मार्केट क्रैश से हर किसी को नफ़रत है। न सिर्फ़ असली क्रैश से, बल्कि हल्की-फुल्की गिरावट भी, ठीक वैसी गिरावट, जिससे इस वक़्त हम गुज़र रहे हैं। अगर फ़ाइनेंशियल और सोशल मीडिया-जहां निवेशक इकठ्ठा होते हैं-उस पर आप एक सरसरी निगाह भी डालेंगे, तो आपको यही लगेगा। असल में, मुझे ये नहीं कहना चाहिए कि मार्केट क्रैश से हर किसी को नफ़रत है, बल्कि ये कहना चाहिए कि तक़रीबन हर किसी को नफ़रत है। कई निवेशक हैं, जिन्हें गिरते हुए मार्केट से फ़र्क़ नहीं पड़ता। इतना ही नहीं कुछ तो ऐसे हैं, जो इसका स्वागत करते हैं। असल में, मैं ख़ुद को इस दूसरे ग्रुप का मानता हूं। मार्केट में गिरावट अच्छी है, कभी-कभी होने वाला क्रैश भी अच्छा है, और कभी-कभार बिज़नस के लिए मुश्किलें भी अच्छी रहती हैं। इनसे डरना नहीं चाहिए, इनका स्वागत करना चाहिए।
चलिए देखते हैं कि कभी-कभार का तनाव मार्केट के लिए, आपके निवेश, और बिज़नस के लिए बेहतर क्यों है। इसके कई कारण हैं, आइए इन्हें सिलसिलेवार ढ़ंग से देखते हैं।
कूड़ा-करकट साफ़ हो जाता है। जब मार्केट तेज़ी के दौर में होता है, या जब आमतौर पर भी ठीक-ठाक भी चल रहा होता है, तो इसके ऊपर झाग की तह इकठ्ठा हो जाती है। जो कंपनियां बुनियादी तौर पर मज़बूत होती हैं, वो असलियत से ज़्यादा मज़बूत स्टॉक होने का भ्रम खड़ा कर देती हैं। सटोरिए ऐसे स्टॉक की तलाश में रहते हैं, जो ख़रीदते ही तेज़ी से ऊपर जाएं, ऐसे में जो स्टॉक सही नहीं हैं, वो भी ऊंचाई पर ट्रेंड करने लगते हैं। पक्का है कि मेरे पाठक ऐसी दुखद कहानियों से अच्छी तरह से परिचित होंगे। जब मार्केट में गिरावट होती है, तब ऐसे स्टॉक साफ़ हो जाते हैं। ये हर बार होता है। जैसे सभी तरह की जाली टेक्नोलॉजी कंपनियां 2001 की मंदी में साफ़ हो गईं। 2008 में, ओवर-हाइप हो चुके इंफ़्रा और कई दूसरे सेक्टरों की बारी थी। इस बार, अगर मार्केट में गिरावट लंबी खिंचती है, तो न्यू एज 'डिजिटल' के धोखाधड़ी वाले बिज़नस ग़ायब हो जाएंगे। ऐसे में उदास चेहरे तो हर बार देखने को मिलते हैं, पर इसके बावजूद ऐसा होना एक अच्छी चीज़ है। न चलने वाले बिज़नस का नकारा जाना कैपिटल मार्केट के सही ढंग से काम करने के लिए उतना ही अहम है, जितना बढ़िया तरीक़े से काम करने वालों का फ़ायदे में रहना।
अच्छा और बेहतर बन जाता है। एक घिसी-पिटी कहावत है कि "मुश्किल वक़्त में, मज़बूत इंसान ही टिकता है," मगर ये घिसी-पिटी इसीलिए है क्योंकि ये सच है। यही हमने पैनडेमिक और दूसरे मुश्किल समय में देखा। इसमें कोई शक़ नहीं कि बहुत से बिज़नस के लिए बुरा वक़्त अच्छा साबित होता है। सभी बिज़नस आर्थिक मंदी से गुज़रते हैं, मगर जो मज़बूत हैं, वो कम परेशानी में पड़ते हैं, ख़ुद को बेहतर तरीक़े से ढाल लेते हैं, और उबरते भी तेज़ी हैं। नतीजा ये होता है कि संकट के बाद ये अपने प्रतिद्वंदियों से कहीं आगे निकल जाते हैं। आमतौर पर, जो बिज़नस बेहतर तरीक़े से मैनेज किए जाते हैं, वो संकट के समय में बेहतर काम करते हैं और ख़ुद को ज़्यादा दक्ष कर लेते हैं। बाद में, जब ग्रोथ के मौक़े आते हैं, तो उनके किए बदलाव फ़ायदेमंद साबित होते हैं। क्राइसिस वही काम करती है जो कड़ी ट्रेनिंग किसी धावक के लिए काम करती है।
निवेशकों को अमूल्य शिक्षा मिलती है। जब स्टॉक मार्केट में अच्छा समय होता है, तब हर पोर्टफ़ोलियो में कुछ झाग इकठ्ठा हो ही जाता है। अनुभव ही सबसे अच्छा शिक्षक है और इक्विटी निवेश में बजाए अच्छे अनुभवों के, ख़राब अनुभव कहीं बेहतर शिक्षक है। असल में, अच्छे अनुभव अगर ख़राब अनुभवों के साथ न मिलें, तो संभव है वो ग़लत शिक्षा ही देंगे। अगर कोई निवेश शुरू करता है और कुछ समय तक सिर्फ़ अच्छा समय ही चलता रहता है, तो उसे असलियत का बिगड़ा हुआ स्वरूप ही देखने को मिलता है। आप निवेश करते जाते हैं और पैसा तेज़ी से बढ़ता जाता है, और मन इसे ही सामान्य मान लेता है। आप ख़ुद को निवेश का जीनियस समझने लगते हैं, और सोचने लगते हैं कि चीज़ें हमेशा ऐसी ही रहेंगी। और फिर बुरे दिन की चोट होती है। दिन कितने बुरे आए हैं ये इस पर निर्भर करता है कि लगने वाली चोट छोटी है, बड़ी है, या फिर बहुत गहरी है। हालांकि, इससे बचा नहीं जा सकता। ये हर निवेशक के जीवन में होता ही है, और आमतौर पर कई बार। महत्वपूर्ण ये है कि अगर आपने कोई भयानक ग़लती नहीं की है जिससे आपका पूरे-का-पूरा निवेश ही साफ़ हो जाए, तो बुरा वक़्त भले के लिए ही होता है। रिस्क को कम करने की बुनियादी बातें, जैसे - डाइवर्सिफ़िकेशन, केवल बुनियादी तौर पर अच्छे स्टॉक्स ही ख़रीदना - ये सबकुछ, जब कड़े अनुभव से आते हैं, तो कभी नहीं भूलते।
अंत में यही कहना है कि मार्केट में थोड़ी-बहुत गिरावट अच्छी है और निवेशकों के लिए अनिश्चितता का समय है। ये एक कड़वी गोली है जिसका नतीजा असल में बहुत अच्छा होगा।
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