जब हम लंबी अवधि में बड़ी रकम जुटाने के लिए प्लानिंग करते हैं तो सोचते हैं कि इसके लिए क्या करें। वास्तव में क्या करें उतना अहम नहीं है, जितना अहम है क्या न करें। दिल्ली में रहने वाले सिविल इंजीनियर बासब घोष ने कम अवधि के लिए रिटर्न में गिरावट के बावजूद अपने फंड पर भरोसा बनाए रखा। उन्होंने बार बार एक फंड से निवेश भुना कर दूसरे फंड में निवेश नहीं किया। इसके अलावा उन्होंने बाजार में तेज गिरावट आने पर भरोसा बनाए रखा। लंबी अवधि में इसका नतीजा यह हुआ कि बसाब घोष ने अपने रिटायरमेंट के लिए बड़ी रकम जुटाने में सफल रहे। उनका ज्यादातर निवेश म्युचुअल फंड में था। घोष ने 2012 में एक मल्टीनेशनल कंपनी से रिटायर होने से पहले कई भारतीय और मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया है।
वैसे तो वासब घोष ने काफी पहले यानी 1986 में म्युचुअल फंड में निवेश शुरू कर दिया था। उस समय यूटीआई मास्टर शेयर बाजार में आया था। निवेश के बारे में ज्यादा जानकारी न होने की वजह से उन्होंने काफी बाद में यानी 2005 से सक्रिय तौर पर निवेश करना शुरू किया। घोष उस समय शारजाह में रहते थे। ऐसे में निवेश के लिए कार्वी कंप्यूटरशेयर की अकाउंट एग्जीक्यूटिव से नियमित तौर पर सलाह लेते थे। घोस ने बताया ‘ मैने उनसे पूछा कि मैं नियमित तौर पर निवेश के बारे में और ज्यादा कैसे सीख सकता हूं। अकाउंट एग्जीक्यूटिव ने मुझे वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन पढ़ने के लिए कहा। मैंने इस वेबसाइट पर जाना शुरू किया और मैंने पाया कि निवेश के लिए सही फंड चुनने और अपना पोर्टफोलियो मैनेज करने में यह बेहद मददगार है। ‘
घोष का स्वभाव है कि वे कुछ करने से पहले उस काम को लेकर खुद को मानसिक तौर पर तैयार करते हैं। वे निवेश करने से पहले फंड के पिछले प्रदर्शन की जांच करते हैं और उपलब्ध टूल्स के जरिए स्कीमों की तुलना करते हैं। उन्होंने बताया मुझे यह बात अच्छी लगती है कि आप सलाह देने वाली सेवा नहीं चलाते हैं। आप आंकड़े उपलब्ध कराते हैं जिससे व्यक्ति खुद निवेश के बारे में फैसले कर सके।
असेट अलॉकेशन और म्युचुअल फंड
मौजूदा समय में घोष का पोर्टफोलियो इस तरह से है। उनका 27 फीसदी निवेश इक्विटी में और 38 फीसदी डेट में है जबकि 35 फीसदी निवेश बैलेंस्ड फंड में है। वे अपनी पोर्टफोलियो के लंबी अवधि के रिटर्न से काफी खुश हैं हालांकि ये हमेशा इतना आसान नहीं रहा है। उन्होंने बताया ऐसा नहीं है कि मुझे हमेशा अच्छा रिटर्न ही मिला। 2007 और 2008 के बीच बाजार में तेज गिरावट के दौर में मुझे नुकसान भी हुआ। लेकिन यह समय बीत जाने के बाद बाजार में आई तेजी ने इस नुकसान की भरपाई कर दी और आज उनका पोर्टफोलियो दोहरे अंक में रिटर्न दिखा रहा है।
उनके निवेश का बड़ा हिस्सा चार पांच बैलेंस्ड फंड में है। इसके अलावा उन्होंने कुछ निवेश लॉंग टर्म इक्विटी परफार्मर में भी किया था। एचडीएफसी इक्विटी, बिड़ला फ्रंटलाइन इक्विटी, आईडीएफसी प्रीमियर इक्विटी, एचडीएफसी प्रूडेंस और एचडीएफसी बैलेंस्ड ने उनको अच्छा रिटर्न दिया। इसके अलावा रिलायंस बैंकिंग फंड से भी उनको अच्छा रिटर्न मिला।
फंड पर बना रहा भरोसा
घोष ने बताया पिछले साल एचडीएफसी इक्विटी की रेटिंग गिर गई। इसी तरह से आईडीएफसी इक्विटी की रेटिंग में भी गिरावट आई। लेकिन उन्होंने दोनों फंड के साथ बने रहने का फैसला किया। उन्होंने बताया कि हाल के महीनों में एचडीएफसी इक्विटी का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है और वैल्यू रिसर्च रेटिंग में फंड फाइव स्टार रेटिंग से कर थ्री स्टार रेटिंग पर आ गया। लंबी अवधि में मेरा इस फंड को लेकर अनुभव काफी अच्छा रहा है। ऐसे में मैने निवेश बनाए रखने का फैसला किया। इसी तरह से उन्होंने आईडीएफसी फंड्स के साथ भी बने रहना बेहतर समझा। उन्होंने बताया मैंने पाया कि दोनो फंड स्टेबल हैं। मैं ऐसे फंड पसंद करता हूं जो बाजार का खराब दौर आने पर बहुत ज्यादा गिरावट में न जाएं।
घोष ने कहा फंड की रेटिंग गिरने से मुझे डर नहीं लगता। सालों के दौरान मैंने देखा है कि अगर किसी फंड का एक साल का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं है तो उसकी रेटिंग फाइव स्टार से गिर कर थ्री स्टार पर आ जाती है। मैं कम अवधि के रिटर्न के बजाए लंबी अवधि के प्रदर्शन के आधार पर निवेश करता हूं।