एक्सपेंस रेशियो क्या होता है?
एक्सपेंस रेशियो (व्यय अनुपात) एक फ़ीस है जो आप (निवेशक) अपने पैसे का प्रबंधन करने के लिए म्यूचुअल फ़ंड कंपनियों को देते हैं. इसमें फ़ंड प्रबंधन की फ़ीस, एजेंट कमीशन, बिक्री और प्रचार का ख़र्च जैसी फ़ीस शामिल होती है. यहां विस्तार से जानिए म्यूचुअल फ़ंड एक्सपेंस रेशियो क्या होता है .
इक्विटी फ़ंड के लिए एक्सपेंस रेशियो 0.5 से 2.50 प्रतिशत के बीच कहीं भी हो सकता है. ये बहुत बड़ा नहीं लगेगा, लेकिन लंबे समय में आपके रिटर्न को काफ़ी हद तक खा सकता है. 1.5 प्रतिशत का एक्सपेंस रेशियो आपके निवेश के रिटर्न का क़रीब 40 प्रतिशत ख़त्म कर सकता है. 1 प्रतिशत से भी ज़्यादा का एक्सपेंस रेशियो आपके निवेश के कुल रिटर्न का क़रीब 30 प्रतिशत खत्म कर सकता है.
अब, ये आपके कुल रिटर्न के लिए बड़ी मार कही जाएगी.
एक्सपेंस रेशियो को लेकर क्या करें?
आपको ऐसा फ़ंड चुनना चाहिए जिसका एक्सपेंस रेशियो कम हो.
मगर क्या कम एक्सपेंस रेशियो वाला फ़ंड चुनना ही काफ़ी होता है? बिल्कुल नहीं; सबसे पहले तो फ़ंड को लगातार अच्छा प्रदर्शन करने वाला होना चाहिए. इसका मतलब हुआ एक फ़ंड को अच्छे ख़ासे लंबे अर्से के दौरान लगातार बेहतर रिटर्न देना चाहिए.
आइए एक्सपेंस रेशियो को एक मिसाल के समझते हैं
दोनों फ़ंड्स में 40 साल के लिए ₹10 लाख निवेश किए गए
फ़ंड A की तुलना में फ़ंड B ने ज़्यादा रिटर्न दिया
रिटर्न (% सालाना) | एक्सपेंस रेशियो (%) | वैल्यू (करोड़ ₹) | |
---|---|---|---|
फ़ंड A | 10 | 1 | 4.5 |
फ़ंड B | 12 | 1.5 | 5.42 |
दो फ़ंड हैं, A और B . फ़ंड A आपको 10 प्रतिशत सालाना का रिटर्न देता है और 1 प्रतिशत फ़ीस के तौर पर लेता है. फ़ंड B आपको 12 प्रतिशत सालाना का रिटर्न देता है और 1.5 प्रतिशत फ़ीस लेता है. अब, अगर आप 40 साल के लिए ₹10 लाख निवेश करने की सोच रहे हैं, तो फ़ंड A में आपके रिटर्न की वैल्यू ₹4.50 करोड़ होगी, वहीं फ़ंड B में में आपका रिटर्न ₹5.42 करोड़ होगा. साफ़ है, फ़ंड B का रिटर्न फ़ंड A से क़रीब 20 प्रतिशत ज़्यादा होगा.
इससे साबित होता है कि एक्सपेंस रेशियो फ़ंड के चुनाव का इकलौता पैमाना नहीं है. फ़ंड ऐसा होना चाहिए जो लगातार अच्छे रिटर्न देने की क्षमता रखे.
म्यूचुअल फ़ंड का डायरेक्ट प्लान चुनें
एक्सपेंस रेशियो से अपने मुनाफ़े को बचाने का सबसे आसान और सही तरीक़ा होगा कि आप म्यूचुअल फ़ंड का डायरेक्ट प्लान चुनें. डायरेक्ट के फ़ायदे समझने के लिए इस स्टोरी के लिंक पर क्लिक करें - डायरेक्ट बनाम रेग्युलर म्यूचुअल फ़ंड: क्या चुनना है बेहतर .
हालांकि, दोनों प्लान के बीच फ़ीस का अंतर प्रतिशत में ज़्यादा चाहे न भी लगे, मगर समय के साथ ये छोटा सा दिखने वाला अंतर काफ़ी मायना रखने वाला बन जाता है, जैसा कि ऊपर दिए उदाहरण में आप समझ ही सकते हैं.
अगर आप अपने निवेशों को ख़ुद मैनेज कर सकते हैं और फ़ंड के चुनाव में या फ़ंड मैनेज करने में किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है, तो आप आसानी से डायरेक्ट प्लान का चुनाव कर सकते हैं. इससे आप अपना एक्सपेंस रेशियो काफ़ी कम कर लेंगे और समय के साथ कुछ ज़्यादा रिटर्न पा सकेंगे.
कुछ अहम बातें
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म्यूचुअल फ़ंड में निवेश से पहले एक्सपेंस रेशियो ज़रूर चेक करें.
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एक्सपेंस रेशियो का कम होना ही फ़ंड के चुनाव के लिए काफ़ी नहीं है. एक फ़ंड को कम ख़र्च के साथ-साथ अच्छा रिटर्न देने वाला भी होना चाहिए.
- अगर आप ख़ुद अपना निवेश करने वालों में से हैं, तो एक्सपेंस रेशियो को कम करने का सबसे आसान तरीक़ा डायरेक्ट प्लान का चुनाव करना है.
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