मेरी निवेश यात्रा

एसआईपी का फ़ैन

एक वक़्त ऐसा भी था जब इन्वेस्टमेंट बैंकर हेमंत जय, भारतीय स्टॉक मार्केट को लेकर अविश्वास से भरे थे मगर अब एसआईपी के मुरीद बन चुके हैं। जानिए उनके नज़रिए में ये बदलाव कैसे आया।

एसआईपी का फ़ैन

वैल्यू रिसर्च पढ़ने वालों में शुमार, हेमंत जय के लीक से हट कर होनम की कई वजह रही हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इन्फ़ोसिस में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के तौर पर की। स्टॉक मार्केट पर बातचीत उनके घर में डिनर टेबल पर ज़रूर होती रहीं, मगर हर्षद मेहता और केतन पारेख जैसे स्कैम ने उन्हें मार्केट से दूर ही रखा। हेमंत मानते हैं कि वो अपने नज़रिए में काफ़ी कंज़र्वेटिव हैं। मगर ज़िंदगी लोगों को वहां ले ही जाती है जहां उन्हें पहुंचना होता है। सिंगापुर में रहने वाले 40 वर्षीय इन्वेस्टमेंट बैंकर, हेमंत ख़ुद को सिस्टेमिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) का फ़ैन मानते हैं। उन्होंने इसमें अपना निवेश 2011 में शुरु कर दिया था। उन्हें इस तरफ़ ले जाने का श्रेय उनकी पत्नी (रीना) को जाता है हालांकि ज़्यादातर परिवारों में इसका उलटा ही होता है। आइए हेमंत की दिलचस्प कहानी जानते हैं।
शुरुआत हुई टेक्नोलॉजी से
हेमंत मुंबई के मध्यम-वर्गीय गुजराती परिवार में पले-बढ़े। उनके माता-पिता दोनों ही पब्लिक सैक्टर बैंक से रिटायर हुए। मुंबई से स्कूल की पढ़ाई ख़त्म करने के बाद, हेमंत पुणे आ गए, जहां उन्होंने 1998 में कंप्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रैजुएशन किया। हालांकि सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के तौर पर उन्होंने मंगलौर और पुणे में काम किया, मगर ये काम उन्हें पसंद नहीं आया। इसी वजह से उन्होंने आईआईएम कलकत्ता से एमबीए करने का फ़ैसला किया।
सलाह पर नज़रिया
एमबीए करने के बाद, 2002 में हेमंत ने टाटा स्ट्रेटेजिक मैनेजमेंट ग्रुप में, मैनेजमेंट कंसल्टेंट के तौर पर काम शुरु किया। इस समय तक उन्होंने अपने वयस्क जीवन का पहला, डॉट-कॉम बबल के बड़े होने से लेकर, फूटने तक का पूरा साईकल देख लिया था। यहां उन्हें कई इंडस्ट्रीज़ के बारे में सीखने को मिला जैसे - मीडिया, टेलिकॉम, डेरी, केमिकल्स, टैक्नोलॉजी, मैन्युफ़ैक्चरिंग, आदि। हेमंत बताते हैं, ‘बहुत कम उम्र में ही मुझे टॉप मैनेजमेंट के साथ काम करने का मौक़ा मिल गया। इसका नकारात्मक पहलू ये रहा कि मुझे सलाह देने का बिज़नस एक स्तर पर खोखला लगने लगा’। उनकी चाहत थी कि वो एक ऐसे क्षेत्र में काम करें, जिसके ज़रिए वो लोगों के जीवन में सही मायने में प्रभाव डाल सकें।
यही वो वक़्त था जब उन्होंने इन्वेस्टमेंट बैंकिंग के क्षेत्र में जाने का फ़ैसला किया। हेमंत बताते हैं, 'मैंने 2004 की शुरुआत में मुंबई में डीएसपीएमएल की कॉर्पोरेट-फ़ाइनेंस टीम ज्वाइन कर ली। वहां पहुंच कर मुझे लगा कि मैंने ऐसा काम तलाश लिया है जो मेरे लिए बिल्कुल सही था। यहां मुझे एहसास हुआ कि फ़ाइनांस बहुत दिलचस्प है, और मैं इसमें अच्छा हूं। तो, ये मेरे लिए बिल्कुल सही करियर का चुनाव बन गया,’ इसके बाद हेमंत 2004 में हॉंग-कॉंग चले गए जहां वो मैरिल लिंच के साथ जुड़े, और फिर 2005 में सिंगापुर चले गए। सिंगापुर में उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय निवेश बैंकों में काम किया।
स्टॉक से परहेज़
भारतीय स्टॉक मार्केट को लेकर हेमंत की अपनी शंकाएं रही हैं। इसके अलावा उन्हें स्टॉक मार्केट में सीधे निवेश करना बहुत झंझट वाला काम लगता है। निवेश के अपने ख़राब अनुभव को याद करते हुए हेमंत 2009 में किए दो निवेशों के बारे में बताते हैं, 'उसके ग़लत नतीजे मिले और मैंने अच्छा ख़ासा पैसा गंवा दिया। मगर फिर जैसे ही समझ आया कि मेरे अपने आकलन ग़लत साबित हुए हैं, मैंने अपने नुक़सान की तेज़ी से भरपाई करनी शुरु की। नुक़सान बेहद तक़लीफ़देह तो था मगर, जैसा कि कहा जाता है, ज़िंदगी रुकती नहीं है'।
2014 में उन्हें वैल्यू रिसर्च के बारे में पता चला। यात्रा करने और पढ़ने के शौक़ीन हेमंत बताते हैं, ‘मेरी पत्नी वेबसाईट का काफ़ी इस्तेमाल करती थी और उसने ही मुझे इसके बारे में बताया। पहले कुछ साल, मैंने गेस्ट के तौर पर आर्टिकल पढ़े। जब मुझे वैल्यू रिसर्च के सिद्धांतों और नज़रिए पर पूरी तरह से भरोसा हो गया तो मैंने, वैल्थ इनसाईट और म्यूचुअल फ़ंड इनसाईट मैग्ज़ीन सब्सक्राइब कर लीं’।
म्यूचुअल फ़ंड का फ़ंडा
हेमंत ने 2011 में कुछ म्यूचुअल फ़ंड निवेश (एसआईपी) शुरु किए। हेमंत पूरी दृढ़ता और उत्साह से बताते हैं, ‘तब से मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा है। म्यूचुअल फ़ंड एसआईपी शुरु करने के एक साल के भीतर ही मैंने इसकी ताक़त देखी। इसके बाद मैं इसमें और ज़्यादा उत्साह से रुचि लेने लगा। मैं अपनी एसआईपी की रक़म को और म्यूचुअल फ़ंड निवेश को पिछले कुछ साल से धीरे-धीरे बढ़ाता रहा हूं’।
हेंमत उसी दौरान से एसआईपी में अपने निवेश को जारी रखे हुए हैं। वो कहते हैं कि धीरज एक ऐसी ख़ूबी है जो कुछ निवेशकों में स्वाभाविक तौर पर होती है। अपना अनुभव शेयर करते हुए वो कहते हैं, ‘मैं एसआईपी को कभी बंद नहीं करता हूं। 2011 में, जब से मैंने शुरुआत की है तब से अब तक मैंने तीन ही फ़ंड में निवेश को रोका है, और उसकी वजह ये रही कि वो बिल्कुल ही बैठ गए थे। मैं मानता हूं कि फ़ंड चुनते हुए हमें स्कीम के अलावा, फ़ंड हाउस को भी देखना चाहिए और फ़ंड मैनेजमेंट टीम को भी (सिर्फ़ फ़ंड मैनेजर को ही नहीं)। सिर्फ़ फ़ंड मैनेजर के आधार पर चुनाव करने का मतलब है, सचिन तेंदुलकर की क़ाबिलियत पर ही पूरा भरोसा कर लेना और बाक़ी की भारतीय क्रिकेट टीम और सपोर्ट स्टाफ़ को बिल्कुल नज़रअंदाज़ कर देना’।
एक बार आप उन लोगों पर भरोसा कर लेते हैं, जो शो को चला रहे हैं तो आपको उन पर पूरा विश्वास रखना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, हेमंत के निवेश की लिस्ट में 2011 और 2013 से, एचडीएफ़सी टॉप 200 (अब एचडीएफ़सी टॉप 100 फ़ंड) और एचडीएफ़सी प्रूडेंस (अब एचडीएफ़सी बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड) शामिल रहे हैं। वो कहते हैं, ‘पिछले कुछ समय से, मैंने प्रेस में एचडीएफ़सी फ़ंड के ढीले-ढाले प्रदर्शन के बारे में काफ़ी कुछ पढ़ा है। मगर मुझे लगता है कि ऐसा कहने वालों की सोच दूर की नहीं है। मुझे भरोसा है कि प्रशांत जैन और एचडीएफ़सी की एएमसी टीम लंबे वक़्त में निवेशकों को अच्छे नतीजे देगी। दरअसल, मैं एचडीएफ़सी की फ्रैंचाइज़ और उनके निवेशक के लिए वैल्यू जोड़ने पाने के ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर ये भरोसा जता रहा हूं। और अगर एचडीएफ़सी प्रशांत जैन में भरोसा जता रहा है, तो मैं भी ऐसा ही करूंगा’।
आमतौर पर हेमंत एक प्योर इक्विटी फ़ंड निवेशक हैं, उनके पोर्टफ़ोलियो में एक-दो डेट फ़ंड सिर्फ़ इसीलिए हैं कि उनका पोर्टफ़ोलियो बैलेंस रहे। अपने पोर्टफ़ोलियो को और बैलेंस करने के लिए, उनके पास फ़िक्स-इन्कम के कुछ दूसरे निवेश भी हैं। हेमंत कहते हैं कि उनके पास लार्ज, मल्टी, मिड और स्मॉल-कैप फंड और सेक्टोरल फ़ंड हैं। उनकी सबसे लंबी चलने वाली एसआईपी हैं, एचडीएफ़सी टॉप 200 (अब एचडीएफ़सी टॉप 100 फ़ंड) और एचडीएफ़सी प्रूडेंस (अब एचडीएफ़सी बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड), डीएसपी ब्लैकरॉक इक्विटी (अब डीएसपी फ़्लैक्सी कैप फ़ंड), आईडीएफ़सी प्रीमियर इक्विटी (अब आईडीएफ़सी फ़्लैक्सी कैप फ़ंड), सुंदरम सलेक्ट मिड कैप (अब सुंदरम मिड कैप फ़ंड), एल एंड टी इक्विटी (अब एल एंड टी फ़्लेक्सीकैप फ़ंड) और रिलायंस ग्रोथ (अब निप्पॉन इंडिया ग्रोथ फ़ंड)।
अपने बूते पर अपने फ़ैसले
हेमंत ने वैल्यू रिसर्च की सलाह से इतर फ़ैसला, दो बातों को लेकर लिया है। पहला, उनके पास हर कैटेगरी के फ़ंड में से कुछ फ़ंड मौजूद हैं, और दूसरा, उन्होंने सैक्टोरल फ़ंड्स में भी निवेश किया है। हेमंत कहते हैं, 'मुझे लगता है कि हर कैटेगरी में कई फ़ंड रखने से मैं एएमसी/ फ़ंड मैनेजर के रिस्क को कम कर रहा हूं, अगर वो कहीं ग़लती करते हैं तो। मेरे पोर्टफ़ोलियो में कई तरह के एएमसी हैं। सबसे ज़्यादा स्कीम आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल की हैं, रिलायंस (अब निप्पॉन इंडिया), एसबीआई और फ़्रैंकलिन टैंपल्टन की हैं। वैल्यू के लिहाज़ से मेरा सबसे ज़्यादा एक्सपोज़र एचडीएफ़सी, सुंदरम, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल और रिलायंस (अब निप्पॉन इंडिया) में है।
हेमंत म्यूचुअल फ़ंड के अपने सुखद अनुभव का श्रेय सलाह देने वालों को देते हैं। हेमंत कहते हैं, ‘निवेश के बारे में कहूं, तो शुरुआत में, मैं रेग्युलर प्लान में था। मगर 2015 में, मुझे म्यूचुअल फ़ंड इन्वेस्टमेंट समझ में आने लगा और अब मैं डाइरेक्ट इन्वेस्टर हूं। मैंने अपने सभी रेग्युलर प्लान, डाइरेक्ट प्लान में बदल लिए हैं और मैं ख़ुद ही उन्हें मॉनिटर करता हूं। इस सब का श्रेय मुझे सलाह देने वाले को जाता है जिन्होंने ख़ुद ही मुझे कहा, कि मेरे प्रोफ़ाइल को देखते हुए मुझे डायरेक्ट में निवेश करना चाहिए’।
अगर समय में पीछे जा कर कुछ बदलने के सवाल पर वो कहते हैं कि अगर वो कर सकते, तो म्यूचुअल फ़ंड में अपना निवेश 2002 में ही शुरु कर देते। वो मानते हैं, ‘सन 2002 में एमबीए करने के बाद, अपनी नौकरी से मैं अच्छे पैसे कमा रहा था और तभी मुझे निवेश करना शुरु कर देना चाहिए था (उस वक़्त सेन्सेक्स 3,000 से नीचे था)। मगर भारतीय मार्केट को लेकर मैं बहुत आशंकित हुआ करता था’।
निवेश करने को लेकर हेमंत की अपनी फ़िलॉसफ़ी भी है। इस काम में भी - जिस इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में काम करते हैं और बहुत बड़े क्लायेंट और बड़ी रक़म से डील करते हैं - पैसा हमेशा एक माध्यम है, अपने आप में लक्ष्य नहीं है।
जब निवेश के निर्णय लेने की बात होती है, हेमंत कहते हैं कि वो डेटा को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करते, मगर सिर्फ़ उसी के भरोसे ही अपने निर्णय नहीं लेते। वो अपनी बात के अंत में कहते हैं, ‘अंतिम निर्णय तो मेरी अपनी स्वाभाविक समझ के आधार पर ही होता है’।
ये स्टोरी पहली बार जुलाई 2018 में छपी थी।
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