की क्षमता और इसकी वैल्यू के लिए, इसका होना ज़रूरी है. कंपनियां कभी-कभी फ़ेल हो जाती हैं. अगर आप एक नई ग्रोथ कंपनी का वैल्युएशन कर रहे हैं, तो ये धरती पर सबसे अविश्वसनीय चीज़ हो सकती है, लेकिन अगर ये अगले तीन साल में सफल नहीं होती है, तो आप उस क्षमता को कभी नहीं देख पाएंगे.'

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पॉडकास्ट में श्री दामोदरन की कही ये मुख्य बातें थीं. हालांकि, ये पॉडकास्ट निवेश संबंधी जानकारियों का खज़ाना है. हम अपने रीडर्स से पूरा वीडियो देखने का आग्रह करते हैं.


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