सुरेंद्र पाटकर अपने जीवन के सातवें दशक में हैं। वे किसी आम रिटायर्ड व्यक्ति की तरह नहीं हैं जिनसे आप अक्सर मिलते रहते हैं। आप उनसे पूछें कि वो किन चीजों में दिलचस्पी रखते हैं तो वे आपके साथ एक रोचक लिस्ट साझा करते हैं। मुंबई की एक मिडिल क्लास फैमिली में पले-बढ़े पाटकर नियमित तौर पर शतरंज खेलते हैं और वेस्टर्न घाट और हिमालय में ट्रैकिंग करना पसंद करते हैं। उनके पास क्लासिकल, सेमी क्लासिकल, पुराने हिंदी, मराठी, बंगाली गानों का 20,000 से अधिक का कलेक्शन है। वे अच्छी फिल्में देखने के लिए हर साल तीन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जाते हैं। इकोनॉमिक्स में परास्नातक पाटकर ने 2011 में रिटायर होने से पहले एक पब्लिक सेक्टर बैंक में काम किया है। 15 साल से वैल्यू रिसर्च के पाठक पाटकर इसे एक ईमानदार म्युचुअल फंड गाइड मानते हैं। वे वैल्यू रिसर्च रेटिंग के आधार पर मल्टीकैप जो अब फ्लेक्सी कैप बन गया है और ईएलएसएस फंड में निवेश करते हैं। लेकिन वैल्यू रिसर्च के बहुत से पाठकों के विपरीत सुरेंद्र एकमुश्त रकम निवेश करना पसंद करते हैं।
सुरेंद्र के पास निवेश के विचारों के लिए क्या “करना चाहिए” की सूची के बजाए “क्या नहीं करना चाहिए” की सूची है। इसमें शामिल है डे ट्रेडिंग से बचना, अनजान स्टॉक में निवेश न करना, प्रॉपर्टी और गोल्ड को भरोसेमंद निवेश के विकल्प के तौर पर न देखना और हमेशा मौखिक टिप्स को नजरअंदाज करना। एक अनुशासित निवेशक के तोर पर वे इस पर कड़ाई से अमल करते हैं।
जिज्ञासा वश अपनी निवेश यात्रा शुरू करने वाले पाटकर याद करते हैं “ मेरा ऑफिस बीएसआई टॉवर के नजदीक था। वहां होने वाली गतिविधियों को मैं जानना चाहता था इसलिए उसके बारे में जानकारी जुटानी शुरू की”। उन्होंने 25 साल की उम्र से बचत करना शुरू कर दिया था। उनका पहला निवेश आईपीओ और यूटीआई स्क्ीमों में था। वे आगे बताते हैं “ 1975 में उन दिनों, सेकेंडरी मार्केट निवेश छोटे निवेशकों की पहुंच से बाहर था और ब्रोकर्स छोटे ट्रेड्स के बारे में नहीं सोचते थे। मैं उन दिनों यूटीआई द्वारा लांच की गई हर स्क्ीम में निवेश करता था और यूटीआई इकलौती एएमसी उस समय मौजूद थी। ऐसे में उस समय इक्विटी में निवेश के लिए आईपीओ और यूटीआई जैसे विकल्प ही मौजूद थे”।
यूटीआई मास्टरशेयर उनका पहला मल्टीबैगर निवेश था। वे याद करते हैं कि किस तरह से कुछ अफवाहों की वजह से स्कीम ने 1400 फीसदी की बढ़त दर्ज की और मुनाफा कमाने के लिए उन्होंने अपना निवेश बेच दिया। यूजीएस 2000 और यूजीएस 5000 दूसरी यूटीआई स्कीम्स थीं जिनसे उनको काफी फायदा हुआ। अपनी रणनीति को स्पष्ट करते हुए पाटकर कहते हैं “ ये दोनों स्कीम्स मार्केट में लिस्टेड थीं और इनको यूटीआई ने दोबारा खरीदा था। मार्केट प्राइस उनकी एनएवी से 25- 30 फीसदी कम थी। मैं मार्केट में खरीद करता था और अपने नाम से ट्रांसफर करा कर यूटीआई को सरेंडर कर देता था। इस तरह से मुझे 15-20 फीसदी मुनाफा मिल जाता था”। लेकिन सभी अच्छी चीजों का कभी न कभी अंत होता है और तीन साल तक मुनाफा कमाने के बाद इस रणनीति का अंत भी हुआ।
यूटीआई स्कीम के साथ अपनी पारी के बाद, पाटकर ने स्टॉक्स में भी निवेश करना शुरू किया। उन्होंने बताया“जल्द ही सकेंडरी मार्केट में पहुंच आसान हो गई और मैंने इकोनॉमिक टाइम्स और बिजनेस लाइन के वीकेंड इन्वेस्टमेंट सप्लीमेंट के आधार पर स्टॉक इन्वेस्टमेंट शुरू कर दिया”। दो या तीन माह के होल्डिंग पीरियड के साथ उनके निवेश ने 15-20 फीसदी रिटर्न दिया। 1992 में, हर्षद मेहता घोटाले के पहले उनका निवेश दोगुना हो गया। लेकिन वे बाजार में आई तेजी को लेकर चिंतित और अपना सारा स्टॉक और म्यूचुअल फंड निवेश भुना लिया। उनका डर कहें या समझदारी, उनकी बाजार से निकलने की टाइमिंग कितनी सटीक थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके निवेश बेचने के दो सप्ताह बाद ही बाजार धड़ाम हो गया।
स्टॉक के लिए उनका प्यार बना रहा और वे एचसीएल टेक्नोलॉजीज में अपना निवेश याद करते हैं। एचसीएल ने 1996 और 2000 के बीच उनको शानदार रिटर्न दिया। लेकिन साल 2003 से 2007 के बीच की अवधि पाटकर के लिए बड़ी रकम बनाने वाली रही। उस समय, वे एक लोकल ब्रोकर की ओर से आयोजित इन्वेस्टर मीट में शामिल हुए जहां इस पर बात की गई कि किस तरह से 2003 में शुरू हुई बाजार में तेजी का दौर लंबे समय तक बना रहेगा। उनको यह बात समझ में आई और उन्होंने बाजार से निकलने का प्लान टाल दिया और यह उनके लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ।
इसके बाद जल्द ही, उन्होंने अपना सारा डायरेक्ट स्टॉक इन्वेस्टमेंट बेचने का फैसला किया। इससे वे बाजार की लगातार निगरानी से मुक्त हो गए लेकिन अपने म्यूचुअल फंड निवेश को जारी रखा।
पाटकर अब भी बाजार में अचानक तेजी को लेकर असहज महसूस करते हैं लेकिन हर चीज की तरह उनके पास इसके लिए भी एक रणनीति है। अपने असेट अलॉकेशन के बारे में उन्होंने बताया “आम तौर पर मैं 70-30 इक्विटी-डेट अनुपात मेनटेन करता हूं। लेकिन जब सेंसेक्स पी /ई रेशियो 24 पार कर जाता है तो मैं निवेश बंद कर देता हूं और जब यह रेशियो 26 पार कर जाता है तो मैं चरणों में निवेश बेचना शुरू कर देता हूं। 2008 की तेज गिरावट में मेरे पोर्टफोलियो को फीसदी नुकसान हुआ था इसके बाद मैंने इस पर अमल करना शुरू कर दिया था”।
पाटकर ने स्टॉक्स में दोबारा सीधे तब निवेश करना शुरू किया जब वैल्यू रिसर्च ने 2017 में अपनी स्टॉक एडवाइजर सर्विस शुरू की। उन्होंने शुरूआत में जिज्ञासा वश और रिकमेंड किए गए स्टॉक्स की रिपोर्ट पढ़ने के लिए यह सर्विस सब्सक्राइब की। लेकिन जल्द ही, उनको बॉय एंड होल्ड रणनीति पर भरोसा हो गया।
पाटकर अब वैल्यू रिसर्च के रिकमेंड किए गए स्टॉक को तब तक होल्ड करने का इरादा रखते हैं जब तक कि बेचने की सलाह न दी जाए।
उनके मौजूदा म्यूचुअल फंड होल्डिंग में आदित्य बिड़ला सन लाइफ इक्विटी फंड जो अब आदित्य बिड़ला सन लाइफ फ्लेक्सी कैप फंड, एक्सिस लॉग टर्म इक्विटी फंड, मीरे असेट इंडिया इक्विटी फंड जो अब मीरे असेट लार्ज कैप फंड हो गया है, शामिल हैं।
पाटकर की बातों पर गौर करें तो आपको पता चलेगा कि उन्होंने वास्तव में कुछ ऐसे तरीके अपनाएं जो कोई रिकमेंड नहीं करेगा जैसे एकमुश्त निवेश करना और बाजार में निवेश के लिए सही समय का इंतजार करना। तो क्या उनको निवेश में सफलता किस्मत से मिली ? उनकी सफलता में सबसे बड़ा योगदान उनकी लालच से दूर रहने और बाजार में तेजी का दौर आने पर उसके असर में न आने की क्षमता का रहा है। इसने यह सुनिश्चित किया कि वे अपनी बेटियो की अच्छी शिक्षा के लिए जरूरी रकम का इंतजाम कर सकें और अपने रिटायरमेंट के लिए अच्छी रकम बना सकें। इसके अलावा अपने इक्विटी-डेट अलॉकेशन को लेकर अनुशासन और बाजार के स्तर के हिसाब से रीबैलेंसिंग ने यह सुनिश्चित किया कि उनको सालों में बनाई गई रकम में बड़ा नुकसान नहीं उठाना पड़ा।
उनकी पेंशन से उनका मासिक खर्च चल जाता है और उनका रिटायरमेंट कॉर्पस बना हुआ है। वे हर साल तीन बार फैमिली टूर पर जाते हैं और दो एनजीओ को 1-1 लाख रुपए दान देते हैं। एक एनजीओ गरीब बच्चों की एजुकेशन के लिए काम करती है और दूसरी जल संरक्षण के लिए काम करती है।
वे रिटायरमेंट के बाद एक शांत और आरामदेह जिंदगी का क्रेडिट इक्विटी में अपने निवेश को देते हैं।