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PB ratio क्या है? आपकी स्टॉक इन्वेस्टिंग में कैसे काम आएगा?

What is Price to Book PB Ratio: वैल्यू इन्वेस्टिंग में इसका अहम रोल है

PB रेशियो क्या होता है?

वैल्यूएशन मेट्रिक्स ऐसे टूल्स हैं, जिनका इस्तेमाल कंपनियों की फ़ाइनेंशियल ताक़त का पता लगाने के लिए किया जाता है और इसका कैलकुलेशन बैलेंस शीट, इनकम स्टेटमेंट और कैश-फ़्लो स्टेटमेंट के लिए गए आंकड़ों का इस्तेमाल करके की जाती है. ये रेशियो कंपनियों की प्रॉफ़िटेबिलिटी, लिक्विडिटी, ऑपरेशनल एफ़िशिएंसी और स्थायित्व का आकलन करते हैं, जिससे निवेशकों को कंपनियों के बारे में गहरी जानकारी मिलती है. रेशियो अलानेसिस का फ़ायदा उठाकर, निवेशक अच्छी तरह से सोचे-समझे फ़ैसले ले सकते हैं.

क्या है प्राइस-टू-बुक रेशियो

what is price to book ratio in stocks: प्राइस-टू-बुक रेशियो (P/B ratio) आम तौर पर वैल्यू इन्वेस्टर्स द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला टूल है. P/E रेशियो जो मुख्य रूप से कंपनी की इनकम पर केंद्रित होता है, इसके विपरीत P/B रेशियो से पता चलता है कि कंपनी अपनी एसेट्स (अपनी देनदारियों का भुगतान करने के बाद) की तुलना में कितनी महंगी है. इसकी कैलकुलेशन प्रति शेयर प्राइस (या कंपनी के मार्केट कैपिटलाइज़ेशन) को प्रति शेयर बुक वैल्यू (या कंपनी की नेट वर्थ) से विभाजित करके की जाती है.

आइए इसे रिलायंस इंडस्ट्रीज के उदाहरण से समझते हैं, जो लगभग ₹2,987 प्रति शेयर पर कारोबार कर रहा है और इसकी बुक वैल्यू ₹1,197 है। इसलिए, इसका P/B रेशियो 2.5 है. इसका मतलब है कि निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्वामित्व वाली नेट एसेट्स के हर रुपये के लिए ₹2.5 का भुगतान करने के लिए तैयार हैं. वहीं, अगर कोई कंपनी 1 से कम के P/B पर कारोबार कर रही है, तो इसका मतलब है कि निवेशक ₹1 से कम में ₹1 की एसेट ख़रीद सकते हैं।

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पीबी रेशियो चेक करने के फ़ायदे

P/E रेशियो की तरह ही, P/B रेशियो कंपनी की वैल्यूएशन की एक आसानी से समझ में आने वाली तस्वीर बताता है जो उसकी नेट वर्थ के संबंध में है. ये ज़्यादा स्थिर है (चूंकि एसेट की क़ीमतें आय की तरह अस्थिर नहीं होती हैं) और इसका इस्तेमाल उन कंपनियों के वैल्यूएशन के लिए भी किया जा सकता है जिन्होंने प्रॉफ़िट नहीं कमाया है. स्टार्ट-अप और लिक्विडेशन से गुजर रही कंपनियां इसी कैटेगरी में आती हैं.

पीबी रेशियो की कमियां

हालांकि, ये मेट्रिक एसेट्स की अकाउंटिंग पर आधारित है और इसलिए, इससे कंपनी की सभी एसेट्स की सही वैल्यू ज़ाहिर नहीं होती है, क्योंकि अकाउंटिंग सिस्टम अभी तक आइडिया, ह्यूमन कैपिटल, डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और बौद्धिक संपदा (जिनकी वैल्यू निकालना बहुत मुश्किल होता है) जैसी अवास्तविक एसेट्स (intangible assets) के वैल्यूएशन के लिए विकसित नहीं हुई हैं. भले ही, बुक वैल्यू अतीत में बेहद प्रासंगिक रही होगी जब ज़मीन, फ़ैक्ट्री, इक्विपमेंट और बिल्डिंग जैसी फ़िज़िकल और वास्तविक एसेट्स एक बिज़नस चलाने के लिए ज़रूरी प्राथमिक एसेट्स थीं, लेकिन आधुनिक युग में इनकी प्रासंगिकता कम हो रही है जब अवास्तविक एसेट्स का रेशियो बढ़ रहा है. ई-कॉमर्स कंपनियां इसका एक उदाहरण हो सकती हैं.

इस प्रकार, अवास्तविक एसेट्स के ज़्यादा रेशियो वाली कंपनियों का P/B रेशियो, वास्तविक एसेट्स की समान मात्रा वाली कंपनियों की तुलना में देखने मेंं ज़्यादा लगता होगा.

इस मीट्रिक की एक और कमी ये है कि एसेट्स की वैल्यू मैनेजमेंट के विवेक पर निर्भर करती है, क्योंकि डेप्रिशिएशन और गुडविल जैसी एंट्रीज़ में एसेट्स की बुक वैल्यू को बढ़ाने या घटाने के लिए हेरफेर किया जा सकता है.

साथ ही, ये मीट्रिक उन कंपनियों पर लागू नहीं किया जा सकता है, जिनकी नेटवर्थ नेगेटिव है. उदाहरण के लिए, स्पाइसजेट की नेटवर्थ अभी नेगेटिव है और स्टार्टअप के साथ-साथ मुश्किल दौर से गुज़र रही मैच्योर कंपनियों के साथ भी ऐसी हो सकता है.

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