छोटी कंपनियों का बड़ी और सफल कंपनियों में बदल जाना ही फ़्री मार्केट इकोनॉमी का आधार है. और यही इक्विटी निवेश है. निवेशकों को इससे ज़्यादा ख़ुशी और किसी दूसरी चीज़ से नहीं मिलती कि वो छोटी कंपनी को पहचानें, उसके स्टॉक ख़रीदें, और उसे तब तक बढ़ता हुआ देखें जब तक वो एक बड़ी कंपनी में न बदल जाए, और उस कंपनी के साथ-साथ उनका निवेश भी एक बड़ी पूंजी में तब्दील हो जाए.
पर हां, इसका एक और पहलू भी है. असल में, इसके दो पहलू और हैं. पहला है कि ऐसी कंपनी की पहचान बहुत देर से हो. अगर आप Eicher Motorsऔर Bajaj Finance जैसी चुनिंदा कंपनियों का शुरुआती इतिहास देखेंगे, तो उनके इतना बड़ा हो जाने की कहानी सिर्फ़ आज पीछे मुड़ कर जानी-समझी जा सकती है. जिस वक़्त वो छोटे बिज़नस हुआ करते थे, तब उन्हें लेकर संदेह थे. सच तो ये है कि ये कंपनियां इंडस्ट्री की तमाम दूसरी कंपनियों जैसी ही थीं, और किसी को पता नहीं था कि इनका भविष्य शानदार हो सकता है. और असलियत तो ये है कि किसी तरह के संदेह के बजाए, ज़्यादातर निवेशकों और विश्लेषकों ने तो इन्हें नोटिस ही नहीं किया.
आज, ज़्यादातर वो निवेशक या विश्लेषक बड़े निराश होते हैं कि जो इन विजेता कंपनियों को शुरुआत में ही पहचानने से चूक गए. ऐसी कंपनियों के बारे में पढ़ना किसी गंवा दिए गए अवसर का एहसास कराता है. आख़िरकार, अगर मैंने भी बजाज फ़ाइनांस में निवेश के बारे में तब तक नहीं सोचा, जब तक सारी दुनिया ने नहीं सोच लिया, तो मुझे इस बात की कोफ़्त होगी ही कि काश मैंने निवेश किए जाने वाले इस शानदार स्टॉक में एक दशक पहले निवेश कर दिया होता.
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हालांकि, इक्विटी निवेश इस तरह से काम नहीं करता. दुनिया में ऐसा कोई निवेशक नहीं है जिसके खाते में गंवाए गए अवसर, पाए हुए अवसरों से ज़्यादा हों. वॉरेन बफ़ेट और चार्ली मंगर ने भी ऐसे मौक़े ठीक वैसे ही और उतने ही गंवाए हैं, जितने आपने और मैंने. बर्कशायर हैथवे की कई सालाना मीटिंग्स में, बफ़ेट और मंगर ने अपनी बड़ी ग़लतियां मानी हैं. इसी संदर्भ में उन्होंने गूगल के शुरुआती दौर में निवेश न करने की बात भी स्वीकार की. दिलचस्प ये है कि 2004 के आसपास, उनकी अपनी इंश्योरेंस कंपनी, गूगल की नई एडवर्टाइज़िंग कंपनी से काफ़ी ज़्यादा मुनाफ़ा कमा रही थी. ये बात उन्हें उसी वक़्त समझ भी आ गई, इस विषय पर बातचीत भी हुई, और ये समझ लिया गया कि गूगल का बिज़नस बड़ी संभावनाओं से भरा है, मगर तब भी उसमें कभी निवेश नहीं किया. "हम बस बैठकर अपना अंगूठा चूसते रहे," मंगर ने ये बात गूगल में निवेश नहीं करने को लेकर कही थी.
अतीत में मुड़कर देखने की क्षमता 20/20 के परफ़ेक्ट विज़न की तरह होती है, बफ़ेट और मंगर के लिए भी यही सच है. हालांकि, महत्वपूर्ण ये है कि बजाए अच्छे स्टॉक को पहले न पहचान पाने के फ़ेलियर पर निराश या नाराज़ होने के, इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि ये फ़ेलियर हुआ क्यों, और क्यों कुछ लोग सफल होते हैं. और ऐसा करने के कारण साफ़ हैं - आज ऐसी बहुत सी स्मॉल कैप कंपनियां हैं, जो आगे जाकर बड़ी लार्ज कैप कंपनियां बन जाएंगी. ये होना ही है, मगर अभी मैं इसका कोई सबूत नहीं पेश कर सकता. अगर हम ये पक्का करना चाहते हैं कि हम कल की किसी बजाज फ़ाइनांस और आइशर में निवेश का मौक़ा न गंवाएं, तो हमें ये समझना होगा कि पहले हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ. यही काम मंगर और बफ़ेट कहते रहे हैं कि ये बात, अतीत से सीख और अनुभव लेने की है.
और जहां तक इस कहानी के दूसरे पहलू की बात है, तो वो है, लार्ज कैप का स्मॉल कैप हो जाना, मगर ये बात फिर कभी.
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