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ये डर भी अच्छा नहीं

घड़ी की टिक-टिक में निवेशकों को समय गुज़रता सुनाई दे रहा है और वो एक बूम कर रहे मार्केट से परफ़ेक्ट एग्ज़िट लेने का सही वक़्त तलाशने के लिए मचल रहे हैं. जानिए, ये ग़लती आपको क्यों नहीं करनी चाहिए.

ये डर भी अच्छा नहीं

'मेरी जीत के लिए, हर किसी को हारना होगा'. म्यूज़िकल चेयर का खेल इसी तरह खेला जाता है. सिर्फ़ एक ही विजेता हो सकता है. तो सारा खेल इस बात का है कि आप इस खेल में कितनी देर तक बने रहते हैं. हालांकि सभी खेलने वाले जानते हैं कि इस खेल में जीत से कहीं ज़्यादा चांस हारने का है.

मगर इक्विटी इन्वेस्टिंग इस तरह का खेल नहीं है, जब तक कि आप इसे ऐसा बना नहीं देते. कैसे? एक बार एक अक्लमंद आदमी ने कहा था, पड़ोसी को अमीर बनते देखने से ज़्यादा तकलीफ़ देह और कुछ नहीं होता. अब इस वाक्य में, 'पड़ोसी' की जगह 'दूसरे निवेशक' लिख दीजिए और आप बहुत सारे इक्विटी निवेशकों की सबसे बड़ी मुश्किल को समझ जाएंगे. उन्हें डर होता है कि मार्केट गर्म है और ये पके हुए फल की तरह कभी भी टपक जाएगा. उनका अंतरमन पुकार रहा होता है कि उन्हें तुरंत बेच कर पैसे निकाल लेने चाहिए. अगर उन्हें सच में ऐसा लगता है, तो उन्हें अपने सारे निवेश बेच ही देने चाहिए. मगर वो असल में ऐसा नहीं चाहते कि निवेश से निकलने के बाद उनका पैसा बैंक में पड़ा रहे, और दूसरे लोग जो निवेश में बने रहेंगे वो अमीर होते रहें. नोट करें कि मैं एक पल के लिए भी नहीं कह रहा हूं कि मार्केट क्रैश करने को लेकर उनकी सोच सही है या नहीं.

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निवेशकों के ऐसा महसूस करने की वजह कोई निजी दुश्मनी नहीं होती, बस दूसरों से पिछड़ जाने का डर होता है. अक्सर ऐसा होता है जो पिछले कुछ हफ़्तों में सेंसेक्स की नई ऊंचाइंया छूने से हुआ है कि सेंसेक्स के बढ़ने के साथ निवेशकों की चिंता गहरी होने लगती है. यूं तो निवेश की दुनिया में कई तरह की घबराहट या पैनिक होते हैं. जब मार्केट क्रैश करना शुरू करता है तो बेचने का पैनिक होता है. कुछ लोग ख़रीदने के पैनिक या 'buying panic' के बारे में भी जानते हैं, जो तब होता है जब मार्केट तेज़ी से ऊपर जा रहे होते हैं. और कई लोग तीसरी तरह का पैनिक करते हैं जिसे होल्डिंग पैनिक (holding panic) कहना ठीक होगा. वो अपने निवेश को होल्ड तो किए रहते हैं मगर इस बात को लेकर पैनिक करते हैं कि अब क्या होगा.

मेरी लोगों से बात होती रहती है, और जो भी इस स्थिति में हैं उनका यही सवाल होता है कि उन्हें क्या करना चाहिए. हालांकि अपने निवेश को लेकर उनमें से कुछ लोग पहले से बेहतर स्थिति में होते हैं. वहीं कुछ दूसरे ज़्यादा गंभीर होते हैं, जैसे कि रिटायर होने वाले लोग.

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इनकी कशमकश वास्तिवक होती है. मगर इस स्थिति में कुछ नया नहीं है. पिछले कई दशकों में हमने ऐसे कई दौर देखे हैं. हर बार, जब बाज़ार नई ऊंचाई पर पहुंचता है तो ऐसा ही पैनिक होता है. हालांकि, बचत करने वालों को याद रखना चाहिए कि हर बार, सबसे बड़ी बात ये नहीं कि आपको अपने निवेश बेच कर निकलने का एक परफ़ेक्ट टाइम पता लगाना है. क्योंकि कई बार धीरे-धीरे चढ़ता हुआ मार्केट कई साल तक ऐसा ही बना रह सकता है और ऐसे में बाहर गया शख़्स वापस आने के इंतज़ार में बैठा ही रह जाता है या घाटे का सौदा कर बैठता है.

दरअसल, यहां सवाल ये है ही नहीं कि आपको अपने मार्केट से कब बाहर निकलना है. क्यों कि सही प्वाइंट पर निकलना समस्या का हल है ही नहीं. इसके बजाए, हल ये है कि जब मार्केट बहुत ज़्यादा उतार-चढ़ाव वाला हो, तब आपके निवेश का मिक्स सही होना चाहिए और उसमें सिर्फ़ हाई क्वालिटी स्टॉक होने चाहिए.

जब मार्केट जब करवट लेगा तो आप कुछ पैसे तो कमाएंगे ही. और अगर, आपका एलोकेशन सही है और आप समय-समय पर इसे ठीक करते रहे हैं, तो फ़िक्स्ड एसेट में आपका मुनाफ़ा अच्छा खासा हो जाएगा. इसके अलावा अगर आपके सावधानी से चुने हुए स्टॉक सही वैल्यू पर लिए गए हैं, तो मार्केट चाहे जब पलटे, आप अच्छा ही करेंगे.

ये बातें हवा में की जा रही हैं, क्योंकि एक स्मार्ट निवेशक पिछले कई दशकों से इसी तरह हर तेज़ी और मंदी के साइकल से बाहर निकलता आया है. ये तो इतिहास की बात है जो समय-समय पर ख़ुद को दोहराता है. इसके साथ तालमेल आसान तो नहीं, मगर ये पूरा-पूरा पैसा वसूल मेहनत है.

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